Wednesday, 31 December 2014

मारा गया पेशावर स्कूली बच्चों को मारने वाला मास्टरमाइंड

पेशावर कत्लेआम के हर बीतते घंटे और दिन के साथ इसकी निंदा करने व इसकी मुखालफत में पाकिस्तानी जिस तरह से एकजुट हुए हैं, हो रहे हैं, उसे देखकर पाकिस्तानी तालिबान निश्चित ही दहशत में होगा। मासूम बच्चों के कातिलों से बदला लेने की मांग इतनी जोर पकड़ चुकी है कि जो मुल्ला दहशतगर्दों के हिमायती थे वह भी नाराज लोगों के सुर में सुर मिलाने पर मजबूर हो गए हैं और वजीर--आजम नवाज शरीफ तालिबान के खिलाफ व अन्य दहशतगर्दों के खिलाफ कार्रवाई करने पर मजबूर हो गए हैं। ताजा खबर के अनुसार पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के हाथ एक बड़ी कामयाबी लगी है। उन्होंने देश के बेहद अशांत खैबर एजेंसी इलाके में तालिबान कमांडर सद्दाम को मार गिराने का दावा किया है। समझा जाता है कि सद्दाम पेशावर के आर्मी स्कूल हत्याकांड का मुख्य साजिशकर्ता था, जिसकी तलाश की जा रही थी। पाक में 16 दिसम्बर को आर्मी स्कूल में हुए देश के अब तक के सबसे निर्मम आतंकी हमले में 141 बच्चों समेत 150 लोग मारे गए थे। खैबर एजेंसी के राजनीतिक प्रतिनिधि शहाब अली शाह ने बताया कि जमरूद के गुंदी इलाके में सुरक्षा बलों ने अपने एक अभियान में सद्दाम को बृहस्पतिवार को मार गिराया और उसके एक सहयोगी को गिरफ्तार कर लिया। पाकिस्तान ने शुक्रवार को आतंकियों के मंसूबों को नाकाम करने के लिए संघीय आतंकवाद निरोधी बल का गठन भी किया है। इसके अलावा वित्तीय इकाइयों को निर्देश दिए गए हैं कि वह आतंकियों को मिलने वाली आर्थिक मदद की जांच करें। इसके साथ-साथ पाक ने एक पैनल भी गठित किया है जो इस नासूर से निपटने के लिए बनाई गई योजनाओं को लागू करने पर नजर रखेगा। इस दौरान पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों ने लाहौर की मशहूर कोट लखपत जेल पर हमले की आतंकियों की साजिश को नाकाम करने का दावा किया है। इस  जेल में पांच खूंखार आतंकियों समेत मौत की सजा पाए कम से कम 50 आतंकी बंद हैं। लाहौर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमने आतंकियों की साजिश को नाकाम किया है और कोट लखपत जेल के पास फरीदकोट कॉलोनी से दो महिलाओं और एक पुरुष को गिरफ्तार किया है। अधिकारी ने बताया कि गुरुवार को उनके पास से एक रॉकेट लांचर, सुरक्षा एजेंसियों की वर्दियां, जूते, बंदूकें, तीर-कमान, मोबाइल फोन बरामद किए हैं। कोट  लखपत जेल में सैन्य अदालतों द्वारा मौत की सजा पाए पांच खूंखार आतंकियों समेत कम से कम 50 आतंकी बंद हैं। आज स्थिति यह है कि पाकिस्तानी अवाम में जिस थोड़े से हिस्से में तहरीक--तालिबान के लिए हमदर्दी थी वह भी भाप की मानिंद उड़ गई है। पेशावर हत्याकांड ने हुकूमत को यह हिम्मत दी है कि दहशतगर्दी और दहशतगर्दों से निपटने के लिए वह अपने सभी तरह के हथियारों का इस्तेमाल करे। पेशावर की वारदात ने पाकिस्तान को बदल दिया है। जैसा कि नवाज शरीफ ने कहा है कि पाकिस्तान की धरती से आतंकवाद को मिटाने के संयोग में लगे हैं। यह आसान नहीं है, मगर हुकूमत ने मजबूत इरादा तो दिखाया है।

