Published on 7 August, 2012
अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई कितनी शक्तिशाली है, यह तो सभी जानते हैं पर यह एक लोकतांत्रिक सरकार पर भी हावी है, इसके समय-समय पर उदाहरण मिलते रहते हैं। जरदारी सरकार ने आईएसआई को जवाबदेही बनाने के लिए बाकायदा एक विधेयक संसद में पेश करना चाहा पर इस प्रयास में सरकार को तब झटका लगा जब उसे संसद में पेश बिल को वापस लेना पड़ा। इतिहास देखा जाए तो पाक में कोई भी शासक रहा हो सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई पर हावी नहीं हो सका। आईएसआई जरदारी सरकार पर पूरी तरह हावी है। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के प्रवक्ता फरहतुल्ला बाबर ने बताया कि उनकी ओर से बीते सप्ताह सदन में पेश इस विधेयक को वापस ले लिया गया है। माना जा रहा है कि इस विधेयक को राष्ट्रपति कार्यालय का समर्थन था। कहा जा रहा है कि सत्ताधारी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की विशेष समिति की मंजूरी नहीं मिलने के कारण इस विधेयक को वापस लेना पड़ा। सभी निजी विधेयकों को मंजूरी देने वाली इस समिति के प्रमुख कानून मंत्री फारुख एम. नाइक हैं। सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान की शक्तिशाली खुफिया एजेंसियों के दबाव में ही बाबर ने इस विधेयक को वापस लेने का फैसला किया होगा। हालांकि पाक मीडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बिल को आगे फिर पेश किया जा सकता है। यह बिल अगर पेश होता है और संसद में पारित होता है तो ताकतवर आईएसआई संसद और प्रधानमंत्री की जवाबदेही हो जाएगी। यह पहली बार नहीं जब जरदारी सरकार ने आईएसआई को गृह मंत्रालय के नियंत्रण में लाने का प्रयास किया है। 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने भी ऐसा प्रयास किया पर वह सफल नहीं हो सके। आईएसआई कितनी शक्तिशाली है, इसका एक अन्य उदाहरण हमें आईएसआई के पूर्व प्रमुख असद दुर्रानी ने हाल में दिया। दुर्रानी ने स्वीकार किया कि उन्होंने और सेना के खुफिया अधिकारियों ने वर्ष 1990 के चुनाव में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को सत्ता में आने से रोकने के लिए नेताओं में 14 करोड़ रुपए बांटे थे। उस समय बेनजीर भुट्टो पार्टी की नेता थीं। मुख्य न्यायाधीश (सुप्रीम कोर्ट) इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ वर्ष 1996 में पूर्व वायुसेना प्रमुख असगर खान की एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। खान ने आरोप लगाया था कि खुफिया एजेंसियों ने वर्ष 1990 के चुनाव से पहले पीपीपी के खिलाफ मोर्चा बनाने के लिए नेताओं को करोड़ों रुपए मुहैया कराकर राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित किया था। न्यायालय ने 16 जुलाई को दुर्रानी को आदेश दिया था कि वे धन वितरित किए जाने पर संक्षिप्त बयान, साक्ष्य और शपथ पत्र दाखिल करें। सुप्रीम कोर्ट के सामने दाखिल बयान में दुर्रानी ने कहा कि उनके द्वारा वितरित की गई धनराशि करीब सात करोड़ रुपए थी। बाकी की धनराशि आईएसआई के एक विशेष कोष में जमा की गई थी और बाद में सेना के खुफिया अधिकारियों ने इसे बांटा था। दुर्रानी ने कहा कि उन्हें तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल सेवानिवृत्त मिर्जा असलम बेग से धन मिला था। उन्होंने कहा कि तत्कालीन राष्ट्रपति गुलाम इसहाक खान के चुनावी दल के सदस्य इजलाल हैदर जैदी ने वे नाम दिए थे जिन्हें धन चाहिए था। दुर्रानी ने कहा कि यह धन बेग के दिशा-निर्देश पर वितरित किया गया। आईएसआई के पूर्व प्रमुख ने कहा कि वे एक सीलबन्द लिफाफे में उन अधिकारियों के नामों का खुलासा करेंगे जिन्होंने 1990 में चुनावों को प्रभावित करने के लिए धन बांटने में मदद की। अदालत में दिए गए बयान में दुर्रानी ने अनुरोध किया कि उनकी ओर से दिए गए किसी भी सीलबन्द दस्तावेज को गोपनीय माना जाए। मुकदमा अभी चल रहा है, देखें और कितनी गोपनीय बातें सार्वजनिक होती हैं। आईएसआई अपने आप में पाकिस्तान सरकार है जो जरदारी सरकार पर पूरी तरह हावी है।
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