Tuesday, 30 June 2015

ललित मोदी ः भगोड़ा या व्हिसल ब्लोअर?

पिछले एक पखवाड़े में ललित मोदी ने तहलका मचा रखा है। लंदन में बैठकर भारत की पूरी सियासत को हिलाकर रख दिया है। हर ट्विट खबर बन रही है। चाहे वह तारीफ हो, चाहे कटाक्ष हो या किसी को कठघरे में खड़ा करने वाला हो। 14 दिन में कोई डेढ़ सौ से ज्यादा ट्विट कर चुका है ललित मोदी। शनिवार को एक आदमी ने ललित से पूछा कि आप सर्वाधिक मुश्किल विकेटों पर भी फ्रंट फुट पर खेलते हैं। हमारे प्रधानमंत्री को क्या सलाह देना चाहेंगे? पांच मिनट में ललित का जवाब आयाöहमारे पीएम जानकार व्यक्ति हैं। जब वे बल्लेबाजी करते हैं तो गेंद को छक्का मारकर मैदान से बाहर भेज देते हैं। एक दिन पहले प्रियंका-रॉबर्ट वाड्रा से मुलाकात के बारे में ट्विट करके नया विवाद खड़ा कर दिया। शनिवार को क्रिकेट में हलचल पैदा करने वाला बड़ा खुलासा करते हुए ललित मोदी ने ट्विट किया कि चैन्नई सुपर किंग्स के रवींद्र जडेजा, ड्वेन ब्रावो और सुरेश रैना के रियल एस्टेट के एक बड़े कारोबारी संबंध हैं और इस कारोबारी जो सट्टेबाज भी है, से मोटा पैसा लिया है। ललित मोदी पर करोड़ों के भ्रष्टाचार का आरोप है। उन्हें भगोड़ा भी कहा जा रहा है। ललित मोदी ने ट्विटर पर ललित लीक्स की शुरुआत की है। प्रोफाइल में ही लिखा हैöपॉलिटिकल माफिया की सफाई में व्यस्त। ट्विटर के जरिए ही घोषित कियाöमुझे अधिकार दो। भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त कर दूंगा। मोदी ने लिखा वह सब जो बदले की भावना से काम कर रहे हैं उन्हें समझ लेना चाहिए कि वे भी शीशों के घरों में रहते हैं। मैं वादा करता हूं कि हर रंग के प्रत्येक रोड को सामने ला दूंगा। धीरे-धीरे मैं इस तथाकथित बीसीसीआई/एफएम/माफिया सीरीज को दफनाना शुरू कर दूंगा। जल्दी क्या है? पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्तों। मैं जो नाम दूंगा वो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी। मैं उन्हें मीडिया और मंत्रालय के सामने खुद को पेश करने का मौका दे रहा हूं। मोदी के हर ट्विट में ललकार होती है। चुनौती और सस्पेंस भी कि अब किसका नाम आएगा? क्या खुलासा होगा? नौ लाख से ज्यादा फॉलोवर पल-पल के ट्विट पर नजर रखे हैं और ललित भी फॉलोवरों के सवालों का जवाब देने में देर नहीं करते। एक फॉलोवर ने उनसे पूछा कि कानपुर के एक छोटे से अखबार में रिपोर्टर होने के बावजूद राजीव शुक्ला करोड़पति कैसे हो गए? मोदी ने जवाब दियाöक्या किसी में जांच करने की हिम्मत है? फिर एक ट्विट में ओमिता पॉल को निशाना बनाते हुए लिखाöसबसे बड़े हवाला ऑपरेटर विवेक नागपाल को ओमिता का बैगमैन माना जाता है। उसके पास कई जानकारियां हैं। क्या किसी ने उनकी जांच की...नहीं। क्यों? इसके बाद ललित ने नागपाल के सौदे से जुड़ा 100 पन्नों का ब्यौरा अपलोड कर दिया। सवाल यह उठता है कि ललित मोदी यह सब क्यों कर रहे हैं? पिछले चार साल से वह भारत से भागकर लंदन में बैठे हैं जबकि यहां की जांच एजेंसियों खासकर ईडी को उनसे पूछताछ करने की सख्त जरूरत है। ललित मोदी भगोड़ा है या व्हिसल ब्लोअर?

पद एक प्रमुख दो-दो टकराव तो होना ही है

देश की राजधानी दिल्ली में दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल व केंद्र के बीच जबरदस्त टकराव चल रहा है। एक ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जो पहले कभी नहीं हुई। मामला एक पद पर दो-दो प्रमुखों का है। दोनों अपने-अपने अस्तित्व को लेकर आमने-सामने हैं। खास बात यह है कि ये दोनों अधिकारी दिल्ली पुलिस के ही हैं, एक आम आदमी पार्टी नामित एंटी करप्शन ब्यूरो के प्रमुख हैं तो दूसरा उपराज्यपाल (एलजी) द्वारा नियुक्त एंटी करप्शन ब्रांच के प्रमुख हैं। आम आदमी पार्टी ने जहां एसएस यादव को एंटी करप्शन ब्यूरो का प्रमुख बनाया है वहीं उपराज्यपाल ने मुकेश कुमार मीणा को नियुक्त किया है। इस घटना को सिलसिलेवार ढंग से देखा जाए तो थोड़ी-बहुत वस्तुस्थिति साफ हो सकती है। आप सरकार और उपराज्यपाल के बीच जारी राजनीतिक लड़ाई के बीच आप द्वारा नामित एसीबी प्रमुख एसएस यादव ने उपराज्यपाल द्वारा नियुक्त प्रमुख एमके मीणा पर धमकी देने एवं दबाव डालनने और एसीबी के कामकाज को बाधित करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। सूत्रों के मुताबिक पहले एसएचओ ने यादव से एफआईआर बुक मांगी और यह समझाने की कोशिश की कि यह रजिस्टर उसी के पास होना चाहिए किन्तु यादव ने उसे डांट कर भगा दिया। इसके बाद संयुक्त आयुक्त मीणा यादव के कार्यालय गए और उनसे एफआईआर बुक मांगी जिसके बाद दोनों में तीखी नोंकझोंक हुई क्योंकि यादव ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। इसी बीच पता चला है कि मीणा ने यादव को एक नोटिस भेजकर कहा है कि अगर वह प्राथमिकी रजिस्टर उपलब्ध नहीं कराते तो इसके कानूनी प्रभाव पड़ सकते हैं। एसएस यादव ने धमकी का भी आरोप लगाया है। यादव ने 24 जून को सतर्पता सचिव व निदेशक को लिखी चिट्ठी में एसके मीणा द्वारा अवैध रूप से एसीबी दफ्तर में कब्जा करके बैठने का जिक्र किया है। मीणा ने सीआरपीएफ के सशस्त्र जवानों को अपने कार्यालय में तैनात जो कर रखा है वह यादव के अनुसार अवैध है। यादव ने पत्र में यह भी लिखा है कि उन्होंने कार्य में बाधा पहुंचाने और जान को खतरा होने की शिकायत उपराज्यपाल और दिल्ली पुलिस आयुक्त से भी की है। दिल्ली विधानसभा में शुक्रवार को इस चलते टकराव पर चर्चा हुई। विधायक अल्का लाम्बा और राजेश गुप्ता ने नियम 107 के तहत सदन में यह मुद्दा उठाया। इन्होंने कहा कि ईमानदारी से अपना काम कर रहे एसीबी प्रमुख के ऊपर बड़े अधिकारी नियुक्त उपराज्यपाल ने कर दी है जबकि जिस अधिकारी की नियुक्ति की गई है उसके ऊपर ट्रेनिंग स्कूल के लिए खरीददारी पर्दे घोटाले व हवाला कारोबार से जुड़े होने के आरोप है। दिल्ली सरकार ने अब इस मामले को लेकर हाई कोर्ट जाने का फैसला किया है। मजे की बात तो यह है कि विधानसभा में संयुक्त आयुक्त मीणा के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाने के बाद आप सरकार ने उनकी नियुक्ति को अवैध ठहराने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन कोर्ट ने मीणा की नियुक्ति को न सिर्प अवैध ठहराने से मना कर दिया बल्कि उन्हें एसीबी के प्रमुख के तौर पर कार्य करते रहने की अनुमति भी दे दी। सुनवाई की अगली तिथि 11 अगस्त को निर्धारित की गई है। इस बीच केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके कोर्ट ने इस संबंध में उसका पक्ष जानने की कोशिश की है। जहां तक नियुक्ति का सवाल है इस सन्दर्भ में तो अपना स्पष्ट मत है कि कोर्ट से आप सरकार को किसी तरह की राहत मिल पाना संभव नहीं है किन्तु चूंकि एसीबी को दिल्ली सरकार के तहत ही कार्य करना होता है इसलिए मौजूदा व्यवस्था में एसीबी को सुचारू रूप से चलाना आसान नहीं होगा।

-अनिल नरेन्द्र

Monday, 29 June 2015

India cheated again, China defends Lakhwi

Commander of Jamaat-ud-Dawa and mastermind of Mumbai attacks Zaki-ur-Rahman Lakhwi was released from jail in April last just because Pakistan failed to submit necessary records and proofs and now the initiative of Sanctions Committee of United Nations seeking clarification from Pakistan on release of Lakhwi has been upheld by China saying that India did not provide sufficient information to Pakistan. China has again betrayed India. China, being a permanent member of the Security Council, is the member of the Committee which decides action against terrorists. We should not be surprised on the attitude of China taken in United Nations about Zaki-ur-Rahman Lakhwi.  This is not for the first time China has obstructed such efforts of India. India had tried to include Kashmiri terrorist and Hizbul Muzahidin leader Syed Salahuddin in the United Nations list of international terrorists in May, which was obstructed by China. At many times it has been noticed that China is strengthening its strategic pivot with Pakistan but it was not expected it will support Pakistan on such sensitive matter like terrorism. The reason is that China itself is prey to Islamic terrorism. Besides it claims to be committed towards the international treaties against terrorism. Besides being an open proof of China and Pakistan union in defending a terrorist like Lakhwi, this event depicts that Pakistan is nurturing terrorism from its land just because it is backed by China. When Lakhwi was released from jail, the nations like US, France, UK had demanded to arrest Lakhwi again expressing deep concern. Everyone knows Pakistan and China are fast friends, but supporting Pakistan is one thing and supporting terrorist gangster is another. It is a clear support to terrorism. China’s union with Pakistan regarding Lakhwi is not a new issue. History has witnessed that from the very beginning China is working on such strategy not only to limit the role of India but to obstruct its freedom and sovereignty, and progress also. China treats Pakistan as the most suitable nation for it. Aims of China and Pakistan regarding India are the same to much extent. The only difference is China wants Indian markets be full of Chinese products while Pakistan wants to ruin it. By adopting anti-India attitude in Lakhwi case, now China has made it clear it is working on well planned mission of encompass India. Now India’s priority is to combat Chinese strategy.

 

Anil Narendra

 

Sunday, 28 June 2015

विवाद इमामबाड़ों पर लगे ताले खुलवाने का

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने आसिफी इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा पर जड़े गए तालों पर सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने तालों को तत्काल खोलने के आदेश दिए हैं। साथ ही कहा है कि जिलाधिकारी खुद तत्काल ताला खुलवाना सुनिश्चित करें। एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता। जस्टिस अरुण टंडन और जस्टिस अनिल कुमार की पीठ ने कहा कि जनता को तालाबंदी करने का कोई अधिकार नहीं है। अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि लखनऊ के जिलाधिकारी इमामबाड़ों से तत्काल ताले हटवाएं और वह खुद सुनिश्चित करें कि यह काम पूरा हो। आदेश में कहा गया कि इमामबाड़े पर्यटकों के लिए उसी तरह खुले रहने चाहिए जैसे तालाबंदी से पहले थे। इस सम्पत्ति का प्रबंधन करने वालों, जिलाधिकारी और अन्य संबंधित लोगों को सुनिश्चित करना होगा कि इमामबाड़ों को कोई नुकसान नहीं पहुंचे। वहीं पर्यटकों को इमामबाड़ों में आने-जाने में कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए। इससे पहले पीआईएल पर हाई कोर्ट ने मौलाना कल्बे जव्वाद और हुसैनाबाद ट्रस्ट को नोटिस जारी करके पूछा था कि उन्होंने किस अधिकार अथवा आदेश से इमामबाड़ों पर तालाबंदी की है। जवाब में मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा था कि यह तालाबंदी पब्लिक ने की है। लखनऊ के ऐतिहासिक इमामबाड़ों पर डाले गए ताले खुलवाने के आदेश को नहीं मानने के प्रमुख शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद के ऐलान के बाद जिला प्रशासन और आंदोलनकारी शिया समुदाय के बीच गतिरोध और गहरा गया है। उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी को हटाए जाने को लेकर जारी आंदोलन की अगुवाई कर रहे प्रमुख शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने जिला प्रशासन पर अदालत के फैसले के खिलाफ अपील करने और विरोधस्वरूप इमामबाड़ों पर डाले गए ताले न खोलने का फैसला किया है। कल्बे जव्वाद ने इमामबाड़ों पर पड़े ताले न खोलने से अदालत की अवमानना होने संबंधी सवाल पर कहा कि वह अदालत का पूरा सम्मान करते हैं लेकिन उसे इमामबाड़ों को सार्वजनिक सम्पत्ति बताकर गुमराह किया गया है जबकि वे इमारतें धार्मिक स्थल हैं। उन्होंने कहा कि रहा सवाल अदालत की अवमानना का तो यह कार्रवाई पहले तो लखनऊ के जिलाधिकारी राजशेखर पर होनी चाहिए जिन्होंने हैदर अब्बास को इमामबाड़ों की देखरेख करने वाले हुसैनाबाद ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाने समेत अदालत के कई आदेशों का अनुपालन अब तक नहीं किया है। जव्वाद ने कहा कि भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण कानून में इमामबाड़ों के धार्मिक मुखिया को ही उनके परिसर में होने वाली गतिविधियों के बारे में फैसला करने का अधिकार है। न्यायमूर्ति अरुण टंडन और न्यायमूर्ति अनिल कुमार की अवकाशकालीन खंडपीठ ने उक्त आदेश मसर्रत हुसैन की याचिका पर दिया है। प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी को उनके पद से हटाने की मांग को लेकर शिया समुदाय के लोगों ने प्रसिद्ध इमामबाड़ों पर पांच जून से ताला लगा रखा है। मौलाना जव्वाद ने रिजवी को हटाने की मांग संबंधी आंदोलन रमजान के बाद और तेज करने की घोषणा भी की है।

