Monday, 30 September 2019

ईरान और सऊदी में धर्म और क्षेत्र में प्रभुत्व का झगड़ा

ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने अमेरिकी सेना को सऊदी अरब में भेजने पर तल्ख अंदाज में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि विदेशी सेना खाड़ी की सुरक्षा के लिए खतरा है और इन्हें बाहर ही रहना चाहिए। रूहानी ने कहा कि विदेशी सेना अपने साथ हमेशा दुख और पीड़ा लाती है। विदेशी सेना हमारे क्षेत्र में सिर्प परेशानी पैदा करेगी। बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने परमाणु समझौता तोड़ने के बाद से अमेरिका और ईरान के रिश्तों में कड़वाहट आ गई है। 14 सितम्बर को सऊदी की दो पेट्रोलियम रिफायनरी में हुए ड्रोन हमले की जिम्मेदारी यमन के हूती विद्रोहियों ने ली थी, लेकिन सऊदी और अमेरिका इसके लिए ईरान को दोषी बता रहा है। फलस्वरूप ट्रंप ने सऊदी में अमेरिकी सैनिक टुकड़ी को तैनात करने का फैसला किया है। दरअसल सऊदी अरब और ईरान के बीच लंबे समय से टकराव चल रहा है। दोनों देश लंबे समय से एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन हाल के दिनों में दोनों के बीच तल्खी और बढ़ी है। दोनों शक्तिशाली पड़ोसियों के बीच यह संघर्ष लंबे समय से क्षेत्रीय प्रभुत्व को लेकर चल रहा है। दशकों पुराने इस संघर्ष के केंद्र में धर्म भी है। दोनों ही हालांकि इस्लामिक देश हैं लेकिन दोनों सुन्नी और शिया प्रभुत्व वाले हैं। ईरान शिया मुस्लिम बहुल है, वहीं सऊदी अरब सुन्नी बहुल लगभग पूरे मध्य-पूर्व में यह धार्मिक बंटवारा देखने को मिलता है। यहां के देशों में कुछ शिया बहुल हैं तो कुछ सुन्नी बहुल। समर्थन और सलाह के लिए कुछ देश ईरान के साथ हैं तो कुछ देश सऊदी अरब की ओर दिखते हैं। ऐतिहासिक रूप से सऊदी अरब में राजतंत्र रहा है। सुन्नी प्रभुत्व वाले सऊदी अरब इस्लाम का जन्मस्थल है और इस्लामिक दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण जगहों में शामिल हैं। लिहाजा यह खुद को मुस्लिम दुनिया के नेता के रूप में देखते हैं। हालांकि 1979 में इसे ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति से चुनौती मिली, जिससे इस क्षेत्र में एक नए तरह का राज्य बना। एक तरह की क्रांतिकारी धर्मतंत्र वाली शासन प्रणाली। उनके पास इस मॉडल को दुनियाभर में फैलाने का स्पष्ट लक्ष्य था। खासकर बीते 15 सालों में लगातार कुछ घटनाओं की वजह से सऊदी अरब और ईरान के बीच मतभेदों में बेहद तेजी आई है। 2003 में अमेरिका ने ईरान के प्रमुख विरोधी इराक पर आक्रमण कर सद्दाम हुसैन की सत्ता को तहस-नहस कर दिया, इससे यहां शिया बहुल सरकार के लिए रास्ता खुल गया और देश में ईरान का प्रभाव तब से तेजी से बढ़ा है। 2011 की स्थिति यह थी कि कई अरब देशों में विद्रोह के स्वर बढ़ रहे थे जिसकी वजह से पूरे इलाके में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई। ईरान और सऊदी अरब ने इस उथल-पुथल का फायदा उठाते हुए सीरिया, बहरीन और यमन में अपने प्रभाव का विस्तार करना शुरू किया जिससे आपसी संदेह और बढ़े। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता गर्मा रही है, क्योंकि ईरान कई मायनों में इस क्षेत्रीय संघर्ष को जीतता दिख रहा है। सऊदी अब ईरान के प्रभुत्व को रोकने के लिए उतावला है और सऊदी के शासक युवा और जोशीले प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान का सैन्य दुस्साहस इन क्षेत्रों में तनाव की स्थिति को और भी बदतर बना रहा है। उन्होंने पड़ोसी यमन में विद्रोही हूती आंदोलन के खिलाफ चार साल से युद्ध छेड़ रखा है ताकि वहां ईरान का प्रभाव न पनप सके। लेकिन पिछले चार साल बाद अब यह उनके लिए भी महंगा दांव साबित हो रहा है। मोटे तौर पर कहें तो मध्य पूर्व का वर्तमान रणनीतिक नक्शा शिया-सुन्नी से विभाजन को दर्शाता है। सुन्नी बहुल सऊदी अरब के समर्थन में यूएई, बहरीन, मिस्र और जॉर्डन जैसे खाड़ी देश खड़े हैं। वहीं ईरान के समर्थन में सीरिया के राष्ट्रपति बसर-अल-असद हैं जिन्हें सुन्नियों के खिलाफ हिजबुल्लाह सहित ईरानी शिया मिलिशिया समूहों का भरोसा है। कुल मिलाकर सऊदी अरब की दो जेल रिफायनरियों के हमले ने मध्य पूर्व में स्थिति बेहद तनावपूर्ण बना दी है। कई मायनों में इन दोनों प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच शीतयुद्ध की तरह है, जैसा कि अमेरिका और सोवियत संघ के बीच कई वर्षों तक गतिरोध बना रहा।

-अनिल नरेन्द्र

पीएमसी बैंक पर पाबंदियां, जमाकर्ता को पैसा डूबने का डर

मुंबई के पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक (पीएमसी) पर नियामकीय खामियों की वजह से रिजर्व बैंक द्वारा कुछ पाबंदियां लगाए जाने से जमाकर्ता घबराए हुए हैं, यह स्वाभाविक भी है। डूबे कर्ज यानि एनपीए को कम दिखाने और कई अन्य नियामक खामियों के मद्देनजर केंद्रीय बैंक ने पीएमसी पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं। पहले यह घोषणा की गई थी कि इन पाबंदियों के तहत बैंक के ग्राहकों के लिए 1000 रुपए तक की निकासी की सीमा तय की गई थी पर ग्राहकों के इसके खिलाफ सड़कों पर उतरने से रिजर्व बैंक ने पीएमसी ग्राहकों को राहत देते हुए कहा है कि अब छह महीने में 10,000 रुपए निकालने की अनुमति दी है। इस फैसले से बैंक के 60 प्रतिशत ग्राहकों को थोड़ी राहत जरूर होगी। साथ ही बैंक पर छह महीने तक ताजा लोन देने पर रोक लगा दी। उस फैसले ने ग्राहकों को चिन्ता में डाल दिया है। पीएमसी की शाखाओं पर पहुंचने वाले ग्राहकों में तिपहिया चालक से लेकर छोटे कारोबारी, पेंशनभोगी, गृहणियां और उम्रदराज लोग शामिल हैं। मुख्यालय के बाहर आई बुजुर्ग महिला ने कहाöमैंने 1000 रुपए निकाले हैं। अब बैंक वाले कह रहे हैं कि कुछ महीने के बाद ही दोबारा पैसा निकाल सकते हैं। मैं आज हूं कल क्या भरोसा? एक दुकानदार ने कहाöमेरा 60,000 रुपए का ईएमआई बैंक खाते से कट रहा है। अगर उन्होंने आगे इसकी अनुमति नहीं दी तो मेरा सिविल स्कोर खराब होगा और मैं डिफॉल्टर घोषित हो जाऊंगा। पैसा होते हुए भी डिफॉल्टर बन जाऊंगा। एक अन्य वृद्ध पेंशनधारी ने कहा कि यह कितना बड़ा जुल्म है कि खाते में पैसे होते हुए भी मैं अपने मनमुताबिक निकाल नहीं सकता। क्या यह दोबारा नोटबंदी नहीं है? जिस तरह से बैंकों के बाहर नोटबंदी के दौरान जनता घंटों-घंटों अपना पैसा निकालने के लिए लंबी कतारों में खड़ी रहती थी उसी तरह का लगभग दृश्य आज पीएमसी शाखाओं के बाहर देखने को मिल रहा है। एक खातेधारी ने कहा कि करे कोई, भरे कोई? जब बैंक में घोटाले हो रहे थे तो रिजर्व बैंक व बैंक अधिकारी, ऑडिटर इत्यादि सो रहे थे? उन्होंने इतने बड़े घोटाले का समय रहते इलाज क्यों नहीं किया? गौरतलब है कि बैंक में ग्राहकों के करीब 11 हजार करोड़ रुपए जमा हैं। पीएमसी के निलंबित प्रबंध निदेशक जॉय थॉमस ने दावा किया है कि ऋणदाता के पास अपनी देनदारी को निपटाने के लिए पर्याप्त नकदी है और जनता की पाई-पाई सुरक्षित है। थॉमस ने बुधवार शाम को यह आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि बैंक के सभी ऋण सुरक्षित हैं, सिर्प एक खाता एचडीआईएल मौजूदा संकट की एक मात्र वजह है। रिजर्व बैंक ने मंगलवार को पीएमसी के प्रबंधन को भंग कर दिया था। थॉमस ने कहा कि सभी कर्ज पूरी तरह सुरक्षित हैं और ग्राहकों को घबराने की जरूरत नहीं है। हमारे पास पर्याप्त नकदी है। बैंक के पास सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) और नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) के रूप में 4000 करोड़ रुपए की नकदी है। बैंक की देनदारी करीब 11,000 करोड़ रुपए है। रिजर्व बैंक द्वारा पीएमसी पर कार्रवाई की प्रमुख वजह बैंक द्वारा अपने डूबे कर्ज को कम करके दिखाने की है। वहीं भाजपा के पूर्व सांसद किरीट सोमैया और कई खाताधारियों ने बृहस्पतिवार को पीएमसी बैंक के शीर्ष अधिकारियों और रियल एस्टेट कंपनी एचडीआईएल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। पुलिस ने बताया कि शिकायत में जर्माकर्ताओं ने उनके 3000 करोड़ रुपए लूटने का आरोप लगाया है। सोमैया ने मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा में लिखित शिकायत दी है। हालांकि रिजर्व बैंक ने स्पष्ट किया है कि उसने पीएमसी का लाइसेंस रद्द नहीं किया है। इसके बावजूद लोगों का डर बढ़ रहा है। पहले से भी मंदी की मार झेल रही जनता इससे और अधिक परेशान हो रही है। बाजार में अफवाहें भी कम नहीं हैं। लोगों को दूसरे अन्य बैंकों पर पाबंदियां लगाने का डर सता रहा है। हालांकि रिजर्व बैंक ने स्पष्ट किया कि कोई भी कामर्शियल बैंक बंद नहीं हो रहा है।

Sunday, 29 September 2019

भारी ट्रैफिक जुर्माने को लेकर केंद्र और राज्यों में ठनी

मोटर वाहन संशोधन विधेयक 2019 की सिफारिशें 18 राज्यों के परिवहन मंत्रियों के समूह ने की थीं। लेकिन जब इस पर अमल करने की बात आई तो वही राज्य अब कानून लागू करने से पीछे हट रहे हैं। इसका कारण यातायात कानून का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने को लेकर लोगों में भारी आक्रोश है। वहीं सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि भारी जुर्माना राजस्व जुटाने के लिए नहीं बल्कि लोगों में कानून के प्रति डर व सम्मान पैदा करने के लिए आवश्यक है। विधेयक में भारी जुर्माना, जेल, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, थर्ड पार्टी इंश्योरेंस सहित तमाम प्रावधानों को शामिल करने की सिफारिश मंत्री समूह ने की थी। अगस्त 2016 में कैबिनेट ने इसे मंजूरी दी। लेकिन तब राज्यों ने इसका विरोध नहीं किया। इसके बाद विधेयक लोकसभा में पारित हो गया लेकिन अब जब यह कानून बन गया है इसके क्रियान्वयन पर उन्हें ऐतराज है। राज्य सरकारों और केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के बीच मतभेद का मामला अब महान्यायवादी (अटॉर्नी जनरल) केके वेणुगोपाल के कार्यालय तक पहुंच गया है, केंद्रीय कानून मंत्रालय के शीर्ष सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय विधान का प्रवर्तन टालने के लिए राज्य सरकार की शक्तियों पर अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल से कानूनी राय मांगी गई है। इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा जुर्माना घटाने के मुद्दे पर भी राय मांगी गई है। भाजपा शासित गुजरात सहित कई राज्यों ने भारी जुर्माने को लेकर मचे बवाल के बीच यातायात कानून उल्लंघन पर नए एमवी अधिनियम को टाल दिया गया है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए 18 संशोधन अपराधों के  लिए जुर्माने में कमी की घोषणा की। सूत्रों ने कहा कि रूपाणी के नए एमवी अधिनियम के क्रियान्वयन को टालने के फैसले को दिल्ली, उत्तराखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों ने भी अनुसरण किया है। इसके बाद नितिन गडकरी के नेतृत्व वाले केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने कानून मंत्रालय से यह पता लगाने के लिए कानूनी राय मांगी है कि क्या राज्य सरकारों के पास संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित केंद्रीय कानून को लागू करने की तिथि को टालने के पर्याप्त अधिकार हैं या नहीं? एमओआरटीएच के शीर्ष अधिकारी भी कानून मंत्रालय से जानना चाहते हैं कि क्या राज्य सरकार जुर्माना कम कर सकती है? सूत्रों ने कहा कि जुर्माने के जटिल मुद्दे को ध्यान में रखते हुए कानून मंत्रालय ने मामले पर कानूनी राय व स्पष्ट करने के लिए अटॉर्नी जनरल की राय मांगी है। गुजरात ने जुर्माना राशि में 25 से 90 प्रतिशत तक कमी कर दी, उत्तराखंड ने भी भारी कटौती की है। गडकरी ने स्पष्ट कहा कि हादसे रोकने के लिए कड़े कानून की जरूरत है।

