Saturday 14 July 2012

रुस्तम-ए-हिन्द दारा सिंह राम के धाम चले गए

जिन्दगी और मौत से कई दिनों तक जूझने के बाद आखिरकार रुस्तम-ए-हिन्द दारा सिंह ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 12 जुलाई की सुबह साढ़े सात बजे वह मौत से हार गए। दारा सिंह ने आखिरी सांसें अपने घर में अपनों के बीच लीं। तबीयत खराब होने के बाद उन्हें पांच दिन पहले सात जुलाई को मुंबई के कोकिला बेन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। दारा सिंह जो कि अपने प्रोफेशनल कैरियर में कभी कुश्ती नहीं हारे थे। खुद जीवित रहते यह अन्दाजा शायद न हो कि जनता उनसे कितना प्यार करती है। उनकी लोकप्रियता का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुम्बई जैसे कामकाजी शहर में उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए हजारों लोग उमड़ पड़े। अंधेरी के जुहू स्थित शमशान घाट और उसके बाहर सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे। दारा सिंह के फैमिली डाक्टर आरके अग्रवाल ने बताया कि दारा सिंह की इच्छा थी कि अंतिम समय वह अपने घर पर ही रहें। अंतिम समय पर दारा सिंह का पूरा परिवार उनके पास आ पहुंचा था। उनकी तीन बेटियां और दो बेटे हैं। पूरे पांच दिन भारी कष्ट में रहने के बावजूद दारा सिंह के चेहरे पर दर्द की छाया नहीं दिखी। लगातार उनके साथ बने रहे उनके अभिनेता बेटे बिन्दु दारा सिंह ने बताया, `पापा कभी भी दर्द से नहीं तड़पते थे।' हिन्दी सिनेमा के पहले एक्शन स्टार माने जाने वाले दारा सिंह ने 60 के दशक में बॉलीवुड में राज किया। जुबली से कुमार टाकीज से लेकर एक्सेलसियर तक दिल्ली के जिस भी सिनेमा हॉल के परदे पर दारा सिंह दिखाई देते। सीटियां बजतीं, तालियां बजतीं। दारा सिंह और मुमताज की फिल्मी जोड़ी के एक-दूसरे से उलट अन्दाज को भी खूब सराहा जाता। मुझे याद है कि सालों पहले जब एक बार दिल्ली में फ्री स्टाइल कुश्तियों का एक कार्यक्रम था तो हमारे पिता स्वर्गीय के. नरेन्द्र ने दारा सिंह व कुछ पहलवानों को हमारे घर टॉलस्टाय मार्ग पर चाय पर बुलाया था। दारा सिंह, टाइगर जोगिन्दर सिंह व दारा सिंह के भाई रंधावा आए थे। मैं बहुत छोटा था, दारा सिंह से डर गया पर पिता जी ने मेरा हाथ दारा सिंह से मिलवाया। यह कितनी बड़ी खुशी थी कि मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता। इतना केज था उस समय दारा सिंह का। दारा सिंह ने भारत में कुश्तियों को एक नया जीवन दिया। उनके क्रीन पर आने से युवाओं में कुश्ती का केज बढ़ा, कुश्तियों को एक नया सम्मान मिला। पहलवानों की एक नई पहचान बनी। दारा सिंह और मास्टर चन्दगी राम दो ऐसे नाम थे जिनकी वजह से आज भारत के पहलवान इतने लोकप्रिय हुए। दारा सिंह के प्रोत्साहन की वजह से ही आज हम लंदन ओलंपिक्स में कुश्ती में मैडल लाने की उम्मीद कर रहे हैं। दारा सिंह की रामायण सीरियल में हनुमान की भूमिका को कौन भूल सकता है। सदियों तक दारा सिंह को इस भूमिका के लिए याद किया जाएगा। भारत की इस महान आत्मा को हम अपनी श्रद्धांजलि देते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उनके परिवार को इस क्षतिपूर्ति के लिए हिम्मत व धैर्य दें।

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