-अनिल नरेन्द्र

दो घंटे ः तीन देशों में आतंकी हमले

शुक्रवार को आतंकवादियों ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लगभग एक ही वक्त पर कहर बरपाया। ट्यूनीशिया और फ्रांस में कत्लेआम और कुवैत में बमबारी। सीधा शक इस्लामिक स्टेट (आईएस) पर जाता है। यह संगठन कितना शक्तिशाली हो गया है इन वारदातों से पता चलता है। उत्तरी अफ्रीकी देश ट्यूनीशिया में विदेशी टूरिस्टों के बीच मशहूर एक रिसोर्ट में घुसकर अंधाधुंध फायरिंग की गई। हथियारों से लैस आतंकी सॉर्स शहर में स्थित इम्पीरियल मरहबा होटल में अंदर घुसा और अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। इस हमले में 28 लोगों की मौत हो गई और 36 लोग जख्मी हो गए। बाद में उस हमलावर को मार गिराया गया। इस साल मार्च में भी ट्यूनीशिया में एक हमले में 21 विदेशी टूरिस्ट मारे गए थे। यह दूसरा हमला था। उधर कुवैत जैसे शांतिप्रिय देश में एक शिया मस्जिद में रमजान में नमाज के दौरान आत्मघाती हमलावर ने धमाका कर दिया। विस्फोट में 25 लोगों की मौत हो गई और 200 से ज्यादा लोग जख्मी हुए। सउदी अरब में आईएस से जुड़े संगठन नज्ब प्रॉविन्स ने हमले की जिम्मेदारी ली है। आईएस का दावा है कि कुवैत की किसी शिया मस्जिद में पहली बार और किसी खाड़ी देश में 2006 के बाद यह पहला हमला है। फ्रांस की एक गैस फैक्टरी में दिनदहाड़े कम से कम एक इस्लामी संदिग्ध हमलावर ने एक व्यक्ति की गला काटकर हत्या कर दी जबकि दो अन्य लोगों को विस्फोटक उपकरणों से घायल कर दिया। राष्ट्रपति फ्राएवा ओलेद ने कहाöइरादा निश्चित रूप से विस्फोट करना था। यह एक आतंकी हमला था। प्रमुख यूरोपीय देश फ्रांस में सिर कलम का यह पहला मामला माना जा रहा है। शक इस्लामिक स्टेट पर ही है क्योंकि सिर काटना उसका ट्रेडमार्प बन चुका है। सूत्रों के मुताबिक मृतक हमलावर का बॉस था। पिछले कई महीनों से यूरोप लोन वुल्फ हमलों को देखते हुए हाई अलर्ट पर है।  लोन वुल्फ हमले उन आतंकी हमलों को कहते हैं जिसे कोई व्यक्ति किसी आतंकी समूह की मदद के बिना अकेले अंजाम देता है। इन हमलों को रोकना बहुत मुश्किल है क्योंकि इस्लामी चरमपंथी अपने समर्थकों से जहां भी संभव हो हमले करने की अपील करते हैं। फ्रांस में इससे पहले आतंकी हमला जनवरी में हुआ था। उस समय व्यंग्यात्मक मैगजीन शार्ली एब्दो के ऑफिस पर हुए हमले में 10 पत्रकारों समेत 17 लोग मारे गए थे। इसके अलावा फ्रांस के एक युवक ने अपनी गर्लफ्रैंड के साथ एक स्टोर पर हमला बोलकर चार लोगों की जान ले ली थी। ताजा हमले में एक हमलावर को गिरफ्तार कर लिया गया जबकि दूसरा मुठभेड़ में मारा गया। हमलावर आईएस का झंडा लिए हुए था। गिरफ्तार हुए संदिग्ध का नाम यासीन साल्ही है। उसका कोई पिछला क्रिमिनल रिकार्ड नहीं है। निश्चित रूप से आईएस दुनिया का सबसे शक्तिशाली व सम्पन्न आतंकी संगठन बन गया है। आईएस पैसों के दम पर दुनियाभर के मुसलमानों को लुभा रहा है। वह इराक और सीरिया में अपने कब्जे वाले इलाके में एक नया मुल्क बनाना चाहता है। विदेशियों को आकर्षित करने और उनकी गृहस्थी जमाने के लिए वह कई योजनाएं चला रहा है। डेली मेल के अनुसार स्काइप के जरिए पत्रकारों को दिए साक्षात्कार में संगठन के एक लड़ाके ने इसका खुलासा किया है। अबू बिलाल अल-होयजी नामक एक लड़ाके ने बताया है कि खलीफा राज्य के ऐलान के बाद से आईएस नेता सिर्प लड़ाकों को ही न्यौता नहीं दे रहे। अरब देशों, यूरोप, मध्य एशिया, अमेरिका के चिकित्सकों, इंजीनियरों, प्रशासकों और दूसरे क्षेत्र के विशेषज्ञों को भी बुलाया जा रहा है। एक अन्य लड़ाके अल रक्कावी ने बताया कि सीरियाई शहर रक्का अब नया न्यूयार्प बन चुका है। उल्लेखनीय है कि रक्का आईएस की राजधानी है। इराक-सीरिया से शुरू हुआ आईएस आज पूरी दुनिया के लिए एक खतरा बन चुका है। इसकी तपिश यूरोप, अमेरिका सहित एशियाई देश भी अब महसूस कर रहे हैं। ऐसे में पश्चिमी देशों ने अगर ठोस कार्रवाई नहीं की तो स्थिति बेकाबू हो सकती है। धौंस-पट्टी जमा कर और टैक्स लगाकर इस्लामिक स्टेट हर रोज 10 लाख डॉलर से ज्यादा की रकम की उगाही कर रहा है और तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद अपने खर्च पूरे करने के लिए उसके पास काफी पैसा है।

Saturday, 27 June 2015

बिजली कटी तो हर ग्राहक को मिलेगा हर्जाना

दिल्ली सरकार द्वारा अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए बिजली वितरण कंपनियों के खिलाफ सख्ती दिखाने के फैसले का उपभोक्ता स्वागत करते हैं। सरकार ने दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) को आदेश दिया है कि बिना सूचना कटौती करने पर डिस्कॉम्स पर जुर्माना करे और इसका लाभ उपभोक्ता को दे। पॉवर कट के मामले में दिल्ली सरकार के निर्देश पर तत्काल कार्रवाई करते हुए डीईआरसी के नियमों में संशोधन के लिए ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। इसमें लोगों से 29 जून तक आपत्तियां और सुझाव मांगे हैं। इसके बाद पॉवर कट के लिए नया नियम बना दिया जाएगा। ड्राफ्ट नोटिफिकेशन में कहा गया है कि अगर किसी फाल्ट की वजह से 50 से अधिक उपभोक्ताओं के घरों में बत्ती गुल होती है तो डिस्कॉम के लिए जरूरी है कि वह सबसे पहले एक घंटे के अंदर वैकल्पिक सोर्स से लोगों के घरों में उजाला करने की कोशिश करे। अगर बिजली कंपनियां ऐसा करने में कामयाब नहीं होतीं तो उन्हें पॉवर कट होने के एक घंटे बाद अगले दो घंटे के लिए 50 रुपए प्रति घंटा प्रति कंज्यूमर को देना होगा। इसके बाद हर घंटे प्रति उपभोक्ता पर 100-100 रुपए चुकाने होंगे। जुर्माने की रकम बिजली कंपनियों को स्वयं बिजली बिल के साथ उपभोक्ताओं को देनी होगी। नब्बे दिनों के बिजली बिल के साथ जुर्माने की रकम को चुकाना होगा। यदि इसमें कोई गड़बड़ी की जाती है तो फैसला आयोग को लेना होगा। यदि किसी घर में कंपनी की गड़बड़ी की वजह से लाइट गई है तो शिकायत के तीन घंटे में आपूर्ति बहाल हो जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता तो कंपनी को प्रति घंटे उस उपभोक्ता को 100 रुपए देने होंगे। दिल्ली के ऊर्जा मंत्री सत्येन्द्र जैन ने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट-2003 के सेक्शन 108 में यह व्यवस्था की गई है कि सरकार नियामक को ऐसे निर्देश दे सके। वहीं डीईआरसी के अध्यक्ष पीडी सुधाकर ने कहा कि सेवा न देने पर जुर्माने का प्रावधान पहले से है। बस जुर्माने की दर को लेकर थोड़ा संशय है। लेकिन इस कानून को अब सख्ती से लागू किया जाएगा। जितनी देर बिजली कटौती होगी उसकी जानकारी दिल्ली स्टेट डिस्पैच सेंटर की वेबसाइट पर मौजूद होगी। इसके अलावा बिजली आपूर्ति के सिस्टम की खामियों को भी दूर किया जाएगा। जुर्माने की व्यवस्था का आंकलन सही प्रकार से हो, इसके लिए प्रावधान किया गया है कि यह राशि उपभोक्ता के बिल में नजर आनी चाहिए। यदि किसी इलाके में एक घंटे की कटौती हो तो संबंधित क्षेत्र के उपभोक्ता का बिल जुर्माना घटाकर आना चाहिए। हम दिल्ली सरकार की इस पहल का स्वागत करते हैं। इन बिजली कंपनियों की धांधली पर लगाम लगनी ही चाहिए। बिजली के मीटरों की भी स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। अगर इन कदमों को सही तरीके से लागू किया जाता है तो राजधानी के लाखों उपभोक्ताओं को थोड़ी राहत जरूर मिलेगी। डीईआरसी का कहना है कि ड्राफ्ट में पॉवर कट से संबंधित डिटेल में बताया गया है कि डिस्कॉम पर किस-किस लापरवाही के लिए कितना जुर्माना लगाया जा सकता है।
-अनिल नरेन्द्र



चार देवियां बनीं मोदी के लिए सिरदर्द

जब अटल जी प्रधानमंत्री थे तो उनके लिए सिरदर्द बनी थीं तीन देवियांöममता, माया और जया यानि ममता बनर्जी, मायावती और जयललिता। अब नरेंद्र मोदी के लिए चार देवियांöसुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे, स्मृति ईरानी और पंकजा सिरदर्द बन गई हैं। आज मैं पंकजा मुंडे के बारे में बात करना चाहता हूं। भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दावा करने वाली भाजपा सरकार में उनके मंत्री ही कानून की धज्जियां उड़ाते हुए अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े के फर्जी डिग्री का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि राज्य की महिला व बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे 206 करोड़ रुपए के घोटाले के आरोप में घिर गई हैं। इसे महाराष्ट्र की देवेन्द्र फड़नवीस सरकार का पहला घोटाला करार दिया जा रहा है। वहीं पंकजा मुंडे ने सफाई दी है कि उन्होंने जो फैसले किए हैं वह नियमानुकूल है। पंकजा मुंडे पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की बेटी हैं। आरोप है कि उन्होंने नियमों को ताक पर रखकर एक ही दिन में 24 अध्यादेशों के जरिए करोड़ों रुपए के सामान खरीदने का आर्डर दिया। इस खरीद प्रक्रिया में 206 करोड़ रुपए के घोटाले का दावा किया जा रहा है। दरअसल तीन लाख से अधिक किसी भी खरीद के लिए ई-टेंडर आमंत्रित करने का नियम है, लेकिन इस वर्ष फरवरी में एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना के तहत वनवासी क्षेत्रों में चल रहे सरकारी स्कूलों के लिए चटाई, किताबें व खाने का सामान खरीदने के लिए पंकजा ने एक ही दिन में 24 प्रस्तावों को मंजूरी दे दी। इन प्रस्तावों की कुल कीमत 206 करोड़ रुपए थी। विपक्ष ने इसे नियम के विरुद्ध बताते हुए भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो (एसीबी) में शिकायत दर्ज कराई है। कांग्रेस प्रवक्ता अजय माकन ने सरकार से हाई कोर्ट के किसी जज से मामले की जांच कराने की मांग की है। पंकजा ने आरोपों को निराधार बताया है। उनका कहना है कि यह फैसला ई-टेंडरों की नीति लागू होने से पहले का है। इसमें कोई अनियमितता नहीं बरती गई है। पंकजा इन दिनों अमेरिका में हैं। उनके अनुसार मंत्री बनने के बाद से उन्होंने विभाग में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई फैसले लिए हैं। हालांकि देवेन्द्र फड़नवीस सरकार पर भ्रष्टाचार का यह पहला आरोप है। कुछ दिनों पहले कांग्रेस ने राज्य के शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े पर फर्जी डिग्री रखने का आरोप लगाया था। इस बीच सरकार के एक अन्य वरिष्ठ मंत्री एकनाथ खड़से ने कहा कि यदि विपक्ष सबूत दे तो सरकार पंकजा के खिलाफ जांच कराने को तैयार है। खड़से के अनुसार विपक्ष का काम ही आरोप लगाना है। अचानक उभरे इन आरोपों से भाजपा रणनीतिकारों के माथे पर चिन्ता की लकीरें साफ दिखाई दे रही हैं। सरकार की सबसे बड़ी चिन्ता आगामी मानसून सत्र को लेकर है। आशंका है कि 21 जुलाई को शुरू हो रहा सत्र इन विवादों की भेंट चढ़ सकता है। इन चार देवियों की वजह से मोदी सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा है। बेदाग मोदी सरकार पर धब्बे साफ नजर आ रहे हैं।

