Friday, 31 August 2018

ईवीएम को लेकर फिर उठे सवाल

क्या अगला चुनाव इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से होना चाहिए या बैलेट पेपर से? अगर ईवीएम से होता है तो इसके लिए क्या पैरामीटर हों? क्या देश वन नेशन-वन पोल के लिए तैयार है? सोमवार को चुनाव आयोग की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में मूल रूप से यही मुद्दे छाए रहे। मीटिंग में लगभग सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। मीटिंग में कांग्रेस ने ईवीएम पर सवाल उठाया जिसका कुछ दूसरे क्षेत्रीय दलों ने भी समर्थन किया। कांग्रेस ने चुनाव आयोग से आग्रह किया कि चुनावों में इस्तेमाल होने वाली कम से कम 30 फीसदी वीवीपेट की जांच कराई जाए। कई दलों ने वोटिंग के दौरान जलने वाली लाइट की अवधि को बढ़ाने की भी मांग की। कांग्रेस ने दावा किया कि 70 फीसदी राजनीतिक दलों ने ईवीएम पर सवाल उठाए और इस  पर अपना अविश्वास जाहिर किया। वहीं भाजपा सहित कुछ दलों ने ईवीएम का समर्थन करते हुए पुराने जमाने की बूथ कैप्चरिंग की बात की। विपक्षी दलों ने वीवीपेट के बारे में आयोग से अब तक की तैयारी के बारे में जानकारी ली। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि पार्टी ने आयोग से यह भी कहा कि अगर मतपत्र से चुनाव कराना संभव नहीं हो तो विकल्प के तौर पर ईवीएम के साथ  लगे 30 फीसदी वीवीपेट की जांच से देश में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित हो सकेगा। वहीं कांग्रेस के महासचिव मुकुल वासनिक ने कहा कि ईवीएम के प्रति जनता का रूझान नकारात्मक होता जा रहा हैं, क्योंकि अधिकतर राज्यों में मतदान के दौरान उसमें गड़बड़ियां सामने आई हैं। यहां तक कि कई बार देखने को मिला है कि वोट देने के लिए कोई भी बटन दबाओ तो वह एक चिन्हित राजनीतिक दल को ही जाता है। तृणमूल कांग्रेस ने तो मतपत्रों से ही चुनाव कराने की मांग की। बैठक के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने पत्रकारों से कहा कि राजनीतिक दलों के सुझावों को नोट कर लिया गया है और इनका अध्ययन किया जाएगा फिर उन पर कोई विचार किया जाएगा। रावत ने कहा कि मतपत्र के वापस लौटने से बूथ कैप्चरिंग का वोट वापस आए यह हम नहीं चाहते। हालांकि कुछ दलों की ओर से ईवीएम और वीवीपेट में कुछ समस्याएं होने की बात कही गई है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि इस बारे में आयोग संतोषजनक समाधान देने के लिए आश्वस्त करता है और जल्द शिकायतें दूर कर ली जाएंगी। सर्वदलीय बैठक में सात राष्ट्रीय और 57 राज्यस्तरीय मान्यता प्राप्त दलों के 41 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। राजनीतिक दलों द्वारा भारत में चुनावी प्रणाली को पारदर्शी, विश्वसनीय और बेहतर बनाने की मांग का हम भी समर्थन करते हैं। चुनाव प्रक्रिया बिल्कुल अविवादित होनी चाहिए। यह हमारे  लोकतंत्र की जड़ है। पिछले कुछ चुनावों से इसमें आंच आई है। यहां तक कहा जा रहा है कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल के दबाव में काम कर रहा है। चुनाव आयोग एक निष्पक्ष, स्वतंत्र संस्था है, संवैधानिक संस्था है। उसकी पहली जवाबदेही भारत की जनता के प्रति है। वक्त की मांग है कि चुनाव आयोग चाहे जैसी भी प्रणाली अपनाए, वह बिल्कुल सही होनी चाहिए। इस पर देश के भविष्य की दिशा तय होगी।

-अनिल नरेन्द्र

डोनाल्ड ट्रंप और महाभियोग?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जबसे चुने गए हैं तबसे ही विवादों में हैं। नवम्बर 2016 में चुनने के बाद उन्हें कई झटके भी लग चुके हैं। अब ट्रंप महाभियोग का सामना कर सकते हैं। फ्लोरिडा से डेमोकेट सांसद टेड डायय ने ट्वीट कर कहा है कि न्याय प्रणाली में हस्तक्षेप महाभियोग का सामना करने लायक अपराध है। व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप के दस्तक देने के बाद से ही आरोपों की झड़ी लगी हुई है। इन आरोपों की बुनियाद पर महाभियोग शब्द उछलने लगा है। कमान संभालने से पहले ही ट्रंप विरोधी महाभियोग की आशंका जता रहे थे, लेकिन अब इसे किसी के द्वारा पेश किया जाना है। अमेरिकी मीडिया ने आरोप लगाया है कि ट्रंप ने एफबीआई प्रमुख जेम्स कोमी से रूस और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सलाहकार के बीच संबंधों की जांच रोकने को कहा था। अमेरिकी मीडिया में यह भी दावा किया जा रहा है कि ट्रंप ने रूसी राजदूत को अहम खुफिया जानकारी दी थी। सवाल यह है कि राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाना कितना आसान है? अतीत में किसने महाभियोग का सामना किया है? इन सवालों के जवाब से शायद आप हैरान हो सकते हैं। महाभियोग क्या है? जब किसी राष्ट्रपति पर गंभीर आरोप लगते हैं तो उस पर महाभियोग लगाया जाता है। महाभियोग के बाद राष्ट्रपति को पद छोड़ना पड़ता है। अमेरिका में महाभियोग की प्रक्रिया हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स से शुरू होती है और इसे पास करने के लिए साधारण बहुमत की जरूरत पड़ती है। इस पर एक सुनवाई सीनेट में होती है लेकिन महाभियोग को मंजूरी देने के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ती है। अमेरिकी इतिहास में इस मील के पत्थर तक अभी तक पहुंचा नहीं जा सका है। कई बार महाभियोग के बादल गहराए, लेकिन केवल दो राष्ट्रपतियों को इसका सामना करना पड़ा। इस मामले में सबसे हाल की मिसाल है अमेरिका के 42वें राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की। बिल क्लिंटन को एक व्यापक जूरी के समक्ष झूठी गवाही देने और न्याय में बाधा डालने के मामले में महाभियोग का सामना करना पड़ा था। मोनिका लेविंस्की से प्रेम संबंधों के स्वरूप को लेकर उन्होंने झूठ बोला था। इसके साथ यह भी आरोप है कि बिल क्लिंटन ने मोनिका लेविंस्की को भी झूठ बोलने के लिए इस मामले में कहा था। पहले आरोप को लेकर क्लिंटन के महाभियोग के पक्ष में हाउस में 228 वोट पड़े थे और विरोध में 206 वोट वहीं दूसरे आरोप को लेकर पक्ष में 221 वोट और विरोध में 212 वोट पड़े। क्लिंटन के बाद एंड्रयू जॉनसन एकमात्र राष्ट्रपति हैं जिन्हें महाभियोग का सामना करना पड़ा था। जॉनसन अमेरिका के 17वें राष्ट्रपति थे। उनका कार्यकाल 1865 से 1869 तक, उनके खिलाफ 1868 में हाउस में महाभियोग लाया गया था। इसी तरह एडविन के हटने के 11 दिन बाद ही महाभियोग लाया गया था। एडविन राष्ट्रपति की नीतियों से सहमत नहीं थे। व्यावहारिक रूप से देखें तो ट्रंप के खिलाफ महाभियोग संभव नहीं है। बीबीसी संवाददाता एंटनी जर्थर का कहना है कि अगर डेमोकेटिक बहुमत वाला हाउस ऑफ रिप्रेजेंटिटिव्स होता तो महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो सकती थी। वास्तव में यह इसलिए संभव नहीं क्या कि यहां रिपब्लिकन का बहुमत ज्यादा 231 हैं जबकि ट्रंप विरोधी डेमोकेट 193, सीनेट में 52 और 46 की स्थिति है।

Thursday, 30 August 2018

लालू को दोहरा झटका, परिवार भी मुश्किलों में

राजद प्रमुख लालू प्रसाद और उनके परिवार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के साथ ही उनकी पत्नी एवं पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, उनके पुत्र तथा नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के खिलाफ भी आरोप पत्र दाखिल कर दिया है। रेलवे होटल टेंडर में चार्जशीट दाखिल कर दी गई है। अब उन्हें दिल्ली स्थित न्यायालय में ट्रायल का सामना करना पड़ेगा। वहीं झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा लालू प्रसाद यादव को स्वास्थ्य के आधार पर मिली औपबंधिक जमानत का विस्तार नहीं किए जाने से यह संकट और गहरा गया है। अब लालू को इसी 30 अगस्त को सरेंडर करना होगा। इलाज कराने को आधार बनाकर डाली गई अंतरिम जमानत बढ़ाने की अर्जी पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अपरेश कुमार सिंह ने राज्य सरकार को जरूरत पड़ने पर लालू प्रसाद को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने का भी निर्देश दिया। प्रवर्तन निदेशालय ने आईआरसीटीसी होटल आवंटन मनी लांड्रिंग में शुक्रवार को लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी एवं बेटे तेजस्वी यादव समेत अन्य के खिलाफ पटियाला हाउस कोर्ट के विशेष जज अरविन्द कुमार सिंह की कोर्ट में जो मनी लांड्रिंग केस दर्ज किया है उसमें लारा प्रोजेक्ट्स नाम की एक कंपनी एवं 10 अन्य के खिलाफ धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) की धाराओं के तहत चार्जशीट में शामिल है। रेलवे टेंडर मामले में त्वरित ट्रायल की स्थिति में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव और वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए राष्ट्रीय जनता दल के समक्ष नेतृत्व का संकट खड़ा हो सकता है। पार्टी में प्रथम पंक्ति के वरिष्ठ नेताओं को किनारे कर तेजस्वी और तेज प्रताप को लालू ने आगे किया था, लेकिन परिस्थितियां यदि विषम रूप लेती हैं तो संगठन में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की भूमिका ही अहम होगी। ऐसे में राजद का आधार वोट संभालना मुश्किल हो सकता है। उस सूरत में राजद के वरिष्ठ नेता जगतानन्द सिंह, रघुवंश प्रसाद सिंह, शिवानंद तिवारी, जयप्रकाश नारायण यादव, डॉ. राजचन्द्र पूर्वे व अब्दुल बारी सिद्दीकी पर जिम्मेदारी आ जाएगी। चारा घोटाला मामले में सजा से पूर्व लालू प्रसाद ने संगठनात्मक रणनीति के तहत पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव को आगे कर दिया था। साथ ही लालू प्रसाद ने तब राजद के प्रथम व दूसरी पंक्ति के नेताओं को मिलाकर पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय संघर्ष समिति के गठन की घोषणा की। पर ईडी की चार्जशीट से तेजस्वी व राबड़ी देवी के साथ ही संगठन की परेशानी बढ़ सकती है। लालू प्रसाद की अस्वस्थता के कारण उनका परिवार और संगठन पहले से ही परेशानी में है। अब इस नए केस से यह संकट और बढ़ गया है।
-अनिल नरेन्द्र


वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा पर पथराव

राजस्थान के जोधपुर में सीएम वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा पर पथराव बेहद चौंकाने वाली घटना है। प्रदेश ने राजनीति के उभरते इस रूप को शायद पहले कभी नहीं देखा होगा। पहली बार किसी राजनीतिक कार्यक्रम में इस तरह की पत्थरबाजी हुई है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा के दूसरे चरण के दूसरे दिन शनिवार को जोधपुर जिले में गौरव रथ पर पथराव और विरोध प्रदर्शन के मामले में पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़ शुरू कर दी है। वीडियोग्रॉफी के आधार पर पुलिस ने अब तक 17 लोगों को पकड़ा है। राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले इस तरह मुख्यमंत्री का विरोध दर्शाता है कि भाजपा के लिए माहौल अच्छा संकेत नहीं दे रहा। मुख्यमंत्री को जोधपुर संभाग के कई इलाकों में लोगों ने काले झंडे भी दिखाए तो एक जगह पर तो गुस्साई भीड़ ने जमकर पथराव भी किया। इससे मुख्यमंत्री के काफिले में चल रही कुछ गाड़ियों के कांच भी टूट गए। पुलिस ने यात्रा का विरोध करने वालों पर लाठियां बरसा कर उन्हें खदेड़ा। राजे शनिवार को ही यात्रा रोक कर रात को जोधपुर आ गईं। उनकी जोधपुर संभाग की यात्रा में 28 अगस्त तक विश्राम के दिन हैं। इसके बाद फिर से यात्रा जोधपुर संभाग में गुजरेगी। राजे ने यात्रा की अंतिम सभा में विरोध करने वालों को चुनौती देते हुए कहा कि वह किसी से डरती नहीं हैं। इसके साथ ही उन्होंने विरोध के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जिम्मेवार ठहराया। विरोध करने वाले गहलोत के पक्ष में नारे लगा रहे थे। दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार को कहा कि विरोध और काले झंडे दिखाने की परिपाटी भाजपा की ही है। राजे की गौरव यात्रा में जो काले झंडे दिखाए गए हैं, हो सकता है कि वह भाजपा की ही साजिश हो। उन्होंने इसकी निन्दा भी की। गहलोत का कहना है कि लोकतंत्र में विरोध को सहने की शक्ति भी होनी चाहिए। उनका कहना है कि मौजूदा सरकार लोगों की तरफ से दिखाए गए काले झंडों से ही तिलमिला गई। उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री राजे अपने साढ़े चार साल के शासन में जब भी जोधपुर आईं, एक बार भी सर्पिट हाउस में नहीं ठहरीं। ऐसे में अपनी समस्या लेकर आने वाले फरियादी अपनी शिकायत उनसे कहां मिल कर करते? इस तरह के हालातों में लोगों के नराजगी होना जायज है। यह मुख्यमंत्री व उनकी सरकार के प्रति रोष का प्रदर्शन है। सरकार की तरफ से संसदीय कार्यमंत्री राजेन्द्र राठौर ने रविवार को कहा कि कांग्रेस बौखलाहट में आ गई है। वसुंधरा की गौरव यात्रा को बड़ा जन समर्थन मिल रहा है, जिससे कांग्रेस घबरा गई है और इस तरह के हथकंडे अपना रही है। राठौर ने दावा किया कि भाजपा को जनता का साथ मिल रहा है। वहीं कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने कहा कि संकल्प यात्रा में मुख्यमंत्री ने बहुत बड़े सपने दिखाए और वह पूरे नहीं हुए, न ही होने थे। जनता नाराज व निराश है परन्तु विरोध प्रकट करने वालों को मर्यादा और राजस्थान की गौरवशाली परंपरा का पालन करना चाहिए। राजनीति में हिंसा का कोई स्थान नहीं है।

