Monday 30 July 2012

पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट का समोसा न्याय

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi

                                     Published on 31 July 2012                                          


अनिल नरेन्द्र



पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट पिछले काफी समय से सुर्खियों में है। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी, प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ से अदालत की खुली जंग के दौरान एक दिलचस्प किस्सा सामने आया। पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट किस तरह छोटे से छोटे मामले में दखलअंदाजी कर रहा है इस केस से पता चलता है। मसला था पाकिस्तान में समोसे के बिकने के दाम का। देश की सुप्रीम कोर्ट ने समोसे की कीमतों को लेकर सरकार और दुकानदारों के बीच चल रहे संघर्ष में एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने पंजाब प्रांत के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि दुकानदार समोसे को छह रुपए (भारत के साढ़े तीन रुपए) से ज्यादा में नहीं बेच सकते। प्रांतीय सरकार के इस फैसले के खिलाफ पंजाब बेकर्स एण्ड स्वीट्स फैडरेशन ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। पाकिस्तान में समोसे बेहद लोकप्रिय हैं और रमजान के महीने में इसकी बिक्री आसमान छूने लगती है। लेकिन कुछ वर्षों से इसकी बढ़ती कीमत को लेकर  लोग नाराज थे। इस पर 2009 में लाहौर प्रशासन ने समोसे की कीमत (अधिकतम) छह रुपए तय कर दी थी और एक न्यायिक आदेश के तहत महंगा बेचने वाले दुकानदारों पर जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया था। पंजाब बेकर्स एण्ड स्वीट्स फैडरेशन ने उस समय भी इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी लेकिन लाहौर हाई कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था। तब फैडरेशन ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। सुप्रीम कोर्ट एक बार देश में चीनी की कीमतों को नियंत्रित करने के प्रयास भी कर चुका है, लेकिन फिर भी वह तय कीमत से ज्यादा पर बिकती है। पंजाब बेकर्स एण्ड स्वीट्स फैडरेशन ने तर्प दिया था कि समोसा पंजाब खाद्य पदार्थ (नियंत्रण) कानून 1958 की सूची में नहीं है। ऐसे में प्रांतीय सरकार इसका मूल्य तय नहीं कर सकती जबकि पंजाब सरकार के वकील का तर्प था कि जनहित में वह ऐसा कर सकती है। पाकिस्तानी मीडिया के एक वर्ग ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा समोसे का मामला संज्ञान में लेने और फैसला देने की खिल्ली उड़ाई है। अखबार `डान' ने इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को `समोसा न्याय' करार दिया है। उसने अपने सम्पादकीय में  लिखा है, `दुकानदारों को तो इससे फायदा होगा, लेकिन देश के सैकड़ों अहम मामलों में इंसाफ का इंतजार कर रहे लाखों  लोगों को अपनी बारी आने की राह देखनी होगी। उसने कहा है कि आप लाहौर के किसी भी बाजार में चले जाएं, समोसा छह रुपए से ज्यादा में ही बिक रहा है। ऐसे में क्या कोर्ट को अपना कीमती वक्त समोसे में खराब करना चाहिए।' हमारा भी मानना है कि जहां देश में इतनी राजनीतिक अस्थिरता का दौर चल रहा हो, कानून व्यवस्था की गम्भीर लड़ाई चल रही हो,  देश की सर्वोच्च अदालत को ऐसे छोटे-छोटे महत्वपूर्ण मुद्दों से बचना चाहिए। हम समझ सकते थे कि अगर आटा, चावल, चीनी, दूध जैसे अत्यन्त जरूरी खाद्यान्न की कीमत पर सुप्रीम कोर्ट कीमतों को नियंत्रित करने में लगता पर समोसे जैसे स्नैक्स पर टाइम बर्बाद करना???





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