Wednesday, 8 August 2012

विसकंसिन गुरुद्वारे में नस्लीय गोलीबारी


 Published on 8 August, 2012

अनिल नरेन्द्र

 

अमेरिका के विसकंसिन प्रांत में रविवार को एक अमेरिकी द्वारा गुरुद्वारे के अन्दर घुसकर फायरिंग करने की घटना ने दुनिया के सारे सभ्य समाज को चौंका दिया है। स्थानीय समय के अनुसार सुबह 10.45 बजे एक गोरा नौजवान जिसने टी-शर्ट पहन रखी थी और जिसके हाथ में 9/11 का टेंटू बना हुआ था, गुरुद्वारे के अन्दर घुसा और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। सात भक्तों की तो मौके पर ही मौत हो गई और दर्जनों घायल हो गए। रविवार को क्योंकि छुट्टी का दिन था इसलिए गुरुद्वारे में ज्यादा भक्तगण एकत्रित थे। ओक क्रीक के बावेल एवेन्यू पर स्थित यह गुरुद्वारा वर्ष 1980 में बनाया गया था। अब इस गुरुद्वारे में खासकर छुट्टियों के दिन सौ से अधिक लोग जमा होते हैं, इसमें बच्चे भी शामिल होते हैं जो गुरुद्वारे में आयोजित पंजाबी व हिन्दी की विशेष शिक्षा लेते हैं। यह पहली बार नहीं जब अमेरिका में सिखों के खिलाफ हिंसा की वारदात हुई हो। अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद बढ़ी असहिष्णुता के चलते बीते एक दशक से सिखों के साथ बदसलूकी की वारदातों के साथ ही घातक हमले की कई बड़ी घटनाएं दर्ज की जा चुकी हैं और न ही गुरुद्वारे को निशाना बनाने का यह पहला मामला है। इससे पहले फरवरी 2012 में मिशिगन में एक गुरुद्वारे में तोड़फोड़ कर नस्लीय टिप्पणियां दीवार पर लिखने की घटना सामने आई थी। दरअसल न्यूयार्प के वर्ल्ड्र ट्रेड सेंटर पर 11 सितम्बर 2001 को हुए हमले की प्रतिक्रिया में हुई हिंसा का पहला शिकार ही एक सिख को बनाया गया था। एरिजोना प्रांत में गैस स्टेशन चलाने वाले दलवीर सिंह सोढी को 15 सितम्बर 2011 को गोलियों से भून दिया गया था। उसी साल 18 नवम्बर को न्यूयार्प स्टेट के पलेरमो में सिख पूजा घर गोबिंद सदन को जला दिया गया था। अमेरिका में सिखों के लिए काम करने वाली संस्था सिख कोएलिशन का कहना है कि 9/11 के बाद सिखों के साथ भेदभाव की 700 घटनाएं हो चुकी हैं। अमेरिका में करीब सात लाख सिख परिवार हैं। लेकिन दाढ़ी और पगड़ी के कारण उन्हें बार-बार निशाना बनाया जाता है। यद्यपि तथ्यों का अंतिम खुलासा होना बाकी है, लेकिन पहली नजर में रविवार की यह घटना नस्लीय घृणा का परिणाम लगती है। नस्लीय श्रेष्ठता का अहंकार इसके पीछे है। गुरुद्वारे की पार्किंग से अन्दर परिसर में निर्दोष सिख श्रद्धालुओं पर गोलियां चलाने वाला 40 वर्षीय गोरा भी उसी नस्लीय दंश से भरा था। हालांकि उसकी पहचान जांच एजेंसियों ने छिपाई हुई है लेकिन कहा गया है कि उसकी बांह पर 9/11 का टेंटू था। इसे मानने में कोई परेशानी नहीं है कि 9/11 की घटना अमेरिकी समाज की चेतना के लिए दुखता का प्रतीक बन गई है। इसलिए उसकी दुखद स्मृति को संजोए रखने वालों को व्यापक अमेरिकी समाज की सहानुभूति स्वाभाविक ही हासिल हो जाती है। उसे राष्ट्राभिमानी बतौर मान लिया जाता है। लेकिन यह नस्लीय दुश्मनी सनक का रूप लेने लगी है। अमेरिका में कुछ लोगों के दिमाग में बैठ गया है कि सिख शक्ल-सूरत और खासकर पगड़ी से मुसलमान जैसे लगते हैं जिन्होंने 9/11 को अंजाम दिया था, इसीलिए इन्हें टारगेट किया जाता है। एक फर्जी अवधारणा और पहचान के बिना उन्हें भून देने के औचित्य पर अमेरिकी सरकार को ही नहीं पूरे अमेरिकी समाज को भी संवेदनशीलता से विचार करने की जरूरत है। अमेरिकी सरकार और समाज 9/11 के बाद एक खास समुदाय के विरुद्ध आवश्यकता से ज्यादा शंकित और घृणा की हद तक असहिष्णु हो गया था। बेशक इसमें कुछ कमी आई है लेकिन जब तक घृणा के इस वातावरण पर रोक नहीं लगती तब तक ऐसी वारदातें होती रहेंगी। सवाल यह भी है कि इस घृणा का शिकार बेकसूर भारतीय सिख या कोई भी अन्य समुदाय कब तक झेलता रहेगा? भारत को कड़ाई से विरोध दर्ज कराना चाहिए और ओबामा प्रशासन से सिखों की सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध का आश्वासन लेना चाहिए। हम देख रहे हैं कि ओबामा सरकार इस दुखद घटना पर क्या स्टैंड लेती है। हम प्रभावित परिवारों से जहां उनका दुख बांटना चाहते हैं वहीं यह भी कहना चाहते हैं कि वह इस अमानवीय एवं अत्यंत दुखी बेला में अकेले नहीं हैं।     

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