Wednesday, 29 August 2018

दुष्कर्म के झूठे केसों की बढ़ती संख्या

हमारे देश में मुश्किल यह है कि कानून तो बाद में बनता है उसका दुरुपयोग पहले शुरू हो जाता है। दहेज हत्या का एक ऐसा केस हाल ही में सामने आया। महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानूनों का अगर दुरुपयोग न हो और सही तरीके से इसका क्रियान्वयन हो तो हमारा समाज इन मामलों में सुधर जाए। पर आए दिन ऐसे केस सामने आते हैं जब दुष्कर्म के झूठे केस सिर्प इसलिए दर्ज कराए जाते हैं ताकि दूसरा व्यक्ति परेशानी में आ जाए, उसको बदनाम किया जा सके। ऐसा सारे केसों में नहीं होता, कुछ में होता है। दुष्कर्म की झूठी कहानी गढ़ना अब किसी भी महिला और युवती को महंगा पड़ सकता है। पिछले एक महीने में अदालत में सात ऐसी ही कथित पीड़िताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के आदेश दिए हैं जिन्होंने कानून का दुरुपयोग करते हुए बेकसूर लोगों को गंभीर आरोपों में फंसाया था। तीस हजारी कोर्ट स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रमेश कुमार की अदालत ने सात अलग-अलग मामलों में महिलाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश संबंधित थाना पुलिस को दिए हैं। साथ ही कहा है कि महिलाओं व युवतियों की मदद के लिए विशेष कानून बनाया गया। इसके लिए सख्त प्रावधान भी किए गए। बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में जांच से लेकर सुनवाई तक की प्रक्रिया को खास श्रेणी में रखा गया। इतनी मशक्कत के बाद कुछ अप्रत्याशित चीजें सामने आई हैं, जिनमें पता चलता है कि महिलाओं की मदद के लिए बनाए गए इस विशेष कानून का दुरुपयोग शुरू हो गया है। कानून के जानकार अधिवक्ता प्रशांत मनचंदा के अनुसार किसी व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाने अथवा झूठा साक्ष्य पेश करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 183 और 195 के तहत अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा जुर्माना भी किया जा सकता है। बलात्कार का झूठा मुकदमा पाए जाने पर आरोपी अदालत में इंसाफ की मांग के साथ ही कथित पीड़िता से मुआवजे की भी मांग कर सकता है, ऐसे झूठे केसों की सूची लंबी हो सकती है। पर उदाहरण के तौर पर दरियागंज में वर्ष 2013 में रेप का मुकदमा दर्ज कराने वाली महिला ने अदालत में कहा कि आरोपी उसका पति है, कुछ गलतफहमी की वजह से गुस्से में दर्ज करा दिया था मुकदमा। नबी करीम थाने में नवम्बर 2017 को रेप की प्राथमिकी दर्ज कराने वाली युवती ने कोर्ट में कहा कि आरोपी से उसकी सगाई हो गई थी। घटना वाले दिन शारीरिक संबंध बने। मंगेतर ने फोन नहीं उठाया तो उसने केस कर दिया। तीन मार्च 2018 को पहाड़गंज थाने में बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराने वाली युवती ने अदालत में कहा कि उसके पड़ोसी ने कथित आरोपी जोकि उसका प्रेमी था उसके साथ देख लिया था। इसलिए उसने घर वालों के सामने रेप की झूठी कहानी बना दी। ऐसे ही कई अन्य मामले अदालत के सामने आए हैं।

-अनिल नरेन्द्र

70 डिफॉल्टर कंपनियों के खिलाफ दिवालिया कार्रवाई?

भारतीय बैंकिंग व्यवस्था पिछले कुछ समय से संकट में है और उसे कड़ी परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ रहा है। वजह है बढ़ता एनपीए। यह बड़ी-बड़ी कंपनियों ने बैंकों से जो कर्ज लिए हैं, वह लौटाने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। रिजर्व बैंक के नए निर्देशों के अनुसार करीब 70 कंपनियों को अपना कर्ज जो करीब 3.5 से 4 लाख करोड़ रुपया है उसे चुकाने के लिए 180 दिनों की जो मोहलत दी गई थी, वह 27 अगस्त सोमवार को खत्म हो गई है। कुछ कंपनियों ने अपनी कंपनियों को बेचने के लिए प्रयास भी किए, लेकिन जिन कंपनियों की यहां बात चल रही है, वह इस अवधि में ऐसा कुछ नहीं कर सकीं, जिससे लगे कि वह कर्ज चुकाने की स्थिति में आ गई हैं। रिजर्व बैंक ने फंसे कर्ज यानि एनपीए के जल्दी समाधान के लिए 12 फरवरी 2018 को नया सर्पुलर जारी किया था। इसमें बैंकों को 180 दिनों का समय दिया गया था। नया नियम एक मार्च से लागू हुआ और 180 दिनों का समय 27 अगस्त 2018 को पूरा हो गया है। इसके बाद बैंकों को इनके खिलाफ दिवालिया कार्रवाई शुरू करनी पड़ेगी। रिजर्व बैंक ने पिछले साल दिवालिया कार्रवाई के लिए बैंकों को 40 कंपनियों की सूची भेजी थी। इन पर करीब चार लाख करोड़ का कर्ज बकाया था। दिवालिया कार्रवाई शुरू होने से प्रोविजनिंग बढ़ने से बैंकों के मुनाफे पर भी खासा असर पड़ा है। रिजर्व बैंक के नियम के मुताबिक इन खातों में सिक्योर्ड लोन के 50 प्रतिशत और अनसिक्योर्ड लोन के 100 प्रतिशत रकम बराबर प्रोविजिंग जरूरी है। जिन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो सकती है उनमें अनिल अंबानी समूह की रिलायंस कम्युनिकेशंस, रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग (अब रिलायंस नेवल), प्रजालॉयड, बजाज, हिन्दुस्तान, मुंबई रेयान, डीटीएल इंफ्रास्ट्रक्चर, टोलटा इंडिया, श्रीराम ईपीसी, ऊषा मार्टिन, एस्सार शिपिंग और गीतांजलि जेम्स शामिल हैं। गीतांजलि जेम्स नीरव मोदी के मामा मेहुल चोकसी की कंपनी है। इन कंपनियों पर कुल तीन लाख 80 हजार करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है। समझा जा सकता है कि हमारी बैंकिंग व्यवस्था के लिए यह कितना बड़ा संकट है। यह सभी देश की बड़ी कंपनियां हैं। इनमें कितने लोग काम करते हैं और एक बार दिवालियेपन की प्रक्रिया में जाने के बाद इनका नियमित संचालन किस तरह प्रभावित होगा, इन कर्मचारियों की रोटी-रोजी का क्या होगा, इनसे जुड़े परिवारों का भविष्य क्या होगा, ऐसे तमाम जरूरी सवालों का जवाब देने की स्थिति में न तो सरकार कोई जवाब देने की स्थिति में है और न ही यह डिफॉल्टर बैंक? इस असमंजस की स्थिति में आगे क्या होगा? क्या यह उद्योगपति कंपनियां लिए कर्ज को लौटाने के प्रति गंभीर भी हैं या फिर इन्होंने पैसा हड़प कर लिया है और इन्हें दिवालिया घोषित होने से भी कोई फर्प नहीं पड़ेगा क्योंकि इन्होंने अपनी डिफॉल्टर कंपनियों के नाम व अन्य दस्तावेज पहले से ही बदल लिए हैं।

Tuesday, 28 August 2018

दहेज हत्या, रिश्तेदारों को राहत

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि वैवाहिक विवादों और दहेज हत्या के मामलों में पति के रिश्तेदारों को तब तक नामजद नहीं किया जाना चाहिए जब तक उनकी इस अपराध में स्पष्ट भूमिका न हो, जस्टिस एसए बोबड़े और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की पीठ ने यह फैसला एक व्यक्ति के मामाओं द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए दिया। याचिका में इन लोगों ने हैदराबाद हाई कोर्ट के जनवरी 2016 के फैसले को चुनौती दी है। हाई कोर्ट ने एक वैवाहिक मामले में उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई खत्म करने की अपील को ठुकरा दिया था। इसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। पीठ ने कहा कि चार्जशीट पर विचार करने के बाद कोर्ट की राय है कि विवाहित महिला से कूरता, आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और अपहरण के आरोपों के  लिए पति के मामाओं के खिलाफ पहली नजर में नहीं बनता। इस मामले में शिकायतकर्ता ने पुलिस में दी गई शिकायत में पति और उसके मामाओं समेत परिजनों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था। साथ ही पीड़िता ने दावा किया था कि पति ने उसके बेटे का अपहरण भी किया था जिसमें उसके मामाओं ने भी मदद की थी। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा पत्नी को प्रताड़ित करने वाले पति का समर्थन करने और अपने बच्चे को अमेरिका ले जाने में भांजे की मदद के अलावा इनके खिलाफ अपराध में संलिप्तता का कोई अन्य सबूत नहीं है। जब तक अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं होता तब तक आपराधिक कार्यवाही में आमतौर पर हम हस्तक्षेप नहीं करते लेकिन न्याय को सुरक्षित करने के लिए यह कोर्ट मामले में दखल देने से भी संकोच नहीं करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह बिल्कुल सही कहा है कि विवाह संबंधी विवादों और दहेज हत्या के मामलों में अपराध में संलिप्तता की पुष्टि के बिना पति के संबंधियों को नामजद नहीं किया जाना चाहिए। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को भी यह हिदायत दी कि वह ऐसे मामलों में पति के दूर के रिश्तेदारों के खिलाफ कार्रवाई में सतर्पता बरतें, लेकिन यह कहना कठिन है कि केवल इतने से  बात बनेगी और जमीनी हकीकत बदल जाएगी। स्पष्ट है कि यदि पुलिस अपना काम सही तरह से नहीं करेगी तो फिर वैवाहिक विवादों और दहेज हत्या के मामलों में निर्दोष लोग झूठे आरोप की चपेट में आकर कष्ट उठाते रहेंगे। नीति और न्याय का तकाजा यही कहता है कि किसी भी मामले में किसी को केवल आरोपों के आधार पर गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से दहेज प्रताड़ना के साथ अन्य कई मामलों में ऐसा होता है। पत्नी की प्रताड़ना और दहेज हत्या के मामलों में आमतौर पर पति के साथ उसके मां-बाप, परिवार के अन्य सदस्य और कई बार तो दूर के रिश्तेदारों को भी आरोपित बना दिया जाता है। हालांकि झूठे आरोपों के आधार  पर फंसाए गए ऐसे लोगों को अदालतों से राहत मिल जाती है, लेकिन जब तक ऐसा होता है तब तक वह बदनामी के साथ-साथ अन्य तमाम परेशानियों से दो-चार हो चुके होते हैं। आज तिहाड़ जेल में कई पूरे के पूरे परिवार बंद हैं। जांच बिना गिरफ्तारी महिला कानून को कमजोर नहीं करता बल्कि उससे निर्दोषों को बचाया जरूर जा सकता है।

