Thursday, 19 July 2012

क्या लंदन ओलंपिक में हम बीजिंग से आगे बढ़ सकेंगे?

इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि खेलों में राजनीति इतनी बढ़ गई है कि फिजूल के विवादों में उलझने की तो फुरसत है पर असल मुद्दों पर कोई ध्यान ही नहीं देता? सुरेश कलमाड़ी लंदन ओलंपिक्स जाएंगे या नहीं, सानिया मिर्जा की मां क्यों लंदन जा रही हैं इत्यादि इत्यादि समय बर्बादी के मुद्दों पर तो दिन रात बहस हो रही है पर यह कोई नहीं पूछ रहा कि लंदन ओलंपिक्स में भारत कितने मैडल जीत कर लाएगा? लंदन ओलंपिक्स में भारतीय खिलाड़ियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या है? यह सवाल खिलाड़ियों, कोचों और अधिकारियों से पूछा जाए तो ज्यादातर का जवाब होगा खिलाड़ी की फार्म, भाग्य और बाकी टीमों का दमखम, लेकिन देश का एक बड़ा वर्ग कुछ और ही सोच रहा है। एक सर्वे से पता चला है कि हमारे खिलाड़ियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी बीजिंग 2008 ओलंपिक्स में जीते तीन पदकों की बराबरी लंदन में करना। खेल जानकारों के अनुसार भारत के पास इस वर्ष सुनहरा मौका है कि वह तीन की संख्या पीछे छोड़े। भारत के लिए मनोबल बढ़ाने वाली बात यह हो सकती है कि ओलंपिक ब्रिटेन की राजधानी लंदन में हो रहे हैं और ब्रिटेन की विश्व पसिद्ध रेटिंग एजेंसी पाइस वाटर हाउस कूपर्स ने अपने आंकलन में भविष्यवाणी की है कि भारत लंदन में छह पदक जीत सकता है। भारतीय खिलाड़ी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि उनसे इस बार कितनी उम्मीदें लगाई गई हैं। लंदन ओलंपिक भारतीय खेलों की दिशा और दशा बन सकते हैं। बीजिंग से बढ़िया पदर्शन भारतीय खेलों को मीलों आगे ले जा सकता है लेकिन बीजिंग से कमजोर पदर्शन भारतीय खेलों को मीलों पीछे भी धकेल सकता है। निशानेबाजी, मुक्केबाजी, कुश्ती, तीरंदाजी, बैडमिंटन और टेनिस ऐसे खेल हैं जो ओलंपिक में भारत को पदक दिला सकते हैं। बीजिंग में जीते एक स्वर्ण ओर दो कांस्य पदक भारतीय खेलों की पगति और बदलाव की तस्वीर को लंदन में पेश करेंगे। यदि लंदन में भारत चार पदक भी जीत पाया तो यह मान लेना चाहिए कि भारतीय खेल धीरे-धीरे आगे सरक रहा है। बड़ी कामयाबी मिलती है तो साफ हो जाएगा कि भारतीय खिलाड़ियों ने पदक जीतने और बड़े मुकाबलों में सफल होने का मंत्र सीख लिया है। हालांकि मुक्केबाजी, कुश्ती, निशानेबाजी, तीरंदाजी, टेनिस और बैडमिंटन आदि खेलों में भारत के पास विश्व चैंपियन खिलाड़ी हैं किन्तु ओलंपिक के सामने किसी भी पतियोगिता के मायने नहीं हैं। यही कारण है कि बीजिंग में जीते पदक भारतीय खिलाड़ियों के लिए कड़ी चुनौती बनकर खड़े हैं। वैसे यह विडम्बना है कि हम भारत के सर्वश्रेष्ठ पदर्शन के नाम पर तीन-चार पदकों की बात करते हैं जबकि हमारा पड़ोसी देश चीन 1984 के लास एंजेलिस के तीन पदकों से 2008 के बीजिंग ओलंपिक में 51 स्वर्ण सहित 100 से ज्यादा पदक जीतकर पदक तालिका में अमेरिका को परास्त कर नंबर वन बन गया था। भारत 112 वर्षों के अपने ओलंपिक इतिहास में कुल 20 पदक ही जीत पाया है, जिसमें 11 पदक तो हॉकी के नाम हैं। खेलों में यह सिद्धांत अब कहीं पीछे छूट चुका है कि पदक जीतने से ज्यादा महत्वपूर्ण हिस्सा लेना है। खिलाड़ी भी जानते हैं ओलंपिक में कामयाबी उन्हें रातों-रात स्टार बना देगा।

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