Thursday 9 August 2012

अन्ना ने टीम भंग तो कर दी पर अब आगे क्या?


 Published on 9 August, 2012

अनिल नरेन्द्र

सोमवार को अन्ना हजारे ने अपनी टीम भंग करने की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि जन लोकपाल के काम के लिए टीम अन्ना बनाई गई थी और अब चूंकि सरकार से इस विषय पर कोई बातचीत नहीं होनी है इसलिए टीम अन्ना के नाम से शुरू हुआ काम खत्म होता है और समिति भी समाप्त होती है। उन्होंने कहा कि अब चुनावी तैयारी शुरू होगी। टीम भंग करने के फैसले से खुद अन्ना के कई साथी अप्रसन्न हैं। ये नहीं चाहते थे कि अन्ना टीम भंग करने का यूं फैसला करें पर अन्ना कई मामलों में आहत थे इसलिए उन्होंने भंग करने का फैसला किया। सरकार के सख्त रवैये के चलते टीम अन्ना मोहभंग हो गई थी। उनके भ्रष्टाचार अभियान पर केंद्र सरकार और लगभग सभी राजनीतिक दलों का नकारात्मक रुख रहा। सरकार का एक भी प्रतिनिधि अनशन स्थल पर उनसे बातचीत करने नहीं आया। हाल में लम्बी बीमारी से उठे अन्ना की सेहत भी ठीक नहीं चल रही और अब वह आंदोलन करने की स्थिति में भी नहीं लगते। जनता का गिरता रिस्पांस भी उनके लिए उत्साहवर्धक नहीं रहा। अन्ना ने दुखी मन से कहा कि मुझे भी अब यह समझ आ गया है कि यह सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून नहीं बनाएगी। किसानों, मजदूरों और राइट टू रिजैक्ट कानून नहीं लाएगी। अन्ना ने कहा कि हमारे देश की संसद दो बातों पर एकजुट जरूर है। सारी राजनीतिक पार्टियों के लोग इस मसले पर साथ हैं। पहला यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून बनाने से हर पार्टी डरती है इसलिए सब विरोध कर रहे हैं कि लोकपाल बिल न पास हो। दूसरा सारे सांसद अपना वेतन बढ़ाने के लिए एक साथ खड़े हैं। अब जनता के सामने राजनीतिक विकल्प देना होगा। अब जब अन्ना ने अपना अनशन खत्म कर दिया है और अपनी टीम भंग कर दी है वह पूरी स्थिति पर ठंडे दिमाग से पोस्टमार्टम कर सकते हैं। उन्हें वह कारण ढूंढने होंगे जिनके चलते उनके प्रति जनता के उत्साह में कमी आई। उन्हें अपनी टीम की परफार्मेंस पर भी मंथन करना होगा। जहां तक राजनीतिक विकल्प पेश करने का सवाल है अन्ना का आगे का रास्ता भी आसान नहीं है। अन्ना को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। देश में कभी भी एक मुद्दे पर चुनाव नहीं लड़ा जाता, टीम अन्ना कुछ मुद्दों को लेकर चल रही है, ऐसे में जातिवाद के जिन्न से कैसे निपटेगी? अन्ना खुद कह चुके हैं कि वह तो नगर पालिका का चुनाव भी नहीं जीत सकते, ऐसे में लोकसभा की कितनी सीट जीत पाएंगे? अगर दो-चार जीत भी लीं तो उससे क्या बदलाव आ सकेगा? चुनाव लड़ने के लिए योग्य प्रत्याशी चाहिए। प्रत्याशियों का चयन भी बड़ा काम होता है। राजनीतिक संगठन बनाने या चुनाव लड़ने के लिए पैसा, साधन चाहिए। ये कहां से आएंगे? राजनीति में सफलता के लिए मजबूत संगठन और कमिटिड कार्यकर्ताओं की फौज खड़ा करना इतना आसान नहीं है। ऐसे में कई लोग टीम अन्ना की राजनीतिक मुहिम से अपने आपको अलग रख सकते हैं। लोकसभा उम्मीदवार जैसे प्रयोग जयप्रकाश आंदोलन के दिनों में भी हुए थे पर वे बहुत कारगर साबित नहीं हुए। इसलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को राजनीतिक विकल्प के रूप में आगे बढ़ाना आसान नहीं होगा। वैसे यह चुनौती अकेले इस आंदोलन की नहीं बल्कि देश के लोकतांत्रिक भविष्य की भी है।

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