Wednesday 1 August 2012

अंधेरे में डूबा उत्तर भारत ः ग्रिड फेल जिम्मेदार कौन?


                             Published on 2 August, 2012                        

अनिल नरेन्द्र


कई ऐसी सेवाएं होती हैं जिसे हम मानकर चलते हैं यानि हम टेकन फॉर ग्रांटेड लेकर चलते हैं, वह अचानक गायब हो जाएं तो हमें पता चलता है कि हम उनके कितने आदी हो चुके हैं और बिना उनके हमारा सारा जीवन ही मानों कुछ समय के लिए रुक-सा जाता है। ऐसी ही श्रेणी में बिजली आती है। सोमवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ जब दिल्ली सहित नौ राज्यों में घंटों बिजली गायब हो गई। नॉर्दर्न ग्रिड फेल हो जाने के  बाद नौ राज्यों में एक साथ बिजली गुल हो गई जिससे हाहाकार मच गया। आठ प्रांतों में 15 घंटे तक सामान्य जनजीवन प्रभावित रहा। उत्तरी ग्रिड फेल होने से दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और चण्डीगढ़ में अंधेरा छा गया। सोमवार सुबह कई घंटों तक रेल और दिल्ली मेट्रो थमी रही, क्योंकि वहां बिजली आपूर्ति बाधित हो गई। 300 ट्रेनों में विलम्ब हुआ जबकि मेट्रो यात्रियों को भारी परेशानी हुई। उत्तरी ग्रिड में ऐसी खराबी 10 साल बाद आई। इससे पहले आठ जनवरी 2002 को यह ग्रिड फेल हुआ था। देश में पांच बिजली ग्रिड हैं। उत्तरी, पूर्वी, उत्तर-पूर्वी, दक्षिणी, पश्चिमी। इनमें से दक्षिणी ग्रिड के अलावा सभी ग्रिड आपस में जुड़े हुए हैं। इसका संचालन पॉवर ग्रिड कारपोरेशन करता है। इसके पास करीब 95 हजार सर्पिट मिली की ट्रांसमिशन लाइन है। बिजली बनाने वाली सरकारी कम्पनी एनटीपीसी के मुताबिक ग्रिड के फेल होने से छह पॉवर प्लांट से 8000 मेगावॉट का उत्पादन प्रभावित हुआ। इनमें रिहंद में 2500 मेगावॉट, सिंगरौली में 2000 मेगावॉट, दादरी में 1820 मेगावॉट, औरेया में 652 मेगावॉट, आरा में 413 मेगावॉट व बदरपुर में 705 मेगावॉट बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ। नॉर्दर्न ग्रिड फेल होने से राजस्थान के रावतभाटा परमाणु बिजली घर की पांच इकाइयां भी ठप हो गईं। इनमें करीब 1100 मेगावॉट बिजली होती है। क्यों होता है ग्रिड फेल? पॉवर केंद्र से लोगों के घरों तक बिजली की आपूर्ति एक निश्चित फ्रीक्वेंसी पर की जाती है। जब यह आपूर्ति फ्रीक्वेंसी सामान्य से बहुत कम या ज्यादा हो जाती है तब ग्रिड फेल हो जाता है। उत्तरी ग्रिड की फ्रीक्वेंसी 48.5 से लेकर 50.2 हर्ट्ज के बीच है। इस रेंज में रहने पर मामूली उतार-चढ़ाव के बावजूद ग्रिड चालू रहता है। ग्रिड में प्रत्येक राज्य का बिजली कोटा निर्धारित होता है। फ्रीक्वेंसी कम होने पर देखा जाता है कि कौन राज्य ज्यादा बिजली खींच रहा है। उसे चेतावनी देकर मना किया जाता है। सोमवार को ग्रिड फेल्योर के लिए राज्यों का गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार भी कम जिम्मेदार नहीं है। राज्य न तो ट्रांसमीशन लाइन बिछाने के लिए केंद्रीय योजना लागू करने में तेजी दिखा रहे हैं और न ही वितरण क्षेत्र में होने वाली हानि को कम करने में पर्याप्त सहयोग कर रहे हैं। नेशनल ग्रिड से ओवर-ड्रॉ करने वाले खलनायक राज्यों में उत्तर प्रदेश सबसे आगे था। यूपी पॉवर ऑफिसर्स के महासचिव शैलेन्द्र दूबे ने बताया कि राज्य में बिजली की मांग 9000 मेगावॉट है। उत्पादन काफी कम है। ऐसे में काफी समय से राज्य नेशनल ग्रिड से ओवर-ड्रा कर रहा है जो कभी-कभी 2500 मेगावॉट तक पहुंच जाता है। समस्या का समाधान आसान नहीं, क्योंकि जितनी बिजली की मांग है उतनी आपूर्ति नहीं। जब तक बिजली का उत्पादन बढ़ता नहीं तब तक सभी राज्यों को थोड़ा अनुशासन से काम लेना होगा। फ्रीक्वेंसी दुरुस्त रखने के लिए हर क्षेत्रीय ग्रिड का अपना लोड डिस्पैच सेंटर होता है। जहां कम्प्यूटरों से इलैक्ट्रॉनिक तरीके से प्रत्येक पॉवर प्लांट से आने वाली बिजली और प्रत्येक राज्य द्वारा ली जाने वाली बिजली पर नजर रखी जाती है। ग्रिड में प्रत्येक राज्य का बिजली कोटा निर्धारित होता है। इस नियंत्रण, वितरण प्रणाली को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। हर राज्य को अपने निर्धारित कोटे के हिसाब से ही बिजली मिलनी चाहिए। कम्प्यूटर के जरिये वितरण होता है तो इसमें कट-ऑफ प्वाइंट सख्ती से लागू हो तभी व्यवस्था सही रह सकती है। वैसे तो हल बिजली उत्पादन बढ़ाने से ही होगा। मांग तो दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाएगी। जहां तक केंद्र का सवाल है तो केंद्रीय विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे को पॉवर फेल्योर के लिए उलटा सम्मानित किया गया है। उन्हें केंद्रीय गृहमंत्री बना दिया गया है।

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