Wednesday, 12 November 2014

उत्तर प्रदेश में `माया' की राजनीति

राजनीति में पैसे का खेल चलता है यह बात किसी से छिपी नहीं और न ही यह भी किसी से छिपा है कि पार्टियों को चुनाव लड़ने व पार्टी चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है। धन एकत्र करने का एक प्रभावी ढंग है टिकटों का बंटवारा। सब जानते हैं पर बात कोई नहीं करता। उत्तर प्रदेश की सियासत में यह पहला मौका है जब बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने इस मुद्दे का प्रेस कांफ्रेंस में खुलासा किया है। बसपा प्रमुख मायावती ने पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. अखिलेश दास के पार्टी छोड़ने और उन पर आरोप लगाने का करारा जवाब दिया है। बसपा के राज्यसभा सदस्य डॉ. अखिलेश दास ने आरोप लगाया था कि बसपा में बिना पैसे दिए टिकट नहीं मिलता। ऐसे में उन्हें बसपा से अलग होने पर मजबूर होना पड़ा। दास ने कहा कि विधानसभा चुनाव में सामान्य सीट के लिए एक करोड़ रुपए और आरक्षित सीट के लिए 50 लाख रुपए की मांग की जाती है। यह लेनदेन किसी के सामने नहीं किया जाता। मायावती ने इसका करारा जवाब देते हुए कहा कि डॉ. दास 100 करोड़ रुपए देकर टिकट पाना चाहते थे पर पार्टी ने तय किया कि वह 200 करोड़ रुपए भी दें तो भी उन्हें टिकट नहीं दिया जाएगा। राज्यसभा प्रत्याशियों के ऐलान के बाद मायावती से डॉ. दास के पार्टी छोड़ने और टिकट के लिए पैसे मांगने के आरोप पर प्रतिक्रिया मांगी गई थी। मायावती ने कहा कि दास पहले कांग्रेस में थे। जब बसपा में आए थे तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर गंभीर आरोप लगाए। बसपा में आने पर वैश्य समाज को पार्टी से जोड़ने का वादा किया और राज्यसभा टिकट देने की गुजारिश भी की। सच क्या है यह तो मायावती और अखिलेश दास ही जानते होंगे लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से यह तो साफ हो गया है कि राजनीति में मूल्य खत्म हो चुके हैं। एक समय था जब राज्यसभा में उच्च शिक्षा प्राप्त विद्वान, बुद्धिजीवी, डाक्टर, वैज्ञानिक, साहित्यकार व पत्रकार पहुंचते थे और वह किसी भी राष्ट्रीय मुद्दे पर हो रही बहस में भाग लेते थे और लोग उन्हें सुनते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में टेलेंट पर पैसा हावी हो गया है। राजनीतिक मूल्य केवल कीमत में बदल गए हैं। आज महज पैसे के बल पर नामी-गिरामी उद्योगपति, व्यापारी संसद के दोनों सदनों में पहुंच रहे हैं। पैसा इतना हावी हो गया है कि पार्टियां नामी अपराधियों को भी टिकट देने में गुरेज नहीं करतीं। यही वजह है कि सांसदों में दागियों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है। क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने धन कुबेरों को टिकट देकर अपनी जेबें ही भरी हैं। बाबा साहब अम्बेडकर, महात्मा गांधी और अन्य महापुरुषों का नाम केवल भुनाया जाता है, उनके आदर्शों पर कौन चल रहा है। ऐसा नहीं है कि आज राजनीति में ईमानदार लोगों का कोई स्थान नहीं है पर अगर किसी चीज की सख्त जरूरत है तो वह है सियासत में मूल्यों के आधार पर टिकट बंटवारे की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसी में विश्वास रखते हैं और राजनीति को गंगा की तरह स्वच्छ बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

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