-अनिल नरेन्द्र

सेक्स, वीडियो और वसूली

मध्यप्रदेश के हाई-प्रोफाइल हनी ट्रेप मामले से न केवल राज्य के बल्कि दिल्ली के सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। मामले में मुख्य साजिशकर्ता और गिरफ्तार हो चुकी श्वेता स्वपनल जैन के कई नेताओं के साथ मंच साझा करने की भी तस्वीरें वायरल हुई हैं। राज्य सरकार ने पूरा मामला एसआईटी को सौंप दिया है। लेकिन भाजपा नेताओं ने सीबीआई जांच की मांग की है। इस बीच एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि बॉलीवुड की कई बी-ग्रेड एक्ट्रेस भी इस हनी ट्रेप मामले में शामिल हैं। भोपाल के एक चर्चित क्लब में हनी ट्रेप गिरोह की कथित मुखिया श्वेता स्वपनल जैन जाती थीं। उसके साथ कुछ लड़कियां भी होती थीं। क्लब में आने वाले नेताओं-अफसरों से श्वेता दोस्ती कर लेती थी। फिर फोन पर बातें होती थीं, जिनमें बड़े लोगों को सेक्स ऑफर किया जाता है। उन्हें किसी बड़े होटल के कमरे में बुलाया जाता था। होटल के कमरे में पहले से ही एक कॉल गर्ल मौजूद रहती थी। रिपोर्ट के अनुसार गिरोह में 40 से ज्यादा कॉल गर्ल्स और एक्टेस मौजूद होती थीं। शुरुआत में तीन-चार बार होटल जाने के बाद नेताओं को श्वेता पर भरोसा हो जाता था। इनमें से कई श्वेता के साथ वॉट्सएप पर मैसेज-ऑडियो चैटिंग करते थे। सेक्स चैट के कई क्रीन शॉट पुलिस के पास मौजूद हैं। न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार या तो कॉल गर्ल्स कैमरा लेकर कमरों में जाती थीं या फिर वहां कैमरा फिट रहता था। पाए गए वीडियो में 92 हाई क्वालिटी के वीडियो हैं यानि उन्हें किसी अच्छे स्मार्ट फोन या फिर हैंडीकेम से शूट किया गया है। पुलिस द्वारा जब्त किए लैपटॉप, मोबाइल फोन में 4000 से ज्यादा फाइलें मिली हैं। इनमें कई नेता-अफसरों के आपत्तिजनक स्थिति में फोटो और वीडियो हैं। हनी ट्रेप मामले के जरिये दो तरह से फायदा उठाया गया। पहला, कुछ मंत्री और सेकेटरी श्वेता से इतने खुश हुए कि उसकी एनजीओ को करोड़ों के सरकारी कांट्रैक्ट देने लगे। यह बात खुद श्वेता ने पुलिस को बताई है। उसने यह भी कहा कि एमपी के एक पूर्व सीएम ने उसे भोपाल में बंगला भी गिफ्ट किया है। रिपोर्ट के मुताबिक कुछ खास लोगों को मुंबई और दिल्ली में भेजकर मॉडल्स और बॉलीवुड एक्ट्रेस भी उपलब्ध कराई गईं। फायदा पाने का दूसरा जरिया था, ब्लैकमेल करना यानि जब कोई नेता बड़ी रकम देने या अपने विभाग का सरकारी ठेका दिलवाने से मना करता था तो उसे फोटो-वीडियो दिखाकर ब्लैकमेल किया जाता था। एक ऐसे ही मामले की शिकायत पर यह केस खुला। नौकरशाही से लेकर राजनीतिक गलियारों तक फैले इस कांड की तह तक पहुंचने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने विशेष जांच दल गठित कर जांच शुरू कर दी है। यह मामला उस समय सामने आया है जबकि मध्यप्रदेश सरकार के अंदरखाते ही कई विरोधी स्वर उठ रहे हैं और भाजपा वहां की कांग्रेस सरकार को गिराने का प्रयास कर रही है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस नेतृत्व इसके पीछे का असली सच जानना चाहती है। यह बहुत बड़ा अंतर्राज्यीय घोटाला है जिसकी परतें जल्द खुलेंगी।

Friday, 27 September 2019

पाक ने अब जीपीएस युक्त ड्रोन से उतारे हथियार

कई बार मुंह की खाने के बाद पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान एक बार फिर अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा। भारत विशेषकर पंजाब में आतंकी साजिशों को कामयाब करने के लिए हर संभव नए-नए प्रयास करता रहता है। उसी के चलते सरहद पार से आतंकियों के आकाओं ने पिछले दिनों ड्रोन का इस्तेमाल करते हुए एक ब़ड़ी खेप पंजाब के तरनतारन में भेजी, जिसे पंजाब पुलिस की खुफिया शाखा स्टेट स्पेशल ऑपरेशन सैल ने सीमावर्ती गांव झव्वाल से ड्रोन के साथ बरामद किया है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक हथियारों के साथ पकड़े गए खालिस्तानी जिन्दा फोर्स के आतंकियों ने अपने आकाओं के इशारे पर ड्रोन को जलाकर खत्म करने की कोशिश की थी। अधिकारी ने बताया कि हथियार और गोला-बारूद गिराने के लिए सात से आठ बार सीमा पार से ड्रोन भेजे गए। यह पहली बार है कि जब हथियार और गोला-बारूद भेजने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है। एक ड्रोन 10 किलोग्राम तक वजन उठा सकता है। पांच एके-47 राइफल, 19 मैगजीन और 472 गोलियां, चार चीन निर्मित .30 बोर पिस्तौल, आठ मैगजीन, 72 गोलियां, नौ हथगोले, पांच सैटेलाइट फोन और उनके सहायक उपकरण, दो मोबाइल फोन, दो वायरलैस सेट और 10 लाख रुपए की नकली मुद्रा जब्त की गई थी। पंजाब पुलिस के खुलासे के दो दिन बाद मंगलवार को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा वापस लिए जाने के बाद यह पाकिस्तान के नापाक मंसूबों का नया और भयावह आयाम है। सेना की मुस्तैदी के कारण सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ कराने के लिए भी अब ड्रोन के जरिये आतंक फैलाने का प्रयास कर रहा है। सेना का कहना है कि हमारे पास इन्हें (ड्रोन) को मार गिराने की क्षमता है। सरकार भी एंटी ड्रोन-सिस्टम पर काम कर रही है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक हथियारों के साथ पकड़े गए खालिस्तान जिन्दा फोर्स के आतंकियों ने अपने आकाओं के इशारे पर ड्रोन को जलाकर खत्म करने की कोशिश की थी परन्तु पूरा न जल पाने के कारण इसे एक गोदाम में छिपाकर रखा था। फिलहाल फोरेंसिक टीम पाकिस्तान से भेजे गए ड्रोन में लगे उपकरणों की जांच कर रही है कि आखिर यह कंटीले तार के पास लगे भारतीय राडार की पकड़ में क्यों नहीं आए? दबोचे गए पांचों आतंकियों से सुरक्षा एजेंसियां यह भी उगलवाने में लगी हुई हैं कि सीमावर्ती किन इलाकों से हथियार कितनी बार ड्रोन के माध्यम से आए हैं? चिन्ता इस बात की भी है कि सरहद पार बैठी आईएसआई ने जहां पांच के करीब एके-47 राइफलें और गोली-सिक्का भेजा था वहीं ड्रोन की सहायता से जाली करेंसी भी भेजी गई है। अमृतसर के डीजीपी दिनकर गुप्ता ने कहा कि अभी तक की गई जांच से स्पष्ट है कि हथियारों की तस्करी करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल हुआ है किन्तु ड्रोन से हथियार पंजाब की सरहद से आए हैं, वह पंजाब पुलिस, बीएसएफ और एयरफोर्स के लिए सबसे बड़ा चैलेंज है। यह गंभीर मामला है।

-अनिल नरेन्द्र

पवार पर केस ः क्या विपक्षी नेताओं को खास टारगेट किया जा रहा है?

प्रवर्तन निदेशालय ने 25 हजार करोड़ रुपए के महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार, उनके भतीजे और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार व अन्य के खिलाफ धनशोधन का आपराधिक मामला दर्ज किया है। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी। यह घोटाला करीब 25 हजार करोड़ रुपए का  बताया जा रहा है। यह मामला मुंबई पुलिस की एफआईआर के आधार पर दर्ज किया है जिसमें बैंक के पूर्व अध्यक्ष, महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार और सहकारी बैंक के 70 पूर्व अधिकारियों के नाम हैं। उन्होंने कहा कि पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी के आधार पर ईडी की एफआईआर में शरद पवार का नाम दर्ज किया गया है। माना जा रहा है कि आरोपियों को एजेंसी द्वारा जल्द ही उनके बयान दर्ज करने के लिए समन किया जाएगा। ईडी मामले में आरोपियों में दिलीप राव देशमुख, इशरलाल जैन, जयंत पाटिल, शिवाजी राव, आनंद राव अडसुल, रावेन्द्र शिगाने और मदन पाटिल शामिल हैं। राज्य की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) द्वारा दर्ज शिकायत के आधार पर इस साल अगस्त में मुंबई पुलिस ने एक प्राथमिकी दर्ज की थी। मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी के आधार पर ईडी ने धनशोधन के आरोप में आपराधिक आरोप लगाए हैं। बंबई उच्च न्यायालय ने मुंबई पुलिस को सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। न्यायालय का मानना था कि इन सभी आरोपियों को बैंक घोटाले के बारे में पूरी जानकारी थी। बता दें कि महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी सरकार के समय महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक घोटाला चर्चा में आया था। आरोप था कि बैंक के संचालन मंडल ने नियमों का उल्लंघन करते हुए कथित तौर पर चीनी मिलों को कम दरों पर कर्ज दिया था। यह मामला ऐसे समय दर्ज किया गया है जब महाराष्ट्र में 21 अक्तूबर को विधानसभा चुनाव होने हैं। मनी लांड्रिंग के आरोप में दर्ज इस केस पर जबरदस्त सियासत होने वाली है। केस के लपेटे में एनसीपी के अलावा कांग्रेस और भाजपा के सहयोगी शिवसेना का भी एक नेता है। भाजपा इसे कानूनी मामला बता रही है। लेकिन विपक्ष इसे सियासती बदले की भावना का बड़ा मामला बताते हुए चुनाव प्रचार का फायदा उठाने जा रहे हैं। शरद पवार के अलावा उनके भतीजे अजीत पवार और शिवसेना के आनंद राव अडसुल के नाम भी आरोपियों में शामिल हैं। कांग्रेस और कुछ एक अन्य दलों के नेताओं के भी नाम हैं। शरद पवार को वसंत दादा पाटिल के बाद महाराष्ट्र का सबसे बड़ा नेता माना जा रहा है। खासकर मराठवाड़ा में उनका काफी सम्मान और प्रभाव है। कुछ जानकारों का मानना है कि केस में पवार और शिवसेना के एक नेता का भी नाम आने से भाजपा को नुकसान हो सकता है। विपक्ष का यह भी आरोप है कि क्या यह महज इत्तेफाक है कि विपक्षी नेताओं को चुन-चुनकर टारगेट किया जा रहा है।

Thursday, 26 September 2019

चिन्मयानंद केस ः पीड़ित छात्रा को भेजा जेल में

पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और भाजपा नेता स्वामी चिन्मयानंद पर रेप का आरोप लगाने वाली छात्रा को जबरन धन उगाही के मामले में उत्तर प्रदेश की एसआईटी ने गिरफ्तार कर लिया है। छात्रा को उसके घर से गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया। जहां उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है। बताया जा रहा है कि एसआईटी ने लड़की को चप्पल तक नहीं पहनने दी और उसे जबरन घसीटते हुए उसके कमरे से निकालकर गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले स्थानीय कोर्ट ने मंगलवार को छात्रा की अग्रिम जमानत की याचिका स्वीकार कर ली और सुनवाई के लिए 26 सितम्बर का दिन तय किया था। बता दें कि छात्रा पर अपने दोस्तों के साथ मिलकर चिन्मयानंद से पांच करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने का आरोप है। उधर अपने ही कॉलेज की छात्रा से दुष्कर्म के आरोप में जेल में बंद पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री चिन्मयानंद ने सोमवार तड़के करीब चार बजे सीने में दर्द की शिकायत की थी। इसकी जानकारी जेल अधीक्षक राकेश कुमार को दे दी गई। चिन्मयानंद को पहले जिला कारागार में चिकित्सकों को दिखाया गया। इसके बाद पुलिस कस्टडी में एसजीवीजीआई लखनऊ भेज दिया गया। अस्पताल के कॉर्डियोलॉजी विभाग के प्रोफसर पीके गोयल की टीम ने उनकी जांच की। शाम करीब चार बजे उनकी एंजियोग्रॉफी की गई और इसमें किसी तरह का कोई ब्लॉकेज नहीं मिला है। छात्रा को गिरफ्तार करने से पहले स्थानीय कोर्ट ने मंगलवार को छात्रा की अग्रिम जमानत की याचिका की सुनवाई के दौरान चिन्मयामंद के वकील ने अग्रिम जमानत वाली याचिका का विरोध किया था। लगभग 40 मिनट तक दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने छात्रा की अर्जी मंजूर कर ली। छात्रा के वकील अनूप त्रिवेदी ने सुनवाई की जानकारी देते हुए बताया कि कोर्ट ने अग्रिम जमानत की याचिका को मंजूर कर लिया है। अब दो दिन बाद मामले की सुनवाई होगी। छात्रा की गिरफ्तारी की खबरें भी झूठी हैं। अब तक इस संबंध में किसी भी एक्शन की जानकारी नहीं है। इससे पहले सोमवार को छात्रा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की पीठ के समक्ष अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी कि यदि पीड़िता कोई राहत चाहती है तो वह उचित पीठ के समक्ष नई याचिका दायर कर सकती हैं। अदालत ने कहा कि यह पीठ इस मामले में केवल जांच की निगरानी करने के लिए नामित की गई है और गिरफ्तारी के मामले में रोक लगाने का कोई आदेश पारित करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। बता दें कि एसआईटी की जांच में छात्रा और चिन्मयानंद को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। चूंकि मामला अदालत में चल रहा है इसलिए हम इस केस के बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर सकते। उम्मीद है कि जांच में यह पता चल जाएगा कि रेप हुआ? छात्रा को जबरन फंसाया गया या उसने पांच करोड़ मांगे?