-अनिल नरेन्द्र

अटल की मृत्यु की हाई टैक पैकेजिंग

भारतीय जनता पार्टी अटल जी की मौत का पूरा-पूरा फायदा उठाना चाह रही है। उनकी मौत की हाई टैक पैकेजिंग की जा रही है। यह सिलसिला अटल जी के जन्मदिन यानि दिसम्बर 2018 तक जारी रहेगा और तब तक 2019 के लोकसभा चुनाव भी करीब आ जाएंगे। 25 दिसम्बर को सुशासन दिवस के रूप में इस दिन तमाम आयोजन तो होंगे ही, साथ ही कई कल्याणकारी घोषणाएं भी हो सकती हैं। चार राज्यों में विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू हो चुकी है। ऐसे में भाजपा का हर नेता छोटे से बड़ा अपने प्रिय नेता को शिद्दत से याद करेगा। अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थि कलश यात्रा भी इस ढंग से आर्गेनाइज की जा रही है जिससे भाजपा को इसका ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक लाभ मिल सके। देशभर में इस यात्रा से पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने को ताकत मिलेगी (ऐसा नेताओं का मानना है) भाजपा जानती है कि अटल जी देश के कोने-कोने में अत्यंत लोकप्रिय थे। वह इसी लोकप्रियता को भुनाना चाहती है। भाजपा के लिए यह समृद्ध विरासत कितना फायदा देगी, इस पर विरोधी दल भी नजर लगाए हुए हैं। हालांकि वह इस संवेदनशील मामले पर बोलना नहीं चाहते। पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अस्थि कलश को सभी प्रदेशाध्यक्षों को सौंप रहे हैं। अस्थि कलश सभी राज्यों की राजधानियों में ले जाया जा रहा है। प्रदेशाध्यक्षों व पदाधिकारियों से यह भी कहा जा रहा है कि अस्थि कलश यात्रा सभी राजधानियों के अलावा जिलों और ब्लॉकों तक निकाली जाए। भाजपा शासित राज्यों में अटल की याद में कई कदम उठाए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने पहले ही कुछ फैसले लिए हैं। एमपी की तरह जल्द ही विधानसभा चुनाव के लिए तैयार हो रहे छत्तीसगढ़ की सरकार भी कई फैसले कर रही है। नई राजधानीöनया रायपुर का नाम अटल नगर किया जा रहा है। वाजपेयी के नाम पर कई शैक्षिक संस्थानों के नाम रखने के अलावा पांच एकड़ में अटल स्मारक बनाने की भी योजना है। इस सब पर कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों की नजर है। लेकिन अटल की छवि और स्वीकार्यता को देखकर सभी चुप हैं। अगर वह बोलते हैं तो भाजपा पलटवार के लिए तैयार है। खुद को सियासी नुकसान न हो जाए इस आशंका से फिलहाल सब चुप हैं और जवाबी रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं। नितांत राजनीतिक कारणों से भाजपा से अलग हो गई स्वर्गीय अटल जी की भतीजी कांग्रेस की वरिष्ठ नेता करुणा शुक्ला को इस बात की खासी नाराजगी है कि अटल जी की मृत्यु के बाद भाजपा उनके नाम को राजनीति के लिए भुना रही है। करुणा शुक्ला ने दिल का गुब्बार निकालते हुए कहा कि अटल जी की शव यात्रा में नरेंद्र मोदी पांच किलोमीटर पैदल चलने की बजाय अटल जी के बताए रास्ते पर दो कदम भी चल लेते तो देश का भला हो जाता। उनका कहना है कि चार राज्यों में होने वाले चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा को अटल जी के नाम को भुनाने का ध्यान आया है। उन्होंने कहा कि 2004 में जब वाजपेयी जी की सरकार नहीं बनी और वह सिर्प सांसद रह गए तो उसके बाद क्या हुआ? धीरे-धीरे सब उन्हें भूल गए। भाजपा फिर अटलमय से मोदीमय हो गई। आडवाणी को भी पार्टी नेतृत्व ने उपेक्षित कर दिया। उन्होंने कहा कि इन 10 वर्षों में जिन राज्यों में चुनाव हुए वहां भी अटल जी का नाम लेना तो दूर किसी पोस्टर या बैनर तक में अटल जी की तस्वीर तक नहीं लगाई गई। चूंकि अब चार राज्यों और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की नैया डूबती हुई दिख रही है तो एकाएक भाजपा को अटल जी डूबते तिनके के सहारे की तरह दिख रहे हैं।

Sunday, 26 August 2018

बोफोर्स की बदनामी का राफेल डील से बदला

पिछले कुछ समय से जिस तरह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मोदी सरकार को तथाकथित राफेल सौदे पर घेर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस ने फैसला कर लिया है कि इस मसले को पहले तो चार राज्यों की विधानसभा चुनाव में और फिर चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव में भुनाने का इरादा रखते हैं। कांग्रेस राफेल को एक बड़ा मुद्दा बनाना चाहती है। राहुल ने राफेल डील की असलियत सामने लाने के लिए सीनियर कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री जयपाल रेड्डी के नेतृत्व में एक छह सदस्यीय टीम बनाई है, जो सिर्प इस मुद्दे पर भाजपा और मोदी सरकार पर हमला करेगी। कांग्रेस की रणनीति लगती यह है कि एक ओर मीडिया के जरिये लगातार मोदी सरकार पर दबाव बनाकर न केवल उनसे इस मुद्दे पर जवाब मांगा जाए, बल्कि इस मामले पर देश के कोने-कोने में आंदोलन के जरिये लोगों के बीच मुद्दा बनाया जाए। कांग्रेस का राफेल को मुद्दा बनाने के पीछे कारण कहीं न कहीं भाजपा से बोफोर्स डील पर हुई फजीहत का बदला लेना भी माना जा रहा है। बोफोर्स की आंच न केवल तत्कालीन पीएम राजीव गांधी और सरकार, बल्कि सीधे गांधी परिवार के दामन तक पहुंची थी। इसलिए राफेल सौदे को उठाकर कांग्रेस भाजपा को ठीक उसी तरह घेरना चाह रही है जैसे भाजपा ने बोफोर्स पर राजीव गांधी सरकार को घेरा था। कांग्रेस प्रवक्ता तो अब सीधे प्रधानमंत्री पर निशाना साध रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता आरपीएन सिंह ने राफेल सौदे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला करते हुए बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि इस सौदे को एक उद्योगपति के लिए बदला गया और इसका सीधा लाभ मोदी को हुआ और उनकी जेब में गया। प्रवक्ता ने कहा कि मोदी ने कांग्रेस सरकार के समय राफेल विमानों की खरीद को लेकर किए गए सौदे को बदल कर एक उद्योगपति को 130 लाख करोड़ रुपए का काम दिलवाया है। यह सब इस  बात को नजरअंदाज कर दिया गया है कि उस उद्योगपति की कंपनी को इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है। इस उद्योगपति ने विमान सौदे तय हने से महज 12 दिन पहले ही इस कंपनी का गठन किया था। सरकार ने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि उद्योगपति की कंपनियों पर बैंकों का 45 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। उधर भाजपा के दो पूर्व मंत्रियों अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने राफेल सौदे को अब तक का सबसे बड़ा रक्षा घोटाला बताया है। इन तीनों ने मीडिया के सामने कुछ दस्तावेज पेश किए। शौरी ने बोफोर्स घोटाले की तुलना में राफेल को अब तक का सबसे बड़ा रक्षा घोटाला बताया। उन्होंने इसकी सीएजी से तीन महीने में जांच कराने की मांग की। दिल्ली के प्रेस क्लब में बुलाए संवाददाता सम्मेलन में शौरी, सिन्हा और भूषण ने दावा किया कि जिस राफेल को कम पर खरीदने की बात बताई जा रही है, वह सरासर गलत है। उन्होंने कहा कि जिस राफेल सौदे में 126 जहाज 679 करोड़ से लेकर 715 करोड़ रुपए के बीच खरीदे जाने का सौदा मोदी सरकार ने 1660 करोड़ रुपए प्रति विमान खरीदने का सौदा किया है। सरकार इसकी असल कीमत छिपा रही है। उन्होंने दावा किया कि यह 36 जहाज भी 2022 तक भारत को मिलेंगे। इसमें मेक इन इंडिया की भी बात गायब है। शौरी ने कहा कि सरकार की गाइडलाइन कहती है कि ऐसा कोई करार चाहे वह जिस भी कीमत का हो, रक्षामंत्री की मंजूरी से होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह करार गलत है और अगर हुआ तो सरकार यह नहीं कह सकती कि केवल रिलायंस और डिसाल्ट के बीच का सौदा है। जैसे-जैसे विधानसभा और लोकसभा के चुनाव करीब आते जाएंगे कांग्रेस इस मुद्दे पर मोदी सरकार पर और तीखे हमले करेगी और इसके जरिये मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास करेगी।

-अनिल नरेन्द्र

भारतीय खिलाड़ियों ने इतिहास रच दिया है

भारतीय खेल के लिए गत बुधवार का दिन इतिहास रचने वाला रहा। एक साथ तीन खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन से खेल की दुनिया में अपना वर्चस्व जमाया। राही सरनोबत एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला निशानेबाज रहीं। इंडोनेशिया में चल रहे 18वें एशियन गेम्स में राही ने 25 मीटर एयर पिस्टल में देश के लिए स्वर्ण जीता। वहीं पुरुष हॉकी में भारतीय टीम ने हांगकांग की कमजोर टीम को 26-0 से हराकर भारतीय हॉकी के इतिहास में सबसे बड़ी जीत दर्ज की। इसके अलावा इंग्लैंड में टीम इंडिया ने 0-2 से पिछड़ने के बाद तीसरे टेस्ट में शानदार वापसी करते हुए सालों बाद इंग्लैंड की ही टीम को उनके घर में हराया। रनों के हिसाब से यह टीम इंडिया की दूसरी बड़ी जीत थी। इंडोनेशिया में चल रहे 18वें एशियन गेम्स में सुशील कुमार जैसे दिग्गज पहलवान के पहले दौर में ही बाहर होने के बाद पूरे देश को जहां मायूसी मिली, वहीं बजरंग पुनियाविनेश फोगाट और सौरभ चौधरी ने सोने के तमगे जीतकर भारतीय दल के साथी खिलाड़ियों को भी बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया है। मेरठ के 16 साल के सौरभ चौधरी ने निशानेबाजी में कई उम्रदराज दिग्गजों को पछाड़ते हुए स्वर्ण पदक जीतकर सबसे कम उम्र के भारतवासी बन गए। एक किसान के बेटे सौरभ ने अपने पहले ही बड़े मुकाबले में यह कमाल किया है, जिसमें उन्होंने 2010 के विश्व चैंपियन तोमोयुकी मत्सुदा को पराजित किया। हरियाणा की 23 वर्ष की विनेश फोगाट दो एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीत चुकी है, राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान हैं और सोमवार को जापानी पहलवान को पटखनी देकर वह एशियाड में भी कुश्ती में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं। इन युवा खिलाड़ियों का प्रदर्शन खासतौर से सौरभ और 15 वर्षीय 10वीं के छात्र शार्दुल का प्रदर्शन यह दिखाता है कि यदि अवसर मिले, पूरी सुविधाएं मिलें, सही ट्रेनिंग मिले तो छोटी उम्र में ही हमारे खिलाड़ी न केवल विश्व स्तरीय प्रदर्शन कर सकते हैं, बल्कि देश के लिए पदक भी जीत सकते हैं। वास्तव में अब वक्त आ गया है जब ऐसी खेल नीति बनाई जाएजिसमें कम उम्र में ही बच्चों को अपनी पसंदीदा खेल प्रतिभा को तराशने के भरपूर अवसर मिल सकें। अभी एशियाड चल रहा है। भारत और कई मैडल जीतेगा। हां कबड्डी जैसे खेल में भारत का हारना चौंकाने वाला जरूर रहा। कहां तो निश्चित रूप से गोल्ड मैडल की उम्मीद लगाए बैठे थे और कहां कांस्य पदक तक लेने के लाले पड़ गए। देखना अब यह है कि क्या भारतीय दल 2010 के एशियाड के 65 पदक जीतने के अपने रिकार्ड को तोड़ पाएगा या नहीं? तमाम पदक जीतने वालों को हमारी बधाई और न जीतने वालों को यही संदेश होगा, मेहनत करते रहो, सफलता जरूर मिलेगी।

Saturday, 25 August 2018


एक तीर से कई शिकार करने का प्रयास

कल्याण सिंह, केशरीनाथ त्रिपाठी और सतपाल मलिक के बाद उत्तर प्रदेश से भाजपा के दो अन्य नेताओं लालजी टंडन तथा बेबी रानी मौर्य को राज्यपाल बनाकर केंद्र में भाजपा सरकार ने राष्ट्रीय राजनीति में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक महत्व को ही स्वीकार किया है। इन नियुक्तियों से लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश की चुनौतियों से निपटने की रणनीति हमें तो नजर आ रही है। केंद्र ने मौर्य को उत्तराखंड और टंडन को बिहार का राज्यपाल नियुक्त करते हुए बिहार के राज्यपाल को जम्मू-कश्मीर भेजकर अहम संकेत दिए हैं। जम्मू-कश्मीर में सतपाल मलिक को भेजकर भाजपा ने पहली बार वहां पूरी तरह से राजनीतिक व्यक्ति को राज्यपाल बनाया है। सतपाल मलिक के रूप में जम्मू-कश्मीर को 51 साल बाद ऐसा राज्यपाल मिला है जो सैन्य अथवा प्रशासनिक पृष्ठभूमि का नहीं है। मौजूदा सन्दर्भों में देखें तो इसे आने वाले दौर में महत्वपूर्ण बदलावों का संकेत माना जा सकता है। 1965-67 तक के डॉ. कर्ण सिंह के कार्यकाल के बाद यह पहला मौका है जब किसी राजनेता को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल का पद सौंपा गया है। बेशक एक नौकरशाह पूरी स्थिति को कानून-व्यवस्था के आइने से ज्यादा देखता है और इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि यह एक महत्वपूर्ण पहलू है, पर उसके साथ राजनीतिक दृष्टिकोण से भी कदम उठाने की जरूरत महसूस हो रही है। इस समय जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है। इस मायने में जम्मू-कश्मीर की पूरी स्थिति का दारोमदार केंद्र सरकार पर आ जाता है और भाजपा नेतृत्व को उम्मीद है कि मलिक उसके प्रतिनिधि के रूप में केंद्र की नीतियों का क्रियान्वयन करेंगे। जम्मू-कश्मीर में पिछले करीब पांच दशक से नौकरशाहों व सैनिक पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्तियों को राज्यपाल नियुक्त करने की परंपरा को तोड़कर केंद्र ने एक साहसी फैसला किया है। किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि इस अशांत राज्य में एक राजनेता को राज्यपाल बनाया जाएगा। सतपाल मलिक के हक में दो बातें काम आईं। एक यह कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े नहीं हैं, लिहाजा बेहद संवेदनशील राज्य में वह वैचारिक आग्रहों से निष्पक्ष रहकर काम कर सकते हैं और दूसरी यह कि वह पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद के मित्र रहे हैं। मलिक विधायक, सांसद, मंत्री के साथ पार्टियों के अधिकारी भी रहे हैं। हालांकि वह खांटी भाजपायी नहीं हैं, जिनकी जम्मू-कश्मीर के बारे में पार्टी से अलग विचारधारा है। मलिक की नियुक्ति से इतना तो साफ लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशुद्ध भाजपायी दृष्टिकोण से जम्मू-कश्मीर में अभी कोई बड़ी पहल नहीं करने जा रहे हैं। मलिक के सामने राज्य में हिंसा पर काबू पाना, स्थानीय निकाय का चुनाव कराने और आगे चलकर विधानसभा चुनाव करवाने की भी जरूरत हो सकती है। वह इसमें कितने सफल होते हैं, कहना कठिन है। मोदी ने एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है।
-अनिल नरेन्द्र

