Saturday, 1 November 2014

मामला काले धन का ः अब दारोमदार एसआईटी पर

काला धन के मामले में यह अहम प्रगति कही जाएगी कि फटकार खाने के बाद मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को 627 स्विस खाताधारियों के नाम पेश कर दिए। तमाम किन्तु-परन्तु के बीच आखिरकार सरकार को यह सूची सौंपनी ही पड़ी। कोर्ट के आदेश से सरकार की राह आसान हो गई है। जिन अंतर्राष्ट्रीय संधियों की बाध्यता को अनदेखा कर सरकार की नाम खुलासा करने की इच्छाशक्ति पर सवाल उठाए जा रहे थे वह अड़चन अदालती आदेश के साथ ही खत्म हो गई। हालांकि इनमें कौन और किन क्षेत्रों से जुड़े लोग शामिल हैं इसका खुलासा अदालत ने नहीं किया है। लेकिन जिस तरह इन नामों को विशेष जांच दल (एसआईटी) को सौंपते हुए सुप्रीम कोर्ट ने समयबद्ध जांच के निर्देश दिए हैं उससे इतनी तो उम्मीद जगी ही है कि काले धन की वास्तविकता जल्द ही देश के सामने आ जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी सूची अपने अधीन कार्यरत विशेष जांच दल (एसआईटी) को सौंपते हुए इसकी गोपनीयता का भरोसा सरकार को दिया है। हिदायत दी गई है कि सूची को जांच दल के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ही खोल सकेंगे। एक व्यावहारिक बात यह भी जोड़ी गई है कि एसआईटी विशेषज्ञता और संसाधनों के लिहाज से जांच में प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो की भी मदद ले सकती है ताकि जांच का त्वरित और तार्पिक निस्तारण हो सके। यद्यपि नामों की यह सूची नई नहीं है। इसे 2011 में ही फ्रांस ने भारत सरकार को उपलब्ध करा दिया था। यूपीए सरकार इसे तीन साल तक दबाए रही। एनडीए ने सत्ता में आते ही न केवल एसआईटी गठित की बल्कि गत जुलाई माह में ही यह सूची भी उसे उपलब्ध करा दी गई। संधि की बाध्यताओं के चलते इसे सार्वजनिक न तब किया गया और न अब। कटु सत्य तो यह है कि जिन देशों में काला धन रखने की सुविधा है उन पर पिछले दिनों यह दबाव बढ़ा है कि वे अपने कामकाज को पारदर्शी बनाएं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने यह महसूस किया कि गोपनीय खातों का इस्तेमाल आतंकवाद और नशे की तस्करी जैसे अंतर्राष्ट्रीय अपराधों में होता है और काले धन की बड़ी भूमिका सन 2009 की आर्थिक मंदी में भी थी। इस दबाव का नतीजा सामने आ रहा है और कई बैंक अपना कामकाज सुधारने में लगे हैं। सबसे ज्यादा फर्प अमेरिकी दबाव का पड़ा है क्योंकि एक तो अमेरिका महाशक्ति है, दूसरे अगर किसी बैंक में जरा भी गड़बड़ी मिलती है तो अमेरिका में उस बैंक की शाखाओं की शामत आ जाती है जबकि भारत की कई देशों से ऐसी संधिया हैं जिनसे उन देशों में खाताधारियों पर कार्रवाई मुश्किल है। अब जो सूची सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को दी है वह पिछले चार माह से केंद्र सरकार के पास है। दुखद यह देखना रहा कि सरकार के चेहरे तो बदल गए लेकिन काले धन मामले पर सरकारी रवैया पूर्ववत रहा। गड़बड़झाला यह भी है कि काले धन को सिर्प कर चोरी का प्रकरण बताने की कोशिश हो रही है, स्विटजरलैंड के एक शीर्ष ओहदेदार का बयान है कि भारत सरकार से अब तक सिर्प चोरी पर बात हुई है जबकि यह सिर्प कर चोरी का धन नहीं बल्कि करप्ट मनी का मामला है। बहरहाल अब गेंद सियासी मैदान से निकलकर एसआईटी के पाले में है। देखना है कि जिस काले धन का जिक्र सुन-सुनकर कान पक चुके हैं, वह किस हद तक पकड़ में आता है?

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