Thursday, 30 August 2012

कांग्रेस-भाजपा दोनों आर-पार की लड़ाई के मूड में


 Published on 30 August, 2012

 

अनिल नरेन्द्र

 

कोलगेट के मुद्दे पर अब भाजपा और कांग्रेस के बीच जंग और तेज हो गई है। दोनों बड़े दलों ने एक-दूसरे पर हल्ला बोल दिया है। पिछले छह दिनों से संसद ठप पड़ी है। दोनों दलों में तल्खी इस हद तक बढ़ गई है कि दोनों पार्टियों के नेता अब खुलकर एक-दूसरे पर तल्ख से तल्ख टिप्पणियां कर रहे हैं। मंगलवार को सुबह कांग्रेसी संसदीय दल की बैठक हुई। बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक बार फिर आक्रामक तेवर दिखाते हुए अपने सांसदों से कहा कि कोयला मामले में सरकार को कुछ भी छिपाने को नहीं है और न ही सरकार ने कोई गलत काम किया है। ऐसे में डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भाजपा राजनीतिक षड्यंत्र के तहत देश को गुमराह करने में जुटी है। क्योंकि ब्लैकमेलिंग भाजपा की रोटी-रोजी बन गई है। उधर लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने भी आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है। वे अभी तक इस मामले में यूपीए सरकार और प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा कर रही थीं। लेकिन प्रधानमंत्री के भाषण के बाद उनके स्वर सरकार के खिलाफ और तीखे हो गए। सरकार के साथ ही उन्होंने इस मामले में कांग्रेस नेतृत्व को भी लपेट लिया। उन्होंने अपनी खास शैली में कहा कि कोयला आवंटन के खेल में जो पैसा बनाया गया, वह सरकारी खजाने में नहीं गया बल्कि मोटा माल कांग्रेस के खजाने में गया है। उन्होंने चुनौती के तेवरों में यह आरोप दोहराया कि वे यह गम्भीर आरोप लोकसभा में विपक्ष की नेता की हैसियत से लगा रही हैं। यह बात वह पूरी जिम्मेदारी से कह रही हैं। कांग्रेस ने विपक्ष का एका तोड़ने के लिए अपनी चालबाजियां शुरू कर दी हैं। उधर सीपीएम ने तो इसे मैच फिक्सिंग करार दे दिया है कि यह कांग्रेस और भाजपा के बीच महज नौटंकी है क्योंकि कोयला आवंटन घोटाले में दोनों ही शामिल हैं। इसलिए सारे मामले को दबाने के लिए यह नौटंकी हो रही है। मैच फिक्सिंग हो रही है। कांग्रेस और सरकार इस समय चौतरफा दबाव में है। कांग्रेस रणनीतिकारों को दरअसल समझ नहीं आ रहा कि वह आगे कैसे कदम बढ़ाएं। कांग्रेस ने विपक्ष पर दबाव बनाने हेतु यह उड़ा दिया कि सरकार अगले सप्ताह लोकसभा में विश्वास मत का प्रस्ताव लाएगी ताकि विपक्ष को बड़ी राजनीतिक शिकस्त दी जा सके। कांग्रेस के प्रवक्ता पीसी चॉको दो दिन पहले ही भाजपा नेतृत्व को चुनौती दे चुके हैं कि उसमें दम है तो वह संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर दिखाए। उधर भाजपा का लगता है कि मूड आर-पार की लड़ाई का है। कोई साथ दे या न दे, भाजपा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अकेले लड़ाई लड़ने को तैयार है। इसीलिए भाजपा भ्रष्टाचार पर आक्रामक रुख अपना रही है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि अगले साल भी जिन आधा दर्जन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं उनमें भाजपा-कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला होगा। राजनीतिक स्तर पर कांग्रेस को घेरने के लिए भाजपा जो आक्रामकता छह माह बाद दिखाती, उसे वह अब अभी से छह माह पहले से ही दिखाने लगी है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस को सीधा कठघरे में खड़ा करके भाजपा 2014 या उससे पहले होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए खुद को राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का एकमात्र विकल्प के रूप में खड़ा कर लेना चाहती है। लिहाजा भाजपा भ्रष्टाचार की इस लड़ाई या अपनी राजनीतिक रणनीति के हिसाब से ही चल रही है। अब देखना यह है कि आर-पार की लड़ाई में आगे क्या होता है?

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