Friday, 26 June 2015

मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की

भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार विवादों में घिरती जा रही है। पार्टी में असंतोष भी बढ़ता जा रहा है। ललित मोदी विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। पार्टी के बड़े नेता भले ही इस मामले को ठंडा करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन बयानबाजी थम नहीं रही है। भाजपा सांसद व पूर्व गृह सचिव आरके सिंह ने ललित मोदी को भगोड़ा करार देते हुए उनकी मदद करने वाले नेताओं को कठघरे में खड़ा कर दिया है। सिंह ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम लिए बगैर दो टूक कहा है कि अगर कोई व्यक्ति किसी भगोड़े की मदद करता है या उससे मिलता है तो यह कानूनी और नैतिक दोनों तरह से गलत है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, वित्तमंत्री अरुण जेटली, गृहमंत्री राजनाथ सिंह व सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के खुलकर सुषमा व वसुंधरा का पक्ष लेने के बाद भी भाजपा सांसद आरके सिंह के बयान से साफ हो गया है कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। सिंह के बयान को भाजपा सांसद कीर्ति आजाद के बयान की प्रतिक्रिया माना जा रहा है। आजाद ने सुषमा स्वराज के पक्ष में खड़े होकर आस्तीन के सांप होने का बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया था। अब सिंह ने इसके उलट सुषमा और वसुंधरा पर निशाना साधा है। दोनों बिहार से सांसद हैं। इसका सीधा असर बिहार में विधानसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है। पिछले दिनों श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने चेतावनी दी थी कि आपातकाल का खतरा अभी टला नहीं है। अब भाजपा के सीनियर नेता यशवंत सिन्हा ने अपनी ही पार्टी की सरकार पर हमला बोल दिया है। इनसे मंगलवार देर रात एक कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कामकाज की तुलना पर सवाल पूछे गए थे। उन्होंने केंद्र में मेक इन इंडिया कार्यक्रम पर कहा, पहले भारत बनाओ, बाकी खुद हो जाएगा। श्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि भाजपा में जो भी 75 साल से ज्यादा की उम्र के थे, उन सभी को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया है। मैं भी पार्टी के ब्रेन डेड लोगों में शामिल हूं। बुधवार को मोदी सरकार एक और मंत्री केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को लेकर मुश्किल में फंस गई। बुधवार को दिल्ली की एक अदालत ने ईरानी के खिलाफ मिली उस शिकायत को सुनवाई के योग्य माना, जिसमें उन पर चुनाव आयोग को अपनी एजुकेशनल क्वालीफिकेशन की गलत जानकारी देने का आरोप लगाया गया है। हालांकि अदालत ने इस संबंध में ईरानी को समन देने से पहले शिकायतकर्ता से और सबूत मांगे हैं। फ्रीलांस लेखक अहमर खान ने अदालत में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि ईरानी ने 2004 से 2014 तक विभिन्न चुनावों में दिए हलफनामों में अपनी एजुकेशन की अलग-अलग जानकारी दी। पार्टी में असंतोष साफ उभर कर आ रहा है। देखना यह होगा कि इसका आगामी बिहार चुनाव पर क्या असर पड़ता है?
-अनिल नरेन्द्र

भारत से फिर धोखा, लखवी की ढाल बना चीन

जमात-उद-दावा का कमांडर और मुंबई हमले का सूत्रधार जकीउर्रहमान लखवी विगत अप्रैल में जेल से इसलिए रिहा हो पाया था, क्योंकि पाकिस्तान उसके खिलाफ अदालत में जरूरी रिकार्ड व सबूत पेश करने में नाकाम रहा था और अब लखवी की रिहाई पर पाकिस्तान से स्पष्टीकरण मांगने की संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध कमेटी की पहल को चीन ने यह कहकर रोक दिया है कि भारत ने इस मामले में पाकिस्तान को पर्याप्त जानकारी नहीं दी। चीन ने भारत के साथ फिर विश्वासघात किया है। चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होने के नाते उस कमेटी का सदस्य है जो आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई पर फैसला करती है। जकीउर्रहमान लखवी के मामले में संयुक्त राष्ट्र में चीन ने जो रुख अपनाया है उस पर हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह पहली बार नहीं है कि चीन ने भारत की ऐसी कोशिश में अड़ंगा लगाया है। मई में भारत ने कश्मीरी आतंकी और हिजबुल मुजाहिद्दीन के नेता सैयद सलाहुद्दीन को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की संयुक्त राष्ट्र संघ की सूची में शामिल करवाने की कोशिश की थी, जिसे चीन ने रुकवा दिया। चीन पाकिस्तान के साथ अपनी रणनीतिक धुरी को मजबूत कर रहा है ऐसे संकेत कई बार आ चुके हैं। मगर वह आतंकवाद जैसे नाजुक मसले पर भी पाकिस्तान का समर्थन करेगा, इसकी अपेक्षा नहीं थी। इसकी एक वजह यह भी है कि खुद चीन भी इस्लामी आतंकवाद का शिकार है। इसके अलावा वह आतंकवाद विरोधी अंतर्राष्ट्रीय संधियों के प्रति भी खुद को वचनबद्ध बताता है। लखवी जैसे आतंकवादी के बचाव में पाकिस्तान और चीन के एकजुट होने का यह खुला सबूत तो है ही, यह घटनाक्रम बताता है कि अपनी जमीन से आतंकवाद को खाद-पानी देने का काम पाकिस्तान इसलिए भी कर रहा है, क्योंकि उसकी पीठ पर चीन का हाथ है। लखवी जब जेल से रिहा हुआ था तब अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देशो ने गहरी चिन्ता जताते हुए लखवी को फिर से गिरफ्तार करने की मांग की थी। पाकिस्तान और चीन की गहरी दोस्ती है, यह सभी जानते हैं लेकिन पाकिस्तान का साथ देना एक बात है और आतंकवादी सरगना के पक्ष में खड़े होना दूसरी। यह तो खुलेआम आतंक का समर्थन करना हुआ। चीन का लखवी मामले में पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होना कोई नई बात नहीं है। इतिहास गवाह है कि चीन शुरू से ही ऐसी रणनीति लेकर चल रहा है जिससे न केवल भारत की भूमिका सीमित हो बल्कि उसकी स्वतंत्रता और संप्रभुत्ता भी बाधित हो, उसका विकास भी अवरुद्ध हो। इसके लिए चीन को पाकिस्तान सबसे अनुकूल राष्ट्र लगता है। बहुत हद तक चीन और पाकिस्तान के उद्देश्य भी भारत को लेकर एक जैसे हैं। फर्प बस इतना है कि चीन चाहता है कि भारत के बाजार चीनी उत्पादों से रोशन रहें और पाकिस्तान की मंशा उसे पूरी तरह से नेस्तनाबूद करने की रहती है। अब लखवी मामले में भारत विरोधी खुला रुख अपना कर चीन ने साफ कर दिया है कि वह भारत को घेरने की सुनियोजित नीति पर चल रहा है। भारत की अब प्राथमिकता चीनी रणनीति का मुकाबला करना है।

Thursday, 25 June 2015

तोमर से अदालत ने कहाः कब तक मूर्ख बनाओगे?

आरोपी जितेंद्र सिंह तोमर जनता का पतिनिधि है। उस पर बीएसी व एलएलबी की फजी डिग्री रखने का गंभीर आरोप है। ऐसे में उसे किसी भी पकार की रियायत नहीं दी जा सकती। अदालत ने उक्त टिप्पणी करते हुए तोमर को जमानत देने से इंकार कर दिया। सोमवार को अदालत ने तोमर को जमानत देने से इंकार करते हुए कहा कि वह लोगों को कब तक मूर्ख बनाते रहेंगे? एडिशनल मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट तरुण योगेश ने कहा- मामले की जांच बहुत ही महत्वपूर्ण चरण में हैं। ऐसे में उन्हें जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता। अदालत ने टिप्पणी की कि लोगों को कब तक मूर्ख बनाया जाएगा, हम अपना पतिनिधि चुनने के लिए मतदान करते हैं लेकिन हमें क्या मिलता है। अदालत ने तोमर को विधानसभा सत्र में भी भाग लेने की इजाजत देने से इंकार कर दिया। साकेत अदालत में मजिस्ट्रेट के समक्ष तोमर के अधिवक्ता रमेश गुप्ता ने तर्क रखा कि उनके मुवक्किल को फजी मामले में फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि पूरा मामला दस्तावेज पर आधारित है और अधिकांश दस्तावेज पुलिस जब्त कर चुकी है। उन्होंने कहा कि वे आश्वासन देते हैं कि ट्रायल के दौरान तोमर अदालत में पेश होगा और कभी भी साक्ष्यों को नष्ट करने का पयास नहीं करेगा। इसके अलावा वह अब साक्ष्यों को पभावित करने वाला इंसान ही नहीं रहा, क्योंकि अब वह कानून मंत्री नहीं है। ऐसे में वह कैसे साक्ष्य नष्ट कर सकता है। वहीं अभी तक दिल्ली बार काउंसिल ने उनके मुवक्किल के खिलाफ किसी भी पकार की शिकायत नहीं दी है। वहीं तोमर ने कहा कि इस केस व पुलिस ने उसका बेड़ा गर्क कर दिया है। उसके पास अब कुछ नहीं बचा। तीन घंटे से अधिक चली सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से पेश हुए अतिरिक्त लोक अभियोजक अतुल कुमार श्रीवास्तव ने जमानत पर आपत्ति जताते हुए कहा कि मामले की जांच अभी आरंभिक स्टेज पर है, इस मामले में कई लोग फरार हैं और उनका पता लगाना है। उन्होंने कहा कि फजी डिग्री गिरोह काफी बड़ा है और उसका पर्दाफाश किया जाना है। यदि वर्तमान में आरोपी को जमानत दी गई तो पूरे मामले में जांच पभावित होगी अत जमानत अर्जी खारिज की जाए। तोमर के वकील ने कहा कि पुलिस ने न्यायिक हिरासत में भेजने की मांग की है। इसका अर्थ है कि पूछताछ पूरी हो गई। इसलिए जमानत पर रिहा किया जाए। अदालत ने कहा आप (तोमर) दस्तावेज या हलफनामों में फजीवाड़ा कैसे कर सकते हैं। हम जमानत पर रिहा नहीं कर सकते। सुपीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अभियोजक ने कहा कि जनपतिनिधियों को मिला संसदीय विशेषाधिकार उनके काम में सहयोग करने के लिए है, वह अन्य नागरिकों की तुलना में एक अलग श्रेणी नहीं बनाता। श्रीवास्तव ने कहा कि कानून आपराधी को अलग तरह के व्यवहार की अनुमति नहीं देता। आप पाटी के जो लोग यह कहते नहीं थकते कि जितेंद्र सिंह तोमर को फजी केस में फंसाया गया है, अब स्वयं फैसला कर लें। अदालत तो साक्ष्यों पर चलती है और दूध का दूध पानी का पानी कर देती है। जितेंद्र सिंह तोमर पर अत्यंत गंभीर आरोप हैं। सबसे दुखद पहलू यह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री व पाटी अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल को तोमर के फजीवाड़े का मालूम था। विधानसभा चुनाव से पहले पशांत भूषण ने केजरीवाल से अनुरोध किया था कि तोमर को टिकट न दिया जाए पर केजरीवाल ने पशांत भूषण से खुंदक निकालने के लिए जितेंद्र सिंह तोमर को न केवल टिकट दी बल्कि मंत्री और बना डाला, मंत्री भी कानून मंत्री। उनके कानून मंत्री का क्या हाल हो रहा है सबके सामने है।

-अनिल नरेंद्र

तालिबान का अफगान संसद पर हमला

काबुल में अफगानिस्तान की संसद पर तालिबान आतंकियों का हमला इस देश में मंडरा रहे खतरे की गम्भीरता को नए सिरे से बयान करता है। बेराक यह आश्वस्त करने वाली बात है कि तालिबान को उनकी मंशा पर कामयाब नहीं होने दिया गया पर अफगानिस्तान की संसद को निशाना बनाकर तालिबान ने अपने इरादे तो साफ कर ही दिए हैं कि आने वाले दिन वहां के लिए और अशांत होने वाले हैं। दरअसल तालिबान का दुस्साहस तो पिछले साल के अंत में नाटो फौज की अफगानिस्तान से औपचारिक विदाई के बाद ही बढ़ गया था। सोमवार को संसद पर हुए हमले का निशाना शायद नवनियुक्त रक्षा मंत्री मोहम्मद मासूम सतनीकरजई तो नहीं थे। बीते नौ महीने से देश में रक्षा मंत्री का पद खाली था, राष्ट्रपति अशरफ गनी और पहले उनके पतिद्वंदी और अब सरकार में सहयोगी अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच रक्षा मंत्री के नाम पर असहमति की वजह से यह पद अब तक खाली था। पिछले दिनों रक्षा मंत्री के लिए सतनी करजई को नामित किया गया था। सोमवार को उनकी नियुक्ति पर मोहर लगाने के लिए संसद के निम्न सदन से उनका परिचय कराने की पकिया चल रही थी। इसी दौरान संसद पर तालिबान आतंकियों ने हमला किया। यह राहत की बात है कि संसद पर हमले में सासंदों, सुरक्षा बलों के जवान और आम नागरिकों को गंभीर क्षति नहीं पहुंची। यह भी उल्लेखनीय है कि सुरक्षा बलों ने संसद को निशाने बनाने वाले आतंकियों को मार गिराया। सुरक्षा बलों ने जिस मुस्तैदी से आतंकियों के मंसूबे को नाकाम किया है उससे यह स्पष्ट है कि वे तालिबान का सामना करने और उन्हें मुंहतोड़ जवाब देने में समर्थ हो रहे हैं। अलबत्ता अफगानिस्तान के मौजूदा संकट में दो तथ्यों की अनदेखी नहीं की जा सकती। एक तो यही कि अशरफ गनी ने बेहद चुनौतीपूर्ण समय में अफगानिस्तान का नेतृत्व संभाला है और उनमें मुल्क के तमाम कबिलाई समूहों को साधे रखने की वैसी क्षमता नहीं है जैसी पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई में थी। दूसरा यह कि आईएस के अफगानिस्तान में पैठ बना लेने के बाद तालिबान की यह आकमकता वर्चस्व की लड़ाई में आगे बढ़ने की होड़ भी हो सकती है। हामिद करजई के स्थान पर राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे अशरफ गनी ने पिछले दिनों जिस तरह कथित तौर पर अपनी सुरक्षा मजबूत करने के लिए पाकिस्तान खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ समझौता किया उससे भारत समेत विश्व समुदाय का चिंतित होना स्वाभाविक है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि हामिद करजई और उनके साथियों के विरोध के बाद अशरफ गनी ने अपने कदम पीछे खींच लिए लेकिन यह रहस्य तो बना ही हुआ है कि आखिर उन्होंने आईएसआई से हाथ मिलाने के बारे में सोचा ही क्यों? तालिबान की मौजूदा आकामकता को न सिर्प पिछले एक दशक में सबसे भीषण हमला बताया जा रहा है बल्कि इस साल के शुरुआती चार महीने में आतंकी हिंसा में वहां करीब 1000 नागरिकों ने जान गंवाई है। मौजूदा स्थिति पूरी दुनियां के लिए अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है। यह पूरे क्षेत्र के लिए खतरा बन गई है।

