Sunday, 23 November 2014

सड़क पर भीख मांगते यह मजबूर बच्चे

दिल्ली के आईटीओ चौराहे पर खड़ी पांच साल की मासूम रेश्मा को नहीं पता कि बाल दिवस क्या होता है? उसे सिर्प इतना पता है कि अगर शाम तक भीख मांगकर 35 रुपए जमा नहीं किए तो भूखे ही सोना पड़ेगा। दिल्ली गेट चौराहे पर फूल बेचने वाली रेखा कहती है कि स्कूल की बसों को जाते देखकर लगता है कि काश! हम भी पढ़ पाते लेकिन खाने को दो वक्त का खाना नहीं है कैसे करें पढ़ाई? यह कहानी केवल इन दो बच्चों की नहीं बल्कि गैर सरकारी संगठनों के आंकड़े मानें तो पांच लाख स्ट्रीट चिल्ड्रन दिल्ली की सड़कों पर ही जीने पर मजबूर हैं। यह बड़ी हैरत की बात है कि सरकार बच्चों के विकास के लिए लाखों खर्च करने का दावा करती है लेकिन राजधानी सहित पूरे देश में कोई सरकारी आंकड़ा ही नहीं है कि कितने बच्चे सड़कों पर हैं। दरियागंज के चौराहे पर खड़ी निर्मला कहती है कि रोजाना फूल बेचकर 100-150 रुपए मिल जाते हैं, जिस दिन फूल नहीं बिकते तो उस दिन भूखे पेट ही सोना पड़ता है। हां, पास के स्कूल में बच्चों को जाते देखकर पता चलता है कि हम कितने अभागे हैं। निजामुद्दीन चौराहे पर दरगाह के तमाम भीख मांगने वाले बच्चोंöबबलू, सुमन, निजाम, हैदर सबका यही कहना है कि हमें तो यह चिंता है कि अब सर्दियां आ गई हैं। गर्मियां तो सड़क पर कट गईं लेकिन सर्दियों में कैसे गुजारा होगा? कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर परिसर के आसपास दर्जनों  बच्चे रोजाना चौराहे पर भीख मांगते दिख जाते हैं। इनमें से बहुत से बच्चे तो नशे के आदी हो चुके हैं। हालत यह है कि इन बच्चों में तमाम तरह की बीमारियां फैलती जा रही हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स में करोड़ों खर्च कर कनॉट प्लेस को सुंदर तो बनाया गया लेकिन इन बच्चों व यहां मौजूदा भिखारियों की फौज का कोई समाधान नहीं हो सका। बच्चों की भिखारी फौज बढ़ती ही जा रही है। दूसरी ओर बच्चों के प्रति अपराध का ग्राफ भी बढ़ता जा रहा है। बच्चों के प्रति आपराधिक घटनाओं में 24 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। 2011 में 33,098 मामले बच्चों के प्रति अपराध के दर्ज किए गए थे जबकि 2010 में यह संख्या 26,694 थी। सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश (16.6…) दूसरे नम्बर पर मध्यप्रदेश (13.20…), दिल्ली (12.8…), महाराष्ट्र (10.2…), बिहार (6.7…) और आंध्र प्रदेश (6.7…) का नम्बर आता है। जनगणना के मुताबिक 1991 में देश में जहां 11.28 मिलियन बाल श्रमिक थे, वहीं 2001 में इनकी संख्या 12.66 मिलियन हो गई। पान, बीड़ी, सिगरेट (12…), निर्माण (17…), कताई-बुनाई (11…) में सबसे ज्यादा बाल श्रमिक हैं। कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं। इन आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों की वास्तविक स्थिति क्या है। इनमें से काफी संख्या में बच्चे बड़े होकर अपराधी बन जाते हैं। हमने निर्भया कांड व दूसरे कांडों में देखा कि नाबालिग बच्चे कितने बड़े-बड़े अपराध करते हैं। सरकारों को चाहिए कि वह इन बच्चों को बचाने के लिए एक समग्र नीति बनानी चाहिए ताकि इनका भविष्य सुधरे और इनकी मजबूरियां खत्म हों।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment