Sunday 26 August 2018

भारतीय खिलाड़ियों ने इतिहास रच दिया है

भारतीय खेल के लिए गत बुधवार का दिन इतिहास रचने वाला रहा। एक साथ तीन खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन से खेल की दुनिया में अपना वर्चस्व जमाया। राही सरनोबत एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला निशानेबाज रहीं। इंडोनेशिया में चल रहे 18वें एशियन गेम्स में राही ने 25 मीटर एयर पिस्टल में देश के लिए स्वर्ण जीता। वहीं पुरुष हॉकी में भारतीय टीम ने हांगकांग की कमजोर टीम को 26-0 से हराकर भारतीय हॉकी के इतिहास में सबसे बड़ी जीत दर्ज की। इसके अलावा इंग्लैंड में टीम इंडिया ने 0-2 से पिछड़ने के बाद तीसरे टेस्ट में शानदार वापसी करते हुए सालों बाद इंग्लैंड की ही टीम को उनके घर में हराया। रनों के हिसाब से यह टीम इंडिया की दूसरी बड़ी जीत थी। इंडोनेशिया में चल रहे 18वें एशियन गेम्स में सुशील कुमार जैसे दिग्गज पहलवान के पहले दौर में ही बाहर होने के बाद पूरे देश को जहां मायूसी मिली, वहीं बजरंग पुनियाविनेश फोगाट और सौरभ चौधरी ने सोने के तमगे जीतकर भारतीय दल के साथी खिलाड़ियों को भी बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया है। मेरठ के 16 साल के सौरभ चौधरी ने निशानेबाजी में कई उम्रदराज दिग्गजों को पछाड़ते हुए स्वर्ण पदक जीतकर सबसे कम उम्र के भारतवासी बन गए। एक किसान के बेटे सौरभ ने अपने पहले ही बड़े मुकाबले में यह कमाल किया है, जिसमें उन्होंने 2010 के विश्व चैंपियन तोमोयुकी मत्सुदा को पराजित किया। हरियाणा की 23 वर्ष की विनेश फोगाट दो एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीत चुकी है, राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान हैं और सोमवार को जापानी पहलवान को पटखनी देकर वह एशियाड में भी कुश्ती में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं। इन युवा खिलाड़ियों का प्रदर्शन खासतौर से सौरभ और 15 वर्षीय 10वीं के छात्र शार्दुल का प्रदर्शन यह दिखाता है कि यदि अवसर मिले, पूरी सुविधाएं मिलें, सही ट्रेनिंग मिले तो छोटी उम्र में ही हमारे खिलाड़ी न केवल विश्व स्तरीय प्रदर्शन कर सकते हैं, बल्कि देश के लिए पदक भी जीत सकते हैं। वास्तव में अब वक्त आ गया है जब ऐसी खेल नीति बनाई जाएजिसमें कम उम्र में ही बच्चों को अपनी पसंदीदा खेल प्रतिभा को तराशने के भरपूर अवसर मिल सकें। अभी एशियाड चल रहा है। भारत और कई मैडल जीतेगा। हां कबड्डी जैसे खेल में भारत का हारना चौंकाने वाला जरूर रहा। कहां तो निश्चित रूप से गोल्ड मैडल की उम्मीद लगाए बैठे थे और कहां कांस्य पदक तक लेने के लाले पड़ गए। देखना अब यह है कि क्या भारतीय दल 2010 के एशियाड के 65 पदक जीतने के अपने रिकार्ड को तोड़ पाएगा या नहीं? तमाम पदक जीतने वालों को हमारी बधाई और न जीतने वालों को यही संदेश होगा, मेहनत करते रहो, सफलता जरूर मिलेगी।

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