Wednesday, 24 June 2015

टीम इंडिया के धुरंधरों ने गंवाई साख और सीरीज

जिस करिश्माई कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी की अगुवाई में टीम इंडिया ने कई उपलब्धियां अपने नाम कीं, रविवार को उसी मिडास टच वाले भारतीय कप्तान की टीम का मान-मर्दन हो गया। पूरी ताकत के साथ वन डे सीरीज खेलने बांग्लादेश पहुंची टीम इंडिया ने दूसरे वन डे में भी शर्मनाक प्रदर्शन करते हुए बांग्लादेश के खिलाफ मुकाबला छह विकेट से गंवा दिया। इसके साथ ही बांग्लादेश ने तीन मैच की सीरीज में 2-0 की अजेय बढ़त बना ली। इस ऐतिहासिक सीरीज जीत के बाद बांग्लादेश ने चैंपियंस ट्रॉफी 2017 के लिए अपनी जगह भी पुख्ता कर ली। 1986 से वन डे खेल रही बांग्लादेश टीम की यह भारतीय टीम के खिलाफ पहली सीरीज जीत है। भारतीय टीम जब बांग्लादेश दौरे पर आई थी तब उसे अंदाजा नहीं था कि जिस टीम को विश्व कप में आसानी से मात दे दी थी, वो इस अंदाज में हिसाब बराबर करेगी। बांग्लादेश के बाएं हाथ के तेज गेंदबाज मुस्तफिकुर रहमान ने लगातार दूसरे मैच में टीम इंडिया की मजबूत बल्लेबाजी को धराशायी कर 21 जून 2015 को बांग्लादेश के लिए यादगार बना दिया। अपनी करियर की सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी  का प्रदर्शन कर मुस्तफिकुर ने 43 रन पर छह खिलाड़ियों को आउट किया। अपने पहले दो मैचों में 11 विकेट चटकाकर वह नए रिकार्ड से जुड़ गए। बांग्लादेश ने दूसरा वन डे छह विकेट से जीतकर पहली बार भारत के खिलाफ सीरीज जीतने का सपना पूरा किया। जीत की यह खुशी दोहरी बन गई क्योंकि इस जीत के साथ बांग्लादेश ने पहली बार चैंपियंस ट्रॉफी के लिए भी क्वालीफाई कर लिया। बारिश के कारण यह मैच 47 ओवर का कर दिया गया, लेकिन भारतीय टीम 45 ओवर में सिमट गई। बांग्लादेश को डकवर्थ लुइस नियमों के तहत 47 ओवर में 200 रन का लक्ष्य मिला जिसे 38 ओवर में चार विकेट गंवाकर बना लिया। इससे पहले बांग्लादेश ने पाकिस्तान के खिलाफ सीरीज 3-0 से जीती थी। रविवार के इस मैच में टीम इंडिया ने तीन बदलाव किए। भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी के क्रम में ऊपर आने के बावजूद टीम इंडिया स्कोर बोर्ड पर बड़ा स्कोर नहीं टांग पाई। अजिंक्य रहाणे की जगह अबांती रायडू को उतारने का फैसला भारी पड़ा। पहले वन डे में हार के बाद टीम में तीन-तीन बदलाव करके पहले ही बैकफुट पर चली गई थी टीम इंडिया। विराट कोहली ने इस मैच में भी निराशाजनक प्रदर्शन किया। कोहली का खराब फार्म जारी रहा। पिछले 14 मैचों में सिर्प एक शतक है बाकी मैचों में 50 का आंकड़ा पार नहीं कर पाए। रविवार के मैच के बाद प्रेस कांफ्रेंस में कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी काफी भावुक नजर आए। उनकी बातों में हार का गम साफ नजर आया। जब उनसे यह सवाल पूछा गया कि वह बतौर कप्तान कब तक कायम रहेंगे तो कैप्टन कूल का मिजाज बिगड़ा नजर आया। धोनी ने दो टूक कहा कि भारतीय क्रिकेट में जो कुछ भी खराब होता है उसके लिए मुझे ही हमेशा जिम्मेदार ठहराया जाता है। सब कुछ मेरे कारण होता है। मैं वास्तव में अपनी क्रिकेट का लुत्फ उठा रहा हूं। मुझे पता था कि यह सवाल मुझसे पूछा जाएगा। बार-बार यह सवाल खड़ा किया जाता है। यदि मेरे हटाए जाने से भारतीय क्रिकेट अच्छा करने लगे तो मैं कप्तानी छोड़ने को तैयार हूं। हमें लगता है कि टीम इंडिया में गुटबाजी चल रही है।

-अनिल नरेन्द्र

उत्तर प्रदेश के बाद अब मध्य प्रदेश में पत्रकार की हत्या

चिन्ता का विषय यह है, लगता है कि देश में पत्रकार एक बार फिर निशाने पर हैं। कहीं पुलिस उनका शिकार कर रही है तो कहीं माफियाओं ने उन्हें निशाने पर ले रखा है। अभी उत्तर प्रदेश में पत्रकार जगेन्द्र को पुलिस द्वारा जिन्दा जलाए जाने की घटना शांत नहीं हो सकी थी, उसके कुछ ही दिन बाद मध्य प्रदेश की कटंगी तहसील में एक पत्रकार की जली लाश पड़ोसी महाराष्ट्र राज्य के नागपुर के एक कस्बे से मिली। पत्रकार संदीप कोठारी हत्याकांड के सिलसिले में पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार तो जरूर किया है लेकिन पुलिस की लापरवाही से इंकार भी नहीं किया जा सकता। क्या प्रेस को ईमानदारी से काम न करने देने की कोई साजिश तो नहीं रची जा रही है? देश के पूरे मीडिया को पूरी गंभीरता से इस मुद्दे पर विचार करना होगा। पत्रकारों पर हमलों की वारदातें लगातार बढ़ रही हैं। उत्तर प्रदेश के बाद अब मध्य प्रदेश में भी एक पत्रकार को अपनी जान गंवानी पड़ी है। बताया जाता है कि रेत माफियाओं से जुड़े लोगों ने अदालत से मामला वापस नहीं लेने पर जबलपुर के एक हिन्दी अखबार के संवाददाता संदीप कोठारी (40) को जिन्दा जला दिया। पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। अपर पुलिस अधीक्षक नीरज सोनी ने बताया कि संदीप का दो दिन पहले 19 जून को बालाघाट से अपहरण कर लिया गया था। उस समय वे अपने दोस्त के साथ उसरी गांव जा रहे थे। शनिवार रात उनकी जली हुई लाश महाराष्ट्र के वर्धा जिले में सिंडी शहर में रेलवे पटरियों के पास मिली है। संदीप के भाई ने लाश की शिनाख्त की है। सोनी ने बताया कि संदीप बलात्कार के एक केस में पिछले दो माह से जमानत पर रिहा थे। पुलिस ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया है, उनकी पहचान राकेश नसवानी, विशाल डांडी और ब्रिजेश दुहरवाल के रूप में हुई है। तीनों कटंगी के रहने वाले हैं। आरोप है कि तीनों अवैध खनन में लिप्त हैं और एक चिट फंड कंपनी भी चलाते हैं। पुलिस के अनुसार संदीप ने अवैध खनन के मामले में कुछ लोगों के खिलाफ एक स्थानीय अदालत में केस दायर किया था। तीनों आरोपी यह केस वापस लेने का दबाव बना रहे थे। पुलिस का मानना है कि संदीप के इंकार करने पर आरोपियों ने उनका अपहरण कर हत्या कर दी। अपहरण में इस्तेमाल की गई कार सीज कर दी गई है। संदीप बालाघाट के कटंगी में रहते थे। बहुजन समाज पार्टी ने हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने की मांग की है। पार्टी का कहना है कि पत्रकार ने रेत माफिया की गतिविधियों का खुलासा किया था। इसलिए उनके परिवार को परेशान किया जा रहा था। वहीं बालाघाट के पूर्व विधायक किशोर समरिते का आरोप है कि संदीप को 12 से अधिक आपराधिक मामलों में फंसाया गया था। उन्होंने कहा कि संदीप ने संगठित अपराध में लिप्त मैगनीज और रेत माफियाओं तथा ताकतवर लोगों के खिलाफ आवाज उठाई थी। एक और कलम का सिपाही अपनी ड्यूटी करते हुए मारा गया। हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।

Tuesday, 23 June 2015

बैंक गारंटी नहीं तो सुब्रत रॉय जेल में ही रहेंगे

सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय को फिर जमानत नहीं मिली। कोर्ट की अवमानना मामले में 15 माह से जेल में रखने पर उठ रहे सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार स्पष्टीकरण दिया है। यह स्पष्टीकरण जमानत की शर्तों पर शुक्रवार को आए आदेश में है, जिसे कोर्ट ने एक अभूतपूर्व और बेहद पेचीदा मामला बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सहारा प्रमुख को जेल भेजने का आदेश अवमानना के अधिकार क्षेत्र में आता भले ही न दिखता हो, लेकिन यह कोर्ट को हासिल असाधारण शक्तियों (अनुच्छेद 142) से लिया गया है, जिसमें कोर्ट को पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश देने का अधिकार प्राप्त है। कोर्ट ने कहा कि यह जनता की 36 हजार करोड़ रुपए की भारी-भरकम रकम की वापसी और कोर्ट के आदेशों को तवज्जो नहीं देने की अभूतपूर्व स्थिति थी, जिसने अभूतपूर्व आदेश जारी करने की स्थिति पैदा की। कोर्ट ने कहा कि हम इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि तीन लोगों को व्यक्तिगत आजादी से वंचित किया गया है। वे पिछले 15 माह से जेल में हैं और यह उन पर काफी भारी पड़ रहा है। लेकिन दूसरी ओर हमें सार्वजनिक हितों की इस मांग को भी देखना था कि जनता से 22 हजार करोड़ रुपए का भारी धन अवैध रूप से एकत्र करने वाले को जिम्मेदार बनाया जाए। इस प्रकार कोर्ट के सामने जहां तीन लोगों की व्यक्तिगत आजादी एक ओर थी वहीं दूसरी ओर कानून का गौरव बनाए रखने की बात थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पांच हजार करोड़ की जमानत राशि और इतने की ही बैंक गारंटी के बिना जमानत नहीं मिलेगी। इससे पहले सुब्रत रॉय के वकील कपिल सिब्बल ने मजबूरी जताई और कहा कि जिस बैंक ने गारंटी देनी थी वह मुकर गया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि आपने ही भरोसा दिलाया था कि बैंक गारंटी तैयार है। जवाब में सिब्बल बोलेöमीडिया में सुनवाई की खबरें आने से बैंक ने गारंटी देने से मना कर दिया। हम चार हजार करोड़ की बैंक गारंटी दे सकते हैं। कोर्ट ने बिना नरमी दिखाए कहाöठीक है तो छह हजार करोड़ नकद दीजिए, तभी मिलेगी जमानत। कोर्ट ने सुब्रत रॉय के पेरोल की अर्जी खारिज कर जमानत के लिए और शर्तें जोड़ दीं। सुब्रत रॉय को जमानत के बाद 18 माह में 36 हजार करोड़ रुपए लौटाने होंगे। रकम नौ किश्तों में दे सकते हैं। पहली आठ किश्तें तीन-तीन हजार करोड़ रुपए की होंगी। नौवीं में बाकी रकम देनी होगी। कोई भी किश्त चूके तो सेबी बैंक गारंटी भुना लेगा। तीन किश्तें चूके तो सुब्रत रॉय को फिर से जेल जाना होगा। सुब्रत रॉय और जेल में  बंद कंपनी के दो शीर्ष अधिकारियों को 15 दिन के भीतर पासपोर्ट कोर्ट में जमा करने होंगे। सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के बगैर तीनों देश से बाहर नहीं जा सकते। इसके अलावा सुब्रत रॉय को दिल्ली के तिलक मार्ग थाने में हर 15 दिन बाद बताना होगा कि वह देश में भी कहां जाएंगे। मालूम हो कि सुब्रत रॉय और सहारा समूह के दो निदेशक गत वर्ष मार्च महीने से तिहाड़  जेल में हैं। ताजा शर्तों के अंतर्गत सहारा प्रमुख के निकट भविष्य में जेल से रिहा होने की संभावना कम ही दिखती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हमने सुब्रत रॉय को न्याय हित में जेल भेजा। हमारा आदेश पूर्ण न्याय करना है।