बिखरता जा रहा है केजरीवाल का कुनबा

आंदोलन की आंच से निकली आम आदमी पार्टी का तेज अब धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। बेशक श्री अरविन्द केजरीवाल ने पार्टी तो बना ली, लेकिन वह इसे संभाल नहीं सके। शायद वह यह भूल गए कि पार्टी का आधार विचारधारा होता है, अवसरवादी नहीं। जिन्होंने अन्ना हजारे के आंदोलन से जन्मी पार्टी में शामिल हेने का फैसला किया था वह साथी बारी-बारी से केजरीवाल का साथ छोड़ने पर मजबूर हो गए। अन्ना आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी का गठन राजनीति में बदलाव की बुनियाद पर हुआ था। गठन के समय उसने 100 नामों की सूची जारी कर उन्हें भ्रष्ट करार दिया था। जनता को भी लगा कि जैसे यह पार्टी अब देश में क्रांति लाएगी पर जब इसी पार्टी ने क्रांति का सूत्रपात करने के लिए सैनिक भर्ती किए तो इसमें वह भी आ गए जिन्हें आप ने भ्रष्ट करार दिया था। ऐसे में पार्टी के भीतर गंभीर रणनीतिकारों की कमी खलना स्वाभाविक है। हाल ही में आप के पीएसी मेम्बर और राष्ट्रीय प्रवक्ता आशुतोष और बुधवार को दिल्ली डायलॉग कमीशन के उपाध्यक्ष आशीष खैतान ने इस्तीफा दे दिया है। हालांकि अभी पार्टी ने इन दोनों का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है। गौरतलब है कि पार्टी छोड़ने वाले नेताओं की सूची लंबी होती जा रही है। प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, प्रो. आनंद कुमार व प्रो. अजित झा को केजरीवाल ने पार्टी से निकाल कर अंतर्पलह को जन्म दिया। इसके बाद दिल्ली में जिस व्यक्ति के मौहल्ला सभा कॉन्सेप्ट की नकल पार्टी करती रही, पार्टी के पटपड़गंज से विधायक रह चुके विनोद कुमार बिन्नी ने इस्तीफा देकर खलबली मचा दी। बिन्नी व गाजियाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं पीएसी मेम्बर शाजिया इल्मी भाजपा में शामिल होकर पार्टी को झटका दे दिया। फिर जल मंत्री पद से हटाए गए पार्टी के भीतर रहकर कपिल मिश्रा ने केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। केजरीवाल ने आप को आगे बढ़ाने के लिए कांग्रेस और भाजपा के पूर्व नेताओं को टिकट दिया। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक सत्ता में काबिज होते ही पार्टी नेतृत्व से लेकर नीचे तक सभी के विचार बदलने लगे। पार्टी नेतृत्व पर राज्यसभा चुनाव के लिए पुराने साथियों पर धनकुबेरों को तरजीह देने के भी आरोप लगे। विरोध में जिसने भी आवाज उठाई या यह याद कराने की कोशिश की पार्टी अपनी विचारधारा को भूल गई है और धनकुबेरों को प्राथमिकता दे रही है तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया या मजबूर किया गया कि वह खुद पार्टी छोड़ दें। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मनोज तिवारी ने खैतान के इस्तीफे पर मुखिया केजरीवाल को घेरते हुए कहा कि इन नेताओं के इस्तीफे यह बताते हैं कि केजरीवाल का व्यवहार तानाशाह वाला हो गया है। उन्होंने कहा कि केजरीवाल का करिश्मा दिल्ली के साथ ही अब पार्टी में भी समाप्त हो रहा है। उन्होंने पार्टी के भविष्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि 2020 तक यानि अगला विधानसभा चुनाव आते-आते यह पार्टी इतिहास बन जाएगी।

Friday, 24 August 2018


इमरान खान के सामने अनेक चुनौतियां

इमरान खान द्वारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के साथ दुनियाभर की नजरें उनकी ओर टिक गई हैं। सभी यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि भूतपूर्व क्रिकेटर राजनीति की पिच पर किस प्रकार की अपनी व्यूह रचना करते हैं। नए पाकिस्तान की नई सुबह जब इमरान खान इस देश के नए प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी उठा रहे हैं, पाकिस्तान की जनता भी दम साधे देख रही है आने वाले दिनों की तरफ। नए पाकिस्तान के समर्थकों में तो रोमांच है ही लेकिन इमरान के दर्जनों आलोचक भी नजरें लगाए बैठे हैं कि पाकिस्तान को बदलने का नारा लगाने वाले अब देश में कैसे बदलाव लेकर आते हैं। चुनावी अभियान के दौरान आरोप-प्रत्यारोप खूब होते रहे और इस तल्खी की एक दलील तो हमेशा यही दी जाती रही कि जलसे का माहौल और होता और सरकार के सदनों का माहौल और ही। पाकिस्तान जिस तरह आतंकवाद का केंद्र बना हुआ है, उस कारण पूरी दुनिया की अभिरुचि उसकी नीतियों पर रहती है। चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद इमरान खान ने अपनी लंबी तकरीरों में आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का संकल्प तक व्यक्त नहीं किया था। इस कारण भी उत्सुकता बनी हुई है कि आखिर आतंकवाद के मामले में उनकी सरकार का रुख क्या होता है? पूर्व सरकार वजीरिस्तान सहित सीमावर्ती इलाकों में आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन चला रही थी, अनेक आतंकियों को फांसी पर चढ़ाया गया। इमरान उसे जारी रखते हैं या उसे बंद करते हैं यह देखना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कूटनीतिक दायित्व का निर्वहन करते हुए नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान को सद्भावनापूर्ण पत्र क्या लिखा, दोनों देशों के राजनीतिक क्षेत्रों में तूफान आ गया। मोदी के पत्र का मजमून इतना भर था कि भारत पाकिस्तान के साथ रचनात्मक और सार्थक बातचीत के लिए प्रतिबद्ध है। इसका आशय यह नहीं था कि दिसम्बर 2015 में दोनों देशों के बीच शुरू की गई समग्र वार्ता को फिर से बहाल किया जाए, जो जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले के बाद से स्थगित है। लेकिन पाकिस्तान के नए विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने मोदी के इस खत की व्याख्या ऐसे की मानो उन्होंने इमरान खान को बातचीत का न्यौता दिया हो। यह कहना मुश्किल है कि उन्होंने जानबूझ कर ऐसा किया या उनकी कूटनीतिक नासमझी थी। लेकिन इतना जरूरी है कि उनके इस कूटनीतिक दांव से भारत के विपक्षी दल कांग्रेस को मोदी सरकार की पाकिस्तान नीति को घेरने का मौका मिल गया। हालांकि भाजपा ने नवजोत सिंह सिद्धू प्रकरण से हिसाब-किताब बराबर कर लिया। बदले हुए माहौल की एक झलक पूरी दुनिया 20 जुलाई को देख ही चुकी है। जब एक भाषण में इमरान खान ने अपनी जीत का ऐलान किया। वही सफेद कुर्ता-सलवार, गले में वही पाकिस्तान तहरीक--इंसाफ के रंगों का मफलर और वही कमरा। अगर कुछ बदला हुआ था तो इमरान खान के शब्द और उनका लहजा। उनके भाषण को लगभग सभी पाकिस्तानी वर्गों में अच्छी नजर से देखा गया। उनके समर्थक और विरोधी इस बात पर सहमत हैं कि उस दिन वो इमरान नजर आए जो पहले कभी नहीं देखे गए। अब तो सबकी नजर पाकिस्तान तहरीक--इंसाफ के पहले सौ दिनों के कार्यकाल के प्लान पर हैं, जिसमें पीटीआई ने पाकिस्तान की आर्थिक परिस्थितियों को बदलने, संघ को मजबूत करने, सामाजिक सेवाओं और शासन को बेहतर बनाने, कृषि क्षेत्र में कमियों को दूर करना, बलूचिस्तान में सुरक्षा व्यवस्था बनाने और दक्षिणी पंजाब को अलग राज्य बनाने, आम आदमी का जीवन बेहतर करने समेत ऐसे वादे किए हैं जो पूरे होंगे तो पाकिस्तान जन्नत न सही, जन्नत जैसा तो बन ही सकता है। इमरान खान को प्रधानमंत्री बनने पर हम उन्हें बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनके राज में दोनों देशों के रिश्ते सुधरेंगे और एक नया अध्याय लिखेंगे।

-अनिल नरेन्द्र

कठघरे में खड़ीं यूपी- राजस्थान की भाजपा सरकारें

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सरकारों से दो विभिन्न मुद्दों पर जवाब मांगा है। इस तरह दोनों सरकारें आज कठघरे में खड़ी हैं। पहला मामला राजस्थान के अलवर जिले में 20 जुलाई को हुई पीट-पीट कर हत्या का है तो दूसरा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से संबंधित 2007 के गोरखपुर दंगे से जुड़ा हुआ है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजस्थान सरकार के गृह विभाग के प्रधान सचिव से कहा है कि वह मॉब लिंचिंग के मामले में की गई कार्रवाई का विस्तृत ब्यौरा देते हुए हलफनामा दायर करें। अलवर जिले के रामगढ़ इलाके में 20 जुलाई को गौरक्षकों ने रकबर खान (28) की कथित तौर पर पिटाई कर दी थी। अदालत ने प्रधान सचिव से कहा है कि वह उन्मादी भीड़ द्वारा की गई हत्या के मामले में कार्रवाई का विस्तृत ब्यौरा देते हुए एक सप्ताह में हलफनामा दाखिल करें। अदालत तुषार गांधी और कांग्रेस नेता तहसीन पुनावाला की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में अलवर में भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या के मामले में राजस्थान सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करने की मांग की गई थी। वहीं उन्मादी भीड़ की Eिहसा और गौरक्षकों से निपटने के लिए उठाए गए कदमों पर राज्यों से सात सितम्बर तक अनुपालन की रिपोर्ट देने को कहा। अभी तक महाराष्ट्र, पंजाब और चंडीगढ़ ने ही यह रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी है। साफ है कि शेष राज्यों ने न्यायालय के निर्देश का अनुपालन नहीं किया है। केंद्र ने भी एडवाइजरी तो जारी की है, लेकिन स्पष्ट दिशानिर्देश तथा नए कानून के मामले में वह मौन है। अदालत ने केंद्र सरकार से एडवाइजरी तथा दिशानिर्देशों के अलावा ऐसा कानून बनाने को कहा था, जिसमें इसे अलग अपराध के रूप में व्याख्यायित किया जाए। दूसरा मामला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से संबंधित है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 2007 के गोरखपुर दंगे से जुड़ा मामला वापस लेने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार से सोमवार को जवाब मांगा। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलंकर व न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने नोटिस जारी किया और राज्य सरकार से चार हफ्ते के अंदर जवाब मांगा। तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ और कई अन्य लोगों के खिलाफ 27 जनवरी 2007 को गोरखपुर के कोतवाली थाने में एक प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। प्राथमिकी में दो समूहों के बीच कटुता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था। आरोप लगाया गया था कि आदित्यनाथ के नफरत भरे कथित भाषण के बाद गोरखपुर में उसी दिन हिंसा की कई घटनाएं हुईं। प्राथमिकी में यह भी दावा किया गया था कि आदित्यनाथ के भाषण के बाद दंगों में 10 लोगों की मौत हो गई। आदित्यनाथ को गिरफ्तार किया गया था और उन्हें 11 दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया था। एक फरवरी को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा था। मजिस्ट्रेट के आदेश में आदित्यनाथ के खिलाफ आरोप पत्र को संज्ञान में लिया गया था। सुप्रीम कोर्ट मॉब लिंचिंग के मामले में गंभीर है और कसूरवारों को सजा दिलाने के प्रयास में है। साथ-साथ यह सभी भाजपा राज्य सरकारों के लिए चेतावनी भी है कि वह मॉब लिंचिंग व भीड़ द्वारा की जा रही Eिहसा पर तुरन्त रोक लगाने के प्रभावी कदम उठाएं। यह अच्छा है कि कानून-व्यवस्था को कायम रखने में नाकाम सरकारों से सुप्रीम कोर्ट जवाब-तलब कर रहा है और इन्हें कठघरे में खड़ा कर रहा है। इस प्रकार की बेतुकी Eिहसा काबिल--बर्दाश्त नहीं है।

Thursday, 23 August 2018

लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?...(2)