-अनिल नरेन्द्र

जजों में ईमानदारी का उत्कृष्ट गुण होना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न्यायपालिका ईमानदारी की नींव पर बनी संस्था है। साथ ही न्यायालय ने कहाöयह आवश्यक है कि न्यायिक अधिकारियों में ईमानदारी का उत्कृष्ट गुण हो ताकि वे जनता की सेवा कर सकें। महाराष्ट्र के एक न्यायिक अधिकारी के प्रति नरमी बरतने से इंकार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी की। अधिकारी ने 2014 में सेवा से बर्खास्तगी को चुनौती दी थी। उन पर महिला वकील के मुवक्किलों के पक्ष में आदेश पारित करने के आरोप थे जिसके साथ उनके नजदीकी रिश्ते थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी न्यायाधीश के निजी और सार्वजनिक जीवन में बेदाग ईमानदारी झलकनी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों को हमेशा याद रखना चाहिए कि वे उच्च पद पर हैं और जनता की सेवा करते हैं। न्यायमूर्ति  दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति बोस की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ईमानदारी, आचरण और शुचिता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे और उनके प्रति नरमी नहीं बरती जा सकती है। इसने कहाöइसलिए अपील में कोई दम नहीं है और इसे खारिज किया जाता है। याचिकाकर्ता को मार्च 1985 में न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया था। फरवरी 2001 में उन्हें निलंबित कर दिया गया और जनवरी 2004 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय में  बर्खास्तगी को चुनौती दी लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसने उनकी याचिका पर सजा के सीमित प्रश्न तक ही नोटिस जारी किया। पीठ ने कहा कि इस मामले में अधिकारी ने मामलों पर महिला वकील के साथ नजदीकी संबंधों के कारण निर्णय दिए, न ही कानून के मुताबिक। यह भी एक अलग तरह की रिश्वत है। पीठ ने कहा कि रिश्वत विभिन्न तरह की हो सकती है, इसने कहा कि धन की रिश्वत, सत्ता की रिश्वत, वासना की रिश्वत आदि। पीठ ने कहा कि किसी न्यायाधीश में सबसे बड़ा गुण ईमानदारी का होता है। जब वह सेवा में हों तब सेवक होने के नाते न्यायिक अधिकारियों को हमेशा याद रखना चाहिए कि वे जनता की सेवा करने के लिए हैं। पीठ ने कहा कि न्यायपालिका में ईमानदारी की अध्यक्षता अन्य संस्थानों की तुलना में बहुत अधिक है। न्यायपालिका एक ऐसी संस्था है जिसकी नींव ईमानदारी पर आधारित है। इसलिए यह आवश्यक है कि न्यायिक अधिकारियों में ईमानदारी उत्कृष्ट गुण होना चाहिए। हम भारतीय सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले और नसीहत का स्वागत करते हैं। न्यायपालिका लोकतंत्र के चार स्तम्भों में से एक है और यहां किसी प्रकार की रिश्वत, प्रलोभन आदि की कई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। उम्मीद करते हैं कि इसका सख्ती से पालन होगा।

Wednesday, 25 September 2019

इमरान खान पहले अपने घर को संभालें

भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने वाले पाकिस्तान में अपने ही संविधान के एक अनुच्छेद पर बवाल मचा हुआ है। कराची को केन्द्र शासित पदेश बनाने की इमरान सरकार की मंशा पर विपक्ष विरोध कर रहा है। इमरान सरकार कराची में अनुच्छेद 149 (4) लागू करना चाह रही है। इसके लागू होने के बाद कराची केन्द्र शासित पदेश बन जाएगा। पिछले दिनों पाकिस्तान के कानून मंत्री ने कराची में अनुच्छेद 149 (4) को लागू करने का बयान दिया था। विपक्ष  ने कानून मंत्री के बयान को पाक के खिलाफ साजिश बताते हुए उनके इस्तीफे की मांग तक कर डाली है। कराची को लेकर केन्द्र सरकार और सिंध सरकार के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। पधानमंत्री इमरान खान ने कुपबंधन का शिकार कराची के लिए रणनीतिक समिति का गठन किया है। सिंध सरकार  इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप के रूप में देख रही है। घटनाकम उस वक्त नाटकीय हो गया जब केन्द्राrय विधि मंत्री ने कह दिया कि केन्द्र सरकार अनुच्छेद 149 (4) के तहत कराची के पशासन को अपने हाथों में ले सकती है। हालांकि मंत्री ने बाद में सफाई दी, लेकिन तब तक पीपीपी के मुखिया बिलावल भुट्टो जरदारी केन्द्र सरकार पर आरोप लगा चुके थे कि वह कराची पर कब्जा करना चाहती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कराची बेहाल है। कचरा पबंधन, सीवरेज, सार्वजनिक परिवहन, ट्रैफिक व्यवस्था बिखर चुकी है, कानून-व्यवस्था भी अत्यंत खराब है, अपराध बहुत बढ़ चुके हैं। अत कोई आश्चर्य नहीं कि दुनिया के रहने लायक शहरों की सूची में कराची फर्श पर है। केंद्रीय, पांतीय और स्थानीय तीनों ही स्तर की सरकार इस बुरे हाल के लिए जिम्मेदार है। परवेज मुशर्रफ के समय में खस्तहाल कराची में जरूर कुछ विकास हुआ था। विशेष रूप से स्थिति तब और बिगड़ी जब पीपीपी सरकार ने सिर्प स्थानीय सरकार कानून को 2013 में बदलकर स्थानीय निकाय की शक्तियों को छीन लिया था। अगर केन्द्र सरकार कराची का नियंत्रण अपने हाथों में लेती है तो यह एक खतरनाक मिसाल पेश होगी। बेशक कराची को मदद की जरूरत है। इसके लिए पांतीय सरकार की निगरानी में ही स्थानीय पशासन को मजबूत करना बेहतर विकल्प होगा। एक पेसवार्ता में बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा कि पीपीपी सिंध में सत्ता में है और राज्य में किसी भी साजिश को पार्टी स्वीकार नहीं करेगी। भुट्टो ने कहा इमरान सरकार कराची को इस्लामाबाद में मिलाना चाहती है। बेहतर हो कि इमरान खान भारत के अंदरुनी मसलों पर ध्यान न दें बल्कि अपने घर को पहले संभालें।

-अनिल नरेन्द्र

चुनाव दोनों भाजपा और विपक्ष के लिए चुनौतीपूर्ण है

लोकसभा में मोदी सरकार की शानदार जीत के बाद पहली बार राज्यों के चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया है। महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की लोकपियता की परख फिर से होगी तो विपक्ष की ताकत का अंदाजा भी लग जाएगा। हरियाणा और महाराष्ट्र चुनावों में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और पीएम मोदी भाजपा के पचार की धुरी होंगे। अनुच्छेद 370 पर चुनावी अभियान की शुरुआत पर भाजपा ने रणनीति स्पष्ट कर दी है। रणनीतिकारों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने, तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने व असम में एनआरसी जैसे फैसलों को मुख्य मुद्दा बनाने पर पीएम मोदी स्वत मुख्य चेहरा बन जाएंगे। उनकी अमेरिकी यात्रा की सफलता को भी बीजेपी उछालेगी। वहीं विपक्ष में कांग्रेस के लिए खास चुनौती होगी। कांग्रेस पवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि कांग्रेस हमलों की तरह इस बार भी पूरी मजबूती से ऐसे मुद्दे उठाएगी जिन मुद्दों से सरकार आपका हम सबका ध्यान हटाने की कोशिश करती आई है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस चुनाव पचार के दौरान महाराष्ट्र और हरियाणा के किसानों की स्थिति देश में आर्थिक सुस्ती व सरकार की गलत नीतियों के कारण नौकरियों के साथ-साथ महंगाई के सवाल जनता के बीच तो ले जाएगी। खेड़ा ने कहा हम इस सरकार की नीतियों के कारण पिछले तीन महीनों में 15 लाख लोगों की नौकरियां जाने की बात करेंगे। 20 लाख करोड़ रुपए जो स्टाक मार्पेट में पिछले कुछ महीनों में डूबा है उसकी चर्चा भी होगी। वहीं हरियाणा और महाराष्ट्र में विधान सभा चुनावों के साथ ही 18 राज्यों में उपचुनाव भी कराए जा रहे हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक  जिन विधानसभाओं में उपचुनाव हैं उनमें कर्नाटक में 15 सीटें, यूपी में 11, केरल और बिहार में 5-5, गुजरात, असम और पंजाब में 4-4, सिक्किम में 3 सीटें हैं। हिमाचल, तमिलनाडु और राजस्थान में 2-2 और अरुणाचल, तेलंगाना, मध्यपदेश, मेघालय, ओड़िसा और पुडुचेरी में 1-1 सीट शामिल है। कर्नाटक में वे सीटें हैं जहां एमएलए हाल में अयोग्य करार दिए गए। वहीं यूपी में ज्यादातर सीटें वही है जहां विधायक लोकसभा चुनाव जीते हैं। बिहार की समस्तीपुर सीट लोकसभा सांसद राम चंद्र पासवान के निधन से खाली हुई है। हालांकि हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पर निगाहें ज्यादा हैं, वहीं 18 राज्यों की 63 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के नतीजे भी वहां की सियासत की नई पटकथा लिखेंगे। मसलन कर्नाटक में विधानसभा उपचुनाव सीएम बीएस येदियुरप्पा के लिए करो या मरो का सवाल है तो यूपी और बिहार में सीएम योगी आदित्यनाथ और नीतीश कुमार की पतिष्ठा का सवाल। राजस्थान और मध्यपदेश के नतीजे बताएंगे कि वहां की सियासत में जारी शह-मात के खेल में भाजपा व कांग्रेस में किसका पलड़ा भारी है। केरल के नतीजे तय करेंगे वाम दलों की आखिरी उम्मीद भी बचेगी या नहीं? बिहार में ऐसे समय विधानसभा की 5 सीटों और लोकसभा की एक सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं। जब भाजपा-जदयू में तनातनी है। विधानसभा की 4 सीटों में जदयू और एक लोकसभा सीट पर लोजपा का कब्जा है। नीतीश सीटें बचाने में कामयाब रहे तो उनका कद नियमित रूप से बढ़ेगा। इसलिए विधानसभा के लिए जो चुनाव होने जा रहे हैं वह भाजपा के लिए तो महत्वपूर्ण हैं ही वहीं विपक्ष के लिए भी भारी चुनौती है।

Tuesday, 24 September 2019

नए मोटर वाहन अधिनियम का समर्थन भी, विरोध भी

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि संशोधित मोटर वाहन अधिनियम के तहत जुर्माने की भारी राशि के डर से वाहन चालक अब अनुशासित हो रहे हैं। लोग अब ट्रैफिक नियमों का सख्ती से पालन कर रहे हैं और उल्लंघन नहीं कर रहे हैं। दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के डाटा के अनुसार व नया मोटर अधिनियम लागू होने से अकेले दिल्ली में चालान करीब 79 प्रतिशत कम हो गए हैं। दिल्ली में सड़क हादसों में कमी और बुराड़ी-भलस्वा-मुपुंदपुर कॉरिडोर को मौत-मुक्त करने के लिए दिल्ली सरकार के साथ मिलकर सड़क सुरक्षा पर काम करने वाली सेव लाइफ फाउंडेशन ने संशोधित अधिनियम लागू होने के पहले 29 अगस्त और लागू होने के बाद 11 सितम्बर को अधिनियम की सख्ती से क्या बदलाव आए हैं, इसका सर्वे किया है। सर्वे में साफ हुआ है कि अभी सख्ती कम है तब कार में सीट बेल्ट लगाने वाले 14 प्रतिशत, हेलमेट लगाने वाले 11.3 प्रतिशत बढ़े हैं। ट्रिपल राइडिंग में 13.4 प्रतिशत की कमी आई है। सेव लाइफ फाउंडेशन के संस्थापक पीयूष तिवारी ने बताया कि संशोधित अधिनियम लागू होने के पहले 1190 और बाद में 1294 वाहनों के सैंपल सर्वे के रिजल्ट केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय, दिल्ली सरकार और महाराष्ट्र सरकार को सौंपे हैं। सरकार से सिफारिश की है कि नियम को सख्ती से लागू करे, इससे नियम पालन करने वाले और बढ़ेंगे। दूसरी ओर नए मोटर वाहन एक्ट की वजह से परेशानी में घिरे विभिन्न ऑटो-टैक्सी, बस-ट्रक ऑपरेटरों के संगठन यूनाइटेड फ्रंट ऑफ ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (यूएफटीए) ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर इस कानून में संशोधन नहीं किया गया तो हम हड़ताल करेंगे। इससे ऑटो-टैक्सी और बस-ट्रक एवं ओला-उबर जैसी टैक्सी सेवा एक दिन के लिए प्रभावित हुई। 19 सितम्बर की एक दिवसीय हड़ताल से दिल्ली की इनमें सफर करने वाली जनता को भारी परेशानी हुई। मजबूरन मेट्रो व दिल्ली परिवहन बसों का सहारा लेना पड़ा। मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस का कहना है कि जिस तरह से केंद्र सरकार की ओर से नए मोटर वाहन एक्ट के तहत बस-ट्रक चालकों का चालान काटा जा रहा है वह हतप्रभ करने वाला है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो हम अपना कारोबार बंद करने पर मजबूर होंगे। दिल्ली ऑटोरिक्शा संघ व प्रदेश टैक्सी यूनियन ने कहा कि नए कानून के अनुसार किसी वाहन से कोई दुर्घटना होती है और उसमें किसी की मौत हो जाती है तो बीमा कंपनी पांच लाख रुपए तक का ही मुआवजा देगी उसके बाद का पैसा वाहन मालिक को देना है। उन्होंने कहा कि ऐसे में अगर कोर्ट किसी को 50 लाख रुपए का मुआवजा देने को कहता है तो फिर एक टैक्सी मालिक कहां से देगा? भारतीय टूर ऑपरेटरों की एसोसिएशन का कहना है कि एक बस 45 लाख की आती है और वह अगर दो राज्यों से होकर जाती है तो दो साल में ही उतना पैसा रोड टैक्स, टोल टैक्स और पांच नम्बर समेत आरटीओ अधिकारियों में दे देते हैं। तरह-तरह के टैक्स लगाकर सरकार ऐसा साबित करना चाहती है कि हम चोर हैं। सड़कों की क्या हालत है यह किसी से छिपी नहीं। वाहन खरीदते वक्त सरकार रोड टैक्स इसीलिए तो लेती है। सरकार को नए कानून बनाने से पहले उसे यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी सोचना चाहिए। ट्रक ऑपरेटरों का कहना है कि आर्थिक मंदी के कारण माल ढुलाई में भारी कमी आई है और उस पर थोड़ी-सी ओवरलोडिंग पर लाखों का चालान हो जाता है। हम कहां से इतना चालान भरें? इसमें कोई शक नहीं कि नए कानून से ट्रैफिक वाउलेशनों में कमी आई है और लोग अनुशासित हो रहे हैं पर दूसरी ओर कुछ मामलों में वाहन चालकों को बिना वजह तंग भी किया जा रहा है, इसलिए जहां यह अधिनियम कुल मिलाकर सही है वहीं इसके क्रियान्वयन में कमी को दूर किया जाना चाहिए।

