Saturday 27 December 2014

असम में न रुकती आतंकी हिंसा

हमने देखा है कि आमतौर पर जब भी हम आतंकवाद की बात करते हैं तो हम इन जेहादी गुटोंöलश्कर--तैयबा, जैश--मोहम्मद व अलकायदा की घटनाओं का जिक्र करते हैं। इनके द्वारा किए गए आतंकी हमलों की बात करते हैं। लेकिन देश के अंदर भी ऐसे कई संगठन हैं जो आतंकी गतिविधियों में लिप्त हैं पर उनका ज्यादा जिक्र नहीं होता। ऐसा ही एक संगठन है उल्फा। असम में उग्रवादी हिंसा का सिलसिला थोड़े-बहुत उतार-चढ़ाव के साथ कई दशकों से जारी है। सन 2014 का अंत होते-होते उग्रवादियों ने असम के सोनितपुर और कोकराझार जिलों में भीषण हत्याकांड करके अपनी रक्तरंजित उपस्थिति दर्ज करवा दी है। बोडो उग्रवादियों ने दूरदराज के आदिवासी गांवों को निशाना बनाया है। मारे गए लोगों में काफी सारे बच्चे व महिलाएं हैं। गुस्से से भरे आदिवासियों ने पांच बोडो परिवारों पर बदला लेने के लिए हमला कर दिया। इस हत्याकांड में 50 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। 20 घर पूंक डाले। इस हत्याकांड के पीछे बोडो उग्रवादियों के संगठन नेशनल डेमोकेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (सगंबजीत) का, जिसे संक्षेप में एनडीएफबी (एस) के नाम से जाना जाता है, का हाथ है। यह हत्याकांड बताता है कि भारत के दूरदराज सीमांत इलाकों में रहने वाले लोग निरर्थक हिंसा और अशांति को झेल रहे हैं। उल्फा के कई पदाधिकारियों की गिरफ्तारी और फिर इसके प्रमुख धड़े के शांति प्रक्रिया में शामिल होने के बाद से यह माना जा रहा है कि असम को उग्रवादी हिंसा से काफी हद तक निजात मिल गई है। मगर इस धारणा पर एक बार फिर सवालिया निशान लग गया है। दरअसल चाहे उल्फा हो या एनडीएफबी यानि नेशनल डेमोकेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड, इनके वैसे धड़े जो शांति-समझौतों में शामिल नहीं हुए, अब भी हथियारबंद हैं और जब-तब अपहरण, हत्या और धमाकों को अंजाम देते रहते हैं। कभी इनके निशाने पर सुरक्षाकर्मी होते हैं तो कभी साधारण लोग। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने ठीक ही इन हमलों को बर्बरतापूर्ण करार दिया है। एनडीएफबी बोडो अलगाववादियों का सबसे उग्र संगठन है जिससे सरकार किसी किस्म का समझौता नहीं करना चाहती। इस संगठन का कहना है कि वह स्वतंत्र बोडोलैंड से कम किसी बात पर समझौता करने को तैयार नहीं है। एनडीएफबी में दो गुट हैं। इनमें से एक सरकार से बातचीत नहीं करना चाहता तो दूसरा गुट बातचीत के समर्थन में है। जिस समूह ने यह हत्याकांड किया है वह मूल एनडीएफबी की सशस्त्र इकाई बोडोलैंड आर्मी के पूर्व अध्यक्ष सगंबजीत का गुट है। उत्तर-पूर्व के आतंकी संगठन अपनी उपस्थिति दर्ज कराने या अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए इस तरह के हत्याकांड करते रहते हैं। उनके इस कारोबार का खामियाजा आम नागरिक भुगतते हैं। उत्तर-पूर्व का अगर विकास नहीं हुआ तो इसके पीछे एक कारण इन संगठनों की हिंसक गतिविधियां हैं। स्थानीय राजनेता भी अपनी राजनीति चलाने के लिए इन गुटों का सहारा लेने से नहीं हिचकते। उत्तर-पूर्व की समस्याएं इतनी गंभीर भी नहीं हैं जितनी बना दी गई हैं। अगर ईमानदारी से इन समस्याओं को सुलझाया जाए और विकास पर ध्यान दिया जाए तो वहां शांति कायम हो सकती है। लेकिन पहले भारत सरकार को मुख्य धारा के उत्तर-पूर्व के लोगों से मानसिक दूरी घटाकर उनकी बात सुननी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर-पूर्व में शांति स्थापित करने की दिशा में कुछ कदम उठाए हैं। देखें कि वह निकट भविष्य में कितने कारगर साबित होते हैं और असम की जनता को शांति का दौर मिल सकता है?

No comments:

Post a Comment