Tuesday 24 July 2012

शरद पवार की लड़ाई नम्बर दो की हैसियत की नहीं है

तमाम कोशिशों के बावजूद एनसीपी और कांग्रेस नेतृत्व के बीच आई राजनीतिक दरार कम नहीं हो पा रही है। क्योंकि इस बार एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने काफी अड़ियल रुख अपना लिया है। लगता अब यह है कि शरद पवार एण्ड कम्पनी अपनी राह तय कर चुके हैं। एनसीपी के प्रवक्ता डीपी त्रिपाठी के मुताबिक एनसीपी सुप्रीमो ने अभी तक इतना खुलकर सरकार के कामकाज का विरोध नहीं जताया था। इसलिए महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक तालमेल के स्तर पर सब कुछ नहीं सुधरा तो एनसीपी सरकार से किनारा करने का मन बना चुकी है। क्या पवार इसलिए कैबिनेट छोड़ना चाहते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व उन्हें मनमोहन सरकार में नम्बर दो की पोजीशन देने को तैयार नहीं है? सूत्रों का कहना है कि यह तो बहाना है। असल में पवार का ज्यादा झगड़ा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के तौर-तरीकों से है। काफी दिनों से पवार और पृथ्वीराज की तनातनी चल रही है। बताया जाता है कि पवार और उनके दल के नेताओं के हितों के खिलाफ राज्य सरकार ने जो मुहिम छेड़ रखी है उससे एनसीपी खफा है। यही वजह है कि मंत्रिमंडल में वरिष्ठता क्रम में दूसरे नम्बर की आड़ में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने यूपीए सरकार पर भारी-भरकम दबाव बनाकर सरकार से बाहर जाने की बात कह दी है। शरद पवार की असल नाराजगी की वजह महाराष्ट्र से है। महाराष्ट्र पवार का असली गढ़ है। जब से पृथ्वीराज चव्हाण मुख्यमंत्री बने हैं तभी से कांग्रेस और एनसीपी में तनातनी चल रही है। पवार एण्ड कम्पनी का आरोप है कि कांग्रेस ने सोची-समझी रणनीति के तहत मराठवाड़ा में एनसीपी का प्रभाव कम करने के लिए वहां की सारी ग्रामीण परियोजनाओं को दबाकर रखा हुआ है। महाराष्ट्र सरकार स्वयं श्री पवार, उनकी पुत्री सुप्रिया सुले व प्रफुल्ल पटेल के चुनाव क्षेत्रों की विभिन्न परियोजनाओं को लटकाने की रणनीति पर चल रहे हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी की मिलीजुली सरकार है। शरद पवार के भतीजे अजीत पवार वित्त मंत्री होने के बावजूद लाचार समझे जा रहे हैं। पृथ्वीराज चव्हाण सारी फाइलें दबाए बैठे हैं। यह भी पता चला है कि शरद पवार की नाराजगी की एक बड़ी वजह यह भी है कि उनके महाराष्ट्र मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान एक सिंचाई परियोजना में आवंटित बजट से 26,000 करोड़ रुपए से अधिक खर्च की भी जांच है। इस परियोजना में पवार के करीबियों को ठेके मिले थे। अब इस परियोजना पर हुए खर्च की जांच रफ्तार को जहां पवार धीमा करना चाहते हैं वहीं एक अन्य मामला महाराष्ट्र सदन घोटाले से जुड़ा है। दिल्ली में बने दूसरे महाराष्ट्र सदन के निर्माण के समय इसकी योजना राशि 52 करोड़ रुपए थी। अन्त में यह सदन भवन तैयार होते-होते इसकी राशि 152 करोड़ रुपए पहुंच गई। महाराष्ट्र सदन घोटाले की जांच की मांग को लेकर भाजपा नेता किरीट सोमैया ने हाल ही में राष्ट्रपति को भी शिकायत की थी कि इस मामले में भी महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल के करीबी रिश्तेदार को ठेका दिया गया था। महाराष्ट्र सदन में घोटाले की बात सामने आने पर खुद राष्ट्रपति ने अपने को इसके उद्घाटन कार्यक्रम से अलग कर लिया था। शरद पवार को शंका है कि जिस तरह भाजपा इस मुद्दे को उठा रही है उससे यदि मामले की जांच हुई तो उनकी पार्टी के लिए समस्या खड़ी हो सकती है। प्रफुल्ल पटेल पर भी तरह-तरह के आरोप हैं। खुद शरद पवार के कृषि मंत्री की हैसियत से खाद्यान्न आयात-निर्यात के मामले भी विवादों में हैं। इसलिए लड़ाई की जड़ नम्बर दो की हैसियत की नहीं, यह मामला ज्यादा गम्भीर है जो इतनी आसानी से शायद ही सुलझे। दरअसल शरद पवार को इस बात की भी चिन्ता है कि कहीं कांग्रेस नेतृत्व इस साल के अन्त तक लोकसभा के मध्यावधि चुनाव न करवा ले। फिर महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव भी 2014 में होने हैं। वैसे लोकसभा चुनाव अगर अपने निश्चित समय अप्रैल 2014 में होते हैं तो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अक्तूबर 2014 में होंगे। अगर लोकसभा चुनाव में एनसीपी की स्थिति कमजोर होती है तो इसका प्रभाव महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पर सीधा पड़ सकता है। सवाल तो अब महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार के भविष्य को लेकर भी खड़ा हो रहा है। दूसरी ओर शिवसेना में आई दरार समाप्त हो रही है। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के फासले कम हो रहे हैं। अगर शिवसेना एक हो जाती है तो शिवसेना, मनसे और भाजपा महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की छुट्टी करा सकती है। इसलिए मामला ज्यादा गम्भीर है। यह लड़ाई सिर्प नम्बर दो की हैसियत की नहीं उससे ज्यादा पेचीदा है।

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