Published on 2 August, 2012
अनिल नरेन्द्र
सोमवार का दिन भारतीय रेलवे के लिए काला दिन कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। एक तरफ तो पूरा उत्तर भारत अंधेरे में डूबा हुआ था वहीं सोमवार को एक साथ तीन रेल दुर्घटनाओं ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। रेलवे ने एक नया रिकॉर्ड भी सोमवार को यूं स्थापित किया। तीन रेल दुर्घटनाओं में लगभग 40 लोगों की मौत हो गई। सबसे दिल दहलाने वाला हादसा तो तमिलनाडु एक्सप्रेस में हुआ जब अचानक भीषण आग लगने से ट्रेन के एक स्लीपर डिब्बे में मीठी नींद में सो रहे 32 यात्री पलक झपकते राख के ढेर में बदल गए। नई दिल्ली से चेन्नई जा रही तमिलनाडु एक्सप्रेस की बोगी संख्या एस-11 में सोमवार तड़के आग तब लगी जब 110 किलोमीटर की गति से जा रही यह ट्रेन तीन घंटे में अपने गंतव्य पर पहुंचने वाली थी। आग कैसे लगी, इस पर अलग-अलग बातें हैं। रेल मंत्री मुकुल रॉय के अनुसार, उन्हें डिवीजनल रेलवे मैनेजर ने बताया कि ट्रेन में विस्फोट हुआ था। मुकुल रॉय के अनुसार किसी यात्री के सामान में ऐसी रासायनिक सामग्री रखी थी जिसके कारण आग से पलक झपकते पूरा डिब्बा ही स्वाहा हो गया। मुकुल रॉय ने क्या अपनी जान बचाने के लिए यह एंगल दिया है या यह सच्चाई है, इसका पता तो जांच के बाद ही लगेगा। अगर यह सही है तो न तो हम डिब्बे की बिजली व्यवस्था के शॉर्ट सर्पिट पर अंगुली उठा सकते हैं और न ही रेलवे के उस दावे पर सवाल दागा जा सकता है कि स्लीपरों के निर्माण में अग्नि निरोधक वस्तुएं इस्तेमाल क्यों की जा रही हैं ताकि आग लगने पर इसका फैलना तो कम से कम रोका जा सके। मुकुल रॉय ने हाल ही में पद्भार सम्भाला है। उनसे उम्मीद की जाती है कि यात्रियों की सुरक्षा उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। रेलवे मंत्रालय को ममता के कार्यकाल में बहुत नुकसान हुआ है। अब मुकुल रॉय से बहुत उम्मीदें हैं। बिना जांच के इस प्रकार की अटकलें लगाना उन्हें शोभा नहीं देता। सच्चाई चाहे कितनी भी तल्ख क्यों न हो, उससे भागने की कोशिश भविष्य को और खतरनाक बना देती है। तमिलनाडु एक्सप्रेस की यह दिल दहलाने वाली घटना के पीछे उसी दिन हुए दो और हादसों की ओर जनता का ध्यान कम ही जा सका। उसी दिन पंजाब और हरियाणा में भी रेल से जुड़े दो हादसे हुए जिनमें चार स्कूली बच्चों सहित छह लोगों की जान चली गई। अमृतसर के निकट पैसेंजर ट्रेन ने एक स्कूली बस को टक्कर मार दी तो बहादुरगढ़ के पास एक ट्रक और ट्रेन की टक्कर हो गई। रेल मंत्री सम्भवत इन दुर्घटनाओं के लिए बस और ट्रक चालक की लापरवाही को जिम्मेदार बताएंगे कि वे क्यों ट्रेन की राह पर आ गए। शायद वह यह चर्चा न करना चाहें कि डेढ़ सौ वर्ष से भी उम्रदराज भारतीय रेल आज भी क्यों हजारों असुरक्षित गुमटियों का बोझ ढोती दिखाई दे रही है? आमतौर पर यह असुरक्षित गुमटियां छोटे शहरों या कस्बों के पास होती हैं जिसमें गेट तक नहीं होता जो लाइन पार करने वाले वाहनों व इंसानों को तेजी से आ रही ट्रेन की चेतावनी दे सके। रेल मंत्रालय को अपने गिरेबां में झांकना चाहिए और सुरक्षा उपायों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए बनिस्बत दूसरों को दोष देने के।
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