Thursday 23 August 2018

लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?...(2)

देश की राजधानी ने पिछले चार-पांच दिन में कुछ ऐसा देखा, जैसा पिछले कई दशकों में नहीं देखा गया था। पिछली पीढ़ी के लोग तो इस पूरे घटनाक्रम को समझ पा रहे थे, लेकिन बच्चे और नौजवानों ने पहले ऐसा कभी नहीं देखा था ]िक किसी एक शख्स की मौत पर पूरा देश एक साथ रोया, किसी शख्स की शव यात्रा, अस्थि विसर्जन तक पूरा देश एक साथ चल रहा था। मृत्यु की आंखों में आंखें डालकर उसे न्यौता देने वाले और अपनी मृत्यु के बारे में बड़े बेखौफ अंदाज में कलम चलाने वाले कवि हृदय सम्राट अटल बिहारी वाजपेयी का ही करिश्मा था जो जाने के बाद भी सबको एक साथ बिठा गए। वाजपेयी का जाना जैसे घर से एक बुजुर्ग का जाना था। अटल जी की सियासी स्वीकारता की एक झलक उनकी विदाई के बाद प्रार्थना सभा में दिखी। उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए सभी राजनीतिक दलों के नेता मौजूद थे। वाजपेयी के साथ 65 साल की अपनी गहरी मित्रता को याद करते हुए आंखों में आंसू भरे हुए वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा कि वाजपेयी से उन्हें जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिला और बहुत कुछ पाया। उन्होंने कहा कि अच्छा होता कि वाजपेयी जी के लिए जो बातें कही गई हैं, वह बातें उनकी मौजूदगी में कही जातीं तो संतोष और समाधान होता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में राजनीतिक विचारधारा के जिस बीज को सींच कर वृक्ष बनाया है, सब उसी के पुष्पों की सुगंध, पत्तों की छाया और फलों का आस्वादन कर रहे हैं। वाजपेयी जी का सार्वजनिक जीवन में शिखर पर पहुंचने के बावजूद जनसामान्य के प्रति लगाव बना रहा। नरेंद्र मोदी सरकार पर प्रत्यक्ष रूप से तंज कसते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने सोमवार को कहा कि वाजपेयी के युग में सरकार और विपक्ष के बीच आज की तरह दूरी नहीं थी। 1991 1996 के बीच संसदीय कार्यमंत्री रहने के दौरान मैं अकसर अटल जी से मिला करता था, क्योंकि वह तत्कालीन विपक्ष के नेता थे। हम अकसर साथ-साथ खाते थे, कभी मेरे कक्ष में तो दूसरी बार उनके कक्ष में (संसद सत्र के दौरान)। इन दिनों की तरह सरकार व विपक्ष के बीच कोई दूरी, अलगाव उन दिनों नहीं था। नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि उनके विचार में वाजपेयी जी जितना बड़ा दिल किसी भी नेता का नहीं रहा, जो कहते थे कि देश को सबको मिलकर उठाना है और दिल को दिल से मिलाकर काम करना है। पीडीपी नेता एवं जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि वाजपेयी ने कश्मीर के जज्बातों को समझा और कश्मीरियों को भरोसे से जोड़ने की संजीदा कोशिश की जिससे आतंकवाद एवं घुसपैठ दोनों में कमी आई। अटल जी के जाने के बाद कई किस्से प्रकाश में आ रहे हैं जिससे उनकी महानता का पता चलता है। चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने वाजपेयी को एक शानदार नेता करार देते हुए उनके निधन पर शोक जताया। उन्होंने कहाöचीन की सरकार और लोगों की तरफ से मैं शोक-संतप्त परिवार के प्रति गहरी संवेदना और सहानुभूति प्रकट करता हूं। चीन के प्रधानमंत्री ने कहाöवाजपेयी एक शानदार नेता थे, जिन्होंने राष्ट्रीय और सामाजिक विकास के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और भारतीय लोगों का सम्मान हासिल किया। पांञ्जन्य से अटल जी का प्रारंभ से ही अटूट स्नेह रहा, जिसे उन्होंने सदा निभाया। पांञ्जन्य स्वर्ण जयंती के समय अटल जी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने एक साक्षात्कार जिसमें गर्व से कहो हम हिन्दू हैं का समर्थन करने के स्थान पर कहाöगर्व से कहो हम भारतीय क्यों नहीं? पांञ्जन्य के पूर्व संपादक व पूर्व सांसद तरुण विजय ने एक दिलचस्प किस्सा शेयर किया है। एक बार पांञ्जन्य में सोनिया गांधी पर तीव्र प्रहार हुए तो उन्होंने तुरन्त फोन करके मुझे कहाöयह ठीक नहीं। कांग्रेस पर प्रहार करो, व्यक्ति पर नहीं। अटल जी के साथ चार दशकों से और उनके सबसे करीबियों में थे शिव कुमार। लंबी मूछों वाले शिव कुमार को हर अटलप्रेमी जानता होगा, चाहे वह उनसे मिला ही नहीं हो। शिव कुमार जी ने एक दिलचस्प वाकया बताया। उन्हीं की जुबानीöबात 1984 की है। अटल जी बीमार थे। पेट में अल्सर था, वाराणसी के जिन्दल नेचुरोपैथी में इलाज चल रहा था। वहां किसी को भी बात करने तक की इजाजत नहीं थी। एक दिन अचानक टेलीफोन लाइन डलवाई जाने लगी। हमें आश्चर्य हुआ। फिर बताया गया कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बात करेंगी। शाम साढ़े छह बजे फोन आया इंदिरा जी ने फोन करते ही अटल जी से पूछा कि आप कहां हैं? अटल जी ने जवाब दिया कि आप कैसी पीएम हैं कि आपको अपने सांसदों का पता ही नहीं कि वह अस्पताल में भर्ती हैं। हास-परिहास खत्म होते ही इंदिरा जी ने कहा कि आपसे एक राय लेनी है। स्वर्ण मंदिर में हथियारों के साथ भिंडरावाला घुस गया है। बहुत परेशानी हो रही है। मैं सोच रही हूं कि स्वर्ण मंदिर पर हमला करके उसे मार दें या फिर गिरफ्तार कर लें। अटल जी ने तुरन्त कहाöनहीं यह गलत कदम होगा। वह धार्मिक स्थल है। गिरफ्तार करने के और भी तरीके हैं। इंदिरा जी ने जवाब दियाöमैंने तो फैसला कर लिया है तो अटल जी बोलेöइसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे। आपको फिर सोचना चाहिए। उस बात की परिणति दुनिया जानती है। अटल जी को खाने-पीने का बहुत शौक था। मंडी हाउस स्थित बंगाली मार्केट की बंगाली स्वीट्स के छोले-कुल्चे उन्हें काफी पसंद थे। प्रधानमंत्री रहते हुए भी वह कई बार उन्हें मंगवा कर खाते थे। अपने जीवन का क्षण-क्षण और शरीर का कण-कण देश को समर्पित करने के कठिन संकल्प को सहज भाव से निभाने का हौंसला बहुत कम लोगों में होता है। अटल जी ने अपनी बात हमेशा पूरे संयम और मर्यादा के साथ रखी। कोई अंतर्राष्ट्रीय मंच हो, संसद का सदन हो या जनसभा, यही वजह थी कि आज हर आदमी उन्हें याद करता है। ऐसा व्यक्ति मरता नहीं बल्कि अमर होता है। (समाप्त)

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment