Published on 7 August, 2012
अनिल नरेन्द्र
संसद का मानसून सत्र 8 अगस्त से शुरू होने जा रहा है। यह सत्र मनमोहन सिंह की यूपीए-2 सरकार के लिए जबरदस्त चुनौती लेकर आ रहा है। यह सत्र कई मोर्चों पर पहले से ही घिरी सरकार के लिए मेक या ब्रेक सत्र हो सकता है। सरकार को न सिर्प रुके हुए फैसले पर निर्णायक पहल करनी होगी बल्कि यूपीए के साथी दलों को समेट कर विपक्ष के कड़े तेवर भी झेलने होंगे। देश में इस समय कई राज्यों में सूखे की स्थिति है। पहली चुनौती तो सूखे से निपटने की होगी। सूखे के कारण महंगाई और बढ़ेगी, इससे हाहाकार मचेगा। पहले तो प्रणब दा थे जो संकट मोचन की भूमिका निभाते थे और किसी भी राजनीतिक स्थिति से निपटने में सक्षम थे पर अब उनकी कमी यह सरकार कैसे पूरी करेगी? प्रणब दा सरकार के बेहतर रणनीतिकार, संकट मोचक और कुशल मैनेजर थे, जिनकी कांग्रेस व यूपीए के साथ-साथ विपक्षी दलों के नेताओं के साथ अच्छी ट्यूनिंग थी। गौरतलब है कि इस सत्र में जहां एफडीआई, पेंशन व इंश्योरेंस बिल, महंगाई, तेलंगाना, ब्लैक मनी, आर्थिक विकास जैसे मुद्दे सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे वहीं कांग्रेस की एक दिक्कत सदन में इन सारे मुद्दों पर उसका पक्ष रखने और बचाव करने के लिए प्रणब मुखर्जी जैसा सीनियर नेता और सदन का नेता भी नहीं होगा। पी. चिदम्बरम को नया वित्त मंत्री बनाया गया है। भाजपा सहित कामरेडों की चिदम्बरम से खुंदक किसी से छिपी नहीं है। देखना यह होगा कि चिदम्बरम पर विपक्ष अब क्या रुख अख्तियार करता है, क्या उसका बायकाट अब भी जारी रहेगा? अगर अब भी जारी रहता है तो संसद शायद ही सुचारू रूप से चल सके। मुलायम सिंह यादव मध्यावधि चुनाव की बात कई बार कर चुके हैं। इस सरकार के भविष्य को लेकर अनिश्चितता की स्थिति है। इसलिए भी विपक्ष और ज्यादा हावी रहेगा। कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती अपने सहयोगी दलों की तरफ से भी दिखाई दे रही है। पिछले सेशन तक सहयोगी दलों में सिर्प टीएमसी ही विरोधी सुर अपनाए रहती थी, इस बार एनसीपी, तृणमूल और डीएमके के तेवर भी बदले हुए हैं। इन दलों की तरफ से सरकार में अपनी मौजूदगी की तस्वीर को लेकर भी कांग्रेस पर दबाव रहेगा। एफडीआई, आर्थिक सुधारों से जुड़े बिलों पर जिस तरह से टीएमसी, लैफ्ट और एसपी जैसे दलों का रुख सामने आया है, उसे देखते हुए सरकार की राह आसान नहीं लगती। संगठन के स्तर पर भी कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां खड़ी हैं। इसका असर संसद में भी दिख सकता है। साल के आखिर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश सहित कई राज्यों में चुनाव होने हैं। इस बीच कई राज्यों में प्रदेश कांग्रेस में भी खींचतान चालू है। इनमें हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य शामिल हैं। भ्रष्टाचार का मुद्दा सरकार का पीछा मानसून सत्र में भी नहीं छोड़ेगा। टीम अन्ना मैदान में कूद चुकी है और रामदेव भी संसद सत्र शुरू होने के ठीक एक दिन बाद अनशन कर आंदोलन में उतर आएंगे। विपक्षी और अपने तेवर में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। विपक्ष का मानना है कि सरकार उस मुकाम पर पहुंच चुकी है जहां अब वह और झटके नहीं झेल सकती है और छोटी-सी गलती भी सरकार के पतन का कारण बन सकती है। अगस्त में कई अहम मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना है। कुल मिलाकर हमारी राय में इस मनमोहन सरकार की इस मानसून सत्र में अग्नि-परीक्षा होगी। देखें कि कैसे यह इस परीक्षा में उतरती है।
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