Friday, 6 July 2012

भगवान की बराबरी करने वाला यह महाप्रयोग कितना विश्वसनीय है?

आदिकाल से ही मनुष्य की जिज्ञासा रही है कि आखिर यह ब्रह्मांड क्या है, कैसे इस दुनिया की सृष्टि हुई? वैदिक और पौराणिक काल में ही भारतीय ऋषियों, मुनियों ने जंगलों, पहाड़ों में रहकर आकाश में नक्षत्रों, तारों, ग्रहों, उपग्रहों की गति-चाल, उनकी प्रकृति और धरती पर पड़ने वाले अनेक प्रभाव पर अनगिनत घोषणाएं की। यह किसी आश्चर्य से कम नहीं कि नक्षत्रों, तारों की गति, आकाश गंगा जैसे रहस्यों की स्थिति, सूर्य, चन्द्रमा की गति और दूरी और उसके आधार पर रात और दिन, माह और वर्ष का निर्धारण भी उतने ही सटीक तरीके से किया गया, जिनता आज अरबों डॉलर से तैयार नासा की वैधशालाएं करती हैं। पिछले चार सालों में एक महाप्रयोग शुरू हुआ है। गॉड पार्टिकल की खोज के लिए जमीन के 100 मीटर भीतर एक वृताकार सुरंग के रूप में एक मशीन जिसकी परिधि लगभग 27 किलोमीटर है, इसमें प्रोटोन कणों की धारा नियंत्रित करने के लिए बड़े-बड़े आकार के नौ हजार से ज्यादा युवक लगे हुए हैं, का महाप्रयोग चल रहा है। इस वृताकार मुख्य हिस्से के चार मुख्य पड़ावों पर लाखों कलपुर्जे वाली अलग-अलग मशीनें लगाई गई हैं। इस महामशीन के काम में डैडूरस इसलिए लगाया गया है कि इसके जरिए नाभिकीय कणों की टक्कर कराई जाएगी, क्वार्प नामक सूक्ष्म पदार्थ से निर्मित न्यूट्रॉन और पोटोन जैसे नाभिकीय कणों को हैडरॉन कहा जाता है, सभी की इस मशीन को कोलाइडर शब्द का सीधा-सीधा मतलब हुआ टक्कर कराने वाले। इसे जो काम सौंपा गया है वो हैöप्रोटोन कणों की आपस में लगभग प्रकाश की गति से टकराना। वैज्ञानिकों का कहना है कि हमने उस पार्टिकल को खोज कर ली है जो इस ब्रह्मांड को आकार देने के लिए अहम माना जाता है। यूरोपियन सेंटर ऑफ न्यूक्लियर रिसर्च ने बुधवार को का कि जो पार्टिकल हमने पाया है, वह हिग्स बोसोन के पैमाने के मुताबिक है। चूंकि यह एक साइंटिफिक तजुर्बा है जिसे समझना आसान नहीं (कम से कम मेरे लिए तो) इसलिए साधारण आदमी की भाषा में बताता हूं। यूनिवर्स की हर चीज (तारे, ग्रह और हम भी) मैटर यानि पदार्थ से बनी है। मैटर अणु और परमाणुओं से बने हैं। मास (द्रव्यमान) से अणु और परमाणुओं जैसे तमाम कणों को ठोस रूप मिलता है। मगर मास नहीं है तो कण रोशनी की रफ्तार से भागते रहेंगे और ठोस आकार में नहीं बदल सकेंगे। सवाल उठा कि यह मास आता कहां से है। तमाम कणों को एक सिस्टम (स्टैंडर्ड मॉडल ऑफ पार्टिकल्स) में रखकर जवाब जानने की कोशिश की गई तो गैप दिखने लगे। तब मास की वजह बताने के लिए 1965 में ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल का आइडिया पेश किया। हिग्स थ्योरी के अनुसार करीब 13.7 अरब साल पहले एक महाविस्फोटक (बिग बैंग) के बाद हिग्स बोसोन पार्टिकल ने ब्रह्मांड की सभी चीजों को आकार देने की भूमिका निभाई। हिग्स की थ्योरी में बोसोन ऐसा मूल कण था, जिसकी एक फील्ड थी, जो यूनिवर्स में हर कहीं मौजूद थी। जब कोई दूसरा कण इस फील्ड से गुजरता है तो रुकावट का सामना करता, जैसे कि कोई भी चीज पानी या हवा से गुजरते हुए करती है। जितनी ज्यादा रुकावट उतना ज्यादा मास (हिग्स बोसोन के सहारे स्टैंडर्ड मॉडल मजबूत हो रहा था, लेकिन उसके होने का एक्सपेरिमेंटल सबूत चाहिए था। हम जिस यूनिवर्स (ब्राह्मांड) में रहते हैं उसको आकार किसने दिया? इस बाबत में जवाब में वैज्ञानिकों ने बुधवार को कहा कि आकार देने वाले जिस गॉड पार्टिकल की तलाश थी, उन खूबियों वाला एक पार्टिकल ढूंढ लिया गया है। अगर यह प्रयोग सफल होता है तो निश्चित रूप से विज्ञान की अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी होगी पर विज्ञान के साथ दिक्कत यह है कि वह बिना व्यावहारिक प्रयोग का परिणाम देखे, उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है। विज्ञान और धार्मिक मान्यता में अक्सर टकराव रहा है। लोगों की आस्था विज्ञान की बातों को नहीं मानती। एक तरह से यह महाप्रयोग भगवान की खोज करने का दावा करता है। इस निष्कर्ष पर आम आदमी को कितना विश्वास होगा, इसमें हमें सन्देह है। भगवान का दर्जा आदमी नहीं पा सकता।

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