Friday 27 July 2012

कोकराझार में न थमने वाली हिंसा के पीछे क्या कारण है?

असम के कोकराझार और चिरांग जिलों में पिछले एक सप्ताह से जारी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। चिरांग जिले से तीन और शव बरामद किए गए जबकि मंगलवार रात दंगाइयों ने जिले के पांच गांवों में घरों को जला दिया। इस बीच सेना के जवानों ने तनावग्रास्त क्षेत्र में फ्लैग मार्च किया। कोकराझार और चिरांग जिलों में बोडो, जनजाति तथा अवैध रूप से बांग्लादेश से आए मुसलमानों के बीच 19 जुलाईं को शुरू हुईं हिंसा में अब तक 36 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि एक लाख से ज्यादा लोगों ने अपने घर छोड़ दिए हैं। असम की हिंसा के चलते पूवरेत्तर राज्यों में रेल सेवा भी बुरी तरह प्राभावित हुईं है। कम से कम 26 ट्रेनों को रद्द करना पड़ा है जबकि 31 ट्रेनें रास्ते में ही विभिन्न स्टेशनों पर खड़ी हैं। इसके चलते 30 हजार से ज्यादा यात्री जहां-तहां पंसे हुए हैं। प्राधानमंत्री मनमोहन सिंह ने असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोईं को हालात पर काबू करने के लिए हर सम्भव कदम उठाने को कहा है। पीएम ने गोगोईं से फोन पर बात कर प्राभावित लोगों को राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास के लिए सभी जरूरी कदम उठाने को कहा है। इस हिंसा की वजह भी बहुत साफ नहीं हो पाईं पर एक रिपोर्ट के अनुसार 20 जुलाईं की रात को 4 बोडो ट्राइबल को मुस्लिम बहुल गांव (कोकराझार जिला) में तेज हथियार से काट दिया गया। इस पूरे क्षेत्र में पिछले कईं दिनों से जमीन को लेकर तनाव बन रहा था। बोडो लोगों का कहना था कि बांग्लादेश से आए अवैध तरीके से यह मुसलमान क्षेत्र की सारी जमीन पर जबरन कब्जा करते जा रहे हैं और सरकार और प्राशासन मूक दर्शक बना हुआ है। ऑल बोडोलैंड टेरीटोरियल काउंसल बहुत दिनों से इन अवैध बंगलादेशी घुसपैठ के बारे में चेतावनी देती रही है पर वोट बैंक राजनीति के चक्कर में भारत सरकार और असम सरकार इस बढ़ती समस्या को नजरअंदाज करती आ रही है। आज असम के वुछ भागों में बोडो लोग अपने ही घर से बेघर हो गए हैं, क्योंकि उनकी जमीनों पर जबरन कब्जा कर लिया गया है। पिछले लगभग 40 सालों से असम किसी न किसी समस्या को लेकर संघर्ष और टकराव की रणभूमि बनता रहा है। सत्तर के दशक में असम गण परिषद ने अपनी कईं मांगों को लेकर लम्बा आंदोलन किया था। वेंद्र के इशारे पर सुरक्षा बलों ने शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों पर तब निर्ममता से गोलियां दागी थीं। आज भी वेंद्र और राज्य दोनों जगह कांग्रोस का ही शासन है पर समस्या सत्ता बनाम जनता न होकर जनता बनाम जनता है या यूं कहें कि क्षेत्र के बाशिंदों बनाम अवैध घुसपैठियों के बीच है। यह स्थिति ज्यादा खतरनाक है। बोडो आदिवासियों और मुस्लिम संगठनों के बीच शुरू हुईं हिंसा थमने के बजाय आग की तरह पैलती जा रही है। राज्य प्राशासन स्थिति पर काबू पाने में पेल हो गया है। वेंद्र से अर्ध सैनिक बल और सेना तक की तैनाती की है पर इसके बावजूद हिंसा रुक नहीं रही। यदि जल्द इस आग पर नियंत्रण नहीं हुआ तो यह आग पूवरेत्तर के बाकी राज्यों में भी पैल सकती है। ऐसे में वहां चीन और आईंएसआईं के घुसपैठियों को अपना खेल खेलने में आसानी हो जाएगी। दोनों इस क्षेत्र में काफी दिनों से सव््िराय हैं और ऐसे ही मौके की तलाश में हैं इसलिए वेंद्र और राज्य सरकार को जल्द समाधान निकालना होगा।

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