Saturday 18 August 2018

देश ने एक युगपुरुष खोया, हमने तो बहुत कुछ खो दिया

अटल बिहारी वाजपेयी का जाना सही मायनों में एक युग का अंत है। भारतीय राजनीति में अटल जी एक ऐसा शून्य छोड़ गए हैं जिसे भरना आसान नहीं होगा। भारतीय लोकतंत्र ने जो भी गिने-चुने सियासतदान पैदा किए हैं, अटल जी उनमें से शीर्ष स्थान पर रखे जा सकते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी यानि एक ऐसा नाम जिसने भारतीय राजनीति को अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से इस तरह प्रभावित किया जिसकी दूसरी मिसाल मिलनी मुश्किल है। एक साधारण परिवार में जन्मे इस राजनेता ने अपनी भाषण कला, मनमोहक मुस्कान, लेखन व विचारधारा, विशाल दिल का जो परिचय दिया वह आज की राजनीति में दुर्लभ है। भाजपा के वह एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्हें अजात शत्रु कहा जा सकता है। अटल जी को जितना सम्मान अपनी पार्टी में प्राप्त था, उससे कहीं ज्यादा दूसरी पार्टियों के नेता उनका सम्मान करते थे। वह बहुत संतुलित, सधी हुई भाषा, रोचक शैली और तर्पपूर्ण ढंग से अपनी बातें रखते थे। अटल जी जब संसद में बोलते थे तो सभी राजनीतिक दलों के नेता उनके भाषणों को पूरी शांति से सुनते थे। पार्टी से परे जाकर सम्मान प्राप्त करने के इस दुर्लभ गुणों के कारण ही वह भाजपा को स्वीकार्य और सार्वजनिक स्वरूप दे सके। सही मायनों में वह पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद भारत के सबसे करिश्माई नेता और प्रधानमंत्री साबित हुए। सही मायनों में अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसी सरकार के नायक बने जिसने भारतीय राजनीति में समन्वय की राजनीति की शुरुआत की। वह एक अर्थ में एक ऐसी राष्ट्रीय सरकार थी, जिसमें विविध विचारों, क्षेत्रीय हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले तमाम लोग शामिल थे। दो दर्जन दलों के विचारों को एक मंत्र से साधना आसान नहीं था। किन्तु अटल जी की राष्ट्रीय दृष्टि, उनकी साधना और बेदाग व्यक्तित्व ने सारा कुछ संभव कर दिया। वह सही मायनों में भारतीयता और सौहार्द्र के उदाहरण बन गए। उनकी सरकार ने अस्थिरता के भंवर में फंसे देश को एक नई राजनीतिक राह दिखाई। यह रास्ता मिली-जुली सरकारों की सफलता की मिसाल बन गई। अटल बिहारी वाजपेयी सही मायनों में एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जो भारत को समझते थे, भारतीयता को समझते थे। राजनीति में उनकी खींची लकीर इतनी लंबी है जिसे पार कर पाना संभव नहीं दिखता। उन्होंने हमेशा राष्ट्रवाद को सर्वोपरि माना। यही वजह थी कि उनकी सरकार सुशासन के उदाहरण रचने वाली साबित हुई। जन समर्थक नीतियों के साथ महंगाई, आम आदमी के हितों को हमेशा ध्यान में रखकर नीतियां बनाईं। उन्होंने कहाöलोगों के सामने हमारी प्रथम प्रतिबद्धता एक ऐसी स्थायी, ईमानदार, पारदर्शी और कुशल सरकार देने की है, जो चहुंमुखी विकास करने में सक्षम हो। इसके लिए सरकार आवश्यक प्रशासनिक सुधारों के समयबद्ध कार्यक्रम शुरू करेगी, इनमें पुलिस और अन्य सिविल सेवाओं में किए जाने वाले सुधार शामिल हैं। राजग ने देश के सामने ऐसे सुशासन का आदर्श रखा जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय पुनर्निर्माण, संघीय