Friday 28 November 2014

70 फीसदी वोट अलगाववादियों के मुंह पर करारा तमाचा है

जम्मू-कश्मीर में पांच चरणों में हो रहे विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मंगलवार को 15 निर्वाचन क्षेत्रों में अलगाववादी संगठनों के बहिष्कार को धत्ता बताते हुए और सर्द मौसम के बावजूद 70 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। किश्तवाड़ के 69 साल के आलमद्दीन किसी भी कीमत पर मतदान में हिस्सा लेना चाहते थे। अपने दो बेटों को आतंकी हिंसा में गंवा चुके आलमद्दीन का मतदान करने का मकसद यही था कि लोकतंत्र की जीत हो ताकि आतंकवाद का खात्मा हो। हमें इस बात से फर्प नहीं पड़ता कि मतदाताओं ने अपना वोट किसको दिया? महत्वपूर्ण तो यह है कि उन्होंने वोट दिया और ऐसा करने से उन्होंने साफ संकेत दे दिया कि वह सूबे में आतंकवाद से तंग आ चुके हैं। कश्मीर के कंगन के यूसुफ के लिए मुद्दा आतंकवाद नहीं, न ही कश्मीर की आजादी था बल्कि वह गांव के विकास के लिए सरकार को चुनने का मकसद लेकर आतंकी धमकी के बावजूद मतदान के लिए ठंड की परवाह किए बिना पोलिंग बूथ पर आना था। पहले चरण के मतदान में शामिल हुए वोटरों की चाहे अलग-अलग वजहें हों लेकिन सबका मकसद एक ही था। वे सभी बिना खौफ के मतदान प्रक्रिया में शामिल हुए तो आतंकियों और उनके आकाओं व पड़ोसी मुल्क के दिलों पर सांप जरूर लोटा होगा। आखिर लोटे भी क्यों न, 25 साल के आतंकवाद के बावजूद वे राज्य की जनता को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से विमुख नहीं कर सके। अबकी बार जम्मू-कश्मीर में किसकी सरकार होगी? अनेक दावे हो रहे हैं। कहीं गठबंधन सरकार के दावे हैं तो कहीं बहुमत हासिल कर अपने दमखम पर सरकार बनाने के। जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता रह चुके सज्जाद लोन की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात और उनकी तारीफ में कसीदे काढ़ने से इस राज्य की सियासत के समीकरण में अब तेजी से  बदलाव आने की उम्मीद है। राजनीतिक दलों के टूटने के साथ-साथ उनके नेता अब दलबदल कर रहे हैं, उन्हें लगता है कि राज्य में सत्ता बदलने के आसार दिख रहे हैं। लेकिन इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अगुवाई वाली नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की मिलीजुली सरकार के दौरान भारी भ्रष्टाचार, निर्णयहीनता, निकम्मेपन के साथ-साथ उसका पक्षपाती और संवेदनहीन होना रही है। इसकी इंतिहा सितम्बर माह में विनाशकारी बाढ़ में देखने को मिली। उमर की सरकार और प्रशासन प्रभावित लोगों को राहत तथा मदद पहुंचाने में निकम्मे साबित हुए। इसके विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तत्काल वहां पहुंचना और तत्काल 100 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता के साथ-साथ सुरक्षा बलों तथा सेना के जवानों ने अपनी जान जोखिम में डालकर उनकी जान बचाई। जम्मू-कश्मीर के युवाओं में मोदी को लेकर काफी उत्साह और उम्मीदें हैं। यही वजह है कि पहले चरण में 70 फीसदी मतदान हुआ। लगता है युवाओं ने बढ़चढ़ कर मतदान किया। देखना यह होगा कि घाटी में भाजपा कितनी सीटें निकाल सकती है? जम्मू और लद्दाख में तो उसे जीत मिलेगी ही पर घाटी में क्या होता है? 70 फीसदी वोट आतंकवाद पर करारा चांटा है।

-अनिल नरेन्द्र

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