Friday 12 December 2014

अफसोस निर्भया कांड से कोई सबक नहीं लिया गया

यह दूसरी निर्भया है जिसकी जान बच गई वरना 16 दिसम्बर 2012 की उस खौफनाक रात की तरह इस निर्भया के साथ भी रौंगटे खड़े कर देने वाली हैवानियत होने वाली थी। रूह को कंपा देने वाला यह सच निकल कर अब सामने आया है। पुलिस के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक गुड़गांव की फाइनेंस कम्पनी में जॉब करने वाली यह युवती जरा-सी होशियारी से बच गई। यह खुलासा जांच के दौरान सामने आया है। कैब में बलात्कार की वारदात को अंजाम देने से पहले आरोपी शिव कुमार यादव ने युवती को इस कदर पीटा था कि उसका मुंह सूज गया। आरोपी ने 16 दिसम्बर 2012 की उस रात निर्भया जैसा हाल बनाने की युवती को धमकी देते हुए कहा था कि उसके शरीर में लोहे का सरिया डाल देगा। आरोपी शिव कुमार ने युवती की हत्या करने की कोशिश की मगर लड़की ने होशियारी दिखाई और उस वक्त उसके चंगुल से निकलने के लिए रोते-बिलखते हुए जैसे-तैसे झांसा देकर कूदने में कामयाब हो गई। यह घटना बताती है कि दो वर्ष पूर्व राजधानी में ही चलती बस में निर्भया के साथ हुई बर्बर घटना के बाद बने कड़े कानून के बावजूद कुछ भी नहीं बदला है। इस शर्मनाक घटना के बाद बेशक पुलिस ने 48 घंटों के भीतर ही आरोपी को पकड़ लिया मगर असली मुद्दा तो महिलाओं की सुरक्षा का है जिसे लेकर पुलिस, प्रशासन व हमारा समाज फेल हो रहा है। दिल्ली में क्राइम अंगेस्ट विमन के मामलों में उलटा वृद्धि ही हुई है। दिल्ली पुलिस रोज ऐसे 40 मुकदमे दर्ज कर रही है। पुलिस स्टेशनों में हर दिन कम से कम चार रेप केस पहुंच रहे हैं जबकि छेड़छाड़, सेक्सुअल हेरेसमेंट, घरेलू हिंसा में भी बढ़ोतरी हुई है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस साल 15 नवम्बर तक क्राइम अंगेस्ट विमन के 13,230 केस दर्ज हुए जबकि इसी दौरान पिछले साल दर्ज मामलों की संख्या 11,479 थी। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हरिभाई चौधरी ने राज्यसभा में उठे सवाल के जवाब में इन आंकड़ों को जारी किया है। इस लिहाज से अगर दिल्ली को रेप कैपिटल कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। जब भी कोई भयानक घटना घटती है खासकर रेप की तो आम लोग ही नहीं जिम्मेदार सरकारी पदों पर बैठे लोग भी उखाड़-पछाड़ की मुद्रा में आ जाते हैं। निर्भया गैंगरेप कांड में जो गुस्सा बलात्कार के आरोपियों के खिलाफ दिख रहा था, कुछ वैसा ही गुस्सा आज आरोपी कैब ड्राइवर और कैब कम्पनी उबर के खिलाफ भी दिख रहा है। लेकिन कम ही लोगों का ध्यान इस तरफ गया है कि दो साल की इस अवधि में सड़कों को लड़कियों के लिए सुरक्षित बनाने की दृष्टि से कोई ठोस काम नहीं किया जा सका है। पुलिस और प्रशासन तंत्र का रुख उलटा बिगड़ा हुआ दिखता है। हैरानी की बात है कि कई देशों में अपनी सेवाएं देने वाली उबर कम्पनी की जिस टैक्सी में उस युवती के साथ बर्बरता की गई उसमें जीपीएस सिस्टम तो छोड़ें, उसके पास दिल्ली में टैक्सी चलाने का  परमिट तक नहीं था। इस युवती के साथ कथित तौर पर दुष्कर्म करने वाला शिव कुमार यादव इससे पहले भी अपनी टैक्सी में दुष्कर्म के मामले में जेल जा चुका है, इसके बावजूद कैसे उसे इस नामी कम्पनी ने अपनी सेवा में  रख लिया था? बेशक ट्रांसपोर्ट विभाग ने उबर की टैक्सियों पर दिल्ली में रोक लगा दी है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि वह अब तक नेशनल परमिट के नाम से कारोबार करती रही है। पिछले एक दशक में राजधानी में चलते वाहन में दुष्कर्म की कई घटनाएं हो  चुकी हैं जिनमें 2010 का चर्चित धौलाकुआं कांड भी है, जिसमें इसी वर्ष अक्तूबर में पांच लोगों को सजा सुनाई गई है। इस घटना का दूसरा अहम पहलू यह है कि दुष्कर्म के मामले में मृत्युदंड के प्रावधान वाला कड़ा कानून भी महिलाओं के लिए सुरक्षा कवच नहीं बन सका है पर केवल पुलिस, प्रशासन को दोष देने से, कड़े से कड़े कानून बनाने से यह मामला रुकने वाला नहीं। जब तक समाज इसे रोकने के लिए आगे नहीं बढ़ेगा तब तक यह मामला चलता रहेगा। कुछ ठोस करना होगा क्योंकि अकेले दिल्ली में ही नहीं बल्कि तमाम महानगरों में महिलाएं नौकरी के सिलसिले में रातों में भी अकेले सफर करने पर मजबूर होती हैं। दुख से कहना पड़ता है कि निर्भया कांड से भी कुछ बदला नहीं।

-अनिल नरेन्द्र

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