भारतीय बैंकिंग व्यवस्था पिछले कुछ समय से संकट में
है और उसे कड़ी परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ रहा है। वजह है बढ़ता एनपीए। यह बड़ी-बड़ी कंपनियों ने बैंकों से जो कर्ज
लिए हैं, वह लौटाने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। रिजर्व बैंक के
नए निर्देशों के अनुसार करीब 70 कंपनियों को अपना कर्ज जो करीब
3.5 से 4 लाख करोड़ रुपया है उसे चुकाने के लिए
180 दिनों की जो मोहलत दी गई थी, वह 27
अगस्त सोमवार को खत्म हो गई है। कुछ कंपनियों ने अपनी कंपनियों को बेचने
के लिए प्रयास भी किए, लेकिन जिन कंपनियों की यहां बात चल रही
है, वह इस अवधि में ऐसा कुछ नहीं कर सकीं, जिससे लगे कि वह कर्ज चुकाने की स्थिति में आ गई हैं। रिजर्व बैंक ने फंसे
कर्ज यानि एनपीए के जल्दी समाधान के लिए 12 फरवरी
2018 को नया सर्पुलर जारी किया था। इसमें बैंकों को 180 दिनों का समय दिया गया था। नया नियम एक मार्च से लागू हुआ और 180 दिनों का समय 27 अगस्त 2018 को
पूरा हो गया है। इसके बाद बैंकों को इनके खिलाफ दिवालिया कार्रवाई शुरू करनी पड़ेगी।
रिजर्व बैंक ने पिछले साल दिवालिया कार्रवाई के लिए बैंकों को 40 कंपनियों की सूची भेजी थी। इन पर करीब चार लाख करोड़ का कर्ज बकाया था। दिवालिया
कार्रवाई शुरू होने से प्रोविजनिंग बढ़ने से बैंकों के मुनाफे पर भी खासा असर पड़ा
है। रिजर्व बैंक के नियम के मुताबिक इन खातों में सिक्योर्ड लोन के 50 प्रतिशत और अनसिक्योर्ड लोन के 100 प्रतिशत रकम बराबर
प्रोविजिंग जरूरी है। जिन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो सकती है उनमें अनिल अंबानी
समूह की रिलायंस कम्युनिकेशंस, रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग
(अब रिलायंस नेवल), प्रजालॉयड, बजाज, हिन्दुस्तान, मुंबई रेयान,
डीटीएल इंफ्रास्ट्रक्चर, टोलटा इंडिया,
श्रीराम ईपीसी, ऊषा मार्टिन, एस्सार शिपिंग और गीतांजलि जेम्स शामिल हैं। गीतांजलि जेम्स नीरव मोदी के मामा
मेहुल चोकसी की कंपनी है। इन कंपनियों पर कुल तीन लाख 80 हजार
करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है। समझा जा सकता है कि हमारी बैंकिंग व्यवस्था के लिए यह
कितना बड़ा संकट है। यह सभी देश की बड़ी कंपनियां हैं। इनमें कितने लोग काम करते हैं
और एक बार दिवालियेपन की प्रक्रिया में जाने के बाद इनका नियमित संचालन किस तरह प्रभावित
होगा, इन कर्मचारियों की रोटी-रोजी का क्या
होगा, इनसे जुड़े परिवारों का भविष्य क्या होगा, ऐसे तमाम जरूरी सवालों का जवाब देने की स्थिति में न तो सरकार कोई जवाब देने
की स्थिति में है और न ही यह डिफॉल्टर बैंक? इस असमंजस की स्थिति
में आगे क्या होगा? क्या यह उद्योगपति कंपनियां लिए कर्ज को लौटाने
के प्रति गंभीर भी हैं या फिर इन्होंने पैसा हड़प कर लिया है और इन्हें दिवालिया घोषित
होने से भी कोई फर्प नहीं पड़ेगा क्योंकि इन्होंने अपनी डिफॉल्टर कंपनियों के नाम व
अन्य दस्तावेज पहले से ही बदल लिए हैं।
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