Wednesday 18 July 2012

कन्या भ्रूण हत्या रोकने हेतु खाप महापंचायत का सराहनीय फैसला

बागपत जिले की एक खाप पंचायत द्वारा महिलाओं पर ताजा पाबंदी के अजीबोगरीब फरमान से तो हंगामा होना ही था। पंचायत ने तालिबानी स्टाइल में जारी किए फरमान में 40 साल से कम उम्र की महिला के अकेले घर से निकलने पर रोक लगा दी। महिलाएं अकेले बाजार न जाएं। गांव की महिलाओं का सिर हमेशा ढंका होना चाहिए। महिलाएं घर के बाहर मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें। पंचायत के इस फैसले से तूफान खड़ा हो गया। पहले भी खाप पंचायतों के फैसलों पर विवाद हुआ था। चाहे मामला ऑनर किलिंग का रहा हो या कोर्ट मैरिज व न्यायपालिका के फैसलों के खिलाफ फतवे जारी करना रहा है। जब पंचायतों ने देखा कि हंगामा ज्यादा हो गया तो उन्होंने एक और फरमान जारी कर दिया। इस बार सवा सौ खाप महापंचायत कन्या भ्रूण हत्या के कड़े विरोध को लेकर खड़े हो गए। हरियाणा के जीन्द के बीबीपुर गांव में आयोजित महापंचायत में दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सवा सौ से ज्यादा खापों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। हरियाणा और राजस्थान के कुछ इलाके कन्या भ्रूण हत्या के लिए बदनाम रहे हैं। चन्द रोज पहले उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में हुई पंचायत ने जहां महिलाओं के हितों पर कुठाराघात करने वाले प्रस्ताव पारित किए थे, वही शनिवार को ऐलान किया कि कन्या भ्रूण हत्या को अपने स्तर पर रोकने का प्रयास करेंगे और साथ ही पंचायत ने सरकार से मांग की कि वह भ्रूण हत्या करने वालों के खिलाफ हत्या का मुकदमा कायम करने का प्रावधान करे। हमें लगता है कि महिलाओं पर पाबंदी लगाने वाले फैसले पर जब पंचायतों ने रिएक्शन देखा तो अपनी बिगड़ती छवि सुधारने के लिए अविलम्ब भ्रूण हत्या का प्रस्ताव लाया गया। खाप को समझना होगा कि महिला संबंधी उनका पहला फरमान सभ्य समाज के हमारे दावे को कमजोर करने के साथ ही देश की छवि पर बट्टा भी लगाते हैं। सामाजिक सुधार की ऐसी कोई पहल कामयाब नहीं हो सकती जो महिलाओं पर पाबंदी के रूप में सामने आती है। खाप पंचायत के फैसले सामंती सोच के परिचायक हैं। ऐसे फैसलों पर अमल करने से कोई समाज-समूह आगे नहीं बढ़ सकता, लेकिन यह भी सही है कि केवल कानून के बल पर समाज की नकारात्मक सोच को नहीं बदला जा सकता। इस मामले में सबसे दुःखद यह है कि समाज और राजनीति के जिन प्रतिनिधियों को लोगों को दिशा देने और उन्हें समझाने-बुझाने के लिए आगे आना चाहिए था वे इस या उस बहाने खाप पंचायत की हां में हां मिलाते नजर आ रहे हैं। इससे पता चलता है कि दिशा दिखाने वाले खुद दिशाहीन होते जा रहे हैं। हम खाप पंचायत के ताजे फैसले का स्वागत करते हैं। महिला भ्रूण हत्या की जितनी भी निन्दा की जाए, कम है पर केवल कानूनों से ही लोगों का नजरिया नहीं बदला जा सकता। हां पंचायतों द्वारा इसके खिलाफ आवाज उठाने से माहौल और सोच, दोनों में फर्प जरूर पड़ता है। जहां तक महिलाओं के सिर ढंकने की बात है तो इस्लाम में भी पर्दा सिस्टम है, गांवों में घूंघट का रिवाज है, यह नई बात नहीं। हां तरीका यह नहीं चल सकता। कन्या भ्रूण हत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए महाराष्ट्र इस अपराध को हत्या की श्रेणी में लाना चाहता है। इसके लिए उसने पिछले हफ्ते केंद्र सरकार से सलाह मांगी है। यदि केंद्र राजी होता है तो गैर-कानूनी गर्भपात करने वाले डाक्टर और इसमें लिप्त लोगों (परिजन और रिश्तेदार) को हत्या का दोषी माना जाएगा। उत्तर प्रदेश में कानून बनाने को तैयार प्रदेश की नई सरकार का कहना है कि यदि धार्मिक संस्थाएं और धार्मिक नेता आगे आएं तो वे कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कानून बनाने को तैयार हैं। पिछले महीने विधानसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए संसदीय कार्य मंत्री आजम खान ने कहा था कि वर्तमान कानून सख्त नहीं है। उन्होंने कहा कि इस जघन्य अपराध को हत्या की श्रेणी में लाया जाना चाहिए।

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