Published on 14
August, 2012
अनिल नरेन्द्र
दिल्ली सरकार द्वारा हिटलरी फरमान कि
दिल्ली की अदालतों में अदालती फीस में 10 गुना बढ़ोतरी की जा रही है, का सभी
स्तरों पर जमकर विरोध हो रहा है। राष्ट्रीय राजधानी की छह जिला अदालतों में वकीलों
ने मंगलवार को भूख हड़ताल शुरू कर रखी है। ऑल बार एसोसिएशन की समन्वय परिषद ने यह
कहते हुए भूख हड़ताल शुरू की थी कि अदालती फीस में 10 गुना वृद्धि अनुचित है,
क्योंकि इससे मुकदमा करने वाले बुरी तरह प्रभावित होंगे। एसोसिएशन के अध्यक्ष
राजीव जय ने बताया कि वकील दिल्ली सरकार के अदालती फीस बढ़ाने के निर्णय को वापस
लेने की मांग पर भूख हड़ताल पर बैठे हैं। दिल्ली सरकार ने कैबिनेट और दिल्ली के
उपराज्यपाल से स्वीकृति मिलने के बाद पहली अगस्त से दिल्ली में बढ़ी हुई कोर्ट फीस
लागू कर दी। सरकार का कहना है कि नई दरें हाई कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप हैं।
सरकार का यह भी कहना है कि राजधानी में 55 साल के बाद कोर्ट फीस की दरें संशोधित
की गई हैं और इसके लागू होने से अन्य महानगरों में लागू कोर्ट फीस के बराबर हो गई
है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने वकीलों की हड़ताल पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए
कहा कि कोर्ट फीस को विभिन्न कोर्ट की प्रक्रियाओं के आधार पर संशोधित किया गया है
ताकि इन्हें प्रैक्टिकल बनाया जा सके। इस संशोधन का मकसद सरकार के खजाने को भरना
नहीं है। दिल्ली सरकार द्वारा कोर्ट फीस (संशोधन) कानून 2012 पर हाई कोर्ट ने रोक
लगा दी है। रोक लगाते हुए कोर्ट ने सरकार से कहा है कि इस बाबत वकील संगठनों से
बातचीत कर दो हफ्ते में गतिरोध समाप्त किया जाए। पीठ ने यह आदेश उस याचिका की
सुनवाई के दौरान दिया जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (डीएचसीबीए) ने इसे
खारिज करने की मांग करते हुए इस संशोधन को असंवैधानिक बताते हुए सरकार के
क्षेत्राधिकार को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि सरकार का यह कदम जन
विरोधी होने के साथ राज्य के कल्याणकारी उद्देश्य के खिलाफ भी है। कार्यवाहक मुख्य
न्यायाधीश एके सीकरी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि विवाद के मद्देनजर दिल्ली
सरकार इस मुद्दे का हल दो हफ्ते के अन्दर निकाले। सुनवाई के दौरान अतिरिक्त
महाधिवक्ता और डीएचसीबीए के अध्यक्ष एएस चंडियोक ने कहा कि वह यह साबित कर सकते
हैं कि सरकार का यह फैसला संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक नहीं है। हालांकि अदालत
ने दिल्ली सरकार के मुख्य अधिवक्ता नजमी वजीरी की इस दलील पर सहमति जताई कि सरकार
के विधायकी अधिकार को चुनौती नहीं दी जा सकती। कोर्ट फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी को
एक कल्याणकारी राज्य के उस उद्देश्यों के खिलाफ बताया गया जिसमें आम जनता को सस्ता
न्याय दिलाने की बात कही जाती है। याचिका में दलील दी गई कि सरकार का उद्देश्य
सिर्प राजस्व एकत्रित करना ही नहीं होता और इस तरह से न्याय को बेचने की इजाजत
नहीं होनी चाहिए। हाई कोर्ट के फैसले से साफ है कि कोर्ट फीस लगभग 10 गुना बढ़ाने
का दिल्ली सरकार का फैसला सही नहीं है। उदाहरण के तौर पर 20 लाख रुपए के बाउंस्ड
चेक का केस कोर्ट में लड़ने के लिए एक लाख से ज्यादा कोर्ट फीस देनी पड़ेगी। 50
लाख की विल पर दो लाख रुपए कोर्ट चार्ज होगी। जमानत की अर्जी लगाने के लिए सवा
रुपए के पेपर की जगह 50 रुपए, सेशन में 100 रुपए और हाई कोर्ट में 250 रुपए का
स्टाम्प पेपर लगेगा।
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