Saturday 20 December 2014

कब तक पाकिस्तान दोहरा रुख अपनाएगा?

पेशावर के स्कूल में जघन्य आतंकी हमले के बाद वाली सुबह निश्चित रूप से पाकिस्तानियों को रात से भी ज्यादा काली महसूस हुई होगी। 100 से ज्यादा स्कूली बच्चों को जिस दिन दफनाना पड़े, वह दिन किसी भी देश के लिए कभी न भूलने वाली घटना होगी। इस कांड ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। पाकिस्तान के साथ कैसे भी संबंध हों लेकिन आज हम सभी पाकिस्तान के दुख में शरीक हैं। लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या इस घटना के बाद पाकिस्तान इन आतंकी संगठनों के प्रति अपने विचार व नीति बदलेगा? क्या यह दुख, यह जुड़ाव पाकिस्तान की धरती से उन आतंकी तत्वों को खत्म करने में मददगार हो सकता है जो गाहे-बगाहे पाकिस्तान ही नहीं बाहर के भी बेकसूर नागरिकों को मारते रहते हैं? अभी बच्चों के कत्लेआम को 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि पाकिस्तान का आतंकवाद को लेकर दोहरा चेहरा बेनकाब हो गया। पाकिस्तान की एक अदालत ने गुरुवार को लश्कर--तैयबा के ऑपरेशन कमांडर और मुंबई हमलों के मास्टर माइंड जकीउर रहमान लखवी को इसलिए जमानत पर रिहा कर दिया क्योंकि वकीलों की हड़ताल के चलते सरकारी वकील केस की सुनवाई के लिए अदालत नहीं पहुंचे। विडम्बना देखिए कि वकील पेशावर के स्कूल में आतंकियों द्वारा 148 लोगों की हत्या के विरोध में हड़ताल पर थे। 54 वर्षीय लखवी और छह अन्य ने वकीलों की हड़ताल के बीच जमानत आवेदन दिया था। पेशावर के हमले को 1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद की सबसे भीषण राष्ट्रीय आपदा बताया जा रहा है, जिससे वहां आम लोगों की सियासी दलों से नाराजगी और नाउम्मीदी को सहज ही समझा जा सकता है। इसी दबाव का नतीजा है कि पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके घनघोर प्रतिद्वंद्वी इमरान खान सहित सभी सियासी दलों को एक साथ आकर इस हमले की न केवल निंदा ही करनी पड़ी है बल्कि उन्हें पाकिस्तान की सरजमी से दहशतगर्दों को पूरी तरह से खत्म करने का वादा भी करना पड़ा है। पाकिस्तान के लिए यह वाकई परीक्षा की घड़ी है। लेकिन क्या पाकिस्तान सचमुच आतंकवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए तैयार है? नवाज शरीफ ने हमले के तुरन्त बाद आतंकवाद संबंधी मामलों में फांसी की सजा पर लगी रोक हटाने का ऐलान किया। फांसी न देने का छह साल पुराना फैसला पलट दिया। ऐसे आतंकियों के खिलाफ डैथ वारंट दो दिन में जारी होंगे। 800 आतंकियों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। सरकार ने अच्छे-बुरे तालिबान का फर्प भी खत्म कर दिया है। यह भी कहा गया है कि तालिबान से बातचीत नहीं होगी, सिर्प कार्रवाई होगी और तब तक जारी रहेगी  जब तक एक भी आतंकी जिंदा रहेगा। नवाज और पाक सेना आतंकियों पर कार्रवाई करना चाहते हैं या सिर्प तालिबान पर? क्योंकि आज भी दुनिया के दो सबसे बड़े आतंकी हाफिज सईद और दाउद इब्राहिम उसी की सरपरस्ती में पल रहे हैं। पाक सरकार आज भी उन्हें जनसेवक मानती है। अगर वाकई पाकिस्तान की सरकार और सेना आतंकवाद से मुक्ति चाहती है तो पहले उसे हाफिज सईद, दाउद इब्राहिम और लखवी जैसे सरगनाओं से मुक्त होना होगा। यदि पाक सरकार और सेना हाफिज सईद इत्यादि के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती तो फिर इसका सीधा मतलब होगा कि अच्छे-बुरे आतंकियों में भेद न करने का जो भरोसा दिलाया जा रहा है उसका कोई मूल्य-महत्व नहीं। विडम्बना देखिए कि नवाज शरीफ आतंकियों के सफाए का वादा करते हैं और मुंबई के आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले आतंकी सरगना हाफिज सईद भारत को धमकाने में लगा हुआ है। हाफिज सईद पर कार्रवाई तो दूर की बात है उसने इस हमले के बाद एक बार फिर से भारत को धमकी दी है और पाकिस्तान उसे रोक भी नहीं रहा है। क्या पाकिस्तान यह स्वीकार करने को तैयार है कि आतंकी हमला कहीं भी हो, उससे फर्प नहीं पड़ता। बार-बार पाकिस्तान के दोहरे चेहरे के सबूत मिले हैं। उम्मीद की जाती है कि पाकिस्तान अपने दोहरे चेहरे को बदलेगा और जो वादा किया है उसे निभाएगा भी?

-अनिल नरेन्द्र

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