Monday 30 July 2012

मायावती की मूर्तियां तोड़ने की जगह विकास, कानून व्यवस्था, समृद्ध खेती पर ज्यादा ध्यान दें


                                  Published on 31 July 2012                                


अनिल नरेन्द्र

बहुत दुख की बात है कि लखनऊ के गोमती नगर क्षेत्र में स्थित अम्बेडकर पार्प में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा प्रमुख मायावती की मूर्ति तोड़ने का किस्सा सामने आया है। गत गुरुवार को मायावती की आदमकद संगमरमर से बनी मूर्ति को तोड़ दिया गया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे प्रदेश की कानून व्यवस्था बिगाड़ने की साजिश बताते हुए मूर्ति को तुरन्त दुरुस्त करने का आदेश देकर स्थिति को और बिगाड़ने से बचा लिया। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने सामाजिक परिवर्तन स्थल पर तैनात सुरक्षा गार्डों के हवाले से बताया कि दोपहर बाद चार-छह युवक मोटर साइकिल पर वहां पहुंचे और बड़े हथौड़े से मूर्ति पर प्रहार करना शुरू कर दिया। अनजान से संगठन नवनिर्माण सेना ने घटना के कुछ घंटे पहले ही बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके धमकी दी थी कि अगर 72 घंटे में लखनऊ और नोएडा से मायावती की मूर्तियां नहीं हटाई गईं तो वे उन्हें तोड़ देंगे। मूर्ति तोड़ने वाले गिरफ्तार हो चुके हैं। लेकिन यह घटना प्रदेश में दलितों के विरुद्ध फैले हुए विद्वेष, आक्रोश और नफरत का एक उदाहरण है, इसलिए जरूरी है कि आगे और भी सावधान रहा जाए। मायावती ने उत्तर प्रदेश से दलितों में एक स्वाभिमान पैदा किया जो सदियों से समाज में दबे-कुचले रहे हैं। बहन जी ने इसके लिए प्रतीकों की राजनीति की और जगह-जगह पर डॉ. अम्बेडकर, काशीराम की मूर्तियां लगवाईं, परिवर्तन स्थल और पार्प बनवाए, जहां दलित महापुरुषों के साथ खुद अपनी और अपने हाथियों की मूर्तियां भी लगवाईं। अपने कार्यकाल में मायावती ने इन पर सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च किए। यह कार्यक्रम काफी  लोगों को अच्छा नहीं लगा। इसमें ऐसे लोग भी थे, जिन्हें यह सार्वजनिक धन की बर्बादी लगी और शायद ऐसे लोग भी थे, जिन्हें दलितों का सत्ता पाना और उसका यूं प्रदर्शन करना बुरा लगा। जिन लोगों का यह तर्प था कि सार्वजनिक धन का बेहतर उपयोग विकास के कामों में हो सकता है, वे इस बात से भी सहमत होंगे कि एक बार बन जाने के बाद इन स्मारकों को हटाना या उन पर राजनीति करना न सिर्प व्यर्थ है बल्कि इससे प्रदेश व्यर्थ के मुद्दों पर उग्र और हिंसक राजनीति में फंस जाएगा। कटु सत्य तो यह है कि मुलायम सिंह यादव और मायावती के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है। सपा और बसपा के समर्थकों के बीच कुछ तो वर्गगत विरोध है जबकि कुछ हद तक यही शत्रुता छनकर पहुंच रही है। यह एक तथ्य है कि सपा नेताओं ने कहा था कि सत्ता में आने के बाद वे मायावती और उनके हाथियों की मूर्तियां हटवा देंगे, हालांकि अखिलेश यादव सरकार ने अब तक कहीं भी ऐसा होने नहीं दिया है। मगर जब पार्टी के बड़े नेता अपने किसी विरोधी के बारे में नफरत का माहौल बनाते हैं तब लखनऊ के अम्बेडकर पार्प जैसी घटनाओं को रोकना मुश्किल होता है। मूर्ति तोड़ने वाला अमित जानी अपने को भले ही तथाकथित यूपी नवनिर्माण सेना का सदस्य बताता हो मगर वह सपा नेताओं से कहीं न कहीं जुड़ा जरूर रहा है। उत्तर प्रदेश काफी लम्बे वक्त तक जातिगत झगड़ों और उग्र राजनीति में वक्त गंवा चुका है। अब अखिलेश सरकार को इससे बचना चाहिए और प्रदेश में अच्छी जलवायु, समृद्ध खेती, विकास की दिशा में ज्यादा ध्यान देना चाहिए न कि इस तोड़फोड़, जातिगत संघर्ष और बदले की भावना रखने में।



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