समरसता, आर्थिक आधुनिकीकरण, सामाजिक न्याय, शुचिता जैसे सवाल शामिल थे। आम जनता से जुड़ी सुविधाओं का व्यापक संवर्द्धन, आईटी क्रांति, सूचना क्रांति इससे जुड़ी उपलब्धियां हैं। अटल जी से उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी कितना स्नेह करते थे इस उदाहरण से पता चलता है। जब राजीव गांधी की हत्या हुई तब अटल जी ने यह किस्सा बयान किया था। अटल जी ने बताया था कि डाक्टरों ने उन्हें सर्जरी की सलाह दी थी। उसके बाद से वह सो नहीं पा रहे थे। उनके मन में चल रही उथल-पुथल कि राजीव गांधी ने संयुक्त राष्ट्र जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में अटल जी का नाम शामिल कर उन्हें अमेरिका भेजा। राजीव का मकसद था कि अमेरिका में अटल जी का इलाज हो और हुआ भी। सारा खर्च राजीव सरकार ने उठाया। अटल जी ने राजीव की हत्या के बाद पहली बार यह किस्सा सुनाया और कहा कि राजीव गांधी महान थे। राजीव की महानता की सराहना करते रहे और कहते रहे कि राजीव की वजह से मैं आज जिन्दा हूं। अटल जी से जो मिला उन्हें कभी भूल नहीं सकता। वह भी एक बार सम्पर्प बना लें तो आखिर तक निभाते रहे। अटल जी का प्रताप-वीर अर्जुन, सांध्य वीर अर्जुन परिवार से हमेशा करीबी संबंध रहा। ऐसे कई पर्सनल उदाहरण हैं जिनमें से कुछ को मैं बताना जरूरी समझता हूं। अटल जी वीर अर्जुन के पूर्व संपादक रह चुके थे। उन्होंने वीर अर्जुन का संपादन 1950-1952 के बीच किया था। अटल जी वीर अर्जुन में उस वक्त एडिटर थे जब मेरे स्वर्गीय दादा महाशय कृष्ण जी इसे चलाया करते थे। अटल जी चूंकि आरएसएस के प्रचारक भी थे और उन्हीं दिनों जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर में प्रवेश के लिए परमिट सिस्टम का विरोध करने के लिए 1952 में श्रीनगर जा रहे थे और अटल जी भी उनके सहायक के रूप में श्रीनगर चले गए तो अटल जी ने न सिर्प वीर अर्जुन में काम करना बंद किया बल्कि पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में कदम रखा। जब वह प्रधानमंत्री थे तो मैं अपने स्वर्गीय पिता के. नरेन्द्र का जन्मदिन मनाने के लिए अटल जी से मिला और उन्हें अपने  निवास सुंदर नगर आने का निमंत्रण दिया। अटल जी फौरन तैयार हो गए और सुंदर नगर आए भी। जब वह प्रधानमंत्री थे तो उन्हें संयुक्त राष्ट्र में भाषण देना था और वह अपने साथ कुछ पत्रकारों को भी ले जा रहे थे तो उन्होंने 1998 में इस दल में मुझे भी शामिल किया। इसके चार साल बाद 2002 में वियतनाम और इंडोनेशिया (बाली) गए और उस यात्रा में भी मुझे शामिल किया। एक बार ऐसा भी हुआ जब मेरे स्वर्गीय पिताश्री के. नरेन्द्र ने अपना जन्मदिन चैम्सफोर्ड क्लब में अपने दोस्तों के साथ मनाने का फैसला किया। अटल जी तब प्रधानमंत्री नहीं थे। जब उन्हें पता चला तो वह गोल-गप्पे लेकर क्लब पहुंच गए। फिर कई बार अटल जी से मिलना हुआ। यह बातें अब यादें बनकर रह गई हैं। अटल जी के जाने से हमें तो बहुत बड़ी क्षति पहुंची है पर विधि के आगे क्या कर सकते हैं, सिवाय अपनी श्रद्धांजलि पेश करने के राजधर्म निर्वहन के साथ विरोध का आदर करने वाले राजनेता के रूप में वह याद रहेंगे।

                                                        -अनिल नरेन्द्र

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