Friday 17 August 2012

असम की हिंसा के पीछे कहीं विदेशी साजिश तो नहीं?



 Published on 17 August, 2012

अनिल नरेन्द्र

असम में हिंसा की घटनाओं के बीच मनमोहन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि धर्म और भाषा के आधार पर राज्य की मतदाता सूची से 40 लाख मतदाताओं का नाम हटाना सम्भव नहीं है, क्योंकि ऐसा करना असंवैधानिक होगा। केंद्र सरकार ने मतदाता सूची में 40 लाख बंगलादेशी घुसपैठियों के नाम शामिल होने संबंधी गैर-सरकारी संगठन असम पब्लिक वर्क्स के आरोपों को नकार दिया। यह संगठन चाहता है कि संदिग्ध मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से काटे जाएं और उन्हें तत्काल वापस भेजा जाए। असल में जो बात केंद्र की कांग्रेस गठबंधन सरकार और असम में तरुण गोगोई की सरकार स्वीकार नहीं कर रही वह है वोट की राजनीति। इन 40 लाख अवैध बंगलादेशियों के वोटों पर ही गोगोई सरकार टिकी हुई है। असम और बंगलादेश के बीच 270 किलोमीटर लम्बी सीमा में से करीब 50 किलोमीटर सीमा खुली है। यहीं से अवैध घुसपैठ हो रही है। लम्बे समय से इन अवैध घुसपैठियों की वजह से स्थानीय आबादी का अनुपात प्रभावित हो रहा है। इसमें कुल जनसंख्या में मूल असमी लोगों का फीसद लगातार कम हो रहा है। असम में मामला असमी बनाम बंगलादेशियों का नहीं, न ही सवाल हिन्दू बनाम मुस्लिम है, असल मुद्दा है भारतीय बनाम विदेशी। 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में असम समझौता हुआ था जिसमें बंगलादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजने की बात कही गई थी। इस समझौते के प्रावधानों को कभी भी गम्भीरता से लागू नहीं किया गया। असम सरकार पर दबाव बनाने के लिए ही स्थानीय असमियों ने यह आंदोलन छेड़ रखा है। आज वह अपने घरों से बाहर निकाल  दिए गए हैं और शरणार्थी बनकर अपने ही देश में शिविरों में रहने पर मजबूर हैं। तरुण गोगोई सरकार ने समय रहते बचाव कदम तुरन्त नहीं उठाए। अगर हिंसा आरम्भ होते ही वह कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पर्याप्त सुरक्षा बल तैनात करती तो शायद इतनी जानें न जातीं। इस समय भी शरणार्थी शिविरों में 3.60 लाख लोग रह रहे हैं। हिंसा में 73 लोग मारे जा चुके हैं और लाखों बेघर हो चुके हैं। असम में 20 जुलाई से शुरू हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीछे पूर्वोत्तर में सक्रिय पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के हाथ होने की बात भी सामने आ रही है। सुरक्षा एजेंसियों ने एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेजी है। इसमें कहा गया है कि हिंसा के पीछे मकसद असम, पश्चिम बंगाल व बिहार के कुछ जिलों को मिलाकर ग्रेटर बंगलादेश बनाना है। सूत्रों के अनुसार 1979 में इस साजिश का सूत्रपात किया गया। इसमें जमायत-ए-मुजाहिद्दीन, खल्लत-ए-मजलिस, इस्लामिक लिबरेशन टाइगर, हरकत-उल-मुजाहिद्दीन, मुस्लिम एक्शन फोर्स, सद्दाम वाहिनी व मेघालय अल-ए-सुन्नत आदि संगठनों को वर्ष 1992 से सक्रिय किया गया। इसके बाद से असम के सीमावर्ती इलाकों में लगातार हिंसा बढ़ रही है। इन संगठनों के 300 से अधिक स्लीपर सेल राज्य में सक्रिय हैं। इसमें सिर्प एक जाति विशेष नहीं बल्कि सभी जातियों के युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है। सांप्रदायिक हिंसा फैलाने के लिए 14 से 30 आयु वर्ग के मॉड्यूल तैयार किए गए हैं। परीक्षण के दौरान इनका म्यांमार व बंगलादेश के टांगड़ी, खगराचारी व झीना घाटी से लगातार सम्पर्प रहता है। इनको असम, त्रिपुरा, मेघालय व मिजोरम की सीमाओं से प्रवेश कराया जाता है। असम में जारी हिंसा के पीछे विदेशी हाथ होने की प्रबल सम्भावना भी है।

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