-अनिल नरेन्द्र

ललित मोदी का फैलता मकड़जाल

ललित मोदी प्रकरण गंभीर होता जा रहा है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का नाम इस विवाद में इसलिए आया, क्योंकि ब्रिटेन के एक अखबार ने यह खबर छापी थी कि उन्होंने ललित मोदी की पुर्तगाल यात्रा के लिए ब्रिटेन की सरकार से पैरवी की थी। अब राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया इसलिए इस विवाद के घेरे में आ गईं, क्योंकि ललित मोदी ने खुद एक इंटरव्यू में बताया कि कब-कब वसुंधरा राजे ने उनकी मदद की। यह समझना मुश्किल है कि ललित मोदी कई सारे गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहे हैं? मोदी ने इस वक्त वसुंधरा राजे को मुश्किल में डालने वाले तथ्य क्यों उजागर किए? यह भी नहीं पता चलता कि वसुंधरा राजे के परिवार से जिस 30 साल की घनिष्ठता का दावा मोदी कर रहे हैं, वह कब और क्यों खत्म हुई? संभव है कि वसुंधरा को फंसाकर मोदी उनके विरोधियों को खुश करना चाह रहे हों। इससे यह तो पता चलता ही है कि ललित मोदी की दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही खतरनाक हो सकती हैं। आईपीएल के संचालन में वह जिस तरह की मनमानी और अनियमितताएं कर रहे थे, वह तो बीसीसीआई से जुड़े लोग बर्दाश्त कर रहे थे, क्योंकि आईपीएल में बेशुमार पैसा आ रहा था और उस पैसे का लाभ बीसीसीआई में सभी को मिल रहा था। आईपीएल से जिस तरह का भ्रष्टाचार का माहौल बन रहा था उससे ज्यादा लोगों को शिकायत नहीं थी, पर अपने अहंकार और बड़बोलेपन के चलते ललित मोदी ने तमाम लोगों से जो व्यवहार किया वह उनके पतन का कारण बना। यह अहंकार और बड़बोलापन उनके व्यवहार में फिर दिख रहा है, जब वे खुद और दूसरों को विवादों में फंसा रहे हैं। ललित मोदी ने कांग्रेसियों पर भी आरोप लगाया है। वह शरद पवार और राजीव शुक्ला से मिलने का दावा कर रहे हैं। उन्होंने पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम पर पीछा करने का आरोप  लगाया। ललित मोदी ने यूपीए सरकार पर ब्रिटिश अधिकारियों से गोपनीय समझौते के जरिए उन्हें यूके में बंधक बनाने का भी आरोप लगाया। ललित के मुताबिक चिदम्बरम ने मुझे डिपोर्ट करने की कोशिश की पर वह ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि कोई कानूनी आधार ही नहीं था। वह सिर्प इसलिए मुझे परेशानी में डाल रहे थे क्योंकि मैंने शशि थरूर को बाहर करवाया था। थरूर का भी मंत्री पद मेरे कारण नहीं गया, वह झूठ बोल रहे थे, ताजा प्रकरण में मीडिया मुगल रुपर्ट मर्डोक का नाम लेते हुए ललित ने कहा कि यह सब उन्हीं का किया धरा है। जिस संडे टाइम्स अखबार ने सुषमा स्वराज, यूके के सांसद कीथ वाज से जुड़े ई-मेल जारी किए हैं वह रुपर्ट मर्डोक का ही है। ऐसा चैंपियंस 20-20 लीग के कारण किया गया। असल में मर्डोक घाटे में चल रही इस लीग के ब्राडकास्टिंग राइट्स को छोड़ना चाहते थे पर उन्हें डर था कि कहीं मैं यह जाहिर न कर दूं कि इस मामले में नो एग्जिट क्लॉज भी है। ललित ने आरोप लगाया कि ब्रिटेन में संप्रग सरकार ने ही अड़ंगा लगा दिया। लेकिन अब वह अपनी लड़ाई आखिर तक जारी रखन चाहते हैं। मैं आलीशान जिन्दगी जी रहा हूं और क्यूं न जियूं, मैंने कुछ गलत नहीं किया।

Sunday, 21 June 2015

पिछले पांच सालों में 25 फीसदी बढ़ी महिला शराबियों की संख्या

एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि पिछले पांच सालों में 25 फीसदी बढ़ी है महिलाओं में शराब पीने की प्रवृत्ति। महिलाओं में शराब बर्दाश्त करने की क्षमता पुरुषों से कम होती है। उनका शराब पीने के बाद वाहन चलाना ज्यादा जोखिमभरा होता है। एक अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं के शरीर में पानी की मात्रा पुरुषों से कम होती है, इसलिए जब समान वजन वाला पुरुष और महिला समान मात्रा में शराब पीते हैं तो महिला को नशा ज्यादा होता है। शराब उन्हें ज्यादा चढ़ती है। दूसरा बड़ा कारण यह है कि अल्कोहल पचाने के लिए जरूरी डिहाइड्रजिनेस महिलाओं के शरीर में कम होता है। भारत में शराब पीने वाली महिलाओं पर ज्यादा अध्ययन नहीं हुआ है, लेकिन एक गैर सरकारी संगठन के आंकड़े के मुताबिक फिलहाल देश में शराब पीने के मामले में महिलाओं का हिस्सा पांच सालों में बढ़कर 25 फीसदी पर पहुंच जाएगा। बीते दिनों में मुंबई में कारपोरेट वकील जांहनी गडकर का मामला सामने आने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि यहां भी पियक्कड़ महिलाओं पर पुख्ता अध्ययन किया जाए। शराब बनाने वाली कंपनियां भारतीय महिलाओं को आकर्षित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं। वहीं शराब की लत छुड़ाने के लिए सुधार गृह पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। अध्ययन के अनुसार स्पेन में पुरुष छात्रों की तुलना में महिलाएं अधिक शराब पीती हैं, वहीं अमेरिका में एक दशक में नशे में ड्राइविंग के आरोप में गिरफ्तार होने वाली महिलाओं के प्रतिशत में 30 फीसदी वृद्धि हुई है। 2013 तक के आंकड़ों के मुताबिक शराब पीने वालों में केवल पांच फीसदी भारतीय महिलाएं हैं। इनकी संख्या में अगले पांच वर्षों में 25 फीसदी की वृद्धि की संभावना जताई गई है। नशे के लिए महिलाओं के शरीर में पानी की कमी जिम्मेदार है। समान वजन के पुरुष और महिला बराबर शराब पीते हैं तो महिला के रक्त में अल्कोहल की मौजूदगी अधिक होगी ऐसा नाट्रेडेम यूनिवर्सिटी की एक स्टडी से पता चलता है। डॉ. हेमंत ठेकर, सलाहकार जसलोक हॉस्पिटल मुंबई का कहना है कि महिलाओं को पुरुषों की तुलना में देरी से शराब पचती है। इसीलिए महिलाओं को ज्यादा तेजी से नशा होता है। इनके पेट में शराब पचाने के लिए एजाइम का स्तर बहुत कम होता है। भारत में महिलाओं में शराब पीने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है खासकर युवाओं में। इन रेव पार्टियों में शराब तो आम बात है। ड्रग्स के साथ शराब का खतरनाक कॉम्बिनेशन है। सवाल यह है कि इस बढ़ती प्रवृत्ति को रोका कैसे जाए?

-अनिल नरेन्द्र

अमेरिका के अश्वेतों के ऐतिहासिक चर्च पर हमला

अमेरिका में अश्वेतों के खिलाफ हेट क्राइम यानि घृणा अपराध थमने का नाम नहीं ले रहा है। अश्वेतों व पुलिसकर्मियों में तो तनातनी चल ही रही है अब एक चर्च में गोलीबारी की खबर आई है। अमेरिकी राज्य साउथ कैरोलिना के चार्ल्सटन में अश्वेतों के एक ऐतिहासिक चर्च के भीतर एक श्वेत बंदूकधारी की गोलीबारी में कम से कम नौ लोगों की मौत हो गई। पुलिस ने इसे हेट क्राइम यानि घृणा अपराध बताया है। इस राज्य की गवर्नर भारतीय मूल की अमेरिकी निकी हेली हैं। 21 साल के श्वेत हमलावर को करीब 13 घंटे बाद गिरफ्तार करने में पुलिस को कामयाबी मिली। स्थानीय टेलीविजन की रिपोर्ट के मुताबिक पकड़े गए बंदूकधारी का नाम डिलान रूफ है। इस अंधाधुंध गोलीबारी में बचने वाले एक शख्स पिकनी के रिश्तेदार ने बताया कि हमलावर रूफ ने हमले के वक्त कहाöवह ऐसा इसलिए कर रहा है क्योंकि अश्वेत लोग हमारी औरतों से दुष्कर्म करते हैं और हमारे देश में कब्जा जमाते जा रहे हैं। जिस चर्च में घटना हुई वह अमेरिका के सबसे महत्वपूर्ण अफ्रीकन-अमेरिकन चर्च में एक है। 1816 में इसकी स्थापना हुई थी। चर्च की वेबसाइट के मुताबिक वर्ष 1822 में चार्ल्सटन में चर्च के सह-संस्थापक डेनमार्प वेसी ने गुलामों को एकजुट कर विद्रोह की कोशिश की थी। स्थानीय नेशनल पार्प सर्विस के मुताबिक यह चर्च अश्वेत धर्मावलंबियों का सबसे पुराना आस्था का केंद्र है, जहां हर बुधवार की शाम पवित्र ग्रंथ बाइबिल पढ़ी जाती है। इस हमले में मरने वालों में छह महिलाएं और तीन पुरुष हैं। इनमें प्रांतीय सीनेट के सदस्य और चर्च के पादरी कलेमरो पिनवनी भी शामिल हैं। आठ लोगों की मौत मौके पर ही हो गई जबकि एक ने अस्पताल में दम तोड़ा, हमलावर रूफ के एक रिश्तेदार ने बताया कि उसके पिता ने हाल ही में उसके जन्मदिन पर प्वाइंट 95 कैलिवर हैंडगन उपहार में दी थी। अमेरिका में अफ्रीकन-अमेरिकन चर्च पर पहली बार हमला नहीं हुआ है। इससे पहले 1963 में अल्बामा के बर्मिंघम में ऐसे ही हमले में चार लड़कियों की मौत हो गई थी। अगस्त 2012 में अमेरिका के विस्कोसिन के एक गुरुद्वारे में सुबह की प्रार्थना के वक्त बंदूकधारी ने गोलीबारी की थी जिसमें सात लोगों की मौत हो गई थी। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हमले के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप कहा कि धर्मस्थल पर शांति की तलाश में आए लोगों की हत्या त्रासदी है। हमें मानना होगा कि अन्य विकसित देशों में इस तरह की घटनाएं नहीं होती हैं। पूर्व विदेश मंत्री व अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल हिलेरी क्लिंटन ने ट्विट कर घटना पर शोक प्रकट करते हुए इसे हृदय विदारक बताया और मारे गए लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की। वे 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में डेमोकेटिक पार्टी की उम्मीदवार भी हैं। दक्षिण कैरोलिना राज्य की गवर्नर भारतीय मूल की अमेरिकन निकी हेली ने कहाöहम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि हमारे पूजा स्थल में घुसकर लोगों की जान लेने के पीछे क्या मंशा रही होगी। साउथ कैरोलिना के इतिहास में यह सबसे भीषण गोलीबारी की घटना मानी जा रही है। गोलीबारी से पहले हिलेरी क्लिंटन चन्दा जुटाने के अभियान में चार्ल्सटन के एक घर में गई थीं। यह घर घटनास्थल से आधा मील की दूरी पर था। 2014 में पुलिस के हमले में 238 अश्वेत मारे गए थे। 21 गुना अधिक आशंका है श्वेत युवकों को पुलिस द्वारा गोली मारने की। अमेरिका में अश्वेतों की 13 फीसदी आबादी है। यह अमेरिका में अश्वेतों पर पिछले 15 वर्षों में सबसे बड़ा हमला है। एक महिला ने बताया कि हमलावर कुछ देर प्रार्थना सभा में बैठा। फिर उठकर फायरिंग शुरू कर दी। वो चिल्ला रहा थाöतुम सब हमारी महिलाओं से दुष्कर्म करते हो, हमारे देश पर कब्जा कर रहे हो। मेरा देश छोड़ दो नहीं तो मैं सबको मार दूंगा। एक अन्य महिला ने बताया कि हमलावर ने कहाöमैं तुम्हें छोड़ रहा हूं ताकि तुम बाकी सबको बता सको कि यहां क्या हुआ है।

