Thursday, 26 July 2012

कांग्रेस किस हद तक गठबंधन धर्म निभाने को तैयार है?

संपग सरकार की समस्याएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। एक तरफ तो सरकार के गठबंधन साथियों ने सरकार और कांग्रेस पार्टी की नाक में दम कर रखा है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के भीतर भी अब घमासान मच गया है। राकांपा पहले से ही नाराज चल रही है और अब तो उसके नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व को चेतावनी देनी आरंभ कर दी है। राकांपा ने कांग्रेस को चेतावनी दी है कि यदि संपग गठबंधन के लिए समन्वय समिति और सहयोगियों के साथ उचित व्यवहार जैसी उसकी मांगों का बुधवार तक समाधान नहीं निकलता है तो वह सरकार से अलग हो सकती है। शरद पवार के नेतृत्व वाली पार्टी ने यह भी संकेत दिया है कि अगर वह केन्द्र सरकार से अलग होती है तो इसका असर महाराष्ट्र में गठबंधन पर भी पड़ेगा क्योंकि राज्य के नेता कांग्रेसनीत मंत्रिमंडल से अलग होने के पक्ष में है। राकांपा महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार के साथ पिछले 13 साल से गठबंधन में है। अभी सहयोगी राकांपा के साथ कांग्रेस की तकरार थमी भी नहीं थी कि पार्टी के भीतर भी बगावत शुरू हो गई है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के खिलाफ उन्हीं के कांग्रेस विधायकों ने उनकी शिकायत पार्टी हाईकमान से की है। इनका कहना है कि चव्हाण अपनी मनमानी कर रहे हैं और वह किसी की नहीं सुन रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और विलासराव देशमुख समर्थक 42 विधायकों ने एक शिकायत पत्र हाईकमान को लिखा है। पत्र में पार्टी हाईकमान से मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को तत्काल पद से हटाने की मांग की गई है। क्या यह महज इत्तिफाक है कि इधर शरद पवार एंड कंपनी बगावती तेवर दिखा रही है। उधर पवार दबाव बनाने में माहिर हैं और कांग्रेस नेतृत्व में वह यही काम आजकल कर रहे हैं। कांग्रेस की मुश्किल यह होती जा रही है कि पार्टी को केन्द्राrय और पादेशिक स्तर पर परस्पर विरोधाभाषी राजनीति से जूझना पड़ रहा है। केन्द्र की सियासत कहती है कि उसे सहयोगी और समर्थक दलों से अपने रिश्ते रखने चाहिए ताकि मनमोहन सिंह सरकार की स्थिरता बनी रहे जबकि उसकी पादेशिक इकाई इसके एकदम खिलाफ है क्योंकि उन्हें वहां उन्हीं राजनीतिक दलों से दो-दो हाथ करने पड़ रहे हैं जिनको केन्द्र से आजकल बेहद दुलार मिल रहा है। इसमें पहला नंबर तृणमूल कांग्रेस के साथ का है। दिल्ली में कांग्रेस को जितनी ज्यादा तृणमूल की जरूरत है पश्चिम बंगाल की कांग्रेस इकाई को उतनी ही नफरत तृणमूल से है। उसे रात-दिन तृणमूल से अपमानित होना पड़ रहा है। पदेश कांग्रेस अध्यक्ष पदीप भट्टाचार्य तो कई बार सरेआम कह चुके हैं कि आखिर केन्द्र में सत्ता की खातिर हम कब तक तृणमूल कार्यकर्ताओं से पिटते रहेंगे? ऊपर से ममता आए दिन यह कहते नहीं थकतीं कि कांग्रेस उसका साथ कल छोड़ती हों तो आज ही छोड़ दे। अब तो ममता ने खुलेआम यह घोषणा कर दी है कि पश्चिम बंगाल का आगामी विधानसभा चुनाव वह बिना कांग्रेस के ही लड़ेंगी। पिछली बार भी टिकट बंटवारे में कांग्रेस को तृणमूल से बेहद अपमानित समझौता करना पड़ा था। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस राकांपा को लेकर यही दुखड़ा रो रही है। वहां तो वह सत्ता में बराबर की भागीदार हैं और मलाई वाले दमदार मंत्रालय राकांपा ने अपने हाथों में रखे हैं। महाराष्ट्र की कांग्रेस इकाई को यह लग रहा है कि घोटाले पर घोटाले तो राकांपा कर रही है और खामियाजा उसे न भुगतना पड़ जाए। यही वजह है कि इकाई एक श्वेत पत्र लाने की मांग कर रही है। शरद पवार एंड कंपनी को यह डर सता रहा है कि अगर किसी किस्म का श्वेत पत्र महाराष्ट्र सरकार लाती है तो उनके घोटालों का पर्दाफाश हो जाएगा जिसका खामियाजा उसे आगामी विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा। पृथ्वीराज चव्हाण एक ईमानदार नेता की छवि रखते हैं और वह पवार एंड कंपनी के दबाव, ब्लैकमेलिंग में नहीं आ रहे। इसलिए अब पवार का पयास है कि चव्हाण को हटवा दिया जाए। इसी तरह उत्तर पदेश कांग्रेस इकाई भी दुखी है। पदेश के सांसद कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार दोनों हाथों से सपा को पैसा लुटा रही है। जिसका इस्तेमाल उसके ही खिलाफ होना है। यदि सपा से इसी तरह रिश्ते कांग्रेस निभाती रही तो अगले चुनाव में कांग्रेस को कोई पूछने वाला नहीं होगा। 22 की जगह वह दो सीटों तक ही सीमित हो जाएगी। कुल मिलाकर कांग्रेस हाईकमान को यह फैसला करना होगा कि केन्द्र में सत्ता की खातिर वह राज्यों में अपनी इकाइयों को कितना नुकसान पहुंचाने को तैयार है। वैसे अभी तक तो कांग्रेस हाईकमान की यही नीति रही है कि राज्य जाएं भाड़ में केन्द्र में सत्ता बरकरार रहनी चाहिए।

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