Published on 12
August, 2012
अनिल नरेन्द्र
विपरीत राजनीतिक हालत और उत्तर प्रदेश में कमजोर संगठन को
देखते हुए आगामी लोकसभा में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी क्या अपना संसदीय क्षेत्र
रायबरेली से किनारा करने का मन बना रही हैं या फिर अपनी पुत्री प्रियंका गांधी
बढेरा को राजनीति में उतारने की भूमिका बना रही हैं? यह सवाल हम इसलिए पूछ रहे हैं
क्योंकि सोनिया गांधी अब रायबरेली की देखभाल का जिम्मा प्रियंका को दे रही हैं। हो
सकता है कि सोनिया का बिगड़ता स्वास्थ्य भी उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर रहा हो।
खैर! कारण जो भी हो प्रियंका गांधी बढेरा ने रायबरेली का मोर्चा सम्भाल कर यह
स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह निकट भविष्य में सक्रिय राजनीति में उतरने की
तैयारी कर रही हैं। इसका एक और मतलब भी निकाला जा सकता है वह यह कि राहुल की मांग
व लोकप्रियता में लगातार गिरावट आ रही है और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अब क्या
प्रियंका से राहुल के मुकाबले ज्यादा उम्मीदें हैं? प्रियंका ने रायबरेली में अपना
दरबार शुरू भी कर दिया है। रायबरेली में कांग्रेस की स्थिति भी चिन्ताजनक बन गई
है। हाल के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस न केवल रायबरेली की सभी विधानसभा सीटें
हारी बल्कि एक को छोड़कर उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर भी नहीं आए। लोगों के
खिलाफ होते इस रुझान को याद कर ही सोनिया ने प्रियंका को रायबरेली के लोगों की
समस्या सुनने के लिए दिल्ली में जनता दरबार लगाने को कहा और वहां जाकर लोगों के
दुख-दर्द में हिस्सेदारी करने का निर्देश भी दिया। यह सम्भवत प्रियंका को रायबरेली
से चुनाव में उतारने की तैयारी भी हो सकती है। उस सूरत में सम्भव है कि सोनिया खुद
रायबरेली से 2014 में किनारा कर या तो चुनाव में भाग न लें या फिर कर्नाटक के
बेल्लारी संसदीय चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ें। सब कुछ तय रणनीति के मुताबिक चला
तो सोनिया गांधी अपने बेटे राहुल और बेटी प्रियंका को नई जिम्मेदारी सौंप कर
चुनावी राजनीति से संन्यास भी ले सकती हैं? भले ही यदा-कदा पार्टी के लिए प्रचार
में जाती रहें या फिर ऊपरी तौर पर पार्टी का मार्गदर्शन करती रहें। सोनिया के
करीबी सूत्रों का कहना है कि सोनिया इस वक्त अपने को राजनीति से अलग करने के लिए
उचित समय मान रही हैं और वे पराजित योद्धा की तरह विदा होने के बजाय सम्मान के साथ
उससे दूरी बना लेना चाहती हैं। यदि पार्टी और परिवार ने दबाव बनाया तो सम्भव है कि
वे पार्टी को मजबूती देने हेतु दक्षिण भारत के कर्नाटक के बेल्लारी से चुनाव
लड़ें। प्रियंका के लिए भी रास्ता आसान नहीं। इसका प्रमाण है कि उत्तर प्रदेश के
पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन न कर पाना।
पिछले विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान में प्रियंका की सक्रियता के बावजूद
कांग्रेस को जिस तरह रायबरेली और राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में भी
अपेक्षित नतीजे नहीं मिल सके, उससे यह साफ हो जाता है कि महज उनकी सक्रियता से कुछ
होने वाला नहीं। अब जिस तरह प्रियंका बढेरा को रायबरेली की जिम्मेदारी देकर सक्रिय
राजनीति में उतारने की तैयारी से कहीं न कहीं इस धारणा को बल मिलता है कि
नेहरू-गांधी परिवार का करिश्मा घटता जा रहा है और सोनिया इससे परिचित हैं।
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