Saturday 4 August 2012

सुशील कुमार शिंदे को आतंकियों की सलामी


 Published on 4 August, 2012

अनिल नरेन्द्र

 

इसे अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता कि श्री सुशील कुमार शिंदे के गृह मंत्रालय सम्भालते ही पुणे में धमाके हो गए। बतौर ऊर्जा मंत्री ब्लैक आउट हुआ तो बतौर गृहमंत्री बम धमाके। खुद श्री शिंदे ने गृहमंत्री का कार्यकाल सम्भालते ही स्वीकार किया कि उन्हें आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी काबलियत के आधार पर नहीं बल्कि दलित होने के कारण दी गई है। वैसे भी केंद्रीय ऊर्जा मंत्री और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में उनका प्रदर्शन औसत से नीचे ही रहा है। पुणे में  बुधवार शाम सिलसिलेवार चार धमाके हुए। कम तीव्रता वाले इन धमाकों में दो व्यक्ति घायल हो गए। सभी धमाके एक किलोमीटर के दायरे में हुए। शहर के बीचोंबीच व्यस्त जंगली महाराज रोड पर यह ब्लास्ट एक के बाद एक शाम 7.27 बजे से 8.15 बजे के बीच हुए। घटनास्थल पर पुलिस को बैटरी और तार भी मिले हैं। पुलिस ने बताया कि बालगंधर्व थिएटर के पास बमों को ले जा रहा एक व्यक्ति धमाके में घायल हो गया। दयानन्द पाटिल नाम के इस व्यक्ति से पूछताछ की जा रही है। बुधवार के धमाकों की अभी तक किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली है। आखिर इस धमाके के पीछे कौन है और उसका मकसद क्या था? पैटर्न और तरीका एक संगठन की तरफ इशारा करता है जिसे ऐसे धमाके कराने में महारथ हासिल है तो वहीं धमाके की इंटेंसिटी दूसरे संगठन की ओर इशारा कर रही है। इन धमाकों से कई सवाल उभरकर सामने आ रहे हैं। सवाल यह कि धमाके नाकामी है या फिर रिहर्सल? 29 जुलाई 2008 को गुजरात के शहर सूरत में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। पहला सवाल है कि क्या यह साजिश थी या फिर साजिश से पहले की रिहर्सल? इस सवाल का जवाब थोड़ा पेचीदा है। अगर टाइमिंग पुख्ता हो तो आतंकी किसी की जान लेने से क्यों चूकेंगे? मकसद तो वही था लेकिन पूरा क्यों नहीं हुआ या आतंकी ऐसा चाहते ही नहीं थे? सूरत में 29 जुलाई से 30 जुलाई तक सिलसिलेवार 21 जिन्दा बम बरामद हुए लेकिन फटा एक भी नहीं। आखिर क्यों? 25 मई 2011 को हाई कोर्ट के गेट नम्बर सात पर वकीलों की कार पार्किंग में धमाका हुआ। इस धमाके में जानमाल का कोई नुकसान नहीं हुआ। लेकिन इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट में ही एक बड़ा धमाका पांच सितम्बर 2011 को गेट नम्बर पांच के पास हुआ, जहां आम लोगों के पास बनते हैं। नतीजा 14 लोगों की मौत और दर्जनों घायल यानि पहले रेकी और फिर धमाका। पुणे में हुआ ब्लास्ट भी कुछ ऐसा ही इशारा कर रहा है। क्या आतंकी किसी बड़ी वारदात की रेकी कर रहे थे या फिर उन्हें हाई इंटेंसिटी का विस्फोट नहीं मिल पाया और लो इंटेंसिटी से ही धमाका करना पड़ा? सूरत और पुणे में बम रखने का भी तरीका एक जैसा था। टिफिन बॉक्स, साइकिल यानि वैसी चीजें जिसको एक बार कोई भी नजरअंदाज कर दे। पहले हुए धमाकों पर गौर करें तो ऐसे तरीके इंडियन मुजाहिद्दीन अपनाती है। दो बदनाम आतंकी संगठन जो धमाकों के लिए छोटी और शक के दायरे में न आने वाली चीजों का इस्तेमाल करता है। ऐसे में दूसरा सवाल यह है कि क्या बमों को कहीं ओर ले जाया जा रहा था। इस थ्यौरी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यह भी हो सकता है कि बमों को इरादा कहीं और था लेकिन जल्दबाजी और हड़बड़ी में यह तय वक्त और तय जगह से पहले ही फट गए? जबकि सूरत में 21 जगहों पर बम रखे गए और फटा एक भी नहीं यानि सूरत, दिल्ली और पुणे की तस्वीरों को मिलाकर तुलना करें तो दो बातें उभरकर सामने आ रही है। पहली सम्भावना जल्दबाजी हो सकती है और दूसरी सम्भावना दिल्ली हाई कोर्ट धमाकों की तरह पुणे में दहशत की रिहर्सल और अगर इस सम्भावना में दम है तो खतरा टला नहीं है। साजिश में ऐसे कई और बम हो सकते हैं जो तैयार हों और बेगुनाह के खून बहा दें। नए गृहमंत्री को आतंकियों की सलामी।

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