जहां
एक तरफ आम आदमी पार्टी (आप)
आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है वहीं पार्टी के पंजाब
यूनिट में भारी फूट पड़ गई है। पंजाब से पिछले लोकसभा चुनाव में चार सांसद आए थे। अब
पंजाब विधायक दल के नाराज विधायक सुखपाल सिंह खैहरा द्वारा भटिंडा में किए गए सम्मेलन
की सफलता ने पार्टी नेतृत्व की नींद उड़ा दी है। पार्टी को कतई उम्मीद नहीं थी कि बगैर
उसकी मर्जी से आयोजित सम्मेलन सफल हो जाएगा। पंजाब विवाद ने जहां नेतृत्व के लिए नई
सिरदर्दी खड़ी कर दी है वहीं आप का पूरा गणित बिगाड़ कर रख दिया है। इसके चलते आने
वाले लोकसभा चुनाव में आप को नुकसान होने की गुंजाइश बढ़ गई है। विवाद के कारण पार्टी
की रणनीति प्रभावित हुई है और कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा है। आप नेतृत्व को यह आभास
बिल्कुल नहीं था कि पंजाब विवाद इतना तूल पकड़ेगा। पंजाब यूनिट में फूट से पैदा स्थिति
पर दिल्ली और पंजाब में नेता विचार-विमर्श में लगे हैं। और छह
अन्य विधायकों द्वारा खुद को अलग घोषित करने के बाद राज्य इकाई में फूट बढ़ने का खतरा
है। इसलिए दिल्ली में पंजाब के नेताओं से बातचीत के बाद एकता का रास्ता बनाने की कोशिश
हो रही है। खैहरा और उनके साथी विधायकों ने भटिंडा सम्मेलन कर खुद को अलग और पंजाब
इकाई को स्वायत घोषित कर दिया है। साथ ही आप के पंजाब के संगठनात्मक ढांचे को भी समाप्त
करने की घोषणा की है यानि यह विधायक अब दिल्ली में पार्टी मुखिया अरविन्द केजरीवाल
और अन्य नेताओं के निर्देशों का पालन नहीं करेंगे। वे विधायक अब अपनी मर्जी से काम
करेंगे। इससे पार्टी की राज्य इकाई में अलगाव और बढ़ सकता है। खैहरा और अन्य ने अभी
पार्टी नहीं छोड़ी है। ऐसा दलबदल कानून से बचने के लिए किया गया लगता है। आप नेतृत्व
के लिए राज्य खास महत्व रखता है इसलिए वह पंजाब इकाई में हुए विद्रोह पर चिंतित है।
वह फिलहाल न तो विवाद सुलझा पा रहा है और न ही विद्रोह करने वाले विधायकों व नेताओं
के खिलाफ कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पा रहा है। लगता है कि खैहरा गुट पार्टी लीडरशिप
को खुद को निकालने के लिए मजबूर कर रहा है। दिल्ली में आप नेतृत्व के लिए राहत की बात
यह है कि 13 विधायक फिलहाल खैहरा के साथ नहीं गए हैं। पार्टी
नेतृत्व हालात को संभालने की कोशिश में लगा है। कोशिश है कि पंजाब का असर अन्य राज्यों
में न पड़े और आगामी चुनावों के मद्देनजर गलत संदेश न जाए।
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