-अनिल नरेन्द्र

`पीके' फिल्म का विरोध और कमाई दोनों बढ़ रही है

आमिर खान की फिल्म पीके को लेकर विरोध बढ़ता जा रहा है। धार्मिक अंधविश्वास और साधु-संतों को निशाने पर लेने वाले आमिर खान की इस फिल्म पर कई हिन्दू संगठनों ने एतराज किया है। कई हिन्दू संगठनों और धर्माचार्यों ने इस पर रोक लगाने की मांग की है। उनका कहना है कि पीके में हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान किया गया है। धर्माचार्यों में हिन्दू-मुस्लिम दोनों शामिल हैं। हालांकि भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने फिल्म की तारीफ की है। फिल्म में हिन्दू धर्म की मान्यताओं, परंपराओं, बाबाओं और भगवान पर तीखे कटाक्ष किए गए हैं। इस फिल्म पर रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि यह फिल्म हिन्दू धार्मिक मान्यताओं का मजाक उड़ाती है। द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भी कहा है कि इसमें हिन्दू धर्म का अपमान किया गया है। मुस्लिम धर्मगुरु फिरंगी महली ने भी कहा है कि फिल्म में कई ऐसी बातें हैं जिनसे गंगा-यमुना संस्कृति पर खराब असर पड़ सकता है। योगगुरु बाबा रामदेव ने पीके में हिन्दू देवी-देवताओं के प्रति अपमानजनक टिप्पणी तथा दृश्यों को दर्शाए जाने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा है कि सिर्प हिन्दू देवी-देवताओं का ही फिल्मों में सर्वाधिक अपमान क्यों किया जाता है? उन्होंने लोगों से अपील की है कि वह पीके का  बहिष्कार करें ताकि हिन्दू धर्म व संस्कृति का अनादर न हो सके। फिल्म को लेकर विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू जन जागृति समिति और अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ने विरोध प्रदर्शन किया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने पीके के कुछ दृश्यों से कथित रूप से धार्मिक भावनाएं आहत होने पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि देश और प्रदेश का माहौल खराब करने की कोशिशें जारी हैं। ऐसे में फिल्मों में ऐसी चीजें कतई नहीं दिखाई जानी चाहिए। फिरंगी महली ने कहा कि फिल्म पीके में कुछ दृश्यों से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की बातें सामने आ रही हैं। अगर ऐसा है तो यह  बिल्कुल गलत है। अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब किसी के जज्बात को ठेस पहुंचाना नहीं है। अगर फिल्म में ऐसे दृश्य हैं तो सेंसर बोर्ड को उन्हें हटा देना चाहिए ताकि सांप्रदायिक सद्भाव न बिगड़े। उधर सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष लीला सैमसन ने कहा है कि आमिर खान की फिल्म पीके से कोई दृश्य नहीं हटाया जाएगा। सैमसन ने कहा कि फिल्म को रिलीज किया जा चुका है। हर एक फिल्म किसी न किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकती है। इस पर हम सीन हटाकर किसी की रचनात्मकता को खत्म नहीं कर सकते, कोई सीन नहीं कटेगा। दूसरी ओर पीके बॉक्स ऑफिस पर रिकार्ड बिजनेस कर पुराने कलेक्शन रिकार्ड तोड़ रही है। इसी महीने 19 तारीख को रिलीज हुई फिल्म ने नौ दिन में रिकार्ड 214 करोड़ रुपए का कारोबार कर लिया है। आमिर खान ने पीके के बचाव में कहा कि जहां दक्षिणपंथी नेताओं ने मुस्लिम होने की वजह से आमिर खान पर हिन्दू धर्म का अपमान करने का आरोप लगाया और उनकी आलोचना की वहीं उन्होंने जवाब में कहा कि हम सभी धर्म का सम्मान करते हैं। मेरे सभी हिन्दू दोस्तों ने फिल्म देखी है और उन्हें ऐसा नहीं लगता। उन्होंने फिल्म के निर्देशक, निर्माता और पटकथा लेखक की ओर इशारा करते हुए कहा राजू हीरानी हिन्दू हैं, विधु विनोद चोपड़ा और अभिजीत भी हिन्दू हैं। फिल्म निर्माण दल के 99 प्रतिशत लोग हिन्दू हैं। फिल्म का बचाव करते हुए निर्देशक हीरानी ने कहा कि फिल्म का मूल विचार यह है कि हम हिन्दू या मुस्लिम या सिख या ईसाई के जन्मजात निशान के साथ पैदा नहीं होते और हमें निश्चित जीवन शैली और कुछ रीतियों का पालन करना पड़ता है। कुछ साल पहले एक और फिल्म ओह माई गॉड आई थी। उसमें भी ऐसे ही दृश्य दिखाए गए थे। पीके की कहानी भी उस फिल्म से मिलती-जुलती है। एक  बात समझ नहीं आती कि केवल हिन्दू धर्म की मान्यताओं व रीतियों पर ही हमला क्यों होता है, क्या आमिर खान अपने धर्म पर ऐसी फिल्म बना सकते हैं या किसी अन्य धर्म पर?

Tuesday, 30 December 2014

आईएम के निशाने पर राजस्थान

कुख्यात आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ने राजस्थान की जमीं को सिलसिलेवार धमाकों से रक्तरंजित करने की धमकी दी है। राजस्थान में इसे देखते हुए फुल अलर्ट कर दिया गया है। राजस्थान के गृहमंत्री गुलाब चन्द कटारिया सहित 16 मंत्रियों को मिले धमकी भरे मेल के बाद डीजीपी ओमेन्द्र भारद्वाज ने एटीएस, खुफिया तंत्र और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के मुखियाओं के साथ खास बैठक कर प्रदेश में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। डीजीपी ने गूगल और एनआई से संदिग्धों की तलाश में इंटरपोल से भी सम्पर्प साधा है। गौरतलब है कि इंडियन मुजाहिद्दीन ने राजस्थान की राजधानी जयपुर सहित अन्य जिलों में सिलीपर सेल के रूप में आतंकियों की फौज खड़ी की थी। दरिन्दे रेकी कर प्रदेश में धमाकों की योजना बना चुके थे मगर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को मिली सूचना पर एटीएस ने राजस्थान में  पल रही दहशतगर्दों की फौज को दबोच कर उनकी कमर तोड़ दी थी। करीब छह माह पहले सुरक्षा एजेंसियों ने जयपुर, सीकर, अजमेर और जोधपुर से आईएम के करीब 16 गुर्गों को गिरफ्तार कर लिया था। आतंकियों से पूछताछ पर उजागर हुए उनके मंसूबों के आधार पर प्रदेश में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई गई है। राजधानी के धार्मिक स्थलों, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बड़े मॉल, प्रतिष्ठित स्कूल और एयरपोर्ट के अलावा पूरे प्रदेश के प्रमुख स्थानों को चिन्हित कर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। होटल, धर्मशाला और सरायों की सघन तलाशी का अभियान चलाकर संदिग्धों पर सीसीटीवी कैमरों से भी निगरानी रखी जा रही है। अंग्रेजी भाषा में मिले मेल का हिन्दी अनुवाद में लिखा हैöप्रिय मित्रो, हम इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) हैं। हम आपको सूचना दे रहे हैं कि हम आपको बिग बैंग सरप्राइज देने वाले हैं। आप अच्छी तरह समझ सकते हैं, हमारा मकसद क्या है। इसलिए आप जो अच्छा कर सकते हो कर लो। हम आपको खुली चेतावनी देते हैं कि हमारा एक्शन राजस्थान में अनेक स्थानों पर होगा। यदि तुम इसको रोक सको तो... तुम इसको रोक लो। हमारी प्रतिक्रिया दिवस 26 जनवरी 2015 है। नोटिस बाई आईएम। डीजीपी ओमेन्द्र भारद्वाज ने प्रदेशवासियों को चिंतित नहीं होने की नसीहत देते हुए सुरक्षा के माकूल इंतजामात करने का आश्वासन दिया है। उन्होंने मेल को अफवाह फैलाने की नजर से देखते हुए किसी शरारती तत्व की कारगुजारी भी बताया है। डीजीपी के अनुसार मेल से पहले भी आतंकियों के गड़बड़ी फैलाने के इनपुट मिल चुके हैं। आतंकियों के धमाके करने की तारीख और स्थानों का स्पष्ट पता नहीं चला है। पुलिस के अलावा एटीएस, बीडीएस, सीआईडी व आईबी सहित अन्य खुफिया तंत्र सक्रिय हो गए हैं। सीमा पार से आने और जाने वाले फोन कॉल्स के अलावा सैटेलाइट फोनधारकों को भी रॉडार पर  लेकर जांच में जुटी है। इस बीच मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भी सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाते हुए सचिवालय को भी सुरक्षा के घेरे में लिया है। सचिवालय में कैमरा आदि पर रोक लगाते हुए मोबाइल से भी फोटो लेने पर रोक लगाई गई है। उम्मीद करते हैं कि यह गीदड़ भभकी है और आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं होंगे।