Saturday, 20 June 2015

थोक महंगाई दर घटी पर महंगाई कम नहीं हुई

हालांकि थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर लगातार सातवें महीने शून्य से नीचे रही पर मार्केट में सब्जियों, अनाज के दाम कम नहीं हुए हैं। मई 2015 में यह शून्य से 2.34 फीसदी नीचे रही। लेकिन जिस तरह से दालों और प्याज की कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है वह सरकार के लिए चिन्ता का विषय जरूर होना चाहिए। यदि मोदी सरकार के कार्यकाल की बात करें तो महंगाई की दर 2014 (मई) की दर 6.18 फीसदी थी। महंगाई कम होने का एक कारण पेट्रोल व डीजल समेत ईंधन एवं ऊर्जा वर्ग में गिरावट के कारण आई। विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले महीनों में थोक महंगाई मानसून पर निर्भर करेगी। मौसम विभाग ने औसत से 12 फीसदी कम बारिश की आशंका व्यक्त की है। हालांकि इसकी शुरुआत सामान्य से ज्यादा हुई है। दालों की कीमतों और खुदरा महंगाई में लगातार वृद्धि हो रही है। चिन्ता का विषय यह भी है कि दाल उत्पादन वाले इलाकों में कम बारिश के आसार हैं। वैसे भी इन इलाकों में सिंचाई की सुविधाओं का अभाव है। देश में पिछले साल 184 लाख टन दाल का उत्पादन हुआ था। लेकिन सालाना खपत 210-220 लाख टन की है। इस कमी को दालों का आयात करके पूरा किया गया। बीते वर्ष 34 लाख टन दाल का आयात हुआ। इस वर्ष दाल उत्पादन वाले इलाकों में मानसून को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में इनके दाम आने वाले दिनों में और बढ़ सकते हैं। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार बीते माह ईंधन एवं ऊर्जा समूह की वस्तुओं के दाम 10.51 फीसदी गिर गए। पेट्रोल में 11.29 फीसदी तथा डीजल में 11.62 फीसदी गिरावट आई। एलपीजी के दाम 5.18 फीसदी कम रहे। सूचकांक में 64.97 फीसदी वेटेज रखने वाले मैन्युफैक्चरिंग पदार्थों के दामों में 0.64 फीसदी गिरावट आई। दाल, प्याज के अलावा मीट, अंडा, फलों और दूध जैसे प्रोटीनयुक्त उत्पादों की कीमतों में तेजी का रुख है। जानकारों का कहना है कि सरकार को अब इन उत्पादों की आपूर्ति पक्ष पर ध्यान देना चाहिए ताकि देर होने से पहले ही इनकी महंगाई पर लगाम लगाई जा सके। दाल की आपूर्ति बढ़ाने के लिए सरकार ने हाल ही में कदम उठाए हैं। इसके बावजूद खाद्य पदार्थों की कीमतों में 3.80 फीसदी का इजाफा हुआ है। सीआईआई के महासचिव का कहना है कि खाद्य उत्पादों में तीन-चार फीसदी का इजाफा चिन्ता की बात नहीं है। यह इस बात का संकेत है कि महंगाई की दर में बहुत ज्यादा इजाफा नहीं होगा। ऐसे में रिजर्व बैंक को ब्याज दरों को घटाने में ज्यादा परेशानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि महंगाई की दर केंद्रीय बैंक के लक्ष्यों के मुताबिक ही है। फिक्की की अध्यक्ष ज्योत्सना सूरी का कहना है कि मानसून के सामान्य से कम रहने का खतरा तो है लेकिन सरकार ने जिस तरह से इससे निपटने का खाका तैयार किया है उससे उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले महीनों में महंगाई ज्यादा नहीं बढ़ेगी। हम भी यही उम्मीद करते हैं कि महंगाई पर नियंत्रण रखा जाए।

-अनिल नरेन्द्र

...ताकि फिर न लगे इमरजेंसी

देश में इमरजेंसी थोपने की बरसी 25 जून से पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता और अब मार्गदर्शक मंडल के सदस्य लाल कृष्ण आडवाणी ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि 1975-77 में आपातकाल के बाद के सालों में मैं नहीं सोचता कि ऐसा कुछ भी किया गया है जिससे मैं आश्वस्त रहूं कि नागरिक स्वतंत्रता फिर से निलंबित या नष्ट नहीं की जाएगी। ऐसा कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा जाहिर है कि कोई भी इसे आसानी से नहीं कर सकता। ऐसा फिर से हो सकता है कि मौलिक आजादी में कटौती कर दी जाए। एक अपराध के रूप में इमरजेंसी को याद करते हुए आडवाणी जी ने कहा कि इंदिरा गांधी ने इसे बढ़ावा दिया था। 2015 के भारत में पर्याप्त सुरक्षा कवच नहीं है। श्री आडवाणी के इस बयान को विपक्षी दलों ने नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ की गई टिप्पणी के रूप में लेकर इसका गलत मतलब निकालने का प्रयास किया है। कांग्रेस प्रवक्ता टॉम वड्डकन ने कहा कि मोदी शासन इमरजेंसी का संकेत दे रहा है। आडवाणी जी को जो कहना था, कह दिया। साफ है कि वह किसकी बात कर रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि आडवाणी जी सही कह रहे हैं कि इमरजेंसी से इंकार नहीं किया जा सकता। क्या दिल्ली उनका पहला प्रयोग है? लाल कृष्ण आडवाणी ने जो आशंका जताई है उसे एक खास पार्टी के संतुष्ट या असंतुष्ट नेता के बयान के रूप में नहीं लिया जा सकता और न ही लिया जाना चाहिए। यह आधुनिक भारत के राजनीतिक विकास में लंबी और सक्रिय भूमिका निभा चुके एक तजुर्बेकार स्टेट्समेन का सटीक आब्जर्वेशन है। भारतीय लोकतंत्र और उसके नागरिकों के लिए आपातकाल का दौर एक काला अध्याय रहा है। तब देश ने देखा था कि किस तरह असुरक्षा और गुरूर के वशीभूत होकर तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने असहमति और विरोध के नागरिक अधिकारों का हरण कर लिया था। लेकिन इतिहास में यह भी दर्ज है कि देश ने लोकतंत्र को कुचलने की इस कुचेष्टा के खिलाफ जबरदस्त पलटवार करते हुए मतदान के जरिए जिम्मेदारी को करारा सबक सिखाया था। यह सही है कि होने को कुछ भी हो सकता है लेकिन एक सच यह भी है कि जिस दौर में देश ने आपातकाल को भोगा, आज हमारा लोकतंत्र उससे अधिक परिपक्व और जीवंत अवस्था में है। सक्रिय न्यायपालिका, सबल मीडिया और अपने नागरिक अधिकारों के संरक्षण को लेकर सजग मतदाता खासकर युवा वर्ग की मौजूदगी में आपातकाल की आहट दूर-दूर तक सुनाई नहीं देती। जहां तक आडवाणी जी का यह कहना है कि आपातकाल से बचने के पुख्ता उपाय अभी नहीं किए जा सके तो शायद उनका भाव यह है कि हमारे संविधान में ऐसा संशोधन नहीं हुआ जिससे आपातकाल लगाने की बात कोई हुकमरान न कर सके। सच्चाई यह है कि अकेले किसी कानूनी उपाय में इतना माद्दा नहीं है कि वह आपातकाल के खतरे से हमें संरक्षित कर सके। यह भी दिख रहा है कि उनके कहे के बहाने विरोधी मोदी सरकार पर निशाना साधने में जुट गए हैं। दूसरी ओर भाजपा के अंदर भी हाल के दिनों में ऐसी प्रवृत्तियां मजबूत हुई हैं जिनका लोकतांत्रिक भावनाओं और कसौटियों से कोई मेल नहीं है। सरकार में सारी शक्तियां एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द सिमटी हुई हैं। लेकिन आडवाणी जी की चिन्ताएं सिर्प राजनीतिक दलों तक सीमित नहीं लगती। उन्हें लोकतंत्र का पहरेदार कहे जाने वाले ऐसे संस्थान देश में नजर नहीं आते, जिनकी लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर प्रतिबद्धता संदेह से परे हों। यह ध्यान रखना जरूरी है कि लोकतांत्रिक मूल्यों और अधिकारों का अपहरण हर बार बाकायदा घोषित करके ही नहीं किया जा सकता। वह लोकतांत्रिक आवरण में, कायदे-कानूनों की आड़ में भी हो सकता है। बचाव का कोई और उपाय नजर नहीं आता सिवाय निरंतर चौकसी, लगातार जागरुकता के। आडवाणी जी ने यह भी कहा कि आज की तारीख में निरंकुशता के खिलाफ मीडिया बेहद ताकतवर है। लेकिन यह लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के लिए वास्तविक प्रतिबद्धता है, मुझे नहीं पता। इसकी जांच करनी चाहिए।

Friday, 19 June 2015

परीक्षा की प्रक्रिया पर लगा दाग

आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने एआईपीएमटी (ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट) रद्द कर दी। साथ ही सीबीएसई को चार हफ्ते में दोबारा परीक्षा लेने को कहा है। यानि 15 जुलाई से पहले परीक्षा करानी होगी। इससे पहले तीन मई को परीक्षा हुई थी। इसमें देशभर से 6.3 लाख छात्र बैठे थे। परीक्षा में गड़बड़ी की पहली शिकायत हरियाणा के रोहतक में हुई थी। मामला कोर्ट में पहुंचा तो 10 राज्यों से भी शिकायतें आ गई। पर सीबीएसई इंकार करती रही। रोहतक पुलिस ने जब कोर्ट में सबूत सौंप कर कहा कि कम से कम 44 छात्रों ने नकल का फायदा उठाया है। इस पर सीबीएसई ने दलील दी थी कि 44 छात्रों के कारण 6.3 लाख छात्रों को दोबारा परीक्षा दिलवाना सही नहीं होगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए कहाöमुद्दा परीक्षा की पवित्रता का है, जिस पर संदेह उठ रहा है। अब दोबारा परीक्षा कराने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की अवकाशकालीन पीठ ने एआईपीएमटी को निरस्त करने का आदेश सुनाते हुए कहा कि इस परीक्षा का गलत तरीके से कुछ छात्रों को फायदा पहुंचा है लिहाजा परीक्षा संदिग्ध हो गई है। पीठ ने कहा है कि अगर इस परीक्षा को बचाने की कोशिश की जाती है तो मैरिट के साथ अन्याय होगा। पीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अगर इस परीक्षा की प्रक्रिया जारी रखने की इजाजत दी जाती है तो याचिकाओं का चक्रवात आ जाएगा। इससे ईमानदार छात्रों का करियर प्रभावित होगा। आशंका है कि योग्य छात्रों की जगह उन छात्रों को मिल जाएगी जिन्हें इस अनियमितता से फायदा तो पहुंचा लेकिन उनकी पहचान नहीं हो पाई। नकल के लिए अंडरगार्मेंट में लगा रखी थी चिप, जिसे मोबाइल में लगाकर नकल की गई। इसका खुलासा सात मई को रोहतक ने किया। आरोपियों के पास से मोबाइल, माइक्रोचिप लगे अंडरगार्मेंट जब्त किए गए। मोबाइल में पेपर के आंसर मिले। वे वॉट्सएप से भेजे गए थे। इसके बाद राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली समेत छह राज्यों में छापेमारी हुई। अब उन राज्यों में दाखिले में देरी होगी जो अपना मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट नहीं करवाते। एआईपीएमटी के जरिए सीटें भरते हैं। हरियाणा, हिमाचल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, चंडीगढ़ और डीयू, एएफएमटी, बीएचयू और जामिया मिलिया इस श्रेणी में आते हैं। छात्रों को फिर से परीक्षा की तैयारी करनी पड़ेगी। कोचिंग इंस्टीट्यूट में नए बैच शुरू हो चुके होंगे। शिक्षकों के लिए पुराने बैच के छात्रों को फिर से समय देना मुश्किल हो सकता है। जांच से पता चला कि पूरा सिस्टम ही हाइटेक है। सीबीएसई ने सहयोग नहीं किया। उसे परीक्षा का पूरा पैटर्न बदलना होगा ताकि फिर ऐसी गड़बड़ी न हो। नकल और पेपर आउट रोकने के लिए सीबीएसई सभी परीक्षा केंद्रों पर जैमर लगाने की सोच रही है। परीक्षा केंद्र छात्रों की पसंद न होकर रैंडम तय करना चाहिए। उम्मीद करते हैं कि भविष्य में नकल और पेपर लीक होने पर नियंत्रण लगेगा।

-अनिल नरेन्द्र

मोदी के चेहरे पर ही भाजपा लड़ेगी बिहार चुनाव

बिहार के सियासी महाभारत में एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए राजनीतिक दलों में होड़ मची हुई है। सत्ता पाने की होड़ में शामिल राजनीतिक दलों ने विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा से पहले ही चुनाव प्रचार से लेकर वोट प्रबंधन पर पूरा जोर दिया है। वोटों की गोलबंदी के लिए राजनीतिक दलों ने अपने-अपने नेताओं के चेहरे को आगे कर दिया है। बिहार के चुनावी समर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हाइटेक प्रचार का कोई भी हथियार छोड़ना नहीं चाहते। उन्होंने बढ़चढ़ कर बिहार अभियान के जरिए खुद को जद (यू)-राजद गठबंधन के नेता के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया है। जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है वह अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं करेगी। उम्मीद भी यही थी कि महाराष्ट्र, हरियाणा चुनाव की तरह बिहार में भी किसी नेता को भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश नहीं करेगी। पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही अपने चुनाव प्रचार का आधार बनाएगी। राज्य के लिए पार्टी के चुनाव प्रभारी अनंत कुमार ने ऐलान किया है कि भाजपा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपने विकास एजेंडे को प्रचारित करते हुए तीन महीने बाद होने वाले चुनाव में उतरेगी। एक लिहाज से यह चतुराई भरा फैसला है। बिहार के तीखे जातीय समीकरणों के बीच किसी एक जाति का उम्मीदवार कई दूसरी जातियों के लिए विकर्षण का कारण बन सकता था। वैसे भी बिहार में भाजपा के पास कोई सर्वमान्य चेहरा नहीं है और कई नेता मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हैं। कोई एक ऐसा नहीं जिसके नाम से बिहार भर में वोट मिल सकें। डर यह भी है कि अगर किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाता तो असंतुष्ट नेता भीतरघात पर उतर आते। स्वच्छ छवि और अपने खास विकास एजेंडे के साथ नीतीश कुमार आज भी मजबूत शक्ति हैं और जनता दल (यूनाइटेड)और लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल में गठबंधन पक्का होने के बाद सामाजिक समीकरण के मामले में भी भाजपा की राह आसान नहीं रह गई है। इस पृष्ठभूमि में उसकी नैया अपने समर्थक तथा नीतीश-लालू विरोधी मतदाताओं के पूर्ण ध्रुवीकरण से ही पार लग सकती है। भाजपा के रणनीतिकारों ने ठीक ही आकलन किया है कि ऐसी गोलबंदी के लिए जो जोश चाहिए वह सिर्प नरेंद्र मोदी के नाम से ही पैदा हो सकता है। विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन को बिहार में 38.77 फीसदी मत मिले थे। क्या एनडीए विधानसभा चुनाव में भी इसे दोहरा सकेगी? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता वह नहीं जो संसदीय चुनाव के समय थी। इसमें भारी गिरावट आई है। रही-सही कसर ललित मोदी प्रकरण ने निकाल दी। देखना यह होगा कि क्या इस ललित गेट का असर विधानसभा चुनाव में भाजपा को उठाना पड़ेगा? भाजपा के लिए बिहार के चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि लोकसभा चुनावों में उसने बिहार ही नहीं समूचे उत्तर भारत में अपना डंका बजाया था। अगर बिहार में भाजपा के पक्ष में नतीजे नहीं आए तो यह संकेत जाएगा कि मोदी लहर अब रुक गई है और इसका दूरगामी असर होगा।

