Saturday, 18 August 2012

बाबा रामदेव के आंदोलन का क्या इम्पैक्ट होगा?


 Published on 18 August, 2012

अनिल नरेन्द्र


बाबा रामदेव का आंदोलन शांति से समाप्त हुआ। लगता है कि पिछली बार रामलीला मैदान घटनाक्रम से बाबा ने सीखा है और उस पर अमल भी किया। इतनी भीड़ को हर पल नियंत्रण में रखना आसान काम नहीं था जिसमें रामदेव सफल रहे। बाबा ने अन्ना हजारे के आंदोलन को एक तरह से हाई जैक करने में सफलता पाई। बाबा ने उन सभी मुद्दों को अपने एजेंडे में शामिल कर लिया जिसे लेकर अन्ना चल रहे थे। वैसे राजधानी में 10 दिनों के अन्दर दो आंदोलन अपने अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचे बिना ही समाप्त हो गए। दोनों ही आंदोलन केंद्र की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के खिलाफ रहे। अन्ना हजारे का आंदोलन राजनीतिक विकल्प पर आकर समाप्त हुआ लेकिन बाबा का आंदोलन यूपीए के विकल्प एनडीए के तौर पर समाप्त होता दिखा। अन्ना का आंदोलन तिहाड़ जेल से शुरू हुआ था और रामदेव का आंदोलन अस्थायी जेल पहुंचकर खत्म हुआ। रामदेव के मंच पर जिस तरह एनडीए के नेता पहुंचे और बाबा का खुलकर समर्थन करने की बात कही, उससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि अगले लोकसभा चुनाव में बाबा को एनडीए के साथ खड़ा होना पड़ेगा। बाबा दिन-प्रतिदिन गिरगिट की तरह इस बार रंग बदलते दिखे। रामदेव ने पहले तीन दिन अनशन की घोषणा की। तीन दिन बाद शनिवार को बोले अगली रणनीति रविवार को। रविवार को कहा सोमवार 10 बजे करेंगे घोषणा। दलों का समर्थन मिला और उधर बालकृष्ण की जमानत नहीं हुई तो बाबा ने सवा 10 बजे संसद कूच का ऐलान कर दिया। हिरासत में लिया तो कहा जेल में तोड़ेंगे अनशन। अम्बेडकर स्टेडियम में पहले बोले खाने-पीने पर तोड़ेंगे अनशन। लोगों की भीड़ उमड़ी तो कहा मांगें माने जाने तक अनशन जारी रहेगा। फिर बोले 15 अगस्त को स्टेडियम में झंडा फहराएंगे। अंत में अनशन भी तोड़ दिया और हरिद्वार भी चले गए। देखा जाए तो केंद्र सरकार अन्ना के आंदोलन की तरह रामदेव के आंदोलन से भी निपटने में सफल रही। सरकार ने पहली बार की गई गलतियों से सबक सीखा। पहली बार तो चार-चार मंत्री बाबा को हवाई अड्डे लेने गए, इस बार सरकार ने बाबा को कोई भाव नहीं दिया। न कोई मंत्री आया न ही कोई वादा हुआ। यह दुख की बात है कि जनता की आवाज उठाने वाले आंदोलनों के दौरान आम लोग ही सबसे ज्यादा परेशान होते हैं। काले धन का अपने तरीके से ईलाज करने पर अड़े बाबा रामदेव के आंदोलन ने सोमवार को दिल्ली को जाम कर दिया। हजारों गाड़ियां जाम में फंस गईं। जरूरी कामकाज के लिए निकले लोग और मरीज घंटों परेशान होते रहे। लाख टके का सवाल है कि इतना दबाव बनाने के बावजूद क्या बाबा रामदेव काले धन और अपनी अन्य मांगों के मुद्दे पर कोई ठोस कामयाबी हासिल कर पाएंगे? उन्होंने सीवीसी और चुनाव आयोग की पूर्ण स्वायत्ता का मुद्दा उठाया और इसके साथ ही लोकपाल के मुद्दे को भी जोड़ दिया है। वह यह भी जानते हैं कि तीन-चार दिन के अल्टीमेटम में इतनी बड़ी मांगों को पूरा नहीं किया जा सकता। यह जिद कुछ-कुछ टीम अन्ना जैसी भी है, जो एक समय चाहती थी कि संसद और सरकार उसके द्वारा बनाए लोकपाल के मसौदे को तुरन्त ही मंजूर कर ले। इन दोनों आंदोलनों को यह श्रेय बहरहाल जरूर जाता है कि भ्रष्टाचार और काले धन का मुद्दा आज राजनीति के केंद्र में है। मगर यह भी समझना पड़ेगा कि आज के राजनेताओं में चाहे वह किसी भी पार्टी के क्यों न हो, ये इन्हें पूरा करने का न तो इनके पास कोई रास्ता है और न ही इच्छाशक्ति। ऐसा न हो कि बड़े मकसद के लिए शुरू हुआ बाबा का यह आंदोलन महज कांग्रेस विरोध तक सीमित रह जाए।

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