देश की राजधानी ने पिछले चार-पांच दिन में कुछ ऐसा देखा, जैसा पिछले कई दशकों में नहीं देखा गया था। पिछली पीढ़ी के लोग तो इस पूरे घटनाक्रम को समझ पा रहे थे, लेकिन बच्चे और नौजवानों ने पहले ऐसा कभी नहीं देखा था ]िक किसी एक शख्स की मौत पर पूरा देश एक साथ रोया, किसी शख्स की शव यात्रा, अस्थि विसर्जन तक पूरा देश एक साथ चल रहा था। मृत्यु की आंखों में आंखें डालकर उसे न्यौता देने वाले और अपनी मृत्यु के बारे में बड़े बेखौफ अंदाज में कलम चलाने वाले कवि हृदय सम्राट अटल बिहारी वाजपेयी का ही करिश्मा था जो जाने के बाद भी सबको एक साथ बिठा गए। वाजपेयी का जाना जैसे घर से एक बुजुर्ग का जाना था। अटल जी की सियासी स्वीकारता की एक झलक उनकी विदाई के बाद प्रार्थना सभा में दिखी। उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए सभी राजनीतिक दलों के नेता मौजूद थे। वाजपेयी के साथ 65 साल की अपनी गहरी मित्रता को याद करते हुए आंखों में आंसू भरे हुए वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा कि वाजपेयी से उन्हें जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिला और बहुत कुछ पाया। उन्होंने कहा कि अच्छा होता कि वाजपेयी जी के लिए जो बातें कही गई हैं, वह बातें उनकी मौजूदगी में कही जातीं तो संतोष और समाधान होता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में राजनीतिक विचारधारा के जिस बीज को सींच कर वृक्ष बनाया है, सब उसी के पुष्पों की सुगंध, पत्तों की छाया और फलों का आस्वादन कर रहे हैं। वाजपेयी जी का सार्वजनिक जीवन में शिखर पर पहुंचने के बावजूद जनसामान्य के प्रति लगाव बना रहा। नरेंद्र मोदी सरकार पर प्रत्यक्ष रूप से तंज कसते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने सोमवार को कहा कि वाजपेयी के युग में सरकार और विपक्ष के बीच आज की तरह दूरी नहीं थी। 1991 1996 के बीच संसदीय कार्यमंत्री रहने के दौरान मैं अकसर अटल जी से मिला करता था, क्योंकि वह तत्कालीन विपक्ष के नेता थे। हम अकसर साथ-साथ खाते थे, कभी मेरे कक्ष में तो दूसरी बार उनके कक्ष में (संसद सत्र के दौरान)। इन दिनों की तरह सरकार व विपक्ष के बीच कोई दूरी, अलगाव उन दिनों नहीं था। नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि उनके विचार में वाजपेयी जी जितना बड़ा दिल किसी भी नेता का नहीं रहा, जो कहते थे कि देश को सबको मिलकर उठाना है और दिल को दिल से मिलाकर काम करना है। पीडीपी नेता एवं जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि वाजपेयी ने कश्मीर के जज्बातों को समझा और कश्मीरियों को भरोसे से जोड़ने की संजीदा कोशिश की जिससे आतंकवाद एवं घुसपैठ दोनों में कमी आई। अटल जी के जाने के बाद कई किस्से प्रकाश में आ रहे हैं जिससे उनकी महानता का पता चलता है। चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने वाजपेयी को एक शानदार नेता करार देते हुए उनके निधन पर शोक जताया। उन्होंने कहाöचीन की सरकार और लोगों की तरफ से मैं शोक-संतप्त परिवार के प्रति गहरी संवेदना और सहानुभूति प्रकट करता हूं। चीन के प्रधानमंत्री ने कहाöवाजपेयी एक शानदार नेता थे, जिन्होंने राष्ट्रीय और सामाजिक विकास के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और भारतीय लोगों का सम्मान हासिल किया। पांञ्जन्य से अटल जी का प्रारंभ से ही अटूट स्नेह रहा, जिसे उन्होंने सदा निभाया। पांञ्जन्य स्वर्ण जयंती के समय अटल जी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने एक साक्षात्कार जिसमें गर्व से कहो हम हिन्दू हैं का समर्थन करने के स्थान पर कहाöगर्व से कहो हम भारतीय क्यों नहीं? पांञ्जन्य के पूर्व संपादक व पूर्व सांसद तरुण विजय ने एक दिलचस्प किस्सा शेयर किया है। एक बार पांञ्जन्य में सोनिया गांधी पर तीव्र प्रहार हुए तो उन्होंने तुरन्त फोन करके मुझे कहाöयह ठीक नहीं। कांग्रेस पर प्रहार करो, व्यक्ति पर नहीं। अटल जी के साथ चार दशकों से और उनके सबसे करीबियों में थे शिव कुमार। लंबी मूछों वाले शिव कुमार को हर अटलप्रेमी जानता होगा, चाहे वह उनसे मिला ही नहीं हो। शिव कुमार जी ने एक दिलचस्प वाकया बताया। उन्हीं की जुबानीöबात 1984 की है। अटल जी बीमार थे। पेट में अल्सर था, वाराणसी के जिन्दल नेचुरोपैथी में इलाज चल रहा था। वहां किसी को भी बात करने तक की इजाजत नहीं थी। एक दिन अचानक टेलीफोन लाइन डलवाई जाने लगी। हमें आश्चर्य हुआ। फिर बताया गया कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बात करेंगी। शाम साढ़े छह बजे फोन आया इंदिरा जी ने फोन करते ही अटल जी से पूछा कि आप कहां हैं? अटल जी ने जवाब दिया कि आप कैसी पीएम हैं कि आपको अपने सांसदों का पता ही नहीं कि वह अस्पताल में भर्ती हैं। हास-परिहास खत्म होते ही इंदिरा जी ने कहा कि आपसे एक राय लेनी है। स्वर्ण मंदिर में हथियारों के साथ भिंडरावाला घुस गया है। बहुत परेशानी हो रही है। मैं सोच रही हूं कि स्वर्ण मंदिर पर हमला करके उसे मार दें या फिर गिरफ्तार कर लें। अटल जी ने तुरन्त कहाöनहीं यह गलत कदम होगा। वह धार्मिक स्थल है। गिरफ्तार करने के और भी तरीके हैं। इंदिरा जी ने जवाब दियाöमैंने तो फैसला कर लिया है तो अटल जी बोलेöइसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे। आपको फिर सोचना चाहिए। उस बात की परिणति दुनिया जानती है। अटल जी को खाने-पीने का बहुत शौक था। मंडी हाउस स्थित बंगाली मार्केट की बंगाली स्वीट्स के छोले-कुल्चे उन्हें काफी पसंद थे। प्रधानमंत्री रहते हुए भी वह कई बार उन्हें मंगवा कर खाते थे। अपने जीवन का क्षण-क्षण और शरीर का कण-कण देश को समर्पित करने के कठिन संकल्प को सहज भाव से निभाने का हौंसला बहुत कम लोगों में होता है। अटल जी ने अपनी बात हमेशा पूरे संयम और मर्यादा के साथ रखी। कोई अंतर्राष्ट्रीय मंच हो, संसद का सदन हो या जनसभा, यही वजह थी कि आज हर आदमी उन्हें याद करता है। ऐसा व्यक्ति मरता नहीं बल्कि अमर होता है। (समाप्त)

-अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 22 August 2018

पानी में तैरते शव, फंसे लोगों को जान बचाने की चुनौती

पानी की खूबसूरत लेनें केरल की खासियत रही हैं। लाखों की संख्या में लोग यहां की खूबसूरती और पानी की इन लेनों का आनंद लेने जाते हैं। पर पानी इतना घातक भी हो सकता है यह पिछले कुछ दिनों से पता चला है। केरल 1924 के बाद पहली बार ऐसी भयावह बाढ़ का सामना कर रहा है, जिसकी किसी ने कल्पना भी न की थी। सदी के भीषण संकट का सामना कर रहे राज्य में आठ अगस्त से अभी तक सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है। पानी में तैर रहे शव रोज मिल रहे हैं। मौसम विभाग ने केरल के 11 जिलों में भारी बारिश की आशंका के चलते रेड अलर्ट जारी किया है। राज्य के 12 जिलों में 3 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं। इन्हें 1568 राहत शिविरों में रखा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल में बाढ़ की विभीषिका की समीक्षा करने के बाद केरल को तत्काल 500 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की है। यह राशि 12 अगस्त को गृह मंत्रालय द्वारा 100 करोड़ रुपए देने की घोषणा से अलग है। बाढ़ की वजह से हुई जान-माल की क्षति पर दुख व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि बाढ़ में फंसे  लोगों को बाहर सुरक्षित स्थानों पर ले जाने की हमारी पहली प्राथमिकता है। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने ट्वीट किया है कि प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक राज्य को इस बाढ़ की वजह से 79512 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। प्रभावित इलाकों के बाद बाढ़ का पानी घटने के बाद ही वास्तविक क्षति का अनुमान लगाया जा सकता है। यह पहली बार हुआ है कि राज्य के सभी जिले रैड अलर्ट पर हैं और यह भी पहली बार है जब किसी प्राकृतिक आपदा के कारण इस बार ओणम जैसे विश्व प्रसिद्ध त्यौहार केरल नहीं मना सकेगा। एक ऐसा त्यौहार जिसमें देश-विदेश से पर्यटक जुटते हैं और यह राज्य के लिए सबसे बड़ी पर्यटन कमाई का जरिया भी होता है। चिन्ता की बात है कि राज्य के 35 बांधों के फाटक खोलने के बावजूद सभी बांधों के पानी का स्तर खतरे के निशान से ऊपर बना हुआ है। यह बाढ़ चेतावनियों के साथ कई नए सबक दे रही है। केरल का उदाहरण बता रहा है कि देश को अब पर्यावरण पर सिर्प बहस तक सीमित न रखकर सही अर्थों में पर्यावरण संतुलन बनाने के तरीके अविलंब अपनाने होंगे। ग्लोबल वार्मिंग का असर पूरे विश्व में हो रहा है। यहां तो थोड़ी ज्यादा बारिश हो जाती है तो सड़कों पर इतना पानी बहने लगता है कि आवाजाही मुश्किल हो जाती है। कठिन परीक्षा के दौर में केरल को हर तरफ से मदद और दुआओं की भी जरूरत है। आज केरल देश से कुछ मायनों में कट गया है। फंसे लोगों को निकालने के लिए हैलीकॉप्टरों और बोट की सख्त जरूरत है। केरल की इस प्राकृतिक मार में सारा देश एकजुट है और सभी को अपने-अपने तरीकों से मदद करनी चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?...(1)

