Thursday 11 December 2014

अब टीम इंडिया में बदलेगा 65 साल का योजना आयोग

कांग्रेस शासित राज्यों के रस्मी विरोध के बावजूद नरेन्द्र मोदी सरकार ने योजना आयोग का स्वरूप बदलने की दिशा में कदम उठा लिया है। योजना आयोग अपनी उम्र का 65वां साल शायद न पार कर सके। पहले मुख्यमंत्रियों की बैठक में फिर संवाददाता सम्मेलन में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आयोग की अपासंगिकता को जिस तरह रेखांकित किया है उससे शायद ही कोई असहमत हो। दीर्घावधि विकास के लिए योजना बनाने के लिए और राज्यों व केंद्र के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जिस संस्था का गठन किया था, उसने शुरुआती कुछ दशकों तक बेशक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, पर यूपीए सरकार के पिछले दस साल में उसे केंद्र की एक एजेंसी के रूप में काम करते हुए ही ज्यादा देखा गया जहां केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से भेदभाव करना शुरू कर दिया था। राज्यों का पैसा राज्यों के विकास के लिए देते हुए भी वह ऐसा जताता था, मानो कोई एहसान कर रहा हो। पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजना आयोग को टीम इंडिया की शक्ल में बदलने की कवायद का लगभग सभी मुख्यमंत्रियों ने स्वागत किया। मुख्यमंत्रियों की आम राय थी कि योजना आयोग को ऐसी संस्था का रूप दिया जाए जिसमें राज्यों की उचित भागीदारी हो और उनकी जरूरतें संस्था के फैसलों में झलके। वर्तमान योजना आयोग के स्वरूप की योजना हमने पचास के दशक में तत्कालीन सोवियत संघ में पचलित पथा से ली थी जो दिल्ली के निर्देश और नियंत्रण व्यवस्था पर आधारित थी। इस व्यवस्था की सबसे बड़ी जो दो खामियां थी, उनमें राज्यों को अपना पक्ष रखने की गुंजाइश और उनकी खास जरूरतों पर फोकस रखने की गुजांइश अत्यंत सीमित थी। नब्बे के दशक में आर्थिक उदारीकरण के दौर के बाद देश की बदलती जरूरतों से कदम ताल करने में योजना आयोग लगातार फिसलता दिख रहा था। दस वर्षें तक इस आयोग के अध्यक्ष रह चुके पूर्व पधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी राय दी थी कि बाजार पर निर्भर आज की उदार और खुली अर्थव्यवस्था के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए योजना आयोग को भी अपनी सोच और कार्यशैली में बड़े बदलावों की जरूरत है। हाल के दशकों में गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा या कुछ और राज्यों ने अपेक्षाकृत बेहतर आर्थिक विकास किया है तो वह केंद्रीकृत सोच और योजना आयोग के कारण नहीं बल्कि उन राज्य सरकारों की कोशिशों के बूते पर संभव हुआ है। चूंकि मुख्यमंत्री रहते हुए खुद नरेन्द्र मोदी ने योजना आयोग के पक्षपाती रुख को नजदीक से महसूस किया था, लिहाजा इसके मौजूदा स्वरूप में बदलाव लाने की उनकी पतिबद्धता जायज हो सकती है। योजना आयोग की जगह नई संस्था में राज्यों की भागीदारी ज्यादा होगी। केंद्र के साथ राज्यों की सरकारों को भी योजना बनाने में हिस्सेदारी का मौका मिलेगा। वित्तीय मामलों में भी राज्यों की सोच व जरूरतों का ख्याल रखा जाएगा। नए निकाय का ढांचा ऐसा होगा जिसमें केंद्र, राज्य व आयोग एक टीम के रूप में काम करेंगे। कोई भी बदलाव बेहतर परिणाम लाने के लिए होना चाहिए, किसी को कमतर बताने के लिए नहीं। योजना आयोग की जगह कोई भी संस्था बने, वह भविष्य में आंख मूंदकर सफल नहीं हो पाएगी।

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