Tuesday 31 July 2012

अन्ना के आंदोलन को पब्लिक रिस्पांस की कमी?


                                Published on 1 August, 2012                             
अनिल नरेन्द्र

जन्तर-मन्तर पर अनशन कर रही टीम अन्ना के समर्थकों में लगातार कमी आ रही है, कम से कम अनशन स्थल पर भीड़ का अभाव है। भीड़ के लिए तरसते अन्ना के आंदोलन में थोड़ी जान बाबा रामदेव ने आकर पूंकी। रामदेव के साथ पहुंचे करीब 2000 लोगों ने माहौल थोड़ी देर के लिए जरूर बदल दिया लेकिन अन्ना के समर्थन में जैसी भीड़ रामलीला मैदान में इकट्ठी हुई थी वैसे अब नहीं आ रही। कई-कई दिन तो मुश्किल से चार-पांच सौ लोग ही आंदोलन स्थल पर नजर आए। झंडे, टोपी, टी-शर्ट बेचने वाले भी निराश हैं। उन्होंने सामान ज्यादा बना लिया है और खरीददार गायब हैं। इस दयनीय स्थिति के लिए टीम अन्ना खुद ही जिम्मेदार है। वह पहले दिन से न केवल भ्रमित दिख रही है बल्कि अपने भ्रम का प्रदर्शन भी कर रही है। बार-बार अपना स्टैंड बदलना जनता को पसंद नहीं आ रहा। पहले यह कहा गया कि जनलोकपाल के लिए आंदोलन है फिर स्टैंड शिफ्ट हो गया और केंद्र सरकार के 15 भ्रष्ट मंत्रियों को निशाने पर लाया गया। इस सूची में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को भी शामिल कर लिया गया। इससे जनता थोड़ी गुमराह हो गई और जनता में अन्ना के आंदोलन के प्रति थोड़ा मोहभंग हो गया। खुद अन्ना हजारे ने प्रणब मुखर्जी को कठघरे में खड़ा करने की अपनी और अपने सहयोगियों की कोशिश खारिज कर दी। टीम अन्ना के अरविन्द केजरीवाल के विवादास्पद बयानों ने आग में घी का काम किया। आरएसएस से लेकर भाजपा सहित लगभग सभी राजनीतिक दल आंदोलन के विरोध में उतर आए। बाबा रामदेव आए पर बाबा और अरविन्द केजरीवाल के मतभेद मंच पर ही स्पष्ट हो गए। इधर बाबा के सहयोगी बालकृष्ण की गिरफ्तारी से भी जनता का मोहभंग होना स्वाभाविक ही था। अब स्थिति यह है कि यह भी स्पष्ट नहीं कि टीम अन्ना में कितना विचारों का एका है और अन्ना और रामदेव में कितना एका है? कोई आश्चर्य नहीं कि इस सबके चलते समर्थकों में जोश का संचार नहीं हो पा रहा है। समर्थकों की जो स्थिति नई दिल्ली में देखने को मिल रही है, कुछ वैसी ही स्थिति देश के अन्य हिस्सों में भी है। कहीं भी बड़ी संख्या में लोग इस आंदोलन के साथ नहीं जुट रहे हैं। बेहतर होता कि टीम अन्ना को पहले से इसका आभास हो जाता कि बदले हुए माहौल में केवल यह शोर-शराबा करने से बात बनने वाली नहीं है, क्योंकि हर तरफ भ्रष्टाचार व्याप्त है। फिर अन्ना की टीम को यह तो साफ हो ही गया था कि कोई भी सांसद, विधायक, नौकरशाह दिल से अन्ना के आंदोलन का समर्थन नहीं करता। आम जनता इस भ्रष्टाचार से अच्छी तरह  परिचित है और इस नतीजे पर पहुंचती जा रही है कि वर्तमान राजनीतिक माहौल में कोई ठोस सुधार नहीं हो सकता। जरूरत तो इस बात की है कि टीम अन्ना खुद आत्ममंथन करे कि आखिर क्यों जनता उनके आंदोलन से उत्साहित नहीं? क्यों यह उत्साह कम होता जा रहा है? अन्ना आंदोलन में भीड़ की कमी से  बेशक सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी प्रसन्न होगी पर उसे यह नहीं समझना चाहिए कि भ्रष्टाचार का मुद्दा ही समाप्त हो गया है। भ्रष्टाचार से निपटने में यह सरकार पहले भी असफल थी और आज भी है।


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