Thursday, 18 June 2015

...और अब जांच के फेरे में आए डिब्बा बंद खाद्य उत्पाद

मैगी नूडल्स में तय मानकों से अधिक सीसा की मात्रा पाए जाने के बाद अब सभी डिब्बाबंद, खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठने लगे हैं। सेंट्रल फूड सेफ्टी रेग्यूलेटर (एफएसएसएआई) ने स्टेट फूड कमिश्नरों से कहा है कि वे मार्केट में उपलब्ध सभी डिब्बाबंद उत्पादों की जांच करें। यह आदेश मैगी को लेकर पैदा विवाद के बीच आया है। देश में सैकड़ों डिब्बाबंद खाद्य उत्पाद बिना रजिस्ट्रेशन के ही बिक रहे हैं। ऐसे में उत्पादों की जांच जरूरी हो गई है। पर इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि भारतीय खाद्य विभाग की ओर से राज्य सरकारों को डिब्बाबंद उत्पादों की जांच का आदेश दिया गया है। इस आदेश के तहत जिस तरह यह कहा गया है कि उन खाद्य पदार्थों के भी नमूनों की जांच हो जो एफएसएसएआई से पंजीकृत नहीं हैं उससे पता चलता है कि देश में ऐसे भी डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ बिक रहे हैं जिनकी गुणवत्ता की कहीं कोई जांच-परख नहीं हो रही है। हालांकि डिब्बाबंद आहार से सेहत पर पड़ने वाले पतिकूल पभाव को लेकर पहले कई अध्ययन आए और इनकी गुणवत्ता पर कड़ाई से नजर रखने की जरूरत रेखांकित की गई, पर तब इस मामले में कोई संजीदगी नहीं दिखी थी। रसोईघर में रोज तैयार होने वाले भोजन पर धीरे-धीरे बाजार का कब्जा होता गया है। तरह-तरह की नमकीन, मिठाइयां और दुग्ध उत्पाद के अलावा अचार, चटनी, मुरब्बे, फलों के रस, शर्बत, कटी-कटी सब्जियां, यहां तक कि तैयार रोठी, पराठे, दाल, मांसाहार वगैरह भी पैकेटों में उपलब्ध रहने लगे हैं। शायद ही अब ऐसा कोई परंपरागत भोजन है जिसे पैकेटों में बंद करके बेचने की तरकीब न निकाली गई हो। खाद्य पदार्थें की गुणवत्ता में खामी का मामला कोई पहली बार सामने नहीं आया है। इस तरह के पकरण रह-रह कर सामने आते ही रहते हैं और उनसे यही पता चलता है कि पेंद्र और राज्यों ने खाद्य पदार्थें की गुणवत्ता परखने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं बना रखी है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि खाद्य पदार्थें की गुणवत्ता की जांच-परख का मौजूदा तंत्र कोई बहुत अधिक भरोसेमंद नहीं है। खाद्य पदार्थ सेहत के लिए हानिकारक हैं या नहीं, इसका परीक्षण करने वाली पयोगशालाओं की स्थिति भी संतोष जनक नहीं है। कई राज्यों में तो इस तरह की पयोगशालाओं में बुनियादी संसाधन ही नजर नहीं आते। देर से ही सही एफएसएसएआई सभी डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता जांचने तो तत्पर हुआ है। देखना यह है कि इस मामले में कितनी पारदर्शिता और निष्पक्षता बरत पाती है। नामी कंपनियों के पचार और बिकी तंत्र को लेकर कई बार संदेह हुआ है पर उनके पभाव व पहुंच के कारण कभी उन पर जांच की आंच नहीं आई। उपभोक्ताओं के पास खाद्य पदार्थें की गुणवत्ता जांचने का न तो कोई आसान और पामाणिक साधन है और न ही अदालत में यह साबित कर सकने का तरीका कि कोई चीज खाने के बाद उनके स्वास्थ्य पर पतिकूल असर पड़ा। इसलिए एफएसएसएआई की ताजा पहल ने उम्मीद जगाई है, बशर्ते यह अपनी तर्कसंगत परिणति तक पहुंचे।

öअनिल नरेन्द्र

जगेन्द्र पकरण ः कठघरे में खड़ी अखिलेश यादव सरकार

उत्तर पदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जगेन्द्र सिंह को जलाने की घटना इतनी नृशंस थी जिससे अंतत उसकी मृत्यु हो गई, इस घटना के करीब 9-10 दिन बाद भी मुख्य आरोपी राज्य मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ कार्रवाई होना तो दूर की बात है समाजवादी पार्टी ने साफ किया कि फिलहाल उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। उत्तर पदेश के वरिष्ठ केबिनेट मंत्री शिवपाल यादव ने कहा कि जांच पूरी होने पर ही किसी मंत्री को हटाया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि आप तो जानते हैं कि झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है, आरोप लगाए जाते हैं। जब तक जांच पूरी नहीं होगी तब तक किसी मंत्री को हटाया नहीं जाएगा। जगेन्द्र सिंह की हत्या के मामले में मंत्री से अब तक पूछताछ नहीं किए जाने के मद्देनजर निष्पक्ष जांच की संभावना को लेकर उठ रहे सवालों के घेरे में पूछे जाने पर यादव ने दावा किया कि पूछताछ हो रही है, जांच भी हो रही है। यूपी के राज्यपाल राम नाईक ने गत सप्ताह पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात कर राज्य के हालात के साथ पत्रकार जगेन्द्र सिंह को जलाए जाने की घटना की जानकारी दी। चारों ओर से दबाव के कारण बड़ी मुश्किल से अखिलेश सरकार ने उन पांच पुलिस वालों को सस्पेंड किया जो इस नृशंस हत्या में शामिल थे। सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर अपने पेज शाहजहांपुर समाचार पर उनकी खबरें और रिपोर्ट स्थानीय पत्रकारों के लिए सूचना का स्रोत बना हुआ था। उनका पयोग पभावशाली बन गया था। उन्होंने राज्य सरकार की रोक के बावजूद एपीएल (गरीबी रेखा से ऊपर) राशन कार्ड संबंधी एक रिपोर्ट पकाशित की जिससे कहा जाता है कि पिछड़ा वर्ग के ब्राह्मण मंत्री राममूर्ति खफा हो गए। गत 22 मई को अपनी फेसबुक पोस्ट में जगेन्द्र ने आशंका जताई थी कि वर्मा ने उन पर हमला किया जिसमें उनका पैर टूट गया। उधर शहाजहांपुर पुलिस का दावा है कि जगेन्द्र गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल थे जिस वजह से उनके खिलाफ पांच फौजदारी मामले दर्ज हुए। 27 मई को जगेन्द्र ने अपनी फेसबुक पोस्ट में वर्मा पर गैंगरेप में शामिल होने का आरोप लगाया। इन्हीं परिस्थितियों में एक जून को पुलिस उनके घर पहुंची। उसी दौरान उनकी जलकर मौत हो गई। जगेन्द्र के बेटे द्वारा साफ शब्दों में वर्मा एवं पुलिस कर्मियों का नाम लेने के बावजूद पुलिस मुकदमा दर्ज करने में टाल-मटोल करती रही। मामला तब दर्ज हुआ जब यह घटना देश-विदेशों में पसारित हुई और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी संस्थाओं ने आवाज उठाई। राममूर्ति वर्मा पर केवल हत्या का आरोप, रेप का आरोप ही नहीं है। वे कुछ दिन पहले तक वक्फ सपंत्तियों को जबरन कब्जा करने के आरोपों का भी सामना कर रहे थे। युवा मुख्य मंत्री अखिलेश यादव से जनता को कुछ उम्मीदें हैं। इतने दिन बाद भी वह राममूर्ति वर्मा को हटाने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं, निराशाजनक है। दुख से कहना पड़ता है कि अखिलेश सरकार के कार्यकाल में सपा नेता और कार्यकर्ता इतने दुस्साहसी हो गए हैं कि वे अपने खिलाफ आवाज उठाने वालों की हत्या करने तक से नहीं हिचक रहे। पत्रकार और आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याएं जहां पारदर्शिता की बात करने वाली अखिलेश सरकार की छवि पर धब्बा हैं, वहीं पार्टी जनों का बढ़ता दुस्साहस उसकी नाकामी का परिचायक भी है। जगेन्द्र के परिवार वालों ने पूरी घटना की जांच सीबीआई से कराने की बात कही है क्योंकि पुfिलस पशासन कैसी जांच करेगा जिसमें वह खुद आरोपी है? हमारी मांग है कि राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा को जांच पूरी होने तक मंत्री पद से हटाया जाए और मामले की जांच सीबीआई को दी जाए। अखिलेश से यही उम्मीद है।

Wednesday, 17 June 2015

समस्या मोबाइल में कॉल ड्रॉप होने की, कनेक्शन न मिलने की

पिछले कुछ दिनों से मोबाइल सर्विसेज कुछ गड़बड़ा-सी गई है। आपका मोबाइल खुला हो तब भी आपका फोन नहीं बजता और फिर मैसेज आ जाता है मिस्ड कॉल का। आप बात कर रहे होते हैं अचानक सम्पर्प टूट जाता है। यह कॉल ड्रॉप का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 10 से अधिक क्षेत्र मोबाइल नेटवर्प के लिए डेड जोन बन गए हैं। ऐसे इलाके हैं, जहां पहुंचने पर नेटवर्प गायब हो जाते हैं। फोन या तो कट जाता है या कनेक्शन ही नहीं मिलता। हर कंपनी के डेड जोन के अलग-अलग नेटवर्प हैं। 45 प्रतिशत से अधिक यानि साढ़े चार करोड़ उपभोक्ता भारती एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया सेल्यूलर का प्रयोग करते हैं। 5700 सैल साइट हैं भारती एयरटेल की दिल्ली में, वोडा फोन की 5900 सैल साइट हैं। टॉवर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइर्ड्स एसोसिएशन के डायरेक्टर जनरल उमंग दास के अनुसार वर्तमान समय में मोबाइलधारकों की संख्या को ध्यान में रखते हुए देश में फिलहाल 6,25,000 मोबाइल टॉवर होने चाहिए जबकि देश में अब तक मात्र 4,25,000 टॉवर लगाए जा सकते हैं। बेहतर मोबाइल सेवाओं के लिए देश में अभी कम से कम दो लाख टॉवर और लगाए जाने की जरूरत है। सेल्यूलर ऑपरेर्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के अनुसार मार्च 2009 में जहां देश में मोबाइलधारकों की संख्या लगभग 39 करोड़ थी वहीं इनकी संख्या मार्च 2014 में बढ़कर 90 करोड़ हो गई है। इस दौरान जहां ग्राहकों की संख्या में तीन गुणा इजाफा दर्ज किया गया वहीं मोबाइल टॉवरों की संख्या में वर्ष 2010 से 2014 के बीच मात्र 41 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया। संगठन के अनुसार पूरी दुनिया में भारत की मोबाइल ऑपरेटर कंपनियों के पास औसतन सबसे कम स्पेक्ट्रम हैं। आस्ट्रेलिया, साउथ कोरिया, सिंगापुर व मलेशिया जैसे बाजारों की तुलना में बेहद कम है। दूसरी ओर दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कॉल बीच में ही कटने (कॉल ड्रॉप) के मुद्दे पर दूरसंचार कंपनियों को खरी-खरी सुनाई है। मंत्री ने इन कंपनियों से कहा है कि वे अतिरिक्त प्रयासों से अपनी प्रणाली को मजबूत करें क्योंकि उनके पास बिना किसी बाधा के दूरसंचार सेवाएं देने के लिए पर्याप्त स्पेक्ट्रम हैं। प्रसाद ने बताया कि उन्होंने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) से इस समस्या से निपटने के लिए हतोत्साहित करने वाली व्यवस्था बनाए जाने के लिए कहा। एक साक्षात्कार में प्रसाद ने कहा कि मंत्री के रूप में मैं चाहूंगा कि सभी दूरसंचार कंपनियां अपनी प्रणाली को दुरुस्त करें जिससे कॉल ड्रॉप से बचा जा सके और वे अपना परिचालन बेहतर तरीके से चला सकें। समस्या का समाधान तभी हो सकता है जब कंपनियों पर जुर्माना राशि अधिक बढ़े, रेडियो कवरेज को सुधारा जाए, नेटवर्प की क्षमता सुधार कर इस समस्या से निपटा जा सकता है। दिल्ली में टॉवर बढ़ाने की आवश्यकता है। मौजूदा समय में दिल्ली में 34 हजार मोबाइल टॉवर हैं जबकि 50 हजार से अधिक की जरूरत है। प्रत्येक मोबाइल ऑपरेटर को बेहतर फ्रीक्वेंसी दी जाए। उम्मीद की जाती है कि मोबाइल ऑपरेटर उपभोक्ताओं को आ रही दिक्कतों का जल्द समाधान करेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