-अनिल नरेन्द्र

खलासी का बेटा बना झारखंड का मुख्यमंत्री

टाटा स्टील के जमशेदपुर कारखाने में मजदूर के तौर पर अपना सफर शुरू करने वाले रघुवर दास झारखंड के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं। रविवार को रांची के मोरहाबादी मैदान में एक भव्य समारोह में श्री रघुवर दास एवं उनके मंत्रिमंडल के चार सहयोगियों सीपी सिंह, नीलकंठ सिंह मुंडा, डॉ. लुईस मरांडी और आजसू के चन्द्र प्रकाश चौधरी ने शपथ ग्रहण की। रघुवर दास झारखंड के दसवें मुख्यमंत्री हैं। झारखंड में एक गैर आदिवासी रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने फिर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह पिटी-पिटाई लीक पर चलने में नहीं बल्कि लीक तोड़ने में विश्वास करती है। इससे पहले हरियाणा में गैर जाट को मुख्यमंत्री बनाकर वह इस सोच का परिचय दे चुकी है। जब झारखंड का गठन हुआ था तो भी भाजपा ने सरकार बनाई थी। यही नहीं बीते 14 सालों में अधिकांश समय भाजपा ही सत्ता में रही। बाबू लाल मरांडी और अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री रहे। आदिवासी बहुलता राज्य में यह स्वाभाविक भी माना गया। ऐसा पहली बार हो रहा है जब पार्टी  ने रघुवर दास के रूप में किसी गैर आदिवासी को राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया है। टाटा स्टील में मजदूर पिता के मजदूर पुत्र के रूप में जीवन की कठिनाइयां देख चुके रघुवर दास राज्य की चुनौतियों को समझते हैं। पार्टी के जिला स्तर के कार्यकर्ता से लेकर दो बार प्रदेशाध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री के रूप में उनके पास संगठन और शासन का व्यापक अनुभव है लिहाजा चुनौतियों से जूझने का वह माद्दा भी रखते हैं। हालांकि राज्य में भाजपा अपने बूते बहुमत नहीं ले पाई और सरकार चलाने के लिए वह आजसू के समर्थन पर निर्भर रहेगी। इसके बावजूद रघुवर दास झारखंड के कदाचित पहले मुख्यमंत्री होंगे जिनके सामने अस्थिरता जैसी न चुनौती होगी, न भीतरघात की उतनी आशंका। लेकिन मुख्यमंत्री पद उनके लिए फूलों की सेज भी नहीं होगा यह सिर्प गैर आदिवासी होने के कारण नहीं बल्कि सबसे ज्यादा इसलिए कि केंद्र में अपनी ही पार्टी की बहुमत सरकार होने के कारण अपनी विफलता के लिए वह किसी और को दोष नहीं दे पाएंगे। गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में उनका कामकाज ऐसा हो कि आदिवासियों को यह महसूस करने का मौका न मिले कि उनकी बिरादरी का मुख्यमंत्री नहीं बना। इसके लिए पिछड़े झारखंड में अतिपिछड़े आदिवासी समुदाय की समग्र उन्नति के साथ उनसे आत्मीय संबंध बनाना एक चुनौती होगी। बढ़ते नक्सलवाद की दूसरी बड़ी चुनौती इसी से जुड़ी हुई है। झारखंड उन राज्यों में से है जहां शिक्षा, रोजगार, सिंचाई, महिला कल्याण, आदिवासियों को बेहतरी और नक्सल उन्मूलन जैसे कई मुद्दों पर बुनियादी काम करना होगा। करीब डेढ़ दशक में नौ मुख्यमंत्री और तीन बार राष्ट्रपति शासन देख चुका यह राज्य भ्रष्टाचार से आजिज आ चुका है और नई शुरुआत की आकांक्षा है। इसीलिए जनता ने पुराने दिग्गजों को हराकर भाजपा को एक अवसर दिया है। देखें, झारखंड के नए मुख्यमंत्री के सामने भ्रष्टाचारविहीन विकास के साथ-साथ आदिवासियों और पिछड़े लोगों को विकास की मुख्य धारा में लाने का भी काम रघुवर दास को करना होगा। श्री रघुवर दास को बधाई।