-अनिल नरेन्द्र

कट्टर इस्लामी आतंकवाद से बचाने को प्रतिबद्ध ः डोनाल्ड ट्रंप

हम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा आतंकवाद पर खुलकर बोलने की सराहना करते हैं। दुनिया के बहुत से नेता आतंकवाद का तो नाम लेते हैं पर खुलकर यह नहीं कहते कि आज दुनिया इस्लामिक आतंकवाद से प्रभावित है। हाउडी मोदी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर उसे कड़े शब्दों में चेतावनी दी। ट्रंप ने कहा कि हम कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद से निर्दोष लोगों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। ट्रंप ने अपने भाषण में सीमा सुरक्षा का भी जिक्र किया। ट्रंप ने कहा कि हमें दोनों देशों अमेरिका और भारत के लिए अपनी सीमाओं की सुरक्षा करना बेहद जरूरी है। इसके लिए हम दोनों मिलकर कदम उठाएंगे। जब श्री ट्रंप ने यह बातें कही तो ह्यूस्टन के हॉल में बैठे 50 हजार लोगों ने जमकर तालियां बजाईं। यह तालियां कई सैकेंडों तक बजती रहीं। ट्रंप के इस बयान को पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित जेहाद व सीमा पर घुसपैठ कराने की कोशिशों के जवाब के दौर पर देखा जा रहा है। ट्रंप ने कहा कि सुरक्षा के लिहाज से दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं। हम दोनों देश कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद से एकजुट होकर लड़ेंगे। अमेरिका और भारत यह बात जानते हैं कि अपने लोगों को सुरक्षित रखने के लिए अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखना बहुत जरूरी है। हम सुरक्षा के खतरे को देश में नहीं आने देंगे। अवैध प्रवासियों को रोकने की दिशा में भी काम किया जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सही मायनों में एक राजनीतिज्ञ हैं। वह मौके का फायदा कैसे उठाना है जानते हैं। इसीलिए ह्यूस्टन में हाउडी मोदी कार्यक्रम में ट्रंप के शामिल होने के कई मायने निकाले जा रहे हैं। लेकिन खुद ट्रंप के नजरिये से सबसे अहम बात उनका अमेरिका के भारतीय समुदाय के दम पर वोटरों में अपनी पैठ बनाना है। संभवत इसीलिए किसी गैर-अमेरिकी शासनाध्यक्ष के लिए हो रही इतनी विशाल रैली में पहली बार कोई अमेरिकी राष्ट्रपति शिरकत कर रहा है। दरअसल रिपब्लिकन सरकार के मुखिया ट्रंप के लिए ह्यूस्टन अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिहाज से एक कठिन लक्ष्य रहा है। रिपब्लिकन के गढ़ माने जाने वाले टेक्सास राज्य के शहर ह्यूस्टन को विपक्षी डेमोकेट पार्ट का गढ़ माना जाता है। पियू रिसर्च सेंटर के एक विश्लेषण के अनुसार टेक्सास की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले ह्यूस्टन और पास के डलास में तीन लाख से अधिक भारतीय अमेरिकी रहते हैं। जबकि पूरे अमेरिका में 40 लाख भारतीय अमेरिका में बसे हुए हैं। वहीं एनआरजी स्टेडियम में मौजूद 50 हजार से अधिक भारतीय अमेरिकी नागरिक प्रधानमंत्री मोदी के जबरदस्त समर्थक हैं। इन्हें प्रभावित करके ट्रंप कठोर आब्रजन कानून से खराब हुई अपनी छवि भी सुधारना चाहते हैं। हम राष्ट्रपति ट्रंप के इस्लामिक कट्टरपंथी आतंक के खिलाफ बयान का स्वागत करते हैं।

Monday, 23 September 2019

प्लास्टिक नहीं की अपील अच्छी है पर विकल्प कहां हैं?

देश में ही नहीं विश्व मंचों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार देश को दो अक्तूबर से प्लास्टिक-शून्य करने की प्रतिबद्धता जताई और फिर उसे मथुरा के अपने एक सितम्बर के भाषण में दोहराया। वे ऐसे नेता हैं जिनकी बात देश सुनता ही नहीं, बल्कि काफी हद तक मानता भी है। लिहाजा समाज की भूमिका में परिवर्तन लाने के लिए सरकार की अच्छी अपील कारगर भी होती है। स्वच्छ भारत का ज्वलंत उदाहरण हैं। दरअसल प्लास्टिक का इस्तेमाल समाज की आदत भी बन गया है और कुछ हद तक मजबूरी भी है। जब यह लाया गया था तब (शायद आज भी) वह सबसे बेहतरीन विकल्प था। किन्तु आज जब उसकी हानि का पता चल गया है तो इसमें परिवर्तन का समय है। पर कई मायनों में इसका विकल्प अब तक सही से पेश नहीं किया जा सकता। दुकानदार अपना सामान इसी में ग्राहकों को देते आ रहे हैं। कम कीमत की लागत आने के कारण छोटे-छोटे दुकानदार इसे इसलिए इस्तेमाल करते हैं क्योंकि यह सबसा सस्ता साधन है। सरकार के अधिकारी भी यह नहीं बता पा रहे हैं कि सरकारी उपक्रम या उनके परोक्ष निर्देश पर चलने वाली संस्थाएं, कैसे और किस समतुल्य मैटेरियल और सुविधा से फाड़ो और फेंको दूध के प्लास्टिक पैकेट अगले ही हफ्ते में बदलेंगे और पानी की बोतलों का क्या विकल्प तैयार किया गया है? क्या राज्यों में मौजूदा सरकारी कोऑपरेटिव दुग्ध संस्थाएं वैकल्पिक पैकेजिंग व्यवस्था तैयार कर चुकी हैं? शायद यही कारण है कि खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने मंगलवार को कहा कि एक बार इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक का विकल्प मिलने तक पानी की बोतलें बंद नहीं होंगी। उन्होंने माना कि अभी पानी की बोतल का जो विकल्प बताया जा रहा है, वह महंगा है। उन्होंने कहा कि एक दम बोतल बंद पानी पर रोक नहीं लगाई जा सकती। क्योंकि इससे बड़ी तादाद में लोगों का रोजगार जुड़ा है। वहीं पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने एकल प्रयोग वाले (Eिसगल यूज) प्लास्टिक का प्रयोग बंद करने के बारे में स्थिति को स्पष्ट करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि इसका प्रयोग प्रतिबंधित करने जैसी कोई बात नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी दो अक्तूबर को इस श्रेणी के प्लास्टिक का प्रयोग लोगों की स्वप्रेरणा से बंद करने के लिए देशव्यापी जनांदोलन की शुरुआत करेंगे। रामविलास पासवान की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में प्लास्टिक उद्योग के लोगों ने कहा कि कुल उद्योग साढ़े सात लाख करोड़ रुपए का है और करोड़ों लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इससे जुड़े हैं। बेशक प्लास्टिक पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है, लेकिन क्या पॉलिथीन  का सस्ता, सुंदर और टिकाऊ विकल्प मिल गया है और उसका उत्पादन शुरू हो गया है?

-अनिल नरेन्द्र

अयोध्या किसकी? फैसला दीपावली के बाद

130 साल से भी अधिक पुराने अयोध्या विवाद में नवम्बर इसी साल तक फैसला आने की अंतत संभावना है। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पुष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले की सुनवाई पूरी करने के लिए गत बुधवार को 18 अक्तूबर इसी वर्ष तक की सीमा निर्धारित कर दी है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवम्बर को सेवानिवृत हो रहे हैं, उससे पहले फैसला आने की उम्मीद है। जजों ने कहाöहमें मिलकर 18 अक्तूबर तक सुनवाई पूरी करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि हमें भी लिखने के लिए चार सप्ताह का वक्त मिल जाए। अगर जरूरी हुआ, शनिवार को भी सुनवाई के लिए तैयार हैं। विवाद के तीन पक्ष हैंöशीर्ष अदालत में इस समय अयोध्या में 2.77 एकड़ जमीन विवादित भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के सितम्बर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही हैं। मध्यस्थता के माध्यम से विवाद का समाधान खोजने के प्रयास विफल होने के बाद संविधान पीठ छह अगस्त से प्रतिदिन मामले की सुनवाई कर रही है। यह अच्छी बात है कि अदालत अब इस समस्या को ज्यादा टालने के हक में नहीं दिखती। देश भी यही चाहता है कि बस बहुत हो गया। सभी पक्ष हमें लगता है कि अब फैसला चाहते हैं क्योंकि जनता आजिज आ चुकी है। हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि इसके साथ ही मध्यस्थता की कोशिशें भी जारी रह सकती हैं, लेकिन इसकी वजह से इस मामले में बहस हो रही है वह रोकी नहीं जानी चाहिए। इस गंभीरता को सुप्रीम कोर्ट भी बहुत अच्छी तरह समझता है कि अयोध्या का राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामला देश के वैधानिक इतिहास का शायद सबसे महत्वपूर्ण मामला है। इससे देश के करोड़ों लोगों की संवेदना जुड़ी है, लेकिन जिस तरह से यह मामला पिछले कई दशकों से न सिर्प लंबित है, बल्कि उसे लेकर तरह-तरह से राजनीतिक हित भी साधे जा रहे हैं, उसको देखते हुए मामले को अंतिम मुकाम तक पहुंचाना भी अब जरूरी हो गया है। इस प्रकरण में हिन्दू-मुस्लिम पक्षकारों की दलीलें पूरी करने की समयसीमा निर्धारित किया जाना काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि अयोध्या विवाद की सुनवाई कर रहे पांच सदस्यीय संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवम्बर को सेवानिवृत हो रहे हैं। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई खत्म करने की जो तारीख दी है, उसके हिसाब से देखें तो इस मामले में फैसला अक्तूबर के अंत तक या नवम्बर के पूर्वाद्ध में कभी भी आ सकता है। सबसे जरूरी यह है कि जो फैसला आए, सभी पक्षों को उसे स्वीकार करने के लिए तैयार रहना होगा।

Friday, 20 September 2019

आठ शहीद जवानों के परिवारों को एक-एक करोड़

बहादुरी से अपनी सेवा के दौरान शहीद हुए दिल्ली पुलिस के आठ जवानों के परिजनों को दिल्ली सरकार ने एक-एक करोड़ रुपए की सम्मान राशि देने की घोषणा की हम उसकी सराहना करते हैं। बेशक सरकार इन शहीदों के परिवारों को कई प्रकार से मदद करती है पर एक-एक करोड़ रुपए काफी बड़ी राशि है और प्रभावित परिवारों को इससे काफी मदद मिलेगी। ये फैसला दिल्ली सचिवालय में मंगलवार को उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की अध्यक्षा में हुई मंत्रियों की बैठक में किया गया। इस बैठक में शहरी विकास मंत्री सत्येन्द्र जैन और राजस्व मंत्री कैलाश गहलोत मौजूद थे। जिन आठ पुलिस कर्मियों के परिवारों को एक करोड़ रुपए की सम्मान राशि देने की मंजूरी दी गई है उनमें एएसआई विजय सिंह, एएसआई जितेन्द्र, एएसआई महावीर सिंह, हैड कांस्टेबल गुलजारी लाल, हैड कांस्टेबल राजपाल सिंह कसाना, एसआई खजान सिंह, एएसआई (भूतपूर्व) धर्मवीर सिंह और कांस्टेबल अमर पाल का परिवार शामिल है। उपमुख्यमंत्री सिसोदिया ने बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिया कि इन शोक संतृप्त परिवारों को तुरन्त एक करोड़ की सहायता दी जाए। देश की सेवा करते हुए प्राण न्यौछावर करने वालों के बलिदान का कोई मोल नहीं होता। यह बात मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कही। उन्होंने ट्वीट में लिखा कि दिल्ली सरकार हर उस शहीद जवान के परिवार को एक करोड़ की सम्मान राशि देती है, जो देश की सेवा में खुद को समर्पित कर देता है। बलिदान का कोई मोल नहीं, लेकिन सरकार उनके परिवार की जिम्मेदारी तो ले सकती है। शहीद पुलिस जवानों की बहादुरी एक मिसाल है जब अपनी जान की परवाह न करते हुए अपनी ड्यूटी को हर कीमत पर निभाया। कोई मोटर साइकिल सवार बदमाशों को रोकने पर गोली के शिकार हुए तो कोई यातायात नियम तोड़ रहे टैम्पो चालक को रोकने के प्रयास में गाड़ी के नीचे ही ला दिए गए। एएसआई ने शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों की जांच करने के लिए कार चालक को रोका लेकिन कार चालक ने बैरिकेड तोड़ते हुए एएसआई को टक्कर मार दी। चोट इतनी गंभीर थी कि उनकी जान चली गई। हर शहीद की दर्दनाक कहानी है। धनराशि का अपना महत्व होता है पर उनकी बहादुरी का सम्मान अलग बात है। इस कदम से दिल्ली पुलिस की तमाम फोर्स का मनोबल बढ़ेगा। हम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के इस फैसले का स्वागत करते हैं, सराहना करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

क्या सऊदी तेल संयंत्रों पर हमले में ईरान का हाथ है?