पूरे उत्तर भारत में 27 साल बाद अगर किसी राजनेता की अंतिम यात्रा में भीड़ सड़कों पर अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए उतरी हो तो वह अटल जी के लिए थी। 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की निर्मम हत्या के समय ऐसा जनसैलाब देखा गया था। वैसे दक्षिण भारत में इस तरह का दृश्य आम है लेकिन उत्तर भारत में ऐसा सदियों बाद हुआ है। दिल्ली के लोगों ने 27 साल बाद किसी राजनेता की अंतिम यात्रा में ऐसा जनसैलाब देखा। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद जो गांधी जी की अंतिम यात्रा में पैदल चले थे इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अटल जी की अंतिम यात्रा में पैदल चलकर अंतिम विदाई दी। शुक्रवार को अटल जी की अंतिम यात्रा में जो जनसैलाब उमड़ा, उसे देखकर जयललिता, करुणानिधि की अंतिम यात्रा में उमड़ी भीड़ के सीन याद आ गए। गर्मी के बावजूद लोगों की भीड़ थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। भीड़ का सिलसिला हरिद्वार में भी देखने को मिला। हजारों की भीड़ से भरी हर की पैड़ी उस क्षण की गवाह बनी जब अटल जी की अस्थियों को गंगा की अविरल धाराओं में प्रवाह किया गया। हम दिल्ली पुलिस व दिल्ली यातायात पुलिस की प्रशंसा करना चाहते हैं कि उन्होंने आम लोगों से लेकर अतिविशिष्ट व्यक्तियों तक के लिए पूरे रास्ते इतना अच्छा सुरक्षा बंदोबस्त किया। जब देश के प्रधानमंत्री, महत्वपूर्ण केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री सड़कों पर उतरे तो उनकी सुरक्षा करना एक चुनौती थी, जिसमें दिल्ली पुलिस अव्वल नम्बर से पास हुई। अटल जी के अंतिम संस्कार स्थल के बिल्कुल करीब बड़े-बड़े अक्षरों में हाfिर्डंग पर लिखा थाöहर चुनौती से दो हाथ मैंने किए, आंधियों में मैंने जलाए दीये। अंतिम विदाई देने पहुंचे भाजपा नेता, विरोधी दलों के नेता या आम जन हर कोई अटल जी के जीवनवृत्त को मानों अपने तरीके से लिखना चाहता था। हर शख्स के पास थी अटल के साथ की अपनी कहानी। भाजपा को शून्य से शिखर तक पहुंचाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने पार्टी में नेताओं की पूरी एक पीढ़ी तैयार की। यही कारण है कि आज भाजपा केंद्र के साथ-साथ 20 से ज्यादा राज्यों में सत्ता में है, प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद हर मौके पर और अपने भाषणों में नरेंद्र मोदी कभी अटल बिहारी वाजपेयी को याद करना नहीं भूलते। दरअसल दोनों नेताओं का पुराना नाता भी रहा है, वो अटल बिहारी वाजपेयी ही थे, जिनके फैसले से नरेंद्र मोदी आज सत्ता के शिखर तक का रास्ता तय कर पाने में सफल हुए हैं। गुजरात में 1995 के चुनाव में भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। शंकर सिंह बघेला और नरेंद्र मोदी को दरकिनार कर केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके  बाद नरेंद्र मोदी को पार्टी का कामकाज देखने के लिए दिल्ली बुला लिया गया। अक्तूबर 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी से कहा कि वह दिल्ली छोड़ दें, इसलिए कि अटल उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। उस दिन वाजपेयी से मुलाकात करने के बाद नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के लिए रवाना हो गए। इसके बाद 2002, 2007 और 2012 में वह इस पद पर तैनात रहे। प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान 2002 में हुए गुजरात दंगों को लेकर अटल जी काफी असहज थे। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। 27 फरवरी 2002 की सुबह राज्य में गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी हुई थी, जिसमें ट्रेन के एस-6 कोच में सवार 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी। यह कारसेवक अयोध्या से आ रहे थे। आगजनी की इस घटना के बाद गुजरात के विभिन्न भागों में दंगे भड़क गए, जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया गया। उस दंगे की भीषणता ने देश-विदेश का ध्यान खींचा। वाजपेयी चार अप्रैल को अहमदाबाद दौरे पर गए। वहां वह शाह आलम रोजा अल्पसंख्यक शिविर भी गए और पीड़ितों से मुलाकात की और अधिकारियों को नसीहत देते हुए कहा कि बिना किसी भेदभाव के हर नागरिक की सुरक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है और पागलपन को मानवता के दमन की इजाजत नहीं दी जा सकती। वाजपेयी की भावुकता ने उस कैंप में रह रहे करीब 8 हजार शरणार्थियों का दिल छू लिया और अपनी तकलीफों के बावजूद उन्होंने वाजपेयी की संवेदनशीलता की तारीफ की। वाजपेयी ने कहाöगोधरा में जो हुआ वह शर्मनाक है पर गोधरा के बाद जो हुआ वह कम निंदनीय नहीं है। पागलपन का जवाब पागलपन से नहीं दिया जा सकता। आग से आग नहीं बुझाई जा सकती और आग को फैलने से रोकने के लिए पानी की जरूरत पड़ती है। जाहिर है कि वाजपेयी गुजरात की स्थिति को लेकर काफी विचलित थे। दिल्ली लौटने से पहले उन्होंने हवाई अड्डे पर पत्रकारों को संबोधित किया था। पत्रकार उनसे केंद्र की मदद और हालात वगैरह से संबंधित सवाल पूछ रहे थे। इस क्रम में उनसे जो आखिरी सवाल पूछा गया वह इतिहास का हिस्सा बन गया और उन्होंने इसका जो जवाब दिया वह आज भी हर सरकार के लिए नसीहत की तरह है। उनसे सवाल किया गयाöप्रधानमंत्री जी इस दौरे पर चीफ मिनिस्टर के लिए आपका क्या संदेश है, क्या मैसेज है? वाजपेयीöचीफ मिनिस्टर के लिए मेरा एक ही संदेश है कि वो राजधर्म का पालन करें... राजधर्म... यह शब्द काफी सार्थक है.. मैं उसी का पालन कर रहा हूं, पालन करने का प्रयास कर रहा हूं। राजा के लिए, शासक के लिए प्रजा में भेद नहीं हो सकता... न जन्म के आधार पर न जाति के आधार पर न संप्रदाय के आधार पर (बीच में नरेंद्र मोदी बोले हम भी वही कर रहे हैं साहेब। वाजपेयीöमुझे विश्वास है कि नरेंद्र भाई यही कर रहे हैं, बहुत-बहुत धन्यवाद। (क्रमश)

Tuesday, 21 August 2018

अमेरिका में 343 अखबारों ने ट्रंप के खिलाफ एक साथ लिखा संपादकीय

पिछले कुछ दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी पिंट मीडिया से खासकर ठनी हुई है। राष्ट्रपति ने तो यहां तक कह दिया कि अमेरिका के अखबार देशद्रोही हैं। गत गुरुवार को पिंट मीडिया के 343 अखबरों ने ट्रंप को सख्त जवाब देते हुए उनके खिलाफ एक साथ संपादकीय लिखे हैं। राष्ट्रपति ट्रंप अक्सर मीडिया के खिलाफ आकामक रहते हैं और मीडिया के लिए फेक मीडिया शब्द का इस्तेमाल करते हैं। कुछ दिन पहले ट्रंप ने दो कदम आगे निकलते हुए मीडिया को जनता का दुश्मन तक कह दिया। ट्रंप के बयानों का ही असर था कि एक हालिया सर्वे में अमेरिका के 51 पतिशत लोगों ने भी मीडिया को जनता का दुश्मन कह दिया। इस पर अमेरिका की मीडिया ने आपत्ति की और राष्ट्रपति के नफरत भरे बयानों के खिलाफ एक साथ संपादकीय लिखने का फैसला किया। पूरे कैंपेन की शुरुआत ग्लोब नाम के अखबार ने की। शुरू में 100 अखबार इसके साथ आए और संपादकीय लिखने के लिए 16 अगस्त की तारीख तय की गई। लेकिन 16 अगस्त तारीख आते-आते इस मुहिम से 343 अखबार जुड़ गए। यह 343 अखबार मिलकर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के पूरे 50 राज्यों को कवर करते हैं। न्यूयार्प टाइम्स ने अपने संपादकीय में एक बार भी डोनाल्ड ट्रंप का नाम तक नहीं लिया। उनके लिए या तो मिस्टर पेसिडेंट लिखा या वे कहकर संबोधित किया। अखबार ने लिखा व्हाइट हाउस का महत्व इससे कम तो भी नहीं हुआ। वे ट्रंप लोकतंत्र की रगों में रहने वाले खून के लिए भी खतरनाक हैं। द गार्डियन ने लिखा ः हम अमेरिका की जनता के दुश्मन नहीं हैं। हम तो उनकी बेहतरी चाहते हैं, लेकिन खुद की बेहतरी चाहने के लिए अमेरिकियों को अब आवाज उठानी होगी। हमारी जो बात ट्रंप को जंग लगती है, हमारे लिए वो रोजमर्रा का काम है।  न्यूयार्प  पोस्ट ने लिखा ः हमसे पूछा जाता है कि आप सहमत हैं या नहीं? हम असहमत होने वाले कौन हैं? हमारे पास असहमति का अधिकार ही नहीं बचा है। देश में असहमत होने वाले, सच कहने वाले हर व्यक्ति को झूठा साबित किया जा रहा है। हमें किसी का वोट नहीं चाहिए। हम क्यों झूठ बोलेंगे? दरअसल ट्रंप ने कुछ खबरों को फेक न्यूज बताया था। उसके बाद कुछ पत्रकारों से बदसलूसी की घटनाएं भी घटीं जिससे मीडिया में यह धारणा बनी कि पत्रकारों से गलत व्यवहार करने वालों को ट्रंप की शह मिल रही है। बहरहाल अमेरिका या किसी अन्य देश में कार्यपालिका और मीडिया में यह अविश्वास लोकतंत्र को कमजोर करता है। अमेरिका में फी पेस और फी फीडम का एक्सपेस सारी दुनिया से ज्यादा है। वहां पेस की जो हैसियत है, अब भी वह अनेक मुल्कों में मीडिया को हासिल नहीं हो सकी है। पेस की कुछ चीजों से ट्रंप को नाराजगी हो सकती हैं लेकिन पेस की स्वतंत्रता का किसी तरह हनन हो, इससे दोनों को नुकसान होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि राष्ट्रपति और मीडिया के बीच जो भी गलतफहमी है जल्द दूर हो जाएगी और रिश्तों में जो कड़वाहट आई है खत्म होगी।
-अनिल नरेन्द्र
 

पाक सेना पमुख को गले लगाकर बुरे फंसे सिद्धू

टंगधार में एलओसी पर शनिवार सुबह एक तरफ पाकिस्तानी सेना भारतीय चौकियों पर गोले बरसा रही थीं, वहीं लगभग उसी दौरान पंजाब सरकार के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू इमरान खान के शपथ समारोह में पाक सेना पमुख कमर जावेद बाजवा के गले मिलकर उनके कसीदे पढ़ रहे थे। सिद्धू की हर तरफ किरकिरी हो रही है। समारोह में शिरकत करने पाक राष्ट्रपति के आवास पहुंचे सिद्धू को देखकर बाजवा उनके पास आए और गले लगाकर स्वागत किया। इसके बाद बाजवा ने दोबारा सिद्धू को गले लगाकर पीठ थपथपाते हुए विदा ली। सिद्धू की पूर्व पधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर राष्ट्रीय शोक घोषित होने के बावजूद पाकिस्तान जाने पर पहले ही आलोचना हो रही है। उत्तरी कश्मीर के टंगधार में शनिवार सुबह 11 बजे पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना पर जमकर गोलीबारी की। हालांकि भारतीय सेना ने भी उसे मुंह-तोड़ जवाब दिया। भाजपा पवक्ता संबित पात्रा ने उस समारोह में सिद्धू के पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के राष्ट्रपति मसूद खान व पाक सेना पमुख बाजवा से गले मिलने की आलोचना करते हुए सवाल किया कि क्या सिद्धू ने अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से इसकी अनुमति ली थी? किकेटर से पधानमंत्री तक पहुंचे इमरान के शपथ ग्रहण समारोह में सिद्धू के साथ कपिल देव और सुनील गावस्कर को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन केवल सिद्धू ही गए। चूंकि सिद्धू इस समय पंजाब सरकार में मंत्री भी हैं ऐसे में उनके मसूद खान व जनरल बाजवा से गले fिमलने पर आपत्ति जताई जा रही है। पात्रा का कहना था कि जनरल बाजवा को गले लगाते वक्त क्या सिद्धू को यह याद नहीं रहा कि कैसे पाकिस्तानी सेना अकारण गोलाबारी कर भारतीय जवानों व निर्देष लोगों की जान ले रही है? शपथ ग्रहण समारोह में जब सिद्धू को गुलाम कश्मीर के राष्ट्रपति के बगल में बैठने के लिए सीट दी गई तो उन्होंने इसका विरोध क्यों नहीं किया? अटल जी के निधन से जहां पूरा देश राष्ट्रीय शोक मना रहा था वहीं सिद्धू इमरान खान के शपथ समारोह में जश्न मना रहे थे। क्या यह शर्मनाक नहीं है? बाजवा से गले मिलने पर नवजोत सिंह सिद्धू ने सफाई दी है। सिद्धू ने कहा, मैं राजनेता नहीं, दोस्त की हैसियत से आया हूं। जनरल साहब ने मुझे गले लगाया और कहा वह शांति चाहते हैं। खान साहब (इमरान) ने कहा कि आप शांति के लिए एक कदम चलो तो मैं दो कदम चलूंगा। कांग्रेस पवक्ता राशिद अलवी का कहना था कि अगर सिद्धू मुझसे पूछते तो मैं पाकिस्तान जाने से उन्हें इस समय मना कर देता। दोस्ती देश से बड़ी नहीं है। सीमा पर हमारे जवान मारे जा रहे हैं, ऐसे में सिद्धू का पाक सेना पमुख बाजवा से गले मिलना गलत है। सरकार को भी उन्हें पाकिस्तान जाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी। पाकिस्तान के नए पधानमंत्री इमरान खान ने शपथ ग्रहण के बाद शनिवार को अपने 20 सदस्यीय मंत्रिमंडल की घोषणा कर दी, जिसमें 3 महिलाएं शामिल हैं। इसमें इस्लामाबाद की शिक्षाविद् डा. शिरीन माजरी भी हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध खत्म होने के तीन महीने बाद अक्तूबर 1999 में एक लेख में पाकिस्तान सरकार को भारत पर परमाणु हमला करने की सलाह दी थी। उन्हें विदेश या रक्षा मंत्रालय मिलने की चर्चा थी। उन्हें मानवाधिकार मंत्रालय दिया गया है। पाकिस्तान के इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेन्टेनिक स्टडीज की पूर्व महानिदेशक डा. माजरी इमरान की पार्टी की विदेश नीति की इंचार्ज भी रही हैं। कोलंबिया विवि से विदेश नीति, सैन्य इतिहास पर पीएचडी कर चुकीं माजरी द नेशन अखबार की संपादक भी रह चुकी हैं। एक अमेरिकी पत्रकार को सीआईए जासूस बताने के लिए माजरी को आलोचना का शिकार होना पड़ा था। खैर सिद्धू जी ने एक विवाद खड़ा कर दिया है। एक ऐसा विवाद जो उनके गले मिलने से उत्पन्न हुआ है। उनके इस विवाद से उनकी पार्टी कांग्रेस को भी कटघरे में खड़ा करा जा रहा है, जबकि मुझे लगता है कि इसका कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं। सिद्धू का पाकिस्तान जाना उनका अपना फैसला था और रही बात गले मिलने की तो इससे बचा जा सकता था। पीओके के राष्ट्रपति के साथ वाली सीट पर जानबूझकर उन्हें बिठाया गया ताकि इसका सियासी फायदा उठाया जा सके। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इसका विरोध किया है। उन्होंने कहा मैं जनरल को गले लगाने का विरोध करता हूं। रोज हमारे जवान शहीद हो रहे हैं और ऐसे समय पर वह पाक आर्मी चीफ को गले लगाते हैं, यह गलत है।


Sunday, 19 August 2018

क्या तीनों राज्यों में कांग्रेस जीत रही है?

इसी साल होने वाले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों में ढह जाएगा भाजपा का किला, कांग्रेस को तीनों राज्यों में स्पष्ट बहुमत मिलेगा। यह मेरा कहना नहीं है, यह वो चैनल जिनसे अभी कुछ दिन पहले तथाकथित रूप से केंद्र सरकार कई वरिष्ठ पत्रकारों को निकलवा चुकी है। यह कहना है एवीपी चैनल सी-वोटर का। इस चैनल के मालिक इतने खौफजदा थे और क्या यह बताने के लिए सर्वे करवाकर उन्होंने भाजपा के नेतृत्व को यह बताना चाहा है कि वो दबाव में काम नहीं करेंगे? यानि मीडिया से भाजपा नेतृत्व का डर भगाने के लिए तो नहीं किया गया है? खैर इस सर्वे के अनुसार इन तीनों राज्यों में शिखर पर बैठी भाजपा एंटी-इन्कम्बैंसी की जबरदस्त लहर से दो-चार हो रही है। इन राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम 2019 के सियासी महाभारत के लिए बड़ा संदेश भी हैं। इसे 2019 का सेमीफाइनल कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस ओपिनियन पोल के मुताबिक तीनों राज्यों में कांग्रेस की बहुमत की सरकार बनने की संभावनाएं हैं। मध्यप्रदेश में कुल 231 सीटें हैं, एवीपी न्यूज सी-वोटर के मुताबिक भाजपा को 106 सीटें मिलेंगी तो वहीं कांग्रेस को 117 सीटें मिल सकती हैं। अन्य दलों को सात सीटें मिल सकती हैं। छत्तीसगढ़ कांग्रेस को कुल 90 सीटों में 54 और भाजपा को 33 सीटें मिलने का दावा किया गया है। वहीं राजस्थान की कुल 200 सीटों में कांग्रेस को 130 और भाजपा को 57 सीटें मिलने की उम्मीद है। अन्य 13 सीटों पर रहेंगे। भाजपा शासित इन तीनों राज्यों में ही उसका सीधा मुकाबला कांग्रेस से है। वैसे सी-वोटर के इस सर्वे की विश्वसनीयता पर भी कम सवाल नहीं उठाए जा रहे हैं। सी-वोटर वही कंपनी है, जिसने पिछले विधानसभा चुनावों में अपने सर्वे में दिल्ली में भाजपा, पंजाब में आम आदमी पार्टी, तमिलनाडु में डीएमके और कर्नाटक में भाजपा को पूर्ण बहुमत से सरकार बनने की भविष्यवाणी की थी। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इसी साल नवम्बर-दिसम्बर में विधानसभा चुनाव संभावित हैं। इन तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार है। जहां भाजपा नेतृत्व ने तीनों राज्यों में अपना प्रचार-प्रसार कैंपेन शुरू कर दिया है वहीं वह इस बात से इंकार नहीं कर सकती कि यहां कांटे की लड़ाई है। भारी एंटी-इन्कम्बैंसी मौजूद है। कई विधायकों की टिकटें कटने की संभावना है। इस सर्वे से यह फायदा जरूर है कि भाजपा नेतृत्व के लिए एक वेक-अप कॉल है। जाहिर है कि इससे कांग्रेस खुश होगी। राहुल गांधी को लगेगा कि उनकी मेहनत, तपस्या रंग ला रही है। पर अंत में फिर से यह सवाल उठता है कि जब चुनाव चिन्ह, उम्मीदवारों का सिलेक्शन आदि का काम अभी तक नहीं हुआ तो सी-वोटर ने ऐसी भविष्यवाणियां किस आधार कर दीं?

-अनिल नरेन्द्र

सबसे ऊंचे इस रणक्षेत्र में हर कदम पर मौत का खतरा है

दुनिया के सबसे खतरनाक युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में तैनात जवानों के लिए स्पेशल कपड़े, स्लीपिंग किट और अन्य अहम उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। 16 से 20 हजार फुट पर इस युद्धक्षेत्र में जवानों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, आपको अंदाजा भी नहीं हो सकता। 100-100 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आते बर्फीले तूफान के कारण जहां तक निगाहें जाएं वहां बर्प ही बर्प नजर आती है। इस सबसे ऊंचे रणक्षेत्र में हर कदम पर मौत का खतरा है। पूर्व में चीन की सीमा लगती है तो पश्चिम में पाकिस्तान की। आए दिन होने वाले हिमस्खलन, मेटल बाइट, फ्राट बाइट, अत्याधिक ऊंचाई पर होने वाली बीमारियों के साथ सांस उखड़ने और हड्डियां गला देने वाली बर्पवारी के बीच यहां के जवान देश की खातिर ड्यूटी देते हैं। तेज बर्फीले तूफान के कारण जवान बर्प में दब जाते हैं। उनको रेस्क्यू करने के लिए कुत्तों का सहारा लेना पड़ता है। दो साल पहले ही एक तूफान में सोनम पोस्ट पर तैनात  लांस नायक हनुमंत थापा को लेब्राडोर नस्ल के डॉग डाट ने जिन्दा खोज निकाला था। हालांकि दिल्ली में उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई थी। साढ़े तीन दशक पहले पाकिस्तान की घुसपैठ का जवाब देने के लिए लांच किए गए ऑपरेशन मेघदूत के बाद 70-75 किलोमीटर में फैला यह निर्जन इलाका युद्ध के मैदान में तब्दील हो चुका है। भारत के इन दोनों विरोधी देशों (पाकिस्तान और चीन) का महत्वपूर्ण सी पैक यानि वाणिज्य गलियारा इसके ऊपर से ही गुजरता है और यह हमारे लिए दोहरी चुनौती से कम नहीं है। यहां रहना इतना मुश्किल है कि तीन से चार माह तक सियाचिन में तैनाती के दौरान जवान नहाते तक नहीं हैं। वह सिर्प टावल परेड लेते हैं यानि अपने शरीर को साफ करते हैं। इसके बाद जवान पूरे दिन निगरानी में रहते हैं ताकि उन्हें कोई बीमारी नहीं हो। हाथ में डबल दस्ताने पहनना जरूरी होता है ताकि चमड़ी राइफल के ट्रिगर को न छुए। रात में टैंट में सोते समय हर घंटे में संतरी सभी जवानों को जगाता है ताकि कम ऑक्सीजन के कारण सोते हुए कोई जवान मर न जाए। आर्मी मेडिकल कोर के डॉक्टर देवदूत से कम नहीं हैं। हर दो से तीन पोस्ट के बीच डॉर्क्ट्स की टीम है। जवान को नींद नहीं आने, सांस लेने की तकलीफ होने, याददाश्त खोने, चक्कर आने या अचेत होने जैसी हाई एल्टीट्यूट की कई बीमारियां होती हैं। रोजाना 300-400 जवानों का मेडिकल होता है वहीं 15 से 20 बीमार होकर आते हैं। सियाचिन के रणक्षेत्र में चौंकियों पर तैनाती से पहले जवानों को तीन हफ्ते की कठोर ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है जिसमें उन्हें यहां संभव बीमारियों और उनसे बचने के उपाय बताए जाते हैं। जवान जब पेट्रोलिंग पर जाते हैं तो एक-दूसरे को एक रस्सी से बांध लेते हैं ताकि कोई बर्प के नीचे गिरे तो तुरन्त ही बाहर निकाल लिया जाए। हैलीकॉप्टर यहां की लाइफ लाइन है। ऐसी दुर्लभ परिस्थितियों में हमारे जवान देश की रक्षा कर रहे हैं। इन बहादुर जवानों का पूरा देश कृतज्ञ है। इनको हम सलाम करते हैं। जय हिन्द।

Saturday, 18 August 2018

देश ने एक युगपुरुष खोया, हमने तो बहुत कुछ खो दिया

अटल बिहारी वाजपेयी का जाना सही मायनों में एक युग का अंत है। भारतीय राजनीति में अटल जी एक ऐसा शून्य छोड़ गए हैं जिसे भरना आसान नहीं होगा। भारतीय लोकतंत्र ने जो भी गिने-चुने सियासतदान पैदा किए हैं, अटल जी उनमें से शीर्ष स्थान पर रखे जा सकते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी यानि एक ऐसा नाम जिसने भारतीय राजनीति को अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से इस तरह प्रभावित किया जिसकी दूसरी मिसाल मिलनी मुश्किल है। एक साधारण परिवार में जन्मे इस राजनेता ने अपनी भाषण कला, मनमोहक मुस्कान, लेखन व विचारधारा, विशाल दिल का जो परिचय दिया वह आज की राजनीति में दुर्लभ है। भाजपा के वह एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्हें अजात शत्रु कहा जा सकता है। अटल जी को जितना सम्मान अपनी पार्टी में प्राप्त था, उससे कहीं ज्यादा दूसरी पार्टियों के नेता उनका सम्मान करते थे। वह बहुत संतुलित, सधी हुई भाषा, रोचक शैली और तर्पपूर्ण ढंग से अपनी बातें रखते थे। अटल जी जब संसद में बोलते थे तो सभी राजनीतिक दलों के नेता उनके भाषणों को पूरी शांति से सुनते थे। पार्टी से परे जाकर सम्मान प्राप्त करने के इस दुर्लभ गुणों के कारण ही वह भाजपा को स्वीकार्य और सार्वजनिक स्वरूप दे सके। सही मायनों में वह पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद भारत के सबसे करिश्माई नेता और प्रधानमंत्री साबित हुए। सही मायनों में अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसी सरकार के नायक बने जिसने भारतीय राजनीति में समन्वय की राजनीति की शुरुआत की। वह एक अर्थ में एक ऐसी राष्ट्रीय सरकार थी, जिसमें विविध विचारों, क्षेत्रीय हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले तमाम लोग शामिल थे। दो दर्जन दलों के विचारों को एक मंत्र से साधना आसान नहीं था। किन्तु अटल जी की राष्ट्रीय दृष्टि, उनकी साधना और बेदाग व्यक्तित्व ने सारा कुछ संभव कर दिया। वह सही मायनों में भारतीयता और सौहार्द्र के उदाहरण बन गए। उनकी सरकार ने अस्थिरता के भंवर में फंसे देश को एक नई राजनीतिक राह दिखाई। यह रास्ता मिली-जुली सरकारों की सफलता की मिसाल बन गई। अटल बिहारी वाजपेयी सही मायनों में एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जो भारत को समझते थे, भारतीयता को समझते थे। राजनीति में उनकी खींची लकीर इतनी लंबी है जिसे पार कर पाना संभव नहीं दिखता। उन्होंने हमेशा राष्ट्रवाद को सर्वोपरि माना। यही वजह थी कि उनकी सरकार सुशासन के उदाहरण रचने वाली साबित हुई। जन समर्थक नीतियों के साथ महंगाई, आम आदमी के हितों को हमेशा ध्यान में रखकर नीतियां बनाईं। उन्होंने कहाöलोगों के सामने हमारी प्रथम प्रतिबद्धता एक ऐसी स्थायी, ईमानदार, पारदर्शी और कुशल सरकार देने की है, जो चहुंमुखी विकास करने में सक्षम हो। इसके लिए सरकार आवश्यक प्रशासनिक सुधारों के समयबद्ध कार्यक्रम शुरू करेगी, इनमें पुलिस और अन्य सिविल सेवाओं में किए जाने वाले सुधार शामिल हैं। राजग ने देश के सामने ऐसे सुशासन का आदर्श रखा जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय पुनर्निर्माण, संघीय समरसता, आर्थिक आधुनिकीकरण, सामाजिक न्याय, शुचिता जैसे सवाल शामिल थे। आम जनता से जुड़ी सुविधाओं का व्यापक संवर्द्धन, आईटी क्रांति, सूचना क्रांति इससे जुड़ी उपलब्धियां हैं। अटल जी से उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी कितना स्नेह करते थे इस उदाहरण से पता चलता है। जब राजीव गांधी की हत्या हुई तब अटल जी ने यह किस्सा बयान किया था। अटल जी ने बताया था कि डाक्टरों ने उन्हें सर्जरी की सलाह दी थी। उसके बाद से वह सो नहीं पा रहे थे। उनके मन में चल रही उथल-पुथल कि राजीव गांधी ने संयुक्त राष्ट्र जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में अटल जी का नाम शामिल कर उन्हें अमेरिका भेजा। राजीव का मकसद था कि अमेरिका में अटल जी का इलाज हो और हुआ भी। सारा खर्च राजीव सरकार ने उठाया। अटल जी ने राजीव की हत्या के बाद पहली बार यह किस्सा सुनाया और कहा कि राजीव गांधी महान थे। राजीव की महानता की सराहना करते रहे और कहते रहे कि राजीव की वजह से मैं आज जिन्दा हूं। अटल जी से जो मिला उन्हें कभी भूल नहीं सकता। वह भी एक बार सम्पर्प बना लें तो आखिर तक निभाते रहे। अटल जी का प्रताप-वीर अर्जुन, सांध्य वीर अर्जुन परिवार से हमेशा करीबी संबंध रहा। ऐसे कई पर्सनल उदाहरण हैं जिनमें से कुछ को मैं बताना जरूरी समझता हूं। अटल जी वीर अर्जुन के पूर्व संपादक रह चुके थे। उन्होंने वीर अर्जुन का संपादन 1950-1952 के बीच किया था। अटल जी वीर अर्जुन में उस वक्त एडिटर थे जब मेरे स्वर्गीय दादा महाशय कृष्ण जी इसे चलाया करते थे। अटल जी चूंकि आरएसएस के प्रचारक भी थे और उन्हीं दिनों जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर में प्रवेश के लिए परमिट सिस्टम का विरोध करने के लिए 1952 में श्रीनगर जा रहे थे और अटल जी भी उनके सहायक के रूप में श्रीनगर चले गए तो अटल जी ने न सिर्प वीर अर्जुन में काम करना बंद किया बल्कि पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में कदम रखा। जब वह प्रधानमंत्री थे तो मैं अपने स्वर्गीय पिता के. नरेन्द्र का जन्मदिन मनाने के लिए अटल जी से मिला और उन्हें अपने  निवास सुंदर नगर आने का निमंत्रण दिया। अटल जी फौरन तैयार हो गए और सुंदर नगर आए भी। जब वह प्रधानमंत्री थे तो उन्हें संयुक्त राष्ट्र में भाषण देना था और वह अपने साथ कुछ पत्रकारों को भी ले जा रहे थे तो उन्होंने 1998 में इस दल में मुझे भी शामिल किया। इसके चार साल बाद 2002 में वियतनाम और इंडोनेशिया (बाली) गए और उस यात्रा में भी मुझे शामिल किया। एक बार ऐसा भी हुआ जब मेरे स्वर्गीय पिताश्री के. नरेन्द्र ने अपना जन्मदिन चैम्सफोर्ड क्लब में अपने दोस्तों के साथ मनाने का फैसला किया। अटल जी तब प्रधानमंत्री नहीं थे। जब उन्हें पता चला तो वह गोल-गप्पे लेकर क्लब पहुंच गए। फिर कई बार अटल जी से मिलना हुआ। यह बातें अब यादें बनकर रह गई हैं। अटल जी के जाने से हमें तो बहुत बड़ी क्षति पहुंची है पर विधि के आगे क्या कर सकते हैं, सिवाय अपनी श्रद्धांजलि पेश करने के राजधर्म निर्वहन के साथ विरोध का आदर करने वाले राजनेता के रूप में वह याद रहेंगे।

