Wednesday 4 July 2012

प्रधानमंत्री जी अब तो आपके पास कोई बहाना भी नहीं है

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 4 July 2012
अनिल नरेन्द्र
श्री प्रणब मुखर्जी को वित्त मंत्री से हटाकर राष्ट्रपति पद पर पहुंचाने की कवायद के पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह भी रहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह प्रणब दा के कामकाज से खुश नहीं थे। प्रधानमंत्री कुछ हद तक देश की खराब आर्थिक स्थिति के लिए वित्त मंत्रालय को जिम्मेदार मानते थे। तभी प्रणब को हटाने के लिए डॉ. मनमोहन सिंह बहुत इच्छुक थे। वे सफल भी हुए। अब प्रणब दा वित्त मंत्री नहीं हैं और मनमोहन सिंह ने खुद वित्त मंत्रालय सम्भाल रखा है। अब डॉ. सिंह के पास कोई बहाना नहीं रहता और उन्हें देश की आर्थिक गिरावट को थामने की भूमिका निभानी चाहिए। वह अपनी पुरानी टीम को भी साथ लाने में कामयाब रहे। डॉ. मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय का प्रभार लेने के पहले ही दिन योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन और प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पुलक चटर्जी के साथ आर्थिक स्थिति, रुपए में आ रही गिरावट, बढ़ती महंगाई और निवेश धारणा मजबूत बनाने पर चर्चा की। इसके साथ ही उन्होंने वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु, वित्त सचिव आर.एस. गुजराल, आर्थिक मामलों के विभाग सचिव आर. गोपालन से भी इन मुद्दों पर चर्चा की। प्रधानमंत्री के वित्त मंत्रालय का प्रभार सम्भालने के पहले तीन दिनों में ही जिस तरह सेंसेक्स साढ़े पांच सौ अंक चढ़ा है और विदेशी निवेशकों की भारतीय बाजारों में वापसी हुई है उससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या पिछले एक-डेढ़ सालों से भारतीय अर्थव्यवस्था पर छाए दुर्दिन अब खत्म होने वाले हैं? हमारी अर्थव्यवस्था काफी कठिन दौर से गुजर रही है। वित्त घाटा, चालू खाता घाटा, मुद्रास्फीति और औद्योगिक विकास दर जैसे आर्थिक आंकड़ों की तुलना जिस तरह बार-बार 1991 से की जा रही है, उससे तो लगता है कि और चीजों से ज्यादा सवाल अभी खुद मनमोहन सिंह पर ही हैं। जिस नई भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव खुद मनमोहन सिंह ने 1991 में रखी थी अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ी है। घटक दलों के दबाव में अक्सर यूपीए-2 सरकार वह जरूरी कदम उठा नहीं पाती जो समयानुसार आवश्यक हैं। क्या मनमोहन सिंह ने इस समस्या का भी कोई समाधान सोचा है? सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था में फीलगुड का छौंका लगाने के बाद वित्त मंत्रालय का कामकाज सम्भाल रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नजर अब देश के खस्ताहाल खजाने पर भी पड़नी चाहिए। सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रहा घाटा एक चुनौती है। सब्सिडी की वजह से बढ़ रहा सरकारी खर्च, विभिन्न वोट खींचने की खर्चीली राजनीतिक स्कीमें इन पर नियंत्रण पाने के उपाय मनमोहन सिंह को ढूंढने होंगे। औद्योगिक गति को कैसे बढ़ाया जाए, देश में आई मंदी और मायूसी दोनों को कैसे दूर किया जाए मनमोहन सिंह के लिए इम्तिहान से कम नहीं है। पूरा देश उनकी ओर देख रहा है। अब तो मनमोहन सिंह यह भी बहाना नहीं कर सकते कि उनके काम और नीतियों में कोई बाधा डाल रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का पूरा हाथ मनमोहन पर है इसलिए अब तो वह यह साबित करें कि वह वाकई एक अर्थशास्त्राr हैं जिनका लोहा भारत सहित पूरी दुनिया मानती है।

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