सऊदी अरब की तेल कंपनी अरामको की अब्कैक   स्थित ऑयल प्रोसेसिंग फेसिलिटी और खुरैस स्थित बड़ी ऑयल फील्ड को शनिवार को ड्रोन हमले का निशाना बनाया गया था। इन ड्रोन हमलों की जिम्मेदारी ईरान समर्थित यमन के हूती विद्रोहियों ने ली है। हालांकि अमेरिका इसके लिए सीधे ईरान को जिम्मेदार मान रहा है। सैटेलाइट से मिली तस्वीरों के आधार पर अमेरिका का कहना है कि हमले जिस दिशा से हुए हैं, वह यमन नहीं बल्कि ईरान की ओर इशारा करते हैं। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहाöइस बात का कोई प्रमाण नहीं कि हमले यमन की तरफ से हुआ। हमले की जद में संयंत्र का उत्तर-पश्चिमी हिस्सा आया है। यमन से इस ओर हमला करना मुश्किल है। इस दिशा में हमला ईरान या इराक की ओर संकेत करता है। अधिकारी ने यह तर्प भी दिया कि हमले में कुल 19 जगहों को निशाना बनाया गया। विद्रोहियों ने 10 ड्रोन के इस्तेमाल का दावा किया है, लेकिन केवल 10 ड्रोन से इस तरह 19 ठिकानों को निशाना नहीं बनाया जा सकता है। न्यूयॉर्प टाइम्स ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि संभवत ड्रोन और ाtढज मिसाइलों की मदद से हमले किए गए। हालांकि कुछ मिसाइलें निशाने से चूक गईं। हमले की जांच में लगी गठबंधन सेना के प्रवक्ता कर्नल तुर्की-अल-अलीवी ने कहाöशुरुआती नतीजे बताते हैं कि हमले में ईरान के हथियार इस्तेमाल हुए। हमला यमन से नहीं किया गया, जैसा हूती विद्रोही दावा कर रहे हैं। वहीं यमन के हूती विद्रोहियों ने सऊदी अरब में और हमलों की चेतावनी देते हुए विदेशियों से कहा है कि वह वहां से दूर रहें। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि सऊदी अरब की तेल आपूर्ति पर हमला किया गया है। हम जानते हैं कि अपराधी कौन है, बस पुष्टि का इंतजार है। हम सऊदी अरब की ओर से यह सुनने का इंतजार कर रहे हैं कि वे हमले के लिए किसे जिम्मेदार मानते हैं और हमें इस मामले में किस तरह से कदम बढ़ाना है। ट्रंप ने यह भी कहा कि अपराधी के नाम की पुष्टि होते ही उस पर कार्रवाई की जाएगी। हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने ट्वीट में सीधे तौर पर ईरान का नाम नहीं लिया। ईरान के विदेश मंत्री मो. जावद जरीफ ने ट्वीट कियाöअधिकतम दबाव के बाद भी ईरान को नहीं झुका पाने के बाद अमेरिका अब अधिकतम झूठ का सहारा ले रहा है। अमेरिका और उसके सहयोगी यमन में इस सपने के साथ बने हुए हैं कि हथियारों के दम पर जीत मिल जाएगी। ऐसे में ईरान को जिम्मेदार ठहराने से संकट खत्म नहीं हो जाएगा। हमारा मानना है कि संकट तो बढ़ेगा। उम्मीद की जाती है कि मध्य-पूर्व में युद्ध नहीं छिड़ जाए।

Thursday, 19 September 2019

नोटबंदी, जीएसटी के असर ने बिठा दी अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था को लेकर रोजाना जिस तरह से नई-नई खबरें और आंकड़े आ रहे हैं, वे इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि भारत में मंदी का जो माहौल चल रहा है वह मामूली नहीं। भले सरकार या कुछ अर्थशास्त्राr इसे वैश्विक मंदी का असर बता रहे हों या रिजर्व बैंक जैसे वित्तीय संस्थान इसे थोड़े समय का संकट मान कर चल रहे हों, लेकिन उद्योग जगत जिस तरह से हांफते नजर आ रहे हैं, वह हमारी अर्थव्यवस्था के लिए कहीं से अच्छा नहीं कहा जा सकता, खासतौर पर जब प्रधानमंत्री ने अगले पांच साल में पांच लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है। बृहस्पतिवार को झारखंड में एक सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चुनाव के समय हमने वादा किया था कि लोगों को कामवार और दमदार सरकार देंगे, एक ऐसी सरकार जो पहले से भी ज्यादा गति से काम करेगी। 100 दिन में देश ने इसका ट्रेलर देखा है, पांच साल की पिक्चर अभी बाकी है। प्रधानमंत्री के दूसरे कार्यकाल में देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है और पहले 100 दिनों में तो इसकी पिक्चर बहुत खराब रही। पूर्व प्रधानमंत्री और जाने-माने अर्थशास्त्राr डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा है कि देश इस वक्त गंभीर आर्थिक सुस्ती का सामना कर रहा है। सबसे खतरनाक बात यह है कि सरकार को अहसास तक नहीं है कि यह आर्थिक सुस्ती है। मनमोहन सिंह ने इकोनॉमी को पटरी पर लाने के पांच सूत्र भी बताए। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में हुई पार्टी नेताओं की बैठक में मनमोहन सिंह ने कहा कि यही स्थिति रही तो 2024-25 तक पांच हजार अरब डॉलर की इकोनॉमी बनाने का पीएम मोदी का लक्ष्य पूरा होने की उम्मीद नहीं है। उनका कहना था कि सुस्ती का यह दौर नोटबंदी और गलत तरीके से जीएसटी लागू करने से आया है। सरकार गंभीरता दिखाए तो भी निपटने में कोई साल लग सकते हैं। सुस्ती से निपटने के पांच मनमोहनी उपायöपहला, जीएसटी की दरों को तर्पसंगत बनाना होगा। दूसरा, कृषि क्षेत्र पर फोकस हो। तीसरा, मार्केट में मनी फ्लो बढ़ाने को कर्ज की कमी दूर करें। चौथा, ज्यादा रोजगार देने वाले सैक्टरों पर विशेष फोकस और पांचवां नए एक्सपोर्ट मार्केट देखे जाएं। बता दें कि आर्थिक सुस्ती की खबरों के बीच जुलाई में औद्योगिक उत्पादन ग्रोथ रेट 4.3 प्रतिशत हो गई, जो जून में दो प्रतिशत थी। हालांकि यह पिछले साल इसी महीने के 6.5 प्रतिशत से कम है। हालांकि पिछले दिनों अर्थव्यवस्था को संकट से निकालने के लिए वित्तमंत्री ने एक के बाद एक कई उपायों का ऐलान किया है। लेकिन बड़ी समस्या यह है कि आर्थिकी की डांवाडोल स्थिति से निवेशकों से लेकर जनता तक के भीतर एक तरह का खौफ और अविश्वास पैदा हो गया है। लोग खर्च के लिए पैसा निकालने से बच रहे हैं। पता नहीं कब तक लोगों को इस संकट और किसी नए संकट का सामना करना पड़ जाए। यही वजह है कि बाजार में पैसे का प्रवाह नहीं बन पा रहा है और नकदी का संकट है। जब तक यह चक्र टूटेगा नहीं तब तक अर्थव्यवस्था पटरी पर लाना संभव नहीं है, इसलिए जरूरी है कि आर्थिक उपायों के साथ-साथ लोगों में भरोसा भी पैदा करें।

-अनिल नरेन्द्र

धारा-371 ः कुछ राज्यों को मिले विशेषाधिकार

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद अचानक आर्टिकल 371 भी सुर्खियों में आ गया है। दरअसल इस धारा के अंतर्गत भी कई राज्यों को कुछ खास अधिकार मिले हुए हैं। आर्टिकल 370 को हटाने के बाद ऐसी अफवाहें फैलाई गईं कि केंद्र सरकार आर्टिकल 371 को भी खत्म कर सकती है। इसके बाद गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों नॉर्थ-ईस्ट के अपने दौरे में सभी राज्यों को साफ संदेश देने का प्रयास किया कि मोदी सरकार की अनुच्छेद 371 को हटाने की कोई योजना नहीं है। उन्होंने उन सभी राज्यों को आश्वस्त करने की कोशिश की कि सरकार किसी भी सूरत में इस धारा से छेड़छाड़ नहीं करेगी। जिन राज्यों को इसके तहत खास अधिकार और संरक्षण मिला हुआ है, वह बरकरार रहेगा। इन राज्यों की खास आबादी की जनजातीय और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण देना मुख्य वजह बताया गया है। अभी अनुच्छेद 371 के तहत 10 अलग-अलग राज्यों को वहां की खास जरूरतों के हिसाब से खास अधिकार प्राप्त हैं। इसमें प्रावधान है कि जरूरत पड़ने पर किसी भी राज्य, क्षेत्र को संविधान के तहत अलग से अधिकार दिए जा सकते हैं। सरकार लगातार कह रही है कि अनुच्छेद 370 और 371 को एक ही तरीके से देखना सही नहीं है और दोनों में बुनियादी अंतर है। दोनों अनुच्छेद 26 जनवरी 1950 से ही संविधान का हिस्सा हैं। अनुच्छेद 371 के तहत 10 राज्यों को विशेष अधिकार मिले हुए हैं। सरकार का तर्प है कि यह बताया जा चुका है कि अनुच्छेद 370 अस्थायी है, जबकि अनुच्छेद 371 विशेष सुविधा है। लेकिन विपक्ष सरकार के इस दावे और नीयत पर सवाल उठा रहा है। यही कारण है कि भाजपा मजबूती से उन जिलों में जाकर खास संदेश देने का अभियान चला रही है कि ऐसा करना उनके एजेंडे में बिल्कुल नहीं है। अनुच्छेद 371 के माध्यम से संविधान में कुछ राज्यों को कई अधिकार दिए गए हैं। नॉर्थ-ईस्ट राज्यों में यह अधिकार कुछ व्यापक हैं। नगालैंड में इसके तहत कई खास रियायते हैं। इसी कारण इस अनुच्छेद को लेकर अधिक चर्चा रहती है। इस धारा के अंतर्गत महाराष्ट्र तक को भी सुविधा हासिल है। इसके तहत सबसे अधिक अधिकार नगालैंड को हासिल हैं, जहां बाहर से कोई जाकर जमीन नहीं खरीद सकता और संसद से पास कोई कानून अब भी वहां लागू नहीं होते। इसी तरह सिक्किम में जमीन पर न सिर्प पूरी तरह स्थानीय लोगों को संरक्षण मिला हुआ है, बल्कि इससे जुड़े मसले सिक्किम से बाहर की अदालत में भी नहीं जा सकते हैं। इसी तरह महाराष्ट्र और कर्नाटक के छह जिलों को विशेषाधिकार मिला हुआ है। इसके अंतर्गत इनके लिए अलग बोर्ड गठित है और सरकारी नौकरियों में भी तरजीह मिलती है।

Wednesday, 18 September 2019

पाक सेना की सुरक्षा में मारा गया लादेन का बेटा हमजा

शनिवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुर्दांत आतंकवादी संगठन अलकायदा का सरगना रहे ओसामा बिन लादेन का बेटा हमजा के एक ऑपरेशन में मारे जाने की घोषणा की। ट्रंप ने कहा कि इस हाई-प्रोफाइल अलकायदा आतंकी को अमेरिका द्वारा आतंकवाद रोधी अभियान के दौरान मार दिया गया। हमजा बिन लादेन पर 10 लाख डॉलर का इनाम घोषित किया गया था। हालांकि ट्रंप ने यह नहीं बताया कि उसकी मौत कब और कहां हुई है। व्हाइट हाउस की तरफ से जारी बयान के मुताबिक हमजा बिन लादेन के मारे जाने से अलकायदा में न सिर्प लीडरशिप की कमी हो गई है, बल्कि इसके महत्वपूर्ण अभियानों को दुर्बल कर दिया गया है। ट्रंप ने कहा कि हमजा विभिन्न आतंकी संगठनों के साथ योजना बनाने और डील करने के लिए जिम्मेदार था। उल्लेखनीय है कि इससे पहले जुलाई के अंत में अमेरिकी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर हमजा के मारे जाने की पुष्टि की थी। हालांकि आधिकारिक पुष्टि ट्रंप के बयान के बाद अब हुई है। अमेरिका ने जेहाद के युवराज के नाम से जाने जाने वाले हमजा का अता-पता बताने वाले को 10 लाख डॉलर पुरस्कार देने का ऐलान किया था। अमेरिका ने कहा था कि हमजा अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए उस पर हमले की साजिश रच रहा है। इसी को देखते हुए इतने बड़े पुरस्कार का ऐलान किया गया था। ओसामा जब पाकिस्तान में एबटाबाद के भीतर चारदीवारी में रह रहा था तो अपने बेटे हमजा को कई पत्र लिखे थे जिसमें वह उसे बताना चाहता था कि बेटे को किस तरह की चीजों का अध्ययन करना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि 2010 से अलकायदा हमजा बिन लादेन को संगठन का बॉस बनाने के लिए तैयार कर रहा था। क्या ओसामा बिन लादेन की तरह हमजा भी पाकिस्तानी सेना की सुरक्षा में रह रहा था? भारतीय रक्षा विशेषज्ञ एसपी सिन्हा ने कहा कि हो सकता है कि हमजा पाकिस्तानी सेना के संरक्षण में रह रहा हो। अगर ऐसा है तो एक बार फिर अमेरिका ने ओसामा की तरह उसके बेटे का खात्मा किया है।

