Saturday, 25 August 2018

एक तीर से कई शिकार करने का प्रयास

कल्याण सिंह, केशरीनाथ त्रिपाठी और सतपाल मलिक के बाद उत्तर प्रदेश से भाजपा के दो अन्य नेताओं लालजी टंडन तथा बेबी रानी मौर्य को राज्यपाल बनाकर केंद्र में भाजपा सरकार ने राष्ट्रीय राजनीति में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक महत्व को ही स्वीकार किया है। इन नियुक्तियों से लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश की चुनौतियों से निपटने की रणनीति हमें तो नजर आ रही है। केंद्र ने मौर्य को उत्तराखंड और टंडन को बिहार का राज्यपाल नियुक्त करते हुए बिहार के राज्यपाल को जम्मू-कश्मीर भेजकर अहम संकेत दिए हैं। जम्मू-कश्मीर में सतपाल मलिक को भेजकर भाजपा ने पहली बार वहां पूरी तरह से राजनीतिक व्यक्ति को राज्यपाल बनाया है। सतपाल मलिक के रूप में जम्मू-कश्मीर को 51 साल बाद ऐसा राज्यपाल मिला है जो सैन्य अथवा प्रशासनिक पृष्ठभूमि का नहीं है। मौजूदा सन्दर्भों में देखें तो इसे आने वाले दौर में महत्वपूर्ण बदलावों का संकेत माना जा सकता है। 1965-67 तक के डॉ. कर्ण सिंह के कार्यकाल के बाद यह पहला मौका है जब किसी राजनेता को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल का पद सौंपा गया है। बेशक एक नौकरशाह पूरी स्थिति को कानून-व्यवस्था के आइने से ज्यादा देखता है और इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि यह एक महत्वपूर्ण पहलू है, पर उसके साथ राजनीतिक दृष्टिकोण से भी कदम उठाने की जरूरत महसूस हो रही है। इस समय जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है। इस मायने में जम्मू-कश्मीर की पूरी स्थिति का दारोमदार केंद्र सरकार पर आ जाता है और भाजपा नेतृत्व को उम्मीद है कि मलिक उसके प्रतिनिधि के रूप में केंद्र की नीतियों का क्रियान्वयन करेंगे। जम्मू-कश्मीर में पिछले करीब पांच दशक से नौकरशाहों व सैनिक पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्तियों को राज्यपाल नियुक्त करने की परंपरा को तोड़कर केंद्र ने एक साहसी फैसला किया है। किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि इस अशांत राज्य में एक राजनेता को राज्यपाल बनाया जाएगा। सतपाल मलिक के हक में दो बातें काम आईं। एक यह कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े नहीं हैं, लिहाजा बेहद संवेदनशील राज्य में वह वैचारिक आग्रहों से निष्पक्ष रहकर काम कर सकते हैं और दूसरी यह कि वह पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद के मित्र रहे हैं। मलिक विधायक, सांसद, मंत्री के साथ पार्टियों के अधिकारी भी रहे हैं। हालांकि वह खांटी भाजपायी नहीं हैं, जिनकी जम्मू-कश्मीर के बारे में पार्टी से अलग विचारधारा है। मलिक की नियुक्ति से इतना तो साफ लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशुद्ध भाजपायी दृष्टिकोण से जम्मू-कश्मीर में अभी कोई बड़ी पहल नहीं करने जा रहे हैं। मलिक के सामने राज्य में हिंसा पर काबू पाना, स्थानीय निकाय का चुनाव कराने और आगे चलकर विधानसभा चुनाव करवाने की भी जरूरत हो सकती है। वह इसमें कितने सफल होते हैं, कहना कठिन है। मोदी ने एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है।
-अनिल नरेन्द्र

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