Tuesday 28 August 2012

प्रमोशन में आरक्षण देने के प्रस्ताव पर अटार्नी जनरल की चेतावनी


 Published on 28 August, 2012

  अनिल नरेन्द्र

अनुसूचित जाति व जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण देने संबंधी विधेयक लाने का वादा कर चुकी मनमोहन सिंह सरकार के सामने अब नया पेंच फंस गया है। केंद्र को उसके ही शीर्ष विधि अधिकारी अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने सलाह दी है कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रस्ताव कानूनी तौर पर पुख्ता नहीं है। उन्होंने सरकार को आगाह करते हुए कहा है कि इस विषय पर कोई भी कानून लाते समय सतर्पता बरती जाए। इस तरह के कानून को अदालत में चुनौती दी जा सकती है जबकि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश की ओर से पदोन्नति में आरक्षण देने के कानून को निरस्त कर चुका है। हाल ही में सरकार ने टिकाऊ संशोधन कर एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण का भरोसा राजनीतिक दलों को दिलाया था। वाहनवती ने सरकार को आगाह करते हुए नसीहत देते हुए कहा कि संशोधन के लिए प्रस्तावित कदम मजबूत होने चाहिए, क्योंकि नागरिक अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर लोग कोर्ट में इसे चुनौती देंगे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर सरकार को इस मुद्दे के सभी पहलुओं से अवगत कराते हुए इसमें पेचीदगियों की जानकारी भी दी है। सरकार को अटार्नी जनरल की सलाह को गम्भीरता से लेना चाहिए। वोट बैंक के फेर में सरकार को कोई ऐसा कदम उठाने से बचना चाहिए जो संविधान के खिलाफ हो और जिसे सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी न मिल सके। सुप्रीम कोर्ट ने एन. नागराज फैसले में कहा है कि सरकार तभी प्रमोशन में आरक्षण दे सकती है जब उसके पास इस बात का आंकड़ा मौजूद हो कि उच्च पदों पर पिछड़े वर्गों के लोगों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। यह आंकड़ा जुटाना भारी काम है। कोर्ट ने इस आंकड़े के अभाव में ही 27 अप्रैल को यूपी सरकार का प्रमोशन में आरक्षण देने का कानून रद्द कर दिया था। दरअसल प्रमोशन में आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत किया जाता है। इस अनुच्छेद में प्रावधान है कि सरकारी प्रमोशन में आरक्षण तभी दे सकते हैं जब ये सुनिश्चित कर सकें कि पिछड़े वर्ग का उच्च पदों पर `पर्याप्त प्रतिनिधित्व' नहीं है। समस्या इन्हीं `पर्याप्त प्रतिनिधित्व' शब्दों से है। कोर्ट यही पूछता है कि क्या सरकार ने आरक्षण वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों में `पर्याप्त प्रतिनिधित्व' का अध्ययन करवाया है? पदोन्नति में आरक्षण की जटिलता को सुलझाने के लिए यह सलाह भी शायद ही समस्या का सही तरह से समाधान कर सके कि अन्य पिछड़े वर्गों को भी वैसा ही लाभ मिले जैसा अनुसूचित जातियों-जनजातियों को देने की पैरवी की जा रही है। यदि आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक समरसता लाना और शोषित-वंचित तबकों का उत्थान करना है तो फिर ऐसी किसी व्यवस्था का निर्माण करने से बचना चाहिए जो किसी अन्य वर्गों के हितों को चोट करती हो। यह समझना कठिन है कि अगर सभी राजनीतिक दल ईमानदार हैं तो ऐसी व्यवस्था का निर्माण क्यों नहीं करते जिससे पदोन्नति में किसी भी वर्ग के साथ भेदभाव की गुंजाइश ही न रहे? बेहतर तो यह भी है कि राजनीतिक दल और विशेष रूप से सरकार पदोन्नति में आरक्षण के प्रश्न पर नई व्यवस्था के बजाय पुरानी व्यवस्था में सुधार के माध्यम से ही सुलझाने के बारे में सोच-विचार करें। हां, इसके लिए यह जरूरी है कि सभी दल जिसमें सत्तारूढ़ दल भी शामिल हैं वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठें। अभी तो यही लगता है कि अनुसूचित जातियों-जनजातियों के हितों से ज्यादा उनकी वोटों की चिन्ता है।

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