Tuesday 4 November 2014

2जी घोटाले में मनी लांड्रिंग केस में फंसा करुणानिधि परिवार

2जी स्पैक्ट्रम आवंटन का मुख्य घोटाला तो नीलामी के बजाय पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर दूरसंचार कंपनियों को लाइसेंस देने का था। कैग ने इसमें 1.76 लाख करोड़ की राजस्व हानि का दावा किया। लेकिन नीरा राडिया के टेपों और सीबीआई जांच से खुलासा हुआ कि स्वान और अन्य अयोग्य कंपनियों ने लाइसेंस के बदले हजारों करोड़ की रिश्वत दी। इसमें 200 करोड़ रुपए की रिश्वत कलैगनार टीवी तक पहुंचाई गई। इसी मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने पूर्व संचार मंत्री ए. राजा, द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम के सुप्रीमो एम. करुणानिधि की पत्नी दयालु अम्माल, उनकी बेटी सांसद कनिमोझी समेत 16 लोगों पर आरोप तय कर दिए हैं। यह मामला एक उद्योग समूह को दूरसंचार लाइसेंस देने से संबंधित है। प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि इस मामले में 200 करोड़ रुपए की घूस ली गई। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया सभी आरोपियों पर मामला बनता है। कोर्ट ने अपना आदेश सुनाने के बाद सभी आरोपियों से पूछा कि क्या वह अपना आरोप स्वीकार करते हैं? जिस पर सभी ने इंकार कर दिया। इसके बाद अदालत ने कहा कि उक्त सभी आरोपियों पर मुकदमा चलाया जाए। सभी आरोपियों पर 200 करोड़ रुपए डीबी ग्रुप द्वारा कलैगनार टीवी प्रा. लि. को देने का आरोप है। रिश्वत की इस रकम का लेनदेन हवाला के जरिये किया गया। पटियाला हाउस स्थित स्पेशल सीबीआई जज ओपी सोनी ने सभी आरोपियों के खिलाफ धन संशोधन रोकथाम अधिनियम की धारा 3-4 के तहत आरोप तय किए हैं। अगर इन धाराओं के तहत वे दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें न्यूनतम तीन और अधिकतम सात साल की सजा हो सकती है। Šजी घोटाले के तार इतनी दूर तक उलझे हुए हैं कि उससे जुड़े तमाम मामलों की जांच और अदालती कार्रवाई कब तक चलेगी यह बताना फिलहाल तो लगभग नामुमकिन है। इस घोटाले की जांच सीबीआई कर रही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में एक मामला सीबीआई प्रमुख रंजीत सिन्हा को इस जांच से अलग करने का भी चल रहा है। उन पर आरोप यह है कि 2जी घोटाले के कुछ आरोपियों ने उनके घर पर कई बार मुलाकात की। स्वतंत्र भारत के इतिहास में जब भी बड़े घोटालों का जिक्र होगा तो Šजी घोटाले का नाम प्रमुखता से होगा। राष्ट्रीय संसाधनों की लूट किस तरह की गई इस घोटाले से पता चलता है। इस घोटाले की वजह से देश को तो नुकसान हुआ ही साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था के विकास की गति थामने में इस घोटाले का बहुत बड़ा हाथ है। इसकी वजह से मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार को ऐसा करारा झटका लगा कि वह सत्ता से भी बाहर हो गई। नरेन्द्र मोदी सरकार पर अब यह निर्भर करता है कि वह ऐसे घोटालों की पुनर्वृत्ति न होने दे। देश के संसाधनों के बंटबारे की प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायसंगत होनी चाहिए। अगर संसाधनों का बंटवारा मंत्रियों की इच्छा और बंदरबांट का होगा तो ऐसे घोटाले होते रहेंगे। यह प्रसन्नता की बात है कि सीबीआई इसमें निष्पक्ष और पारदर्शी कार्यवाही कर रही है और कानून अपना काम कर रहा है बेशक आरोपी नामी मंत्री व प्रभावशाली उद्योगपति, भ्रष्ट पत्रकार व दलाल क्यों न हों।

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