Tuesday 14 August 2018

दागी को टिकट देने वाली पार्टी का पंजीकरण क्यों न रद्द हो?

गंभीर आपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध के लिए दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई शुरू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट मत है कि देश की राजनीति में अपराधियों का प्रवेश नहीं होना चाहिए। चीफ  जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, अजय माणिकराव खानविलकर, धनंजय यशवंत चन्द्रचूड़ और जस्टिस इन्दू मल्होत्रा की संविधान पीठ ने बृहस्पतिवार को केंद्र सरकार से पूछा कि क्यों न आपराधिक मामला झेलने वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने का टिकट देने वाली राजनीतिक पार्टियों का पंजीकरण रद्द कर दिया जाए? शीर्ष अदालत ने सरकार से पूछा कि क्या चुनाव आयोग को ऐसा करने का निर्देश दिया जा सकता है? राजनीति में अपराधीकरण के लिए कोई जगह नहीं होने की बात कहते हुए शीर्ष अदालत ने यह भी पूछा कि अपराधमुक्त राजनीति के लिए क्या विधायिका को इस संबंध में कानून बनाने के लिए कहा जा सकता है? पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह सवाल इस संबंध में दाखिल कई जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान उठाए। बता दें कि 8 मार्च, 2016 को एक तीन सदस्यीय पीठ ने यह मसला संविधान पीठ को रेफर किया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट सांसदों-विधायकों पर चल रहे आपराधिक मुकदमों की सुनवाई स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन कर एक साल में निपटाने के निर्देश सभी हाई कोर्टों को दे चुका है। राजनीति में आपराधिक तत्वों की दखलअंदाजी कोई अचानक सामने खड़ी हो गई समस्या नहीं है। देश के लोकतांत्रिक स्वरूप को लेकर फिक्रमंद हलकों में इसको लेकर लंबे समय से चिन्ता जताई जाती रही है। खासतौर पर संसद और विधानसभाओं में आपराधिक पृष्ठभूमि के या इससे संबंधित मुकदमों का सामना कर रहे लोगों के प्रवेश को कई बार कानूनन प्रतिबंधित करने के मामले उठे हैं। लेकिन अब तक इस मामले पर कोई ठोस नियम आकार नहीं ले सका है। गुरुवार को एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर चिन्ता जाहिर करते हुए कहा कि राजनीतिक व्यवस्था में अपराधीकरण का प्रवेश नहीं होना चाहिए। हालांकि केंद्र सरकार का मानना है कि यह विषय पूरी तरह संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह मुद्दा पूरी तरह संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। साथ ही कहा कि जहां तक सजा से पहले ही चुनाव लड़ने पर बैन का सवाल है तो कोई भी आदमी तब तक निर्दोष है जब तक कि कोर्ट उसे सजा नहीं दे देता और संविधान का प्रावधान भी यही कहता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंत्री जब शपथ लेते हैं तो संविधान को अछूता रखने की बात करते हैं तो क्या कोई आदमी जिसके खिलाफ मर्डर का चार्ज है वह ऐसा कर सकता है? इस पर अटार्नी जनरल ने कहा कि शपथ में ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिनके खिलाफ केस चल रहा है वह ऐसा नहीं कर सकता। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि 2014 में 34 प्रतिशत सांसद ऐसे संसद पहुंचे जिनके खिलाफ क्रिमिनल केस हैं। क्या कानून तोड़ने वाला कानून बना सकता है? राजनीति में अपराधीकरण लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं है। इस पर जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने कहा कि संसद कानून बनाती है हम तो उनकी व्याख्या ही करते हैं। यह समस्या कितनी गंभीर है इसी से पता चलता है पांच महीने पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह बताया था कि देशभर में 1765 सांसदों और विधायकों के खिलाफ 3045 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक दो साल या इससे अधिक की सजा वाले दोषी व्यक्ति जेल से छूटने के छह साल बाद तक चुनाव नहीं लड़ सकते। लेकिन ऐसे लोगों के आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने की मांग की जा रही है। इस समस्या का एक पहलू यह भी है कि किसी मुकदमे के फैसले में दोषी ठहराए जाने तक किसी व्यक्ति को निर्दोष माना जाता है। लेकिन अगर सिर्प मुकदमे को उम्मीदवारी के लिए अयोग्यता का आधार माना जाएगा तो इससे भी कुछ मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। इसी से संबंधित एक आपत्ति यह भी है कि इस तरह के कानून के राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका खड़ी हो सकती है। चूंकि पुलिस राज्य सरकारों के मातहत काम करती है, इसलिए सत्ताधारी दल अपने विपक्षी दलों के नेताओं को झूठे मुकदमे दायर कर चुनाव लड़ने से रोकने की कोशिश कर सकते हैं। फिर कोई भी मुकदमा फैसले तक पहुंचने में सालों लंबा खिंच सकता है और उतने समय तक के लिए चुनाव में हिस्सा लेने से रोकना लोकतंत्र के अनुकूल नहीं माना जाएगा। जाहिर है इन आपत्तियों को पूरी तरह दरकिनार नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद किसी आशंका को आधार बनाकर राजनीतिक प्रक्रिया में आपराधिक तत्वों की दखलअंदाजी को रोकने की कोशिशों के प्रति टालमटोल का रवैया सही नहीं होगा। राजनीतिक पार्टियां टिकट देते समय उम्मीदवार के क्रिमिनल रिकार्ड से ज्यादा उसके द्वारा सीट निकालने की संभावना को जब तक प्राथमिकता देती रहेंगी तब तक इसमें संदेह है कि भारत की राजनीति अपराधीकरण से मुक्त हो सके।

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