सुषमा प्रकरण ः कांग्रेस बात का बतंगड़ बना रही है

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी की मदद के मामले में विवाद में जबरन डालने पर तुली कांग्रेस बात का बतंगड़ बना रही है। टी-20 क्रिकेट टूर्नामेंट फंड के गबन के आरोपों के सिलसिले में ललित मोदी के खिलाफ भारत में प्रवर्तन निदेशालय ने लुक-आउट नोटिस जारी कर रखा है। मोदी 2010 से ही लंदन में रह रहे हैं। आरोपों के मुताबिक ललित मोदी को पुर्तगाल की यात्रा के लिए दस्तावेज दिलाने के लिए सुषमा ने ब्रिटिश सांसद और हाई कमिश्नर से अनुरोध किया था। सुषमा ने रविवार को 14 बार ट्विट करके सफाई दी। उन्होंने कहा कि ललित मोदी की पत्नी को कैंसर था और पुर्तगाल में ऑपरेशन होना था। ललित मोदी को ऑपरेशन के पेपर्स पर साइन करने थे। मैंने मानवीय आधार पर मदद की, इसमें गलत क्या है? ऑपरेशन के बाद वैसे भी मोदी वापस लंदन पहुंच गए थे। मैंने ब्रिटिश हाई कमिश्नर से साफ कहा था कि वह यूके के नियमों के तहत ही ललित मोदी की मदद करें। कहा यह भी जा रहा है कि सुषमा के पति स्वराज कौशल और बेटी बांसुरी कौशल आरोपी ललित मोदी के वकील हैं। सुषमा पर यह भी आरोप है कि उन्होंने अपने भतीजे ज्योतिर्मय कौशल को ब्रिटिश लॉ डिग्री कोर्स में एडमिशन दिलाने के लिए वाज की मदद ली थी। एक ई-मेल में दावा किया गया है कि सुषमा के पति स्वराज कौशल ने ललित मोदी से एक ब्रिटिश यूनिवर्सिटी में भतीजे का एडमिशन कराने में मदद को कहा था। सुषमा ने कहा है कि उसका एडमिशन 2013 में यानि मेरे मंत्री बनने से एक साल पहले हो चुका था। हाई कोर्ट ने ललित मोदी का पासपोर्ट बहाल कर दिया था। समाजवादी पार्टी के महासचिव राम गोपाल यादव ने कहा कि किसी की पत्नी को कैंसर हो और मानवीय आधार पर सुषमा स्वराज ने कुछ कहा हो तो कौन-सा पहाड़ टूट गया? जो लोग सुषमा स्वराज को जानते हैं, वह जानते हैं कि सुषमा का स्वभाव हर एक की मदद करने वाला है। ऐसे ही उनके पति स्वराज कौशल हैं। कोई भी अपनी समस्या लेकर इन तक जा सकता है और वह कायदे कानून के अंदर रहकर उसकी मदद करते हैं। हैरत इस बात पर है कि विपक्ष और खासकर कांग्रेस बिना किसी जांच-परख के कौआ कान ले गया, की तर्ज पर शोर मचाने में लगी हुई है। उसे सुषमा स्वराज का त्याग पत्र चाहिए और वह भी तत्काल। सुषमा जी पर आरोप है कि उन्होंने ललित मोदी की पुर्तगाल यात्रा में सहायता की। हालांकि ललित मोदी के पुर्तगाल जाने के अनुरोध पर फैसला ब्रिटिश सरकार को अपने कायदे-कानून के तहत करना था लेकिन अगर यह मान भी लिया जाए कि इसमें सुषमा की भूमिका रही और वह उनके दखल से ही पुर्तगाल जा सके तो क्या यह अपराध की श्रेणी में आता है? आखिर ऐसा भी नहीं है कि ललित पुर्तगाल जाकर फरार हो गए या फिर उन्होंने वहां किसी अपराध को जन्म दिया हो? ललित पुर्तगाल गए और अपनी कैंसरग्रस्त पत्नी के ऑपरेशन के बाद वापस लंदन लौट गए इसमें घपला-घोटाला क्या है? क्या यह किसी सौदे के तहत हुआ, क्या कोई पैसा लेन-देन के कारण हुआ? अपराध तो तब बनता जब सुषमा या स्वराज कौशल ने मदद करने के लिए पैसे लिए हों? मुझे केरल के मछुआरों की हत्या का आरोप का सामना कर रहे इटली के नौसैनिकों का किस्सा याद आ रहा है। अगर हत्या के आरोपी क्रिसमस मनाने के लिए स्वदेश जा सकते हैं तो ललित मोदी कैंसरग्रस्त बीवी के ऑपरेशन के  लिए पुर्तगाल क्यों नहीं जा सकते? ललित मोदी पर वित्तीय घपलेबाजी के आरोप जरूर हैं पर उन्हें अभी तक किसी भी अदालत ने न तो कसूरवार करार दिया है और न ही कोई सजा सुनाई है। ललित मोदी के वकील महमूद आब्दी ने कहा कि ललित मोदी को कांग्रेस नेता शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर के आईपीएल टीम में शेयर का खुलासा करने के बाद से निशाना बनाया जा रहा है। आज ए. राजा और जमाई राजा वाले नैतिकता की बातें कर रहे हैं। आब्दी ने कांग्रेस द्वारा ललित मोदी को भगोड़ा कहे जाने पर ऐतराज जताते हुए कहा कि किसी कोर्ट ने ललित मोदी को दोषी करार नहीं दिया है। आज वह कांग्रेस सबसे ज्यादा हल्ला मचा रही है जिसने बोफोर्स घोटाले में दलाली खाने वाले इटली के व्यापारी ओट्टावियो क्वात्रोची और सैकड़ों लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के मुखिया वॉरेन एंडरसन को भागने का मौका दिया। इन्हें भी मानवीय आधार पर देश से बाहर जाने की इजाजत दी गई थी। जिन लोगों के घर शीशे के होते हैं वह दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारते। ललित मोदी का मुद्दा उठाकर कांग्रेस बेकार बात का बतंगड़ बना रही है। देश शायद ही इनके बहकावे में आए।

Tuesday, 16 June 2015

सिगरेट के पैकेट से भी सस्ती बिकती हैं लड़कियां

इस समय दुनिया में सबसे खूंखार आतंकी गुट आईएस की हरकतें आए दिन सामने आती हैं। ताजा खबर के अनुसार इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों द्वारा मारे गए 600 लोगों के शव उत्तरी इराक में जमीन खोदकर निकाले गए हैं। इराक के मानवाधिकार मंत्री मोहम्मद अल-बयाती ने कहा कि शवों का आंकड़ा और बढ़ सकता है। ये तमाम शव वायुसेना के उन जवानों के हैं जो देश के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के गृह शहर तिकरित शहर के आतंकियों के कब्जे में आने के बाद मार डाले गए थे। एक साल पहले 12 जून 2014 को आईएस ने तिकरित शहर पर कब्जा कर लिया था। आईएस ने तिकरित के करीब स्थित एक सैन्य अड्डे पर भी कब्जा कर लिया था और वायुसेना के करीब चार हजार जवानों को बंदी बना लिया था। इनमें से 1000 से 1700 के करीब जवानों को मारकर विभिन्न स्थानों पर गाड़ दिया था। आईएस द्वारा लड़कियों का अपहरण कर उन्हें बेचे जाने की खबरें भी सामने आती रही हैं। लेकिन बिक्री के शर्मनाक तरीकों पर ताजा खुलासे ने आतंकी संगठन का एक और खौफनाक चेहरा पेश किया है। सीरिया और इराक के उन बाजारों में लड़कियां किसी सामान की तरह पुरुषों के सामने पेश होती हैं। इन्हें सबके सामने बेपर्दा कर कौड़ियों के भाव बेचा जाता है। संयुक्त राष्ट्र की यौन हिंसा संबंधी मामलों की दूत जनैब बागुला के मुताबिक उन्होंने अप्रैल में इराक और सीरिया का दौरा किया। वहां उन्होंने आईएस के कब्जे वाले इलाकों में कैद से बचकर आई महिलाओं और लड़कियों से बात की। उन्होंने पाया कि आतंकी जब किसी इलाके पर कब्जा करते हैं तो महिलाओं का अपहरण कर लेते हैं। फिर उन्हें किसी सामान की तरह बेहद कम दाम पर बेच दिया जाता है। यह मूल्य सिगरेट के एक पैकेट के दाम से भी कम हो सकता है। तो कई बार 100 से हजार डॉलर तक की बोली लगती है। यह कीमत उनकी उम्र और खूबसूरती पर तय होती है। रिपोर्ट के मुताबिक लड़कियों का अपहरण करना और उनका आकर्षण दिखाकर विदेशी युवकों को संगठन में शामिल करना आईएस की रणनीति का हिस्सा है। आईएस विदेशी लड़कों से कहता है कि उनके पास ढेर सारी लड़कियां हैं जिनसे वे शादी भी कर सकते हैं। इससे आकर्षित होकर बड़ी संख्या में विदेशी युवक आतंकी बनकर आईएस में शामिल हो जाते हैं। पिछले 18 महीनों में इराक और सीरिया में रिकार्ड संख्या में विदेशी लड़ाके शामिल हुए हैं। खबर है कि 100 देशों से 25 हजार लड़ाके आतंकी संगठन के साथ हाथ मिल चुके हैं। वही विदेशी लड़ाके आईएस की सबसे बड़ी ताकत हैं। युद्ध के दौरान पकड़ी गई महिलाओं को कहते हैं अल-सबी। आईएस इन्हें जबरन यौन संबंध बनाने की इजाजत देता है। उपहार के रूप में भी लड़ाके सौंप सकते हैं लड़कियां। मारपीट से लेकर छोटी बच्चियों की प्रताड़ना की भी है इजाजत। मांगने पर नहीं दी जाती सजा पर फिर से कैद कर दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की दूत ने 15 साल की एक लड़की की पीड़ा साझा की है। यह लड़की 50 साल के एक शेख को बेची गई। शेख ने उसे एक बंदूक और एक घड़ी दिखाकर पूछा उसे क्या चाहिए? लड़की शायद जीना नहीं चाहती थी इसलिए बंदूक मांगी। इस पर शेख ने कहा कि उसे खुदकुशी का मौका नहीं देगा। बाद में वह लड़की बार-बार बलात्कार का शिकार हुई।

-अनिल नरेन्द्र

महंगाई से परेशान दिल्लीवासियों पर महंगी बिजली की मार

दिल्ली की सियासत में बिजली पसंदीदा विषय रहा है। आम आदमी पार्टी को दिल्ली के सिंहासन तक पहुंचाने में भी बिजली की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कम बिजली खपत करने वाले उपभोक्ताओं के लिए बिजली बिल में 50 प्रतिशत कमी करने की घोषणा की थी। इससे दिल्लीवासियों ने राहत की सांस ली थी लेकिन अब एक बार फिर से राजधानी में बिजली महंगी हो गई है। जहां एक तरफ दिल्ली सरकार है तो दूसरी तरफ दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) आमने-सामने आ गए हैं। दिल्ली सरकार में ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन ने ट्विट किया कि सरकार डीईआरसी को बिजली टैरिफ बढ़ाने के आदेश पर पुनर्विचार को कहेगी। हम इस आदेश से असहमत हैं। डीईआरसी ने एपीलेट ट्रिब्यूनल ऑफ इलैक्ट्रिसिटी (एटीई) के निर्देश का हवाला देकर बिजली वितरण कंपनियों को उपभोक्ताओं से बिजली खरीद समायोजन लागत शुल्क (पीपीएसी) अधिभार वसूलने की अनुमति दे दी है। इससे बिजली चार से छह प्रतिशत तक महंगी हो गई है। इसे रोकने के लिए न तो दिल्ली सरकार और न ही डीईआरसी ने कोई कदम उठाया। राजनीतिक दल अब इसके लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार जहां आयोग के इस निर्णय को अदालत में चुनौती देने की बात कह रही है वहीं विपक्ष का कहना है कि बिजली के दाम बढ़ाने के लिए पूरी तरह से दिल्ली सरकार जिम्मेदार है। रेजीडेंट वैलफेयर एसोसिएशन की भी नाराजगी बढ़ गई है। भाजपा का कहना है कि जिस तरह से शीला दीक्षित सरकार बिजली के दाम बढ़ने पर बयानबाजी करती थी ठीक उसी तरह से आप सरकार भी बात कर रही है। यदि सरकार आयोग के सामने सही ढंग से जनता के हित का पक्ष रखती तो यह स्थिति नहीं होती। अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और ऊर्जा मंत्री सतेंद्र जैन लोगों को मूर्ख बना रहे हैं। दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता का कहना है कि कांग्रेस सरकार की तरह आप सरकार भी बिजली कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए पीपीएसी के बहाने दिल्लीवासियों पर आर्थिक बोझ डाल रही है। आप सरकार इस फैसले को वापस ले तथा कैग से बिजली कंपनियों के खातों की जांच शीघ्र पूरी कर इसे सार्वजनिक करने का अनुरोध करे। उधर नॉर्थ-ईस्ट रेजीडेंट वैलफेयर फैडरेशन के अध्यक्ष अशोक भसीन का कहना है कि एटीई के आदेश पर अमल करने के लिए तीन सप्ताह का समय था लेकिन डीईआरसी ने ट्रिब्यूनल के फैसले को अदालत में चुनौती नहीं दी। साथ ही पीपीएसी निर्धारित करने के लिए जन सुनवाई भी नहीं की गई। आयोग ने कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए चुपचाप पीपीएसी लगाकर दिल्लीवासियों की परेशानी बढ़ा दी है। बिजली महंगी होने से पहले से ही महंगाई से परेशान दिल्लीवासियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ गया है। झुलसा देने वाली इस गर्मी में जहां लोग बिजली की किल्लत से परेशान हैं वहीं कीमत बढ़ने से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।