Thursday, 6 November 2014

क्षेत्रीय दलों और क्षेत्रीयता के दौर पर मोदी विराम लगाना चाहते हैं

1989 के आम चुनाव के बाद भाजपा और वाम मोर्चे के बाहरी समर्थन से विश्वनाथ पताप सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार जब बनी थी उसके साथ ही एक दलीय शासन की लंबी परंपरा पर विराम लगा। तब सियासी पंडितों ने कहना शुरू कर दिया कि अब भारत की सियासत में गठबंधन सरकारों का बोलबाला रहेगा। इसके 25 वर्ष बाद पहली बार लोकसभा में किसी एक दल को जब पूर्ण बहुमत मिला तो यह गठबंधन सियासत टूटी। इसे और मजबूत किया महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणामों ने। इन दोनों राज्यों के चुनावों ने दिखा दिया कि पधानमंत्री ने मन बना लिया है कि वह इन सूबेदारों से छुटकारा पाना चाहते हैं यानी वह क्षेत्रीय दलों से छुटकारा चाहते हैं। कांग्रेस को कमजोर करने के बाद अब मोदी के निशाने पर क्षेत्रीय दल ही रहने वाले हैं। मोदी दो बड़े राज्यों, उत्तर पदेश और बिहार में भाजपा की सरकार बनवाने के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। जम्मू- कश्मीर और झारखंड के चुनाव होने जा रहे हैं। मोदी-शाह जोड़ी अब इन दोनों राज्यों में भाजपा का परचम लहराने में जुटी है। मोदी-शाह एजेंडे का मतलब हुआ कि जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांपेंस, पीडीपी, उत्तर पदेश में सपा और बसपा के लिए और बिहार में राजद और जद-यू के लिए चुनौती बढ़ गई है। कांग्रेस दोनों ही राज्यों में हाशिए पर है और वैसे भी इन राज्यों में पाटी सबसे आखिरी स्थान पर है। बिहार में रामविलास पासवान की लोजपा पहले ही मोदी की शरण में आ चुकी है। यूपी में अनुपिया पटेल की पाटी `अपना दल' भी लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ आ गई थी। मोदी ने लोकसभा चुनाव में यूपी और बिहार में जिस तरह का जादू दिखाया था उसके मद्देनजर यूपी में मुलायम सिंह व मायावती और बिहार में लालू पसाद-नीतीश कुमार के लिए आने वाले दिन चुनौतपूर्ण होंगे। झारखंड और जम्मू-कश्मीर के चुनाव के बाद मोदी-शाह टीम की पूरी कोशिश यूपी-बिहार में क्षेत्रीय दलों को साफ करने पर होगी। गौरतलब है कि मध्य, पश्चिम, और उत्तर भारत में भाजपा का दबदबा लगभग वैसा ही होता जा रहा है जैसा 1980 के दशक तक कांगेस का होता था। दक्षिण में कर्नाटक में उसकी गहरी पैठ है जबकि आंध्र और तेलंगाना में उसकी ताकत उठान पर है। यानी अखिल भारतीय पसार की दिशा में वह अग्रसर है। इस यात्रा में वह कांग्रेस को उसके पभाव क्षेत्रों से तेजी से बेदखल कर रही है, साथ ही गठबंधन की रणनीति पर भी मोदी-शाह टीम ने विराम लगाया है। सपा, बसपा, आरजेडी, जद-यू, नेशनल कांपेंस जैसे क्षेत्रीय दलों के लिए यह खतरे की घंटी है। उसके सरगना ओम पकाश चौटाला, कुलदीप बिश्नोई का जो हाल हुआ क्या वही उनका भविष्य है, इस पर अब उन्हें अवश्य सोचना पड़ेगा। इस वक्त गैर भाजपाई सभी क्षेत्रीय दल किसी न किसी वजह से कमजोर स्थिति में हैं। तमिलनाडु में जयललिता को कानूनी पचड़े ने इस कदर जकड़ रखा है कि वह भाजपा और मोदी से अलग रास्ता लेने की सोच भी नहीं सकतीं। मोदी का तमिलनाडु ही नहीं, केरल तक भाजपा की स्वीकार्यता स्थापित करने का सपना है। ओड़िशा में देखना होगा कि नवीन पटनायक और उनका बीजू जनता दल क्या रुख अपनाते हैं? जहां भाजपा ओड़िशा में स्थापित होना चाहती है वहीं पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस नेता और मुख्यमंत्री ममता बनजी की छवि दिन पतिदिन खराब होती जा रही है। वाम दलों का बुरा हाल है। मोदी सरकार ममता की गिरती लोकपियता को भुनाना चाह रही है। महाराष्ट्र में एनसीपी नेता शरद पवार अब भाजपा से निकटता बनाने के लिए उतावले दिख रहे हैं। इन परिस्थितियों में क्षेत्रीय दलों के सामने अपने अस्तित्व को बचाने की चुनौती मुंह फांड़े खड़ी है। क्षेत्रीय दलों के एजेंडे की पोल खोलकर भाजपा अपना एजेंडा तय करने में जुटी हुई है। ऐसे में अगर पधानमंत्री मोदी चुनावी सभाओं में उठाए गए मुद्दों और आश्वासनों पर आधा भी अमल कर सके तो भाजपा वंश आधारित क्षेत्रीय दलों को हाशिए पर ले जाकर सबल और संपूर्ण राष्ट्रीय राजनीति की शुरुआत करने में सफल हो सकती हैं।

-अनिल नरेंद्र

No comments:

Post a Comment