Sunday, 28 December 2014

दिल्ली विधानसभा चुनाव में होगी मोदी-शाह की अग्निपरीक्षा

झारखंड और जम्मू-कश्मीर के बाद भारतीय जनता पार्टी की नजरें अब दिल्ली के विधानसभा चुनावों पर हैं। 16 साल बाद दिल्ली की सत्ता पर दोबारा काबिज होने को पार्टी बड़ी चुनौती मानकर चल रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं। बकौल पार्टी अध्यक्ष अमित शाह दिल्ली में भाजपा की कड़ी परीक्षा होनी है। जाहिर है कि किसी तरह की चूक से बचने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह चुनावी रणनीति की बागडोर पूरी तरह से अपने हाथ में रखने वाले हैं। आने वाले दिनों में दिल्ली चुनाव को लेकर कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएंगे जिससे कि 16 वर्षों के बाद दिल्ली में फिर से भाजपा की वापसी हो सके। झारखंड में पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद अब जम्मू-कश्मीर में भी बहुमत का आंकड़ा जुटाने में पार्टी पूरे प्रयास कर रही है। इन दोनों राज्यों के बाद अब अमित शाह का पूरा ध्यान दिल्ली विधानसभा चुनावों पर है। सूत्रों की मानें तो अमित शाह आम आदमी पार्टी को हल्के में लेने के मूड में नहीं हैं। हाल ही में सामने आए कुछ जनमत सर्वेक्षणों ने भी इस बात की ओर इशारा किया है कि दिल्ली में सीएम के तौर पर अरविन्द केजरीवाल को सबसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है। हालांकि इनमें भी भाजपा की जीत की बात कही गई है पर पार्टी किसी तरह का खतरा नहीं उठाना चाहती। गुरुवार के दिन अमित शाह ने पार्टी के प्रदेश कार्यालय का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने वरिष्ठ नेताओं के साथ बातचीत की। विधानसभा में पूर्ण बहुमत हासिल करने के लिए उन्होंने पार्टी को पूरी तरह से आक्रामक प्रचार में जुटने की सलाह दी। पार्टी नेताओं के बयानों से साफ लगता है कि पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर पूरे उत्साह में है जबकि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की हार ने पार्टी को एक ऐसा साफ सबक दिया है कि अब हर नेता केवल नरेंद्र मोदी के भरोसे चुनाव नहीं जीत सकता। फिर दिल्ली की स्थिति झारखंड और जे एण्ड के से अलग है। दिल्ली में बिजली, पानी, कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे ज्वलंत हैं जिनको केजरीवाल पूरी तरह से भुनाने में लगे हैं। उधर कांग्रेस भी यह उम्मीद कर रही है कि शायद दिल्ली से पार्टी की घर वापसी होगी। बेशक नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अब भी है पर यह घट रही है। अकेले मोदी वेव पर पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकती। फिर भाजपा यह भी नहीं बता रही कि अगर वह जीती तो मुख्यमंत्री कौन होगा? इसके फायदे भी हैं, नुकसान भी। बिना सीएम घोषित किए चुनाव लड़ना मोदी-शाह की नई थ्यौरी है। दिल्ली विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने बुधवार को दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी, जिलों के निर्वाचन अधिकारियों और पुलिस के आला अफसरों के साथ बैठक की और चुनाव संबंधित मुद्दों पर चर्चा की। भाजपा सूत्रों का कहना है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव फरवरी 2015 में हो सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

पिछले 14 महीनों में कांग्रेस 12 चुनाव हारी है और हार थम नहीं रही

यह बहुत दुर्भाग्य की बात है कि जितनी तेजी से भाजपा आगे बढ़ रही है, उससे दोगुनी रफ्तार से कांग्रेस नीचे आ रही है। इतनी पुरानी पार्टी की यह दशा देखकर दुख होता है। पिछले 14 महीनों में कांग्रेस ने 12 राज्यों में लगातार एक के बाद एक चुनाव हारे हैं। अपने 129 साल के इतिहास में ऐसी नाकामी और निरंतर गिरता चला जा रहा सियासी ग्राफ पहले कभी भी कांग्रेस ने नहीं देखा। झारखंड, कश्मीर की हार के बाद (जहां पहले वह सरकार में थी) कांग्रेस के पास सिर्प नौ राज्य बचे हैं। इनमें  भी पूर्वोत्तर के पांच और दो उत्तर भारत के (हिमाचल और उत्तराखंड) और दो दक्षिण (कर्नाटक और केरल) के। जिन राज्यों में कांग्रेस चुनाव हारी है उनमें अधिकांश में वह तीसरे और चौथे नम्बर पर खिसक गई है। दूसरी ओर अब भाजपा के पास 11 राज्यों में सत्ता आ गई है। इनमें आंध्र, पंजाब में वह सहयोगी दल है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन उसके अब तक के इतिहास में सबसे खराब रहा था और वह 44 सीटों पर सिमट गई थी। इसके बाद उसने महाराष्ट्र और हरियाणा में सत्ता गंवाई। दोनों राज्यों में वह तीसरे नम्बर पर रही। झारखंड में झामुमो के साथ सत्ता में ही कांग्रेस चौथे नम्बर पर आ गई। यहां उसे मात्र छह सीटें मिलीं जो क्षेत्रीय दल झारखंड विकास मोर्चा से भी कम हैं। झाविमो को आठ सीटें मिलीं जबकि वह राजद और जद (यू) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी। वहीं जम्मू-कश्मीर की बात करें तो यहां भी वो पांच साल तक सत्ता में भागीदार रही लेकिन नतीजों में चौथे नम्बर  पर रही। पिछले 14 महीनों में कांग्रेस 13 चुनाव हारी। यह हैं मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, सिक्किम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर और झारखंड। भाजपा के पास 10 राज्य हैं जिनमें सिर्प गोवा छोटा राज्य है बाकी सब बड़े राज्य हैं। सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि कांग्रेस आला कमान ने कभी भी गंभीरता से हार के कारणों पर आत्मचिंतन नहीं किया। न तो सोनिया गांधी ने हार के कारणों को जानने का प्रयास किया और न ही राहुल गांधी ने। उलटा राहुल गांधी ने तो अपना गुस्सा पार्टी के महासचिवों पर निकाल दिया। जम्मू-कश्मीर और झारखंड में मिली करारी हार की समीक्षा बैठक में राहुल पार्टी रणनीतिकारों पर भड़क गए। 12 तुगलक लेन अपने निवास पर बुलाई गई इस बैठक में पहली बार राहुल अपने महासचिवों से नाराज दिखे। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राहुल ने कहा कि अगर आप लोगों ने मेहनत की होती तो इन दोनों राज्यों में नतीजे भिन्न होते? एक सवाल के जवाब से असंतुष्ट राहुल उन रणनीतिकारों पर बरस पड़े जिन्होंने चुनाव के दौरान उन्हें कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब होने की रिपोर्ट दी थी। राहुल ने मीडिया विभाग का कामकाज देख रहे पार्टी महासचिव अजय माकन की तरफ मुखातिब होते हुए पूछा कि क्या कारण है कि पार्टी द्वारा संसद से लेकर सड़क तक मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक अभियान छेड़ने का असर आम आदमी तक नहीं पहुंचा पाए। राहुल ने कहा कि पिछले सात महीने में मोदी सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिसे सराहा जाए उलटे धर्मांतरण मिशन के चलते उनकी भारी बदनामी हुई है। फिर क्या वजह है कि मोदी की लोकप्रियता अभी भी बरकरार है? हम (कांग्रेस के लोग) अपनी बात आखिर जनता तक पहुंचाने में क्यों कामयाब नहीं हो पाए हैं? राहुल ने सुझाव दिया कि पार्टी पदाधिकारी निचले स्तर के कार्यकर्ताओं से जुड़ें, उनकी बातें तथा सुझाव सुनें और जानने की कोशिश करें कि आम जनता कांग्रेस से क्या अपेक्षा रखती है? और कांग्रेस की लोकप्रियता का ग्राफ क्यों गिरता जा रहा है? कांग्रेस नेतृत्व बेशक अपने पदाधिकारियों को कोसे पर असल समस्या तो नेतृत्व की है। कांग्रेस आज नेतृत्वहीन है, यह बात कौन राहुल, सोनिया को समझाए?