-अनिल नरेन्द्र

जरूरी हुआ तो मैं खुद श्रीनगर जाऊंगा ः चीफ जस्टिस

अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में बने हालात को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आठ अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई की। सामाजिक कार्यकर्ता इनाक्षी गांगुली की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि पाबंदियों की वजह से हिरासत में लिए गए नाबालिगों के माता-पिता हाई कोर्ट भी नहीं जा पा रहे हैं। गांगुली की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हुसेधा अहमदी ने कहाöकश्मीर में हालात खराब हैं, इसलिए हमें सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा। इस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगई ने कहाöअगर ऐसा है तो यह बेहद गंभीर है। जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दो हफ्ते में जवाब दें कि क्या वाकई ही ऐसा है? जरूरी हुआ तो मैं खुद श्रीनगर जाऊंगा। लेकिन अगर यह आरोप गलत साबित हुआ तो याचिकाकर्ता को परिणाम भुगतने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कश्मीर घाटी में लगाई गई पाबंदियों के पीछे ठोस वजह है। कश्मीर की स्थिति पहले भयानक रही है। कोर्ट ने राष्ट्रहित और आंतरिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए केंद्र व जम्मू-कश्मीर सरकार को कश्मीर घाटी में हालात सामान्य करने के जरूरी कदम उठाने के लिए भी कहा है। सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने यह संक्षिप्त आदेश सरकार के आंकड़ों पर गौर करने के बाद दिया। केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि राज्य तीन तरह के हमलों से जूझ रहा है। पहला, अलगाववादियों द्वारा पैसे देकर सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकवाना। दूसरा, पड़ोसी देश द्वारा आतंकियों को यहां भेजना। तीसरा, कुछ कारोबारियों द्वारा स्थानीय आतंकियों को समर्थन देना। एसडीएम के चीफ वाइको की ओर से दायर याचिका में कहा गया किöहमें पता नहीं कि नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारुक अब्दुल्ला कहां हैं? क्या वह नजरबंद हैं या हिरासत में हैं? इस पर कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या फारुक अब्दुल्ला हिरासत में हैं? मेहता ने कहा कि इसका जवाब मैं सरकार के निर्देश लेने के बाद ही दे पाऊंगा। कोर्ट ने 30 सितम्बर तक जवाब देने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने के बाद सरकारी सूत्रों के हवाले से खबर आई है कि फारुक अब्दुल्ला को नागरिक सुरक्षा कानून के तहत नजरबंद किया गया है। यह कानून लड़की तस्करों पर सख्ती करने के लिए उनके पिता शेख अब्दुल्ला ने ही सीएम रहते 48 साल पहले बनाया था। विडंबना देखिए कि पिता द्वारा बनाए गए कानून के तहत बेटा आज नजरबंद है? राज्यसभा सदस्य व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के चार जिलोंöश्रीनगर, बारामूला, अनंतनाग और जम्मू जाने की मंजूरी दी है। लेकिन वह सियासी कार्यक्रम नहीं कर पाएंगे। आजाद ने कहा था कि वह लोगों से मिलना चाहते हैं। हालात देखना चाहते हैं, लेकिन केंद्र सरकार उन्हें वहां जाने नहीं दे रही है। उन्हें तीन बार श्रीनगर एयरपोर्ट से लौटा दिया गया है। जवाब में तुषार मेहता ने कहा कि आजाद के कश्मीर जाने से वहां माहौल खराब हो सकता है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जाने की इजाजत नहीं दी। इस पर कोर्ट ने कहा कि आजाद को कश्मीर से लौटकर रिपोर्ट भी देनी होगी कि वहां हालात कैसे हैं? सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान बहरहाल कुछ चीजें जरूर स्पष्ट हुईं। सरकार ने दावा किया कि घाटी में अखबार निकल रहे हैं, दूरदर्शन सहित सारे चैनल वहां काम कर रहे हैं। कश्मीर में लगभग 88 प्रतिशत थाना क्षेत्रों में पाबंदी नहीं है। अपने जवानों और आम नागरिकों की केंद्र सरकार को चिन्ता है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने यह भी याद दिलाया कि वर्ष 2016 में भी एक कुख्यात आतंकवादी की मौत के बाद जम्मू-कश्मीर में तीन महीने फोन और इंटरनेट बाधित रहा था। याचिकाकर्ता की एक बड़ी शिकायत यह थी कि जम्मू-कश्मीर में उच्च न्यायालय तक पहुंचना आसान नहीं है। इस को प्रधान न्यायाधीश ने काफी गंभीरता से  लेते हुए जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट से रिपोर्ट मांगी है और कहा है कि जरूरत पड़ी तो वह स्वयं श्रीनगर जाएंगे। हालांकि सरकार का यही कहना था कि कश्मीर में सभी अदालतें और लोक अदालतें अपना काम कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता केंद्र सरकार के लिए प्रेरक साबित होना चाहिए, वहां जल्द ही सामान्य जीवन की बहाली हो। संविधान के तहत अदालत में की गई ऐसी कोशिशों से भारतीय लोकतंत्र ही मजबूत होगा। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र के दबावों और उसकी मजबूरियों को समझेगा। सावधानी समय की मांग है, वहीं ऐसा न हो कि घाटी में पाबंदियों में ढील दी जाए और वहां हिंसा का एक नया दौर शुरू हो। प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार कश्मीरी आवाम का एक बड़ा हिस्सा केंद्र द्वारा उठाए गए कदम की सराहना भी कर रहा है। फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला व महबूबा मुफ्ती की नजरबंदी कोई बहुत बड़ा इश्यू नहीं बन रहा है। सरकार को हर संभव प्रयास करना होगा कि कश्मीरी आवाम मुख्य धारा से जुड़े और सूबे में विकास देखे। केंद्र सरकार को कोशिश करनी होगी कि कश्मीरी आवाम अपने दायित्वों को समझे। उन्हें यह बात समझनी होगी कि उन्हें मुट्ठीभर अलगाववादी नेताओं को कठपुतली बनकर नहीं जीना है। उन्हें यह समझना होगा कि पड़ोसी द्वारा फैलाए जा रहे आतंक से उनका भला नहीं होने वाला। उन्हें व स्थानीय आतंकी विचारधारा वालों को समर्थन नहीं देना होगा। उनकी ही सुरक्षा बलों को अपना रक्षक समझे और पत्थरबाजी इत्यादि बंद करनी होगी। किसी का भी अपनी बात रखने के लिए पत्थरों और बंदूकों की कतई जरूरत न पड़े और भारतीय संविधान के तहत ही शांति और विकास आए।

सरकार भरती है यूपी के मंत्रियों का आयकर

हम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस फैसले की सराहना करते हैं कि उन्होंने सूबे में एक बहुत गलत परंपरा को समाप्त करने का साहस दिखाया है। मैं बात कर रहा हूं कि राज्य के मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्रियों के आयकर का सरकार भुगतान कर रही थी। उत्तर प्रदेश के वित्तमंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने बताया कि उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज एलाउंस एंड मिसलेनियम एक्ट 1981 के अंतर्गत सभी मंत्रियों के आयकर का भुगतान अभी तक राज्य सरकार के कोष से किया जाता रहा है। खन्ना ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशानुसार यह निर्णय लिया गया है कि अब सभी मंत्री अपने आयकर का भुगतान स्वयं करेंगे, सरकारी कोष से यह भुगतान नहीं होगा। खन्ना ने कहा कि एक्ट के इस प्रावधान को समाप्त किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश मंत्री वेतन, भत्ते एवं विविध कानून 1981 जब बना था, विश्वनाथ प्रताप सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे। इस कानून का अब तक 19 मुख्यमंत्रियों और लगभग 1000 मंत्रियों को लाभ मिला है। विश्वनाथ प्रताप सिंह के सहयोगी रहे कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि कानून पारित होते समय तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने विधानसभा में तर्प दिया था कि राज्य सरकार को आयकर का बोझ उठाना चाहिए, क्योंकि अधिकांश मंत्री गरीब पृष्ठभूमि से हैं और उनकी आय कम है। व्यवस्था के साथ इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री और सभी मंत्रियों का इनकम टैक्स 1981 से ही सरकारी खजाने से वसूला जा रहा है। इस साल उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रियों का कुल आयकर 86 लाख रुपए जमा किया गया है। अफसोस तो इस बात का है कि चुनाव लड़ते समय ये लोग अपने शपथ पत्र में अपनी सम्पत्ति करोड़ों में दिखाते हैं, लेकिन आयकर अपनी जेब से भरना इसके एजेंडे पर नहीं आता। यह जानते हुए भी कि उत्तर प्रदेश एक पिछड़ा राज्य है और सरकारी खजाने का जन समस्याओं पर खर्च करना प्राथमिकता है। दुख से कहना पड़ता है कि सरकारी खजाने को चूना लगाने को लेकर राज्य के सभी दलों के बीच इस पर समझौता है। बहरहाल अमानत में खयानत का यह किस्सा किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है और सांसद भी कई तरह के आर्थिक लाभ उठाते हैं। जन प्रतिनिधियों के पदमुक्त होने के बाद भी सरकारी बंगले में डटे रहना या छोटी-छोटी सुविधाओं के लिए लड़ने की खबरें आए दिन आती रहती हैं। उत्तर प्रदेश में ही कई पूर्व मुख्यमंत्रियों ने वर्षों से सरकारी बंगलों में कब्जा जमा रखा है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई तो रोते-पीटते वह वहां से हटे। जन प्रतिनिधि अपने लिए सारी सुविधाएं सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं। जनता किस हाल में जी रही है, उस तरफ इनका ध्यान नहीं जाता। इन्हें कोई फर्प नहीं पड़ता। यह भारतीय राजनीति का किस हद तक पतन होने का सूचक है।

-अनिल नरेन्द्र

उत्तर भारतीयों की योग्यता पर सवाल?

केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने यह क्या कह दिया? मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर शनिवार को केंद्रीय मंत्री व बरेली सांसद संतोष गंगवार ने एक प्रेस वार्ता में मंदी और नौकरी न होने के सवाल पर जवाब दिया कि देश में रोजगार की कमी नहीं है। उत्तर भारत में भर्ती के लिए आने वाली कंपनियों के कुछ प्रतिनिधि यह सवाल कर देते हैं कि जो वर्किंग हमें चाहिए, उसके मुताबिक यहां क्वालिटी नहीं है। हम इसमें सुधार पर काम कर रहे हैं। रोजगार कार्यालयों में बेरोजगारों की लंबी सूची के बाबत उन्होंने तर्प दिया कि बड़ी संख्या में पंजीकृत युवा अच्छी नौकरी हासिल कर चुके हैं। उससे भी बेहतर मौका पाने की तलाश में वे अपना पंजीकरण निरस्त नहीं कराते। इसलिए सूची लंबी है। देश में रोजगार की कमी नहीं है। हमारे उत्तर भारत में जो रिकूटमेंट करने आते हैं, इस बात का सवाल करते हैं कि जिस पद के लिए रख रहे हैं, उसकी योग्यता का व्यक्ति हमें कम मिलता है। उनके इस बयान से मंत्री जी का विपक्ष के निशाने पर आना स्वाभाविक ही था। कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने ट्वीट कियाöमंत्री जी पांच साल से ज्यादा समय से आपकी सरकार है। नौकरियां पैदा नहीं हुईं। जो नौकरियां थीं वह सरकार द्वारा लाई आर्थिक मंदी के चलते छिन रही हैं। आप उत्तर भारतीयों का अपमान करके बच निकलना चाहते हैं। यह नहीं चलेगा। बसपा प्रमुख मायावती ने भी ट्वीट किया कि देश में छाई आर्थिक मंदी आदि की गंभीर समस्या के संबंध में केंद्रीय मंत्रियों के हास्यास्पद बयानों के बाद अब उत्तर भारतीयों की बेरोजगारी दूर करने के बजाय यह कहना कि रोजगार की कमी नहीं बल्कि योग्यता की कमी है, अति शर्मनाक है। मंत्री को इसके लिए देश से माफी मांगनी चाहिए। वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट कियाöभाजपा के मंत्री जी ने यह कहकर युवाओं का मनोबल तोड़ा है कि देश में रोजगार की नहीं बल्कि काबिल युवाओं की कमी है। अगर एक क्षण को यह झूठी बात मान भी लें तो क्या युवाओं को काबिल बनाने का दायित्व सरकार का नहीं है? दरअसल कमी काबिल युवाओं की नहीं, देश-प्रदेश में काबिल सरकार की है। सरकार रोजगार तो नहीं दे पा रही है और नाकामी छिपाने को उत्तर भारतीय युवाओं को बदनाम कर रही है। यह देश के युवाओं का अपमान है।

Tuesday, 17 September 2019

सऊदी की सबसे बड़ी तेल कंपनी अरामको पर ड्रोन हमला

दुनिया की सबसे अमीर तेल कंपनियों में शामिल सऊदी अरब की सऊदी अरामको के दो तेल संयंत्र शनिवार सुबह एक ड्रोन हमले में तबाह हो गए। सऊदी गृहमंत्री ने बताया कि ड्रोन हमलों के चलते संयंत्र में लगी आग पर घंटों बाद काबू पाया जा सका। इस हमले के चलते सऊदी अरब की दुनिया को तेल आपूर्ति आधी रह गई है। जबकि 50 लाख बैरल तेल का उत्पादन बंद हो गया है। यमन में ईरान समर्थित विद्रोही संगठन हूती ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली है। हूती संगठन के एक प्रवक्ता माल्या सारए ने कहा कि हमले के लिए 10 ड्रोन भेजे गए थे। उन्होंने धमकी दी कि सऊदी पर भविष्य में भी ऐसे हमले हो सकते हैं। बता दें कि ड्रोन 1500 किलोमीटर दूर जाकर हमला करने में सक्षम हैं। पूर्वी सऊदी अरब में अरामको के दो बड़े संयंत्रों अब्कैक और खवैस पर हमलों के बाद आसमान में धुएं के गुबार उठने लगे। ईरान के साथ चल रहे क्षेत्रीय तनावों के बीच यह हमला हुआ है। इन हमलों से पता चलता है कि ईरान से जुड़े हूथी विद्रोही सऊदी अरब में तेल प्रतिष्ठानों के लिए कैसे गंभीर खतरा बन गए हैं। सऊदी अरब दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि हमलों में कोई घायल हुआ है या नहीं और न ही तेल उत्पादन पर असर का पता चला है। हाल के महीनों में हूती विद्रोहियों ने सीमा पार सऊदी अरब के अड्डों और अन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाते हुए मिसाइल और ड्रोन हमले तेज कर दिए हैं जिसे वह यमन में विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाकों में सऊदी अरब के नेतृत्व में लंबे समय से की जा रही बमबारी का बदला बताते हैं। अरामको के फहरान मुख्यालय से 60 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित अब्कैक संयंत्र कंपनी के सबसे बड़े तेल प्रसंस्करण संयंत्र का गढ़ है। पहले भी आतंकी इसे निशाना बनाते रहे हैं। अलकायदा के आत्मघाती विस्फोटों ने फरवरी 2006 में इस तेल कंपनी पर हमला करने की कोशिश की थी लेकिन वह नाकाम रहे थे। इस हमले से विश्व शक्ति के साथ परमाणु समझौते को लेकर अमेरिका और ईरान के आमने-सामने होने के बीच तनाव बढ़ने की संभावना है। अमेरिका और सऊदी अरब खाड़ी में टैंकरों पर हमलों के लिए ईरान को भी जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। यह ताजा हमला ऐसे समय में हुआ है जब सऊदी अरब ने अरामको को शेयर बाजार में उतारने की तैयारी तेज कर दी है। मध्य-पूर्व में इस हमले से तनाव और बढ़ेगा।