                                                        -अनिल नरेन्द्र

एक देश-एक चुनाव पर राजनीतिक सहमति जरूरी

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजना को दोतरफा धक्का लगा है। जहां चुनाव आयोग ने इसे तुरन्त लागू करने में अपनी असमर्थता जताई है वहीं विपक्ष के साथ-साथ भाजपा की सहयोगी जेडीएस ने भी इसे समर्थन देने से इंकार कर दिया है। ऐसे में इस साल के अंत में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव टलने या लोकसभा चुनाव के समय पूर्व होने की संभावना कम हो गई है। पहले संभावना बन रही थी कि मोदी सरकार एक देश-एक चुनाव की ओर बढ़ते हुए 2019 के आम चुनावों को 11 राज्यों की विधानसभा चुनावों के साथ करा देगी। नीति आयोग ने तो पहले ही कह दिया है कि 2024 में देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं। कांग्रेस ने चार राज्यों के विधानसभा चुनाव रोकने के बजाय लोकसभा चुनाव समय से पहले कराने का मंगलवार को सुझाव दिया और कहा कि अगर इस मामले में मनमानी की गई तो पार्टी इसे न्यायालय में चुनौती देगी। कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत व नेताओं ने यह भी कहा कि इस साल के अंत में होने वाले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभाओं को टालने की किसी भी कोशिश को अदालत में चुनौती दी जाएगी। पार्टी का कहना है कि यदि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि इन राज्यों के चुनाव लोकसभा के साथ कराए जाएं तो उन्हें पद से इस्तीफा देकर लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर देनी चाहिए। पार्टी ने दो टूक कहा कि यदि किसी तरीके से इन तीनों राज्यों के चुनाव टालने की कोशिश की गई तो वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। उधर भाजपा ने भी स्पष्ट किया कि 11 राज्यों में लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा चुनाव कराने का मोदी सरकार का कोई इरादा नहीं है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने पार्टी मुख्यालय पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कुछ अखबारों में छपी उसी खबर का खंडन करते हुए कहा जिसमें कहा गया है कि मोदी सरकार 11 राज्यों के विधानसभाओं के चुनावों को 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ कराने की योजना बना रही है, पार्टी इसका खंडन करती है। पार्टी ऐसी किसी मत धारणा का खंडन करती है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि एक देश-एक चुनाव लेकर भाजपा की भावना वही है जो हमारे अध्यक्ष अमित शाह ने विधि आयोग को लिखे पत्र में व्यक्त की है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि एक देश-एक चुनाव कराने में फायदे भी हैं। सबसे बड़ा फायदा तो खर्च के बचत का है। नीति आयोग का कहना है कि 2009 के लोकसभा चुनाव पर 1195 करोड़ रुपए खर्च हुए थे और 2014 के चुनाव में 3000 करोड़ रुपए। ऐसे में अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनावों को एक साथ कराया जाए तो यह 4500 करोड़ रुपए की बचत हो सकती है और इससे ईवीएम मशीनों व वीवीपीएटी के खर्चे का इंतजाम हो सकता है। चुनाव आयोग का कहना है कि एक साथ चुनाव करवाने के लिए 12 लाख नई ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों की व्यवस्था करनी पड़ेगी। इसके अलावा जितने बड़े पैमाने पर सरकारी मशीनरी को इस आयोजन में लगाना पड़ता है वह भी एक गंभीर समस्या है। इससे सरकारी कामकाज में लंबे समय तक व्यवधान बना रहता है। चुनाव से पूर्व राज्यों में आचार संहिता की वजह से कई कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी होती है। विपक्षी दलों खासतौर पर क्षेत्रीय दलों को डर है कि प्रधानमंत्री का व्यक्तित्व व कार्यक्रमों से राज्यों के मुख्यमंत्रियों की लोकप्रियता दब जाएगी और राष्ट्रीय महत्व पर चुनाव आधारित हो जाएगा। राज्यों के अपने मुद्दे दब जाएंगे। कुछ विपक्षी दल यह दलील देते हुए इस विचार को खारिज कर रहे हैं कि इससे देश की संघीय शासन का स्वरूप कमजोर होगा। वास्तव में यह दलील आधारहीन नहीं है। एक राष्ट्र-एक चुनाव के मुद्दे पर मोदी सरकार को पूरी तैयारी के साथ आगे आने की जरूरत है। ऐसा करने के लिए यह भी जरूरी है कि इस मसले पर राजनीतिक सहमति सबसे पहले कायम हो तभी आगे बढ़ सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

Friday, 17 August 2018

आप लोगों को घर के लिए भटका रहे हैं, हम आपको बेघर कर देंगे

आम्रपाली ग्रुप के निदेशकों और प्रमोटरों को बुधवार सुप्रीम कोर्ट ने सख्त शब्दों में चेतावनी दी है। अपनी हरकतों से बाज आने की चेतावनी देते हुए कोर्ट ने कहाöअसली समस्या यह है कि आपने मकानों का कब्जा देने में देरी की है। अब ज्यादा होशियारी न दिखाओ, आपको बेघर कर देंगे। अधूरे हाउसिंग प्रोजेक्टरों के लिए 5112 करोड़ रुपए नहीं जुटा पाए तो आपकी एक-एक सम्पत्ति बेच देंगे। आप लोगों को घर के लिए भटका रहे हैं, हम आपको बेघर कर देंगे। इस कड़ी टिप्पणी के बाद जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस यूयू ललित की बैंच ने आम्रपाली के निदेशकों को 15 दिन के भीतर अपनी सभी चल-अचल सम्पत्तियों की सूची और उनका मूल्य कितना है यह जानकारी भी देने को कहा है। कोर्ट ने आम्रपाली की परियोजनाओं का रखरखाव देखने वाली कंपनियों और उसकी ओर से जुटाई गई पूंजी का ब्यौरा भी मांगा है। यही नहीं, कोर्ट ने मौजूदा निदेशकों के साथ ही 2008 से अब तक कंपनी छोड़ चुके निदेशकों के बारे में भी जानकारी मांगी है। ग्रुप के निदेशकों व प्रमोटरों से यह भी पूछा है कि अधूरे हाउसिंग प्रोजेक्ट पूरे करने के लिए 5211 करोड़ रुपए कैसे जुटाएंगे? अगली सुनवाई जल्द होगी। कोर्ट ने समूह के निदेशकों से सख्ती से पूछा कि ट्रांसफर किए गए करोड़ों रुपए कहां से आए थे और किन कंपनियों को दिए गए? रकम देने का मकसद क्या था, क्या किसी काम के लिए अग्रिम राशि दी गई थी या फिर उधार या किसी अन्य प्रोजेक्ट्स के लिए? किस नियम के तहत खरीददारों की रकम दूसरे खातों में ट्रांसफर की गई? कौन से नियम या प्रावधान के तहत रकम ट्रांसफर की गई? पीठ के समूह को इस रकम के निवेश का सही-सही ब्यौरा देने का आदेश दिया गया है। उल्लेखनीय है कि आम्रपाली ग्रुप 42 हजार खरीददारों को घरों का कब्जा देने में नाकाम रहा है। कोर्ट ने ग्रुप की 40 कंपनियों के सभी निदेशकों के बैंक खाते और सम्पत्तियां अटैच करने के आदेश भी जारी किए थे। उधर नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन लिमिटेड (एनबीसीसी) ने दो अगस्त को सुनवाई में कोर्ट से कहा था कि वह आम्रपाली समूह की कंपनियों, जो करीब 42,800 मकान खरीददारों को फ्लैट का कब्जा देने में विफल रही हैं, की परियोजनाओं को अपने हाथ में लेने के लिए तैयार है। कोर्ट ने एनबीसीसी को इस संबंध में 30 दिन के भीतर ठोस प्रस्ताव पेश करने का निर्देश दिया था कि वह किस तरह और कितने समय के भीतर इन परियोजनाओं को पूरा करेगी?
-अनिल नरेन्द्र


सीएम बनाम सीएस ः चार्जशीट के बाद क्या?

मुख्य सचिव अंशु प्रकाश से बदसलूकी व मारपीट के मामले में दिल्ली पुलिस ने मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया व 11 अन्य विधायकों के खिलाफ सोमवार को पटियाला हाउस की विशेष अदालत में 1533 पेज का आरोप पत्र दायर कर दिया। उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की 13 अलग-अलग धाराएं लगाई गई हैं। एडिशनल चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल की अदालत 25 अगस्त को इस पर संज्ञान लेगी। मुख्य सचिव अंशु प्रकाश को मुख्य गवाह बनाया गया है। मुख्यमंत्री केजरीवाल के तत्कालीन सलाहकार वीके जैन को मुख्य चश्मदीद गवाह बनाया गया है। वहीं चार अन्य आईएएस अधिकारी, जो मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों के बुरे बर्ताव का शिकार हुए हैं, उन्हें भी मुख्य गवाह बनाया गया है। आरोप पत्र में गंभीर आरोप लगाए गए हैं। एकöकेजरीवाल, सिसोदिया व अन्य विधायकों ने आपराधिक साजिश रचकर मुख्य सचिव की हत्या के इरादे से गंभीर चोट पहुंचाई। दोöकैद कर उनके साथ मारपीट की गई और अपमानित किया गया। तीनöसभी विधायकों ने शांति भंग की। चारöउन लोगों ने मुख्य सचिव को अपनी लोक सेवा की जिम्मेदारी निभाने से रोका और कैद किया। अगर यह केस पुलिस साबित करने में कामयाब हो जाती है तो इन धाराओं के तहत अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है। अगर साबित हो जाती है और तीन साल से ज्यादा की सजा होती है तो आरोपियों का राजनीतिक कैरियर लगभग समाप्त-सा हो सकता है क्योंकि तीन साल से अधिक सजा में आरोपी चुनाव नहीं लड़ सकता। हमारे सामने राष्ट्रीय जनता दल मुखिया लालू प्रसाद यादव का केस है। पर सवाल यह है कि क्या सीबीआई अदालत में अपना केस साबित कर भी पाएगी? सीबीआई का इन मामलों में तो ट्रैक रिकार्ड उत्साहवर्द्धक नहीं है। एक अंग्रेजी अखबार में हाल ही में खबर छपी थी कि सीबीआई द्वारा दिल्ली सरकार के मंत्रियों, विधायकों के खिलाफ 22 मुकदमे दर्ज किए थे। इनमें से 19 मुकदमे अदालत ने खारिज कर दिए। इनमें से एक केस में तो उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया तक बरी हो गए। सीबीआई ने दिल्ली सरकार के मंत्रियों, विधायकों के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर कई बार छापे मारे और मीडिया में उनके खिलाफ आरोप लगे। पर अभी तक एक भी केस सीबीआई ने अदालत में दर्ज नहीं करवाया। दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येन्द्र जैन, गोपाल राय, कैलाश गहलोत, राजेन्द्र पाल गौतम और इमरान हुसैन ने संयुक्त बयान में कहा है कि यह आरोप पत्र चुनी हुई सरकार को लगातार परेशान करने और उनके खिलाफ की जाने वाली साजिश का ताजा उदाहरण है। यह मोदी सरकार की हताशा का नतीजा है। यदि सीएम कार्यपालिका का मुखिया है तो मुख्य सचिव नौकरशाही के शीर्ष पर बैठा अधिकारी है। जाहिर है कि सीएम आवास में उस रात कुछ न कुछ तो  जरूर हुआ है और यदि हुआ है तो सीएम उसकी जिम्मेदारी से कतई बच नहीं सकते। आरोपों में कितनी सच्चाई है अदालत सच्चाई जानने के लिए गवाहों और साक्ष्यों का सहारा लेगी और अगर फैसला सीएम व साथियों के खिलाफ आता है तो देश की राजनीतिक संस्कृति पर काले धब्बे से कम नहीं होगा। देखना यह है कि सीबीआई केस साबित भी कर सकती है या नहीं? बेहतर तो यह होगा कि श्री केजरीवाल व साथी मुख्य सचिव और आईएस अधिकारियों के साथ मिल-बैठ कर मामले को सुलझा लें। इसमें सभी की भलाई है।