Saturday, 27 December 2014

पारा लुढ़का, दृश्यता शून्य, कोहरे ने थामी जिंदगी

राजधानी दिल्ली में सर्दी ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। सोमवार को न केवल न्यूनतम तापमान पिछले पांच वर्षों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया बल्कि राजधानी में कोल्ड-डे (सर्द दिन) की शुरुआत हो गई। राजधानी में सोमवार को शिमला के मुकाबले ज्यादा ठंड थी। दिल्ली में पारा 4.2 डिग्री था जबकि शिमला में 6.2 रहा। कभी किसी ने सोचा भी न था कि पहाड़ों से ज्यादा ठंड मैदानों में होगी। घने कोहरे से दिल्ली का यातायात प्रभावित हुआ है। इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से करीब 20 उड़ानें रद्द हो गईं और 50 ट्रेनें 12 से 18 घंटे तक लेट हुईं। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ऊपरी इलाकों में लगातार बर्पबारी हो रही है। पहलगांव में पारा माइनस 3.6 डिग्री सेल्सियस पर है। हिमाचल के काल्पा में पारा माइनस 0.1 डिग्री सेल्सियस पर है। उत्तर प्रदेश में 24 घंटे के अंदर 21 लोगों की ठंड से मौत हो गई है। वाराणसी, मेरठ, इलाहाबाद, गोरखपुर में रात का तापमान शून्य तक पहुंच गया है। प्रतापगढ़ जिले में सबसे कम तापमान 2.2 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया। राजधानी में पड़ रही कड़ाके की ठंड ने बुधवार को अपना पिछला रिकार्ड तोड़ दिया। मंगलवार की तुलना में बुधवार को अधिकतम और न्यूनतम तापमान में क्रमश एक-एक डिग्री सेल्सियस की गिरावट दर्ज की गई और कोहरा छाया रहा। इस कोहरे की वजह से यमुना एक्सप्रेस-वे पर अब तक की सबसे बड़ी दुर्घटना घटी। एक्सप्रेस-वे पर एक साथ 70 से अधिक वाहनों के टकराने से यह अब तक का सबसे बड़ा हादसा बन गया। अब से पहले कोहरे के चलते यमुना एक्सप्रेस-वे पर पिछले साल 22 और नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे पर चार साल पहले 25 वाहन टकरा चुके हैं। बुधवार को हादसे में सबसे अधिक लोग घायल हुए और मौत भी हुई। हादसों के लिए कोहरे के साथ चालकों की लापरवाही भी जिम्मेदार रही। विजिबिलिटी 30 से 50 मीटर तक थी, लेकिन कई लोग 100 से ज्यादा की स्पीड पर चल रहे थे। बुधवार सुबह करीब 8.30 बजे जीरो प्वाइंट से 34 किलोमीटर दूर जेवर टोल के पास एक के बाद एक 70 वाहन भिड़ गए। हादसे में भेल के महाप्रबंधक व उपमहाप्रबंधक की मौत हो गई। कई विदेशी पर्यटकों समेत 22 लोग घायल हो गए। आरोप है कि पुलिसकर्मियों ने वसूली के लिए ट्रक को रुकने का इशारा किया था, जिसके बाद ड्राइवर ने अचानक ब्रेक लगा दिए और घने कोहरे में वाहन भिड़ते ही चले गए। एनसीआर समेत उत्तर-पश्चिम भारत में कड़ाके की ठंड से कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है। एनसीआर में हिंडन का पारा तो 2.3 डिग्री तक आ गया लेकिन दिन की सर्दी में अभी कमी नहीं आई और अब रात की सर्दी बढ़ने की भविष्यवाणी मौसम विभाग ने कर दी है। अगले तीन दिन में न्यूनतम तापमान दो से तीन डिग्री और गिरेगा।
-अनिल नरेन्द्र


