Saturday, 4 August 2018

राष्ट्रपति ट्रंप और राष्ट्रपति रूहानी आमने-सामने

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर पिछले कुछ समय से अमेरिका और ईरान में टकराव हो रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कभी तो सख्ती की बात करते हैं और कभी नरमी की। दरअसल डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान के दौरान ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को बेतुका बताते हुए इसे रद्द करने का वादा किया था। राष्ट्रपति बनने के  बाद इसी साल मई के महीने में उन्होंने अपने देश को इस समझौते से अलग कर लिया था और ईरान पर प्रतिबंध थोप दिए थे। फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और चीन भी इस समझौते में शामिल रहे हैं। अमेरिका के मित्र राष्ट्रों ने ट्रंप को इस समझौते से अलग न होने के लिए दबाव भी डाला था, लेकिन ट्रंप ने किसी की नहीं सुनी। यह कटु सत्य है कि अमेरिका एक महाशक्ति है, लिहाजा छोटे देश उसके सामने प्रतिरोध कर नहीं पाते। ईरान को बर्बाद करने की धमकी देने के बाद एकाएक राष्ट्रपति ट्रंप के रुख में नरमी आ गई। डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी अनिश्चय भरी प्रकृति के अनुकूल आचरण करते हुए ईरान के प्रति अपना रुख नरम करने के ताजा संकेत दिए हैं। अब उन्होंने रातोंरात ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी से बिना शर्त के बातचीत करने की इच्छा जताई है। हालांकि व्हाइट हाउस ने यह भी संकेत दिया है कि भले ही राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने ईरानी समकक्ष से मिलने की सद्इच्छा जताई है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अमेरिका ईरान पर लगे प्रतिबंधों को शिथिल करेगा या दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और कारोबारी संबंध फिर से स्थापित होंगे। उधर ट्रंप द्वारा बिना शर्त मुलाकात के प्रस्ताव को ईरानी नेताओं व सैन्य कमांडरों ने ठुकरा दिया है। उन्होंने ट्रंप की कथनी और करनी में अंतर का आरोप लगाते हुए इस संभावित मुलाकात को सपना बताया और कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति का 2015 में हुआ परमाणु समझौता तोड़ना गैर-कानूनी फैसला रहा। ईरान के विदेश मंत्री जावेद शरीफ ने ट्वीट किया कि तेहरान से बातचीत खत्म करने के लिए अमेरिका खुद जिम्मेदार है। ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड (सेना) के प्रमुख ने भी इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा कि हम उत्तर कोरिया नहीं हैं जो ट्रंप के प्रस्ताव को स्वीकार कर लें। नए सिरे से वार्ता के लिए ईरान पर दबाव डालने वाले ट्रंप के इस कदम ने देश के कट्टरपंथियों और उदारवादियों को उलटा एकजुट कर दिया है। दरअसल ईरान को बर्बाद करने की धमकी देने के बाद राष्ट्रपति ट्रंप के रुख में आई नरमी भी तेहरान पर दबाव डालने की कूटनीति का हिस्सा लगती है। वास्तव में अमेरिका ईरान पर नए सिरे से परमाणु समझौता करने का दबाव बना रहा है। ईरान का स्टैंड साफ है कि पहले अमेरिका परमाणु समझौते को स्वीकार करे फिर बातचीत होगी। उम्मीद की जाती है कि गतिरोध जल्द टलेगा और दोनों देशों में समझौता होगा।

-अनिल नरेन्द्र

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