Tuesday 18 November 2014

मुद्गल समिति के खुलासे से क्रिकेट जगत में मची खलबली

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले की जांच के लिए गठित जस्टिस मुद्गल समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी। समिति के जो निष्कर्ष सार्वजनिक हुए उनसे साफ है कि बीसीसीआई के विवादित अध्यक्ष एन श्रीनिवासन और उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन, राजस्थान रॉयल्स के को-ओनर राज पुंद्रा और आईपीएल के सीओसी सुंदर रमण इस घोटाले में शामिल हैं। मुद्गल समिति की रिपोर्ट में इन व्यक्तियों का नाम आना बताता है कि सभ्यजनों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट के संचालन में कैसे-कैसे अनैतिक खेल हो रहे हैं। शीर्ष अदालत की अगली सुनवाई 24 नवम्बर को है, जिसमें पूरी संभावना है कि क्रिकेट को कलंकित करने में संलिप्त कुछ खिलाड़ियों के नाम भी सामने आएं। मुद्गल समिति ने अपनी रिपोर्ट में इनकी संदिग्ध भूमिका की चर्चा की। खुलासा होते ही बोर्ड ने बीसीसीआई के संविधान को ताक पर रखते हुए न सिर्प 20 नवम्बर को होने वाली बैठक (एजीएम) बल्कि चुनाव भी टाल दिए। जाहिर है कि इस खुलासे से भारतीय क्रिकेट में बड़ा तूफान आएगा और इस खेल की विश्वसनीयता और लोकप्रियता पर विपरीत असर पड़ेगा। क्रिकेट की गरिमा और दर्शकों-प्रशंसकों के विश्वास से खिलवाड़ करने वाले इस अनैतिक खेल का पूरा खुलासा होना चाहिए। दूसरी ओर आरोपों के घेरे में आने के बाद से श्रीनिवासन बोर्ड पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए तरह-तरह के दांव चल रहे हैं और उनके इस खेल में बोर्ड के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी उनका साथ दे रहे हैं। बोर्ड का संविधान कहता है कि 30 सितम्बर से पहले एजीएम होना अनिवार्य है। कार्यकारी समिति की पिछली बैठक में जिसमें श्रीनिवासन भी शामिल थे, एजीएम की 20 नवम्बर यह सोचकर तय की गई थी कि शायद उनका और उनके दामाद मयप्पन का नाम रिपोर्ट में शामिल न हो। लेकिन नतीजा उलटा आने के बाद श्रीनिवासन कैंप के तोते उड़ गए हैं। मामले की अगली सुनवाई 24 नवम्बर को होनी है, इसलिए उन लोगों ने एकतरफा तौर पर एजीएम टाल दी है। कोर्ट ने श्रीनिवासन के चुनाव लड़ने पर बैन लगा रखा है, इसलिए वे चुनाव आगे खिसकाकर अपने लिए या अपने किसी विश्वास पात्र चहेते के लिए रास्ता बनाने में लगे हुए हैं। इसका एक ठोस आर्थिक तर्प है। क्रिकेट अब खेल से ज्यादा कारोबार बन चुका है। इससे देशव्यापी रसूख और करोड़ों की सम्पत्ति हासिल होने लगी है। ऐसे में स्पॉट फिक्सिंग न केवल एक घोटाला है बल्कि इस लोकप्रिय खेल की गरिमा तथा विश्वसनीयता बचाने के उपक्रम के रूप में भी देखा जाना चाहिए। यह देखना हैरतअंगेज है कि श्रीनिवासन ने शुरू से ही इस प्रकरण पर परदा डालने की कोशिश की। श्रीनिवासन मनमाफिक जांच समिति बनाकर पूरे प्रकरण पर लीपापोती करने में लगे रहे। भला तो न्यायपालिका का हो जिसने न केवल बीसीसीआई की जांच समिति को अवैध ठहराया बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने जांच का जिम्मा जस्टिस मुद्गल को सौंपकर पूरी सच्चाई सामने आने की भूमिका रच दी। अब देखना यह होगा कि श्रीनिवासन सहित जिन व्यक्तियों के नाम जांच में सामने आए हैं उन पर क्या कार्रवाई होती है। आईपीएल की नियमांवली में प्रावधान था कि यदि कोई टीम मालिक या प्रबंधन से जुड़ा व्यक्ति फिक्सिंग या सट्टेबाजी में लिप्त पाया जाता है तो उस टीम को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया जाए। जरूरी है कि क्रिकेट को बदनाम करने वाली गतिविधियों में लिप्त प्रशासकों, टीम मालिकों और खिलाड़ियों पर बेहद सख्त कार्रवाई हो ताकि भविष्य में कोई क्रिकेट की साख से खिलवाड़ करने की हिम्मत न कर सके।

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