असम में न रुकती आतंकी हिंसा

हमने देखा है कि आमतौर पर जब भी हम आतंकवाद की बात करते हैं तो हम इन जेहादी गुटोंöलश्कर--तैयबा, जैश--मोहम्मद व अलकायदा की घटनाओं का जिक्र करते हैं। इनके द्वारा किए गए आतंकी हमलों की बात करते हैं। लेकिन देश के अंदर भी ऐसे कई संगठन हैं जो आतंकी गतिविधियों में लिप्त हैं पर उनका ज्यादा जिक्र नहीं होता। ऐसा ही एक संगठन है उल्फा। असम में उग्रवादी हिंसा का सिलसिला थोड़े-बहुत उतार-चढ़ाव के साथ कई दशकों से जारी है। सन 2014 का अंत होते-होते उग्रवादियों ने असम के सोनितपुर और कोकराझार जिलों में भीषण हत्याकांड करके अपनी रक्तरंजित उपस्थिति दर्ज करवा दी है। बोडो उग्रवादियों ने दूरदराज के आदिवासी गांवों को निशाना बनाया है। मारे गए लोगों में काफी सारे बच्चे व महिलाएं हैं। गुस्से से भरे आदिवासियों ने पांच बोडो परिवारों पर बदला लेने के लिए हमला कर दिया। इस हत्याकांड में 50 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। 20 घर पूंक डाले। इस हत्याकांड के पीछे बोडो उग्रवादियों के संगठन नेशनल डेमोकेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (सगंबजीत) का, जिसे संक्षेप में एनडीएफबी (एस) के नाम से जाना जाता है, का हाथ है। यह हत्याकांड बताता है कि भारत के दूरदराज सीमांत इलाकों में रहने वाले लोग निरर्थक हिंसा और अशांति को झेल रहे हैं। उल्फा के कई पदाधिकारियों की गिरफ्तारी और फिर इसके प्रमुख धड़े के शांति प्रक्रिया में शामिल होने के बाद से यह माना जा रहा है कि असम को उग्रवादी हिंसा से काफी हद तक निजात मिल गई है। मगर इस धारणा पर एक बार फिर सवालिया निशान लग गया है। दरअसल चाहे उल्फा हो या एनडीएफबी यानि नेशनल डेमोकेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड, इनके वैसे धड़े जो शांति-समझौतों में शामिल नहीं हुए, अब भी हथियारबंद हैं और जब-तब अपहरण, हत्या और धमाकों को अंजाम देते रहते हैं। कभी इनके निशाने पर सुरक्षाकर्मी होते हैं तो कभी साधारण लोग। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने ठीक ही इन हमलों को बर्बरतापूर्ण करार दिया है। एनडीएफबी बोडो अलगाववादियों का सबसे उग्र संगठन है जिससे सरकार किसी किस्म का समझौता नहीं करना चाहती। इस संगठन का कहना है कि वह स्वतंत्र बोडोलैंड से कम किसी बात पर समझौता करने को तैयार नहीं है। एनडीएफबी में दो गुट हैं। इनमें से एक सरकार से बातचीत नहीं करना चाहता तो दूसरा गुट बातचीत के समर्थन में है। जिस समूह ने यह हत्याकांड किया है वह मूल एनडीएफबी की सशस्त्र इकाई बोडोलैंड आर्मी के पूर्व अध्यक्ष सगंबजीत का गुट है। उत्तर-पूर्व के आतंकी संगठन अपनी उपस्थिति दर्ज कराने या अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए इस तरह के हत्याकांड करते रहते हैं। उनके इस कारोबार का खामियाजा आम नागरिक भुगतते हैं। उत्तर-पूर्व का अगर विकास नहीं हुआ तो इसके पीछे एक कारण इन संगठनों की हिंसक गतिविधियां हैं। स्थानीय राजनेता भी अपनी राजनीति चलाने के लिए इन गुटों का सहारा लेने से नहीं हिचकते। उत्तर-पूर्व की समस्याएं इतनी गंभीर भी नहीं हैं जितनी बना दी गई हैं। अगर ईमानदारी से इन समस्याओं को सुलझाया जाए और विकास पर ध्यान दिया जाए तो वहां शांति कायम हो सकती है। लेकिन पहले भारत सरकार को मुख्य धारा के उत्तर-पूर्व के लोगों से मानसिक दूरी घटाकर उनकी बात सुननी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर-पूर्व में शांति स्थापित करने की दिशा में कुछ कदम उठाए हैं। देखें कि वह निकट भविष्य में कितने कारगर साबित होते हैं और असम की जनता को शांति का दौर मिल सकता है?

Friday, 26 December 2014

डेरे के मैसेंजर ऑफ गॉड फिल्म पर छिड़ा विवाद

सिरसा के विवादास्पद डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। अगले महीने रिलीज होने वाली उन पर बनी फिल्म पर अनेक सिख संगठनों ने पाबंदी की मांग की है। 16 जनवरी 2015 को रिलीज होने वाली मैसेंजर ऑफ गॉड को लेकर सिखों की कुछ जत्थेबंदियों ने ऐलान किया है कि वह फिल्म को पंजाब में चलने नहीं देंगे। ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट फैडरेशन के अध्यक्ष करनैल सिंह पीर मोहम्मद ने अमृतसर में प्रेस कांफ्रेंस कर पूछा कि फिल्म बनाने के लिए बाबे ने कहां से पैसा लिया? इसके अलावा अकाली दल अमृतसर के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान ने कहा कि सैंसर बोर्ड इस फिल्म को देशभर में वैन करे, क्योंकि इसमें गुरुबाणी को ठेस पहुंचाई गई है। राम रहीम सिखों को चिढ़ा रहे हैं। मान ने कहा कि इसके पीछे आरएसएस भी है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इनके डेरे पर आए थे। हालांकि दमदमी टकसाल के मुखिया हरनाम सिंह घुमान ने कुछ भी कहने से मना कर दिया। सिरसा डेरे के प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम की फिल्म में संत ने हीरो की भूमिका खुद ही निभाई है। 60 दिन में बनी इस फिल्म में गाने भी राम रहीम ने गाए हैं। संत ने अपने सिरसा डेरे के अलावा पालमपुर में भी शूटिंग की है। अकाली दल ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। फिल्म के बारे में पूछे गए सवाल पर शिक्षा मंत्री और शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि अभी इस मुद्दे पर कुछ नहीं कह सकते जब तक वह फिल्म मार्केट में नहीं आती। अकाल तख्त के  प्रमुख गुरबचन सिंह ने कहा कि डेरा प्रमुख पर हत्या और बलात्कार का आरोप है और उनकी फिल्म से लोग गुमराह हो सकते हैं। पंजाब सरकार से फिल्म पर रोक लगाने का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि फिल्म सिख, हिन्दू और मुस्लिमों की धार्मिक भावनाओं को आहत करेगी। करनैल सिंह पीर मोहम्मद ने भी केंद्र और राज्य सरकार से फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने को कहा है। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों अकाल तख्त ने लोगों से डेरा प्रमुख के धार्मिक समागमों में नहीं जाने को कहा था और सिख संगठनों का कर्तव्य है कि इस फिल्म को रिलीज न होने दिया जाए। अकाल तख्त ने सिरसा स्थित डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम द्वारा कथित तौर पर सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह का रूप रखे जाने पर भी आपत्ति जताई थी जिसके बाद पंजाब में सिखों और डेरा समर्थकों के बीच तनाव की स्थिति बन गई थी। इस फिल्म से एक बार फिर अकालियों और डेरा समर्थकों में तनाव बढ़ेगा और खूनखराबा होगा। दोनों केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह चुनौती होगी कि फिल्म रिलीज होने से पहले और  बाद में कानून व्यवस्था न बिगड़े। इस फिल्म के हीरो, निर्देशक और संगीतकार गुरमीत राम रहीम खुद ही हैं। फिल्म का ट्रेलर सोशल मीडिया पर आ चुका है। डेरा अनुयायियों का दावा है कि देश-विदेश में उनके पांच करोड़ समर्थक हैं। हरियाणा में उनके 25 लाख अनुयायी हैं।

