Saturday, 1 November 2014

दिल्ली में अल्पमत सरकार का रास्ता साफ हुआ

विगत पांच महीने से राष्ट्रपति शासन के अधीन अनिश्चय में झूल रही दिल्ली की सियासत निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है। हताश दिल्लीवासियों के लिए सुप्रीम कोर्ट की ताजा टिप्पणियों से सरकार बनने अथवा नए सिरे से चुनाव होने की उम्मीद जगी है। जाहिर है दिल्ली में जारी गतिरोध का खामियाजा तो दिल्लीवासी भुगत ही रहे हैं। उपराज्यपाल अतिशीघ्र दिल्ली के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से बात कर सरकार गठन की संभावनाओं पर आखिरी राय लेने वाले हैं। वैसे सबसे  बड़े दल (भाजपा) को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकने के उनके प्रस्ताव को दोनों राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिल चुकी है। बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल द्वारा सरकार गठन की संभावनाएं तलाशने के लिए उपराज्यपाल नजीब जंग के कदमों पर न केवल संतोष जताया बल्कि उन्हें कुछ समय और देने क्योंकि बाहर से समर्थन से अल्पमत की सरकार बन सकती है टिप्पणी भी की। मामले की सुनवाई 11 नवम्बर को होगी। इस तरह उपराज्यपाल के पास मामले को हर हाल में निपटाने के लिए 12 दिन का समय और है। दिल्ली की मौजूदा स्थिति के लिए हालांकि तीनों राजनीतिक दल कमोबेश जिम्मेदार हैं। आम आदमी पार्टी ने, दिल्ली की सत्ता संभालकर लोगों में जो उम्मीद पैदा की थी, जनलोकपाल मुद्दे पर 49 दिनों में ही सत्ता छोड़ जनता को हताश ही किया। बाद में बेशक केजरीवाल ने स्वीकारा भी कि त्याग पत्र देना गलती थी। दिल्ली के सभी विधायक चाहे वह किसी भी दल के हों नए चुनाव से कतरा रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस ने हालांकि भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह विधानसभा चुनावों से डर कर भाग रही है। भाजपा के नेताओं को दिल्ली की पूरी संवैधानिक स्थिति की जानकारी थी। बावजूद इसके दिल्ली में उपचुनाव की घोषणा हुई। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता मुकेश शर्मा ने कहा कि जब दिल्ली में किसी भी पार्टी के पास बहुमत नहीं है तो फिर दिल्ली में उपचुनाव कराने का कोई मतलब नहीं बनता। जहां तक दिल्ली की तीन सीटों पर उपचुनाव का सवाल है तो चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया कि अगर दिल्ली विधानसभा भंग होती है तो उपचुनाव नहीं कराए जाएंगे। यह सही है कि मौजूदा स्थिति में कोई दिल्ली में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। फिर चुनाव कराना चूंकि एक खर्चीली प्रक्रिया है, ऐसे में उपराज्यपाल का नई सरकार के लिए राजनीतिक पार्टियों से मिलकर संभावनाएं तलाशना भी गलत नहीं है पर इस मामले में भाजपा का रुख शुरू से ही विरोधाभासी है। उसने पहले कहा कि खरीद-फरोख्त के जरिये वह अल्पमत सरकार नहीं बनाएगी पर विपक्षी विधायकों को तोड़ने की कोशिश के आरोप भी उस पर लगे। अभी उसने अदालत को बताया कि उपराज्यपाल उसे सरकार गठन के लिए बुलाने वाले हैं। लोकतंत्र केवल जोड़तोड़ कर सरकार बनाना और सनक से छोड़कर भाग जाना भर नहीं है। आखिर  बार-बार चुनाव में पैसा जनता का ही पुंकता है। ऐसे में अगर वर्तमान विधानसभा से ही किसी सरकार की संभावना बन सकती है तो उसे आगे बढ़ाना उचित होगा। क्योंकि देशव्यापी माहौल को देखते हुए यूं भी उलटफेर वाले चुनाव परिणामों की अपेक्षा नहीं की जा सकती तो फिर नाहक समय और धन की बर्बादी का क्या लाभ होगा? फिर इस बात की कोई गारंटी नहीं कि दोबारा चुनाव हुए तो किसी भी दल को बहुमत मिल ही जाएगा?

-अनिल नरेन्द्र

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