-अनिल नरेन्द्र

महामृत्युंजय मंत्र का स्वास्थ्य पर असर जानने के लिए शोध

देश में महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग हजारों साल से होता आ रहा है। अनेक लोग गंभीर बीमारियों में जीवन बचाने के लिए भी इस मंत्र का जाप करते हैं। इसे लोगों की आस्था से जोड़कर देखा जाता रहा है। महामृत्युंजय मंत्र यजुर्वेद के रूद्राष्टाध्यायी के छठवें अध्याय से लिया गया। इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ हैöमृत्यु के वक्त प्राणी को होने वाले कष्ट से मुक्ति। जिस प्रकार पका फल स्वत ही अपनी डाल को छोड़ देता है ठीक उसी प्रकार प्राणी भी जीवन बंधन को एक समय बाद छोड़ देता है। मृत्यु पर कभी किसी की जीत नहीं हुई है, लेकिन इस मंत्र के जरिये भगवान शिव की उपासना से कष्ट निवारण जरूर होता है। भले ही चिकित्सीय विज्ञान इस पर अब शोध कर रहा हो, लेकिन वेदों में इसका प्रभाव प्राचीनकाल से वर्णित है। इस मंत्र का सवा लाख बार उच्चारण प्राणी को सभी कष्टों से मुक्त कराता है। एक व्यक्ति को सवा लाख मंत्र का जाप करने में करीब 40 दिन का वक्त लगता है। देश में पहली बार महामृत्युंजय मंत्र का मरीजों पर असर का पता लगाने के लिए डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डाक्टर शोध कर रहे हैं। इसके लिए सिर में चोट की वजह से आईसीयू में भर्ती मरीजों के पहले अस्पताल में संस्कृत विद्यापीठ से आए पंडितों ने संकल्प दिलाया। इसके बाद इन मरीजों को विद्यापीठ में ले जाकर मंत्र सुनाए गए। फिलहाल यह शोध अंतिम चरण में है। शोध 40 मरीजों पर किया जा रहा है। इनमें से 20 मरीजों को संस्कृत विद्यापीठ ले जाकर मंत्र सुनाए गए हैं। कुतुब इंस्टीट्यूट एरिया में मौजूद संस्कृत विद्यापीठ में मंत्र सुनाने के बाद फिलहाल डाक्टर इस शोध के परिणामों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से यह मंत्र स्वास्थ्य के लिए कितना असरदार है, इसका पता लगाने के लिए केंद्र सरकार के आरएमएल अस्पताल में करीब चार साल से शोध चल रहा है। इस शोध के अब तक के नतीजों से डाक्टर उत्साहित हैं। डाक्टरों का कहना है कि डाटा का विश्लेषण चल रहा है। एक-दो माह में रिपोर्ट तैयार होगी, जिसे अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा। अमेरिका की फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी ने भी यहां के डाक्टरों से सम्पर्प कर इस शोध से जुड़ने की इच्छा जाहिर की है। आरएमएल अस्पताल में यह शोध गंभीर ब्रेन इंजरी वाले मरीजों पर किया गया है। वर्ष 2016 में इस पर शोध शुरू हुआ था। अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ. अजय चौधरी के नेतृत्व में यह शोध चल रहा है। डाक्टर पूरे धार्मिक नियमों के अनुसार ही इसे पूरा करना चाहते हैं। बताया जा रहा है कि अब तक के शोध में काफी संतोषजनक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। इसका मतलब यह है कि अगर इस शोध में महामृत्युंजय मंत्र का प्रभाव वैज्ञानिक तौर पर साबित होता है तो यह दुनियाभर के चिकित्सीय क्षेत्र में इतिहास बदल सकता है, इसके पीछे एक वजह जापान के डाक्टर की भी है, जिन्होंने भारतीयों में व्रत रखने पर शोध किया था और साबित किया था कि इससे कई रोगों की संभावना कम होती है। यहां तक कि यह शरीर में कैंसर सेल्स भी एक्टिव नहीं होने देते।

आज हरियाण में सिर्प खट्टर की तूती बोल रही है

हरियाणा के विधानसभा चुनावों की घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है। पहले जिस तरह के संकेत मिल रहे थे, उससे उम्मीद की जा रही थी कि सोमवार को राज्य में चुनाव की घोषणा हो सकती है। लेकिन अब संभावना जताई जा रही है कि आचार संहिता 19 सितम्बर को लग सकती है। केंद्रीय चुनाव आयोग दीपावली से पहले-पहले चुनाव कराने की तैयारियों में जुटा है। हरियाणा में पिछली बार 26 अक्तूबर को सरकार ने कार्यभार ग्रहण कर लिया था। दो नवम्बर से पहले-पहले नई सरकार का गठन जरूरी है। भाजपा की चुनावी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। पार्टी इस बार राज्य विधानसभा की कुल 90 में से 50 टिकट पहले चरण में ही घोषित करने की योजना पर काम कर रही है। भाजपा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का पलड़ा फिलहाल सबसे भारी दिखता है। दरअसल हरियाणा के राजनीति के मायने बदलने वाले चौथे लाल मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने विरोधियों को चारों खाने चित कर दिया है। विपक्ष जिस मनोहर लाल को अनुभवहीन बताकर सत्ता परिवर्तन का सपना देख रहा था वह खुद ही आज हाशिये पर आ गया है। प्रदेश व पार्टी में अपनी अलग पहचान व छवि बनाने वाले खट्टर ने यह साबित कर दिया है कि हरियाणा में बिना पर्ची व खर्ची के सरकारी नौकरियां मिल सकती हैं। ऑनलाइन सिस्टम ने ऐसी व्यवस्था कायम की है कि अब इससे भविष्य में कोई भी मुख्यमंत्री छेड़छाड़ की हिमाकत नहीं कर पाएगा। खट्टर पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने अपने मंत्रियों व विधायकों को भी भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, पक्षपात से दूर रहने का आईना दिखाया। हाल ही के जींद उपचुनाव से धुआंधार बैटिंग कर रहे खट्टर ने अपने तजुर्बे व काम से भाजपा की सभी अन्य दलों से अलग पहचान दिलाई है। कभी इनेलो का गढ़ जींद में मुख्यमंत्री ने कांग्रेस व जजपा के दिग्गज राजनीतिक परिवारों को ऐसी पटखनी दी कि भाजपा की वाह-वाह हो गई। जहां पांच नगर निगम के चुनावों में पहली बार भाजपा की जीत का डंका बजा वहीं जिला परिषदों में भी अधिकतम चेयरमैन भाजपा के चुने गए। कुशल संगठनकर्ता रहे खट्टर के शासनकाल में एक समान विकास की ऐसी परंपरा डाली गई कि लालों (देवी लाल, बंसी लाल और भजन लाल) के गढ़ में भी भाजपा के झंडे घरों की छतों पर लगे नजर आने लगे हैं। जिस जाट बेल्ट में कभी भाजपा का कोई नाम लेवा नहीं था आज उसी जाट बेल्ट में भाजपा और खट्टर की तूती बोल रही है। आज भाजपा हरियाणा में सबसे मजबूत पार्टी बनकर उभरी है। 2014 से पहले भाजपा कभी भी अपने बलबूते पर सरकार नहीं बना पाई। पार्टी हमेशा दूसरे की बैसाखियों से सत्ता सुख प्राप्त करती थी। 1987 में भाजपा ने चौधरी देवी लाल की पार्टी लोकदल से गठबंधन किया था। तब भी उसके महज 17 विधायक चुनकर आए थे। उस दौरान डॉ. मंगल सैन पार्टी को लीड करते थे। उसके बाद 1996 में चौधरी बंसी लाल की हरियाणा विकास पार्टी से गठबंधन किया तो उसके 11 विधायक चुने गए थे मगर 2014 में पार्टी के 47 विधायक जीते और पहली बार अपने दम पर सरकार बनाई और भाजपा को बैसाखियों से छुटकारा मिल गया। 2019 चुनाव में तो ऐसी हालत नजर आ रही है कि पूरे विपक्ष को बैसाखियों की जरूरत पड़े।

Saturday, 14 September 2019

जगन मोहन के निशाने पर आए चंद्रबाबू नायडू

तेलुगूदेशम पार्टी के प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार को चलो अथमाकुर के आह्वान के तहत गुंटूर जिले के पालनाडु क्षेत्र के लिए अडावल्ली स्थित अपने घर से निकलने का असफल प्रयास किया। यह विरोध प्रदर्शन कुछ ग्रामीणों को गांव से निकालने के विरोध में किया जाना था। उनके बेटे लोकेश को भी नजरबंद किया गया। आंध्र प्रदेश के पुलिस महानिदेशक डी. गौतम संवाग ने मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से एक  बयान जारी कर कहा कि नायडू की गतिविधियों के कारण गुंटूर क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा था और कानून-व्यवस्था बिगड़ रही थी, इसलिए उन्हें एहतियातन हिरासत में लिया गया। सत्ता और विपक्ष के बीच की प्रतिद्वंद्विता किस तरह कटुता में बदल रही है, आंध्र प्रदेश उसका ताजा उदाहरण है, जहां राजनीतिक हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने से रोकने के लिए सरकार ने चंद्रबाबू नायडू समेत विपक्ष के कुछ नेताओं को नजरबंद कर दिया। तेलुगूदेशम पार्टी (पीडीपी) का आरोप है कि वाईएसआर कांग्रेस सत्ता में आने के बाद से उसके 10 कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। गुंटूर जिले के अथमाकुर गांव से अनुसूचित जाति के 120 परिवारों को, जो उसके सम्पर्प हैं, निकाल बाहर किया जा चुका है। टीडीपी ने उन्हें गुंटूर शहर में बनाए गए एक शिविर में रखा है। चंद्रबाबू अपने कार्यकर्ताओं की हत्या और उनके दमन पर पिछले दिनों एक बुकलेट जारी कर चुके हैं और अब वह गांव से निकाले गए परिवारों को वापस उस गांव में बसाने जा रहे थे, उससे पहले ही यह कार्रवाई हो गई। वाईएसआर कांग्रेस का कहना है कि टीडीपी के कार्यकाल में उनके कार्यकर्ताओं के खिलाफ व्यापक हिंसा हुई थी, लिहाजा टीडीपी के प्रस्तावित कार्यक्रम के जवाब में उसने भी चलो अथमाकुर यात्रा की योजना बनाई थी। पुलिस का कहना है कि टीडीपी ने इस यात्रा की अनुमति नहीं ली थी और चंद्रबाबू नायडू के क्रियाकलापों से राज्यभर में हिंसा भड़कने की आशंकाओं के मद्देनजर उसने यह कदम उठाया। यही नहीं, उसने वाईएसआर कांग्रेस के कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी नजरबंद किया। राज्य की दो प्रमुख पार्टी होने के कारण वाईएसआई कांग्रेस और टीडीपी में प्रतिद्वंद्विता स्वाभाविक है। सत्ता में आने के बाद जगन मोहन ने चंद्रबाबू नायडू की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं को पलट दिया है। अगर चंद्रबाबू नायडू ने भ्रष्टाचार किया है जैसा जगन मोहन कह रहे हैं तो जांच में सब सामने आ जाएगा और कानून अपना काम करेगा पर सरकार को ऐसे अतिवादी कदम उठाने से बचना चाहिए, जिससे विपक्ष की आवाज दबाने के आरोपों की पुष्टि होती हो।

-अनिल नरेन्द्र

दिल्ली पुलिस अफसर छाया को एशिया गेम चेंजर पुरस्कार

हाल ही में मैंने नेट फिलक्स पर दिल्ली क्राइम नामक एक टीवी सीरियल देखा। यह सीरियल साल 2012 के वीभत्स निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले पर बनाया गया है। इसमें एक-एक डिटेल, दिल्ली पुलिस के अधिकारियों की इस केस को सुलझाने में दिन-रात की कड़ी मेहनत को बहुत ही सुंदर ढंग से दर्शाया गया है। छोटी से छोटी डिटेल्स को बहुत औपचारिक तरीके से दर्शाया गया है। इसमें मुख्य भूमिका निभाने वाली डीसीपी साउथ की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। यहां तक कि वह अफसर रात को ट्रेक सूट पहने ही खबर मिलते थाने पहुंच गईं और कई दिनों तक उसी में ड्यूटी देती रहीं। एक बार वह घर नहीं गईं यहां तक कि कपड़े बदलने तक नहीं गईं। यह उन्हीं की कड़ी मेहनत और संघर्ष का नतीजा था कि उन दरिन्दों को इतनी जल्दी पकड़ लिया गया। उस बहादुर डीसीपी साउथ का नाम है छाया शर्मा। मुझे बड़ी खुशी हुई यह खबर पढ़कर कि छाया शर्मा को छह अन्य लोगों के साथ 2019 के एशिया सोसायटी गेम चेंजर पुरस्कार के लिए चुना गया है। न्यूयार्प के अग्रणी सांस्कृतिक संगठन एशिया सोसायटी ने न्यूयार्प में बुधवार को पुरस्कारों की घोषणा की। यह पुरस्कार अगले महीने एक विशेष समारोह में प्रदान किया जाएगा। एशिया सोसायटी वैश्विक सन्दर्भ में एशिया और अमेरिका के लोगों, नेताओं और संस्थानों के बीच आपसी समझ को बढ़ावा देने और साझेदारी मजबूत करने के क्षेत्र में एक प्रमुख संगठन है। संगठन ने कहा कि उस एक दक्षिणी दिल्ली की पुलिस उपायुक्त ने 16 दिसम्बर 2012 को एक छात्रा के सामूहिक दुष्कर्म की तड़के खबर मिलने के बाद फौरन कार्रवाई की। एशिया सोसायटी ने कहा कि शर्मा ने अधिकारियों का पीड़िताओं से उनकी पृष्ठभूमि पर विचार किए बिना पूरे सम्मान के साथ बर्ताव करने में मार्गदर्शन किया। शर्मा को पुरस्कार देने की घोषणा करते हुए एशिया सोसायटी ने कहा कि छाया शर्मा ने दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म मामले समेत भारत के कई हाई-प्रोफाइल अपराधों की जांच की। जैसा मैंने बताया कि निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले में इस साल एक टेलीविजन सीरीज भी बनी। उन्होंने भारत में पुलिस के काम और महिला पुलिसकर्मियों की भूमिका को परिवर्तित कर दिया। अधिकारी ने कहा कि उस समय दक्षिण दिल्ली की पुलिस आयुक्त ने 16 दिसम्बर 2012 को 23 वर्षीय मेडिकल छात्रा के सामूहिक दुष्कर्म की तड़के खबर मिलते ही फौरन कार्रवाई की। हम छाया शर्मा को बधाई देते हैं और तमाम दिल्ली पुलिस की सराहना करते हैं। हम दिल्ली पुलिस को आए दिन गाली व आलोचना करते थकते नहीं पर उनके द्वारा की जा रही मेहनत, केस सॉल्व करने की तारीफ कम ही करते हैं। छाया शर्मा की जमकर तारीफ होनी ही चाहिए।

जज साहब ही नहीं मान रहे अदालत का आदेश

अमर उजाला में धीरज बेनीवाल की एक सनसनीखेज खबर छपी है। प्रस्तुत है यह रिपोर्टöअगर आप आदमी अदालत के आदेश को नहीं मानें तो उसे जेल भेजा जा सकता है, लेकिन जब एक जज खुद अदालत का आदेश न माने तो इसे क्या कहेंगे? उत्तर प्रदेश में तैनात एक जज साहब अदालती आदेश के बाद भी पत्नी व नाबालिग बच्ची को गुजारा-भत्ता व उसकी बकाया राशि का भुगतान नहीं कर रहे हैं। खास बात यह है कि जज साहब की पत्नी भी जज हैं और उत्तर प्रदेश में ही तैनात हैं। दम्पति के बीच कानूनी विवाद चल रहा है। दोनों 2013 से अलग हैं। दम्पति के बीच तलाक का मुकदमा भी चल रहा है। रोहिणी जिला अदालत के समक्ष मेरठ में तैनात जज साहब ने 4.80 लाख रुपए की बकाया राशि में से केवल एक लाख रुपए अपनी पत्नी को दिए और अगस्त माह के अंत तक शेष राशि देने का आश्वासन दिया था। लेकिन इसके बाद अब तक शेष राशि नहीं दी गई है। महिला जज की ओर से अधिवक्ता पूज्य कुमार सिंह व तरुण नारंग ने कोर्ट को बताया कि अदालती आदेश के बाद भी जज साहब अपनी पत्नी व बच्ची को गुजारा-भत्ता की राशि नहीं दे रहे हैं। मामले की सुनवाई 25 सितम्बर को होनी है। अदालत ने महिला जज की अर्जी पर सुनवाई के बाद जनवरी 2018 में उसे व उसकी नाबालिग बेटी के खर्च के लिए प्रतिमाह 20 हजार रुपए व अर्जी दायर करने की तिथि से बकाया खर्च राशि देने का अंतरिम आदेश बरेली में तैनात जज को दिया था। पीड़िता ने 50 हजार रुपए गुजारा-भत्ता दिलाने की मांग करते हुए जनवरी 2016 में अर्जी दायर की थी। अदालत के इस फैसले को जज साहब ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। लेकिन न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने 19 अप्रैल 2018 के अपने आदेश में उन्हें बकाया राशि (खर्च) का भुगतान करने का निर्देश दिया था। इसके बाद भी जज साहब ने पत्नी को गुजारा-भत्ता व बकाया राशि का भुगतान नहीं किया। पेश मामले में रोहिणी निवासी पीड़ित महिला की शादी 23 नवम्बर 2008 को गाजियाबाद निवासी युवक से हुई थी। शादी के बाद अक्तूबर 2010 में उन्हें एक बच्ची पैदा हुई थी। इसके बाद पहले पति व उसके बाद पत्नी भी उत्तर प्रदेश में जज बन गए। पीड़िता का आरोप है कि उसके पति व ससुराल वालों ने दहेज के लिए मारपीट व प्रताड़ित करना शुरू कर दिया था। जज साहब जब मुजफ्फरनगर में तैनात थे तो उन्होंने पत्नी को घर में घुसने से भी रोक दिया था। उसके बाद महिला जज अपने पिता के घर आ गई थी। ससुराल वालों ने उसे एलएलबी करने से भी रोका लेकिन उसने अपनी लगन से परीक्षा पास की और न्यायिक सेवा में चयनित हुई। उसने पति के खिलाफ 2015 में इलाहाबाद हाई कोर्ट को शिकायत भेजी थी। बड़ी मुश्किल स्थिति बन गई है कि एक जज अपने खिलाफ निर्देश का पालन नहीं कर रहे तो आगे क्या होगा? शिकायतकर्ता भी जज, आरोपी भी जज तो अंतिम फैसला कौन करेगा?

-अनिल नरेन्द्र

बीतता जा रहा है लैंडर विक्रम से सम्पर्प स्थापित करने का समय

इंडियन स्पेस रिसर्च सेंटर (इसरो) ने कहा है कि एजेंसी चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से सम्पर्प स्थापित करने की कोशिश कर रही है। चंद्रयान के ऑर्बिटर ने इसकी सटीक लोकेशन का पता भी लगा लिया है। इसरो की टीम लगातार सिग्नल भेजकर लैंडर से सम्पर्प की कोशिश कर रही है। हालांकि यह भी कहना होगा कि सम्पर्प स्थापित करने का समय तेजी से बीत रहा है। छह व सात सितम्बर की दरम्यानी रात को चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की दूरी पर इसरो ने लैंडर से सम्पर्प खो दिया था। शनिवार को चांद की सतह पर विक्रम की स्थिति का पता चल गया था। इसके बाद इसरो प्रमुख के. सिवन ने 14 दिन तक लैंडर से सम्पर्प करने की कोशिश किए जाने की बात की थी। दरअसल यान के लैंडर-रोवर का मिशन केवल 14 दिन के लिए ही तय किया गया था जो चंद्रमा के एक दिन के बराबर है। जैसे-जैसे मिशन की तय की गई अवधि बीत रही है, सम्पर्प करने की संभावना घटती जा रही है। इसरो के कुछ अधिकारियों के अनुसार विक्रम चांद की सतह पर पहले से तय जगह से 500 मीटर की ही दूरी पर पड़ा है। वह टूटा नहीं है, बस तिरछा हो गया है। वैज्ञानिक सम्पर्प साधने के लिए लैंडर के एंटीना को सही स्थिति में लाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी बीच नीदरलैंड के एस्ट्रोनॉयर सीस वीसा ने नासा की जेट प्रॉपल्शन लैब के डेटा और इसरो के सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध डेटा की तुलना के आधार पर दावा किया कि लैंडर का सम्पर्प चंद्रमा की सतह से टकराने के बाद टूटा था, न कि सतह से 2.1 किलोमीटर ऊपर। इसरो ने 2.1 किलोमीटर ऊपर ही सम्पर्प टूटने का दावा किया था। सीस बीसा नीदरलैंड की एस्ट्रान (नीदरलैंड इंस्टीट्यूट ऑफ रेडियो एस्ट्रोनॉमी संस्था के लिए दुनियाभर के स्पेस क्राफ्ट की हैकिंग करते हैं। सात सितम्बर को भी वह डिववालू टेली स्कॉप आब्जबैटरी से चंद्रयान-2 की लैंडिंग पर नजर रखे हुए थे। मंगलवार को चार रंगों की रेखाओं का एक ग्राफ ट्वीट कर उन्होंने बताया कि उसकी बैंगनी रेखा रेडियो टेलीस्कॉप डॉलपर कर्व की है जबकि नारंगी रेखा चंद्रयान-2 के लैंडर की नासा जेपीएल द्वारा जारी हारिजॉन ट्रेजेक्टी की है। उन्होंने लिखाöइसकी तुलना से स्पष्ट है कि लैंडर चंद्रमा की सतह से टकराकर क्षतिग्रस्त हो चुका है। उससे दोबारा सम्पर्प के प्रयास सफल होने की संभावना बेहद कम है। उन्होंने शनिवार को ही डॉलपर कर्व की तस्वीरें जारी करते हुए अफसोस जताया था कि लैंडर की कैश लैंडिंग हुई है। वहीं इसरो का कहना है कि विक्रम ट्रांसपोंडर्स और एक तरफ आई एंटीना से इंविंड है। इसके ऊपर एक गुम्बद के जैसा यंत्र लगा है। विक्रम इन्हीं इक्पिमेंट का इस्तेमाल करके पृथ्वी या इसके आर्बिटर से सिग्नल लेगा और फिर उनका जवाब देगा।

Thursday, 12 September 2019

ट्रंप ने तालिबान शांति समझौता रद्द किया

काबुल में हुए तालिबान हमले में एक अमेरिकी सैनिक की मौत के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तालिबान के साथ शांति समझौते से पीछे हटने का ऐलान किया है। अमेरिका और तालिबान अब तक नौ चरणों में शांति वार्ता कर चुके हैं, जो हालिया घोषणा के बाद बेनतीजा रही। डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि तालिबान के नेताओं और अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ कैंप डेविड में होने वाली गोपनीय बैठक को काबुल में हाल ही में हुई बमबारी के मद्देनजर रद्द कर दिया गया है। ट्रंप ने बताया कि उन्होंने यह फैसला काबुल कार बम धमाके की वजह से लिया है जिसकी जिम्मेदारी तालिबान ने ली थी। इस धमाके में एक अमेरिकी सैनिक समेत 12 लोगों की मौत हो गई थी। तालिबान से शांति वार्ता टूटने पर मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। तालिबान और अमेरिका के बीच शांति वार्ता का टूटना अफगानिस्तान के लिए फिर एक बुरे दौर की वापसी का संकेत है। अब तक यह उम्मीद बनी हुई थी कि आने वाले वक्त अफगान लोगों के लिए जल्द ही कोई अच्छी खबर लेकर आने वाला होगा। लेकिन अब इन उम्मीदों पर पानी फिर गया लगता है। वैसे कटु सत्य तो यह है कि तालिबान जिस हिंसा के रास्ते पर बढ़ चुका है, उसमें अब शांति की उम्मीद व्यर्थ-सी लगती है। ट्रंप ने कैंप डेविड में होने वाली अफगान शांति वार्ता के अंतिम दौर से अचानक हट जाने का जो कड़ा फैसला कर डाला, वह तालिबान के लिए कड़ा संदेश है। इससे यह भी साफ हो गया है कि अमेरिका तालिबान की हिंसा के आगे झुकेगा नहीं और उसे सबक सिखाने की रणनीति पर ही चलेगा। ट्रंप के शांति वार्ता तोड़ने के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों पर और ज्यादा हमले की धमकी दी है। अगर तालिबान के हमले में एक अमेरिकी सैनिक के मारे जाने पर ट्रंप शांति वार्ता तोड़ने जैसा कड़ा रुख अपनाते हैं तो और ज्यादा हमले होने पर वे तालिबान के प्रति क्या रुख अपनाएंगे, अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। इतना साफ है कि अमेरिका तालिबान को यह संकेत नहीं देना चाहता कि वह मजबूरी में झुक कर फैसला कर रहा है। अमेरिका में ट्रंप के वार्ता रद्द करने का अधिकतर नागरिकों ने समर्थन किया है। एक सर्वे में अफगान नागरिकों ने कहा कि ट्रंप ने तालिबान से वार्ता रद्द करने का सही फैसला किया है। आतंकी संगठन को अफगानिस्तान में 18 साल से जारी हिंसा खत्म कर देनी चाहिए। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों ने तालिबान से भी गुजारिश की है कि वह संघर्षविराम पर अमेरिका और अफगान सरकार के साथ दोबारा से वार्ता शुरू करे। अफगानिस्तान के लिए आने वाला वक्त संकटों से भरा है। वहां इस महीने के आखिर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। अगर शांति समझौता हो जाता तो तालिबान के लिए अफगानिस्तान की सत्ता का रास्ता खुल सकता था। अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान की पकड़ मजबूत होने का मतलब है कि पाकिस्तान की भी ताकत बढ़ेगी। यह स्थिति भारत के हितों के प्रतिकूल है। इस दृष्टि से यह बेहतर ही है कि तालिबान को जितने समय तक सत्ता से दूर रखा जाएगा उतना ही बेहतर होगा। अमेरिकी फौज को अफगानिस्तान में तब तक रहना चाहिए जब तक कि अफगान सरकार और अफगान सैनिक तालिबान का मुकाबला करने में पूरी तरह सक्षम नहीं हो जाते। अमेरिका ने जहां यह जता दिया कि वह तालिबान की हिंसा के आगे झुकने वाले नहीं वहीं आने वाले दिनों में तालिबान अमेरिकी सैनिकों पर और ज्यादा हमले कर सकता है। ऐसा नहीं है कि शांति वार्ता फिर नहीं हो सकती पर फिर होने के लिए तालिबान को अपनी कथनी-करनी बदलनी पड़ेगी जिसके लिए वह फिलहाल तैयार नहीं। अगर शांति वार्ता का नतीजा अच्छा निकलता तो पूरे भूभाग के लिए अच्छा होता।

-अनिल नरेन्द्र