-अनिल नरेन्द्र

भारत के सर्वाधिक करिश्माई नेता अटल बिहारी वाजपेयी

अटल जी को भारत रत्न दिए जाने से जितनी खुशी हमें हो रही है उनका हम शब्दों में वर्णन नहीं कर सकते। अटल जी हमारे हमेशा करीब रहे हैं। सभी को मालूम है कि श्री अटल बिहारी वाजपेयी दैनिक वीर अर्जुन के सम्पादक भी रह चुके हैं। अटल जी की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि वह मानवतावादी के प्रतीक हैं, क्योंकि हृदय से वह एक कवि हैं। राजनेताओं के दुर्गुणों के दुर्गुणों से मुक्त व्यक्ति हैं। उन्होंने कभी भी किसी भी दल से व्यक्तिगत विरोध नहीं किया। विरोध करने का भी अपना अंदाज है। मुझे याद है कि एक बार मैंने एक उग्र लेख लिखा था जिसका शीर्षक था ः देश को अटल जी चला रहे हैं या ब्रजेश मिश्रा? अटल जी ने तुरन्त मुझे फोन किया और कहाöसम्पादक महोदय देश कौन चला रहा है? और फिर हंस दिए। यह था उनका विरोध करने का तरीका। मेरी नजर में अटल जी भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों में से एक थे। पोखरण-2 जब होना था तो अमेरिका सहित कुछ देशों ने इसका जमकर विरोध किया था। अटल जी ने इनके विरोध की परवाह नहीं की और परमाणु परीक्षण कर डाला। जब परमाणु परीक्षण हो गया तो अमेरिका के नेतृत्व में उनके पिछलग्गू देशों ने भारत पर आर्थिक पाबंदियां, इकोनॉमिक सैंक्शंस लगा दिए। इन प्रतिबंधों से भारत की अर्थव्यवस्था को डगमगाने का खतरा था। अटल जी विचलित नहीं हुए और उन्होंने अप्रवासी भारतीयों से देश की मदद करने की अपील की। उस अपील का असर यह हुआ कि करोड़ों डॉलर इन एनआरआई ने इकट्ठे करके भारत भेज दिए। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं हुआ। अप्रवासी भारतीयों के सम्मेलन की भी शुरुआत अटल जी ने ही की थी जो आज तक चल रहा है। 2004 में अटल जी की सरकार ने 6.5 फीसदी ग्रोथ रेट कर लिया था और महंगाई भी सिर्प 3.5 फीसदी थी। इसके बाद यह बढ़ता ही गया और फिर कभी यह ग्रोथ रेट व महंगाई की दर इतनी नहीं हो सकी। अटल जी उदारवादी नेता हैं। जब वह जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री थे तो उन्होंने पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए पाकिस्तान का वीजा आसान कर दिया था। इससे हिन्दुस्तानियों को पाकिस्तान जाने में आसानी हो गई। पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के उद्देश्य से वह लाहौर बस में गए पर मुशर्रफ ने भारत की पीठ में छुरा घोंपकर कारगिल करा दिया। मुझे अटल जी के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देने के लिए अमेरिका जाने का अवसर मिला। यह ट्रिप मैं कभी नहीं भूल सकता। संयुक्त राष्ट्र में अटल जी ने जब हिन्दी में भाषण दिया तो उनकी शैली को देखकर सभी मौजूद डेलीगेट्स, शासनाध्यक्ष मुग्ध हो गए। अटल जी के प्रयासों का नतीजा था कि हिन्दुस्तानियों को अरब देशों में जाने की सुविधा मिली। इससे लाखों हिन्दुस्तानी अरब देश गए, वहां उन्होंने नौकरियां कीं और पैसा घर भेजना शुरू कर दिया। यह सिलसिला आज भी जारी है। भारत के सर्वाधिक करिश्माई नेताओं में शुमार अटल बिहारी वाजपेयी का देश की राजनीतिक पटल पर एक ऐसे विशाल व्यक्तित्व वाले राजनेता के रूप में सम्मान किया जाता है जिनकी व्यापक स्तर पर स्वीकार्यता है और जिन्होंने तमाम अवरोधों को तोड़ते हुए 90 के दशक में राजनीति के मुख्य मंच पर भाजपा को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वीर अर्जुन पर अटल जी ने अमिट छाप छोड़ी है। वीर अर्जुन के सम्पादकीय पेज पर सबसे ऊपर संस्कृत का यह श्लोक लिखा जाता है ः अर्जुनस्य प्रतिज्ञे द्वै, न दैन्यं, न पलायनम्। अटल जी ने लोकसभा में अपना त्याग पत्र देने से पहले आखिरी बात यह श्लोक कहकर इस्तीफा देने राष्ट्रपति भवन चल दिए। हमने इस श्लोक को अपना लिया और वीर अर्जुन के सम्पादकीय पेज पर सबसे ऊपर देकर उन्हीं के रास्ते पर चलने का प्रयास किया। अटल जी को भारत रत्न देने से हम अपने आपको भी बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। अटल जी को दैनिक प्रताप, दैनिक वीर अर्जुन व सांध्य वीर अर्जुन की ओर से ढेर सारी बधाई।

Thursday, 25 December 2014

क्या संकेत देते हैं झारखंड और जम्मू-कश्मीर चुनाव परिणाम

जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पाटी ने पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकपियता के रथ पर सवार होकर अब तक का सर्वश्रेष्ठ पदर्शन किया है। जम्मू-कश्मीर के इतिहास में पहली बार भाजपा न सिर्फ दूसरी सबसे बड़ी पाटी के रूप में उभरी है बल्कि वोट पर्सेंट के लिहाज से सबसे बड़ा दल बनी। इस चुनाव में उसे 23 फीसदी वोट मिले। पिछली बार पाटी ने 11 सीटें जीती थीं जो इस बार दोगुनी से भी ज्यादा हो गईं। पाटी के लिए मिशन 44 भले ही आंकड़ों में पूरा नहीं हुआ लेकिन जम्मू-कश्मीर में पाटी का उभरना निश्चित रूप से यहां की राजनीति में एक टर्निंग प्वाइंट माना जा रहा है। हालांकि कश्मीर घाटी में भाजपा खाता तो नहीं खोल सकी पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में उसे सफलता जरूर मिली। पाटी 2 फीसदी वोट लेकर शेष भारत, पाकिस्तान, अलगाववादियों को एक संदेश देने में कामयाब जरूर रही। अलगाववादियों की बहिष्कार की कॉल, धर्मांतरण जैसे मुद्दों ने घाटी की वोटिंग पर असर डाला। दूसरी ओर अगर झारखंड की बात करें तो इस राज्य में भाजपा अगली सरकार बनाने जा रही है। राज्य के गठन के डेढ़ दशक बाद पहली बार ऐसा मौका आया है कि चुनाव पूर्व गठबंधन की राज्य में बहुमत सरकार होगी। अस्थिरता के कारण झारखंड ने राजनीतिक पतन के कई दौर देखे हैं। भाजपा औपचारिक तौर पर बुधवार को झारखंड के नए सीएम के नाम की घोषणा करेगी लेकिन लगता यह है कि इस बार पहली बार गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बने। आदिवासी नेताओं और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों की बात करें तो मतदाता ने इन दिग्गजों को आईना जरूर दिखा दिया है। मजेदार बात यह है कि दोनों ही राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी विधायकी बचाने में बमुश्किल तब सफल रहे जब वह दो-दो सीटों पर लड़े। नेशनल कांफेंस के अध्यक्ष और छह साल से जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला श्रीनगर जिले की सोनवार सीट से पीडीपी पतिद्वंद्वी अशरफ मीर से हार गए। जबकि बड़गाम जिले के वीर वाह सीट पर 1000 वोटों के मामूली अंतर से जीत गए। वहीं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी दुमका और बरहेट सीट से लड़े, सफलता सिर्फ बरहेट में मिली। पिछली दफा दुमका से जीते थे। उधर राज्य के पहले मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, गिरिडीह और धनबाद दोनों सीटों पर हार गए। गिरिडीह में भाजपा के निर्भय शाहबादी ने उन्हें हराया।  इसके अलावा तीन बार के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की हार ने भाजपा को करारा झटका दिया है। मुंडा को राज्य के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में सबसे ऊपर माना जाता था। झारखंड से ही एक और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को भी जनता ने नकार दिया। मजेदार बात यह है कि उनकी पत्नी गीता कोड़ा पश्चिम सिंहभूम जिले के जगन्नाथपुर से जीत गईं। वैसे इन चुनावों से कई संकेत जरूर मिलते हैं। पहला तो यह है कि नरेंद्र मोदी का जादू लोकसभा चुनावों जैसा नहीं रहा। कश्मीर घाटी में भाजपा को लोकसभा चुनाव से भी कम वोट मिले। झारखंड में भाजपा का दायरा सिमटा है। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा झारखंड में अकेले 54 और जम्मू-कश्मीर में 26 सीटों पर लीड में थी। दूसरी बात जो उभर कर आई है वह है भाजपा को गठबंधनों की सियासत पर फिर से विचार करना पड़ सकता है। केंद्र में विपक्षी दल उसके खिलाफ हाथ मिला रहे हैं। झारखंड में भाजपा के खिलाफ कोई दो बड़े दल हाथ मिला लेते तो तस्वीर बदल सकती थी। वोटों के विभाजन से भाजपा को फायदा मिला। तीसरा केंद्र की मोदी सरकार के लिए विधानसभा चुनावों में जीत राज्यसभा में मजबूती देगी। इस सदन में पाटी के कमजोर होने के कारण आर्थिक सुधार के बिल रुक रहे हैं। चौथी बात अगले साल दिल्ली और बिहार में चुनाव होने हैं। इन नतीजों का उन पर भी असर पड़ सकता है। कांग्रेस के लिए हार का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। दोनों राज्यों में कांग्रेस चौथे नंबर पर रही है। कभी देश में सबसे अधिक राज्यों में सबसे बड़ी पाटी रहने वाली कांग्रेस के लिए यह चुनाव भी भयावह सपने की तरह रहा। अब पाटी के अंदर नेतृत्व को लेकर फिर से सवाल उठेंगे। चुनाव नतीजों ने दोनों ही राज्यों के लिए संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। पसव काल से ही अस्थिरता के दौर से गुजर रहे झारखंड को पहली बार स्थाई सत्ता का सुरक्षा का एहसास होगा। सत्ता विरोधी लहर ने झारखंड मुक्ति मोर्चा को बेशक सत्ता से अलग तो कर दिया पर पाटी का सफाया नहीं किया। आदिवासियों का चेहरा माने जाने वाली यह पाटी एक मजबूत विपक्ष के रूप में नई भाजपा सरकार के लिए असरदार नकेल की भूमिका निभा सकती है। कांग्रेस की फिसलन पर शायद ही किसी को हैरत हुई हो लेकिन लालू और नीतीश के गठबंधन ने जिस पकार यहां मार खाई वह बिहार के इन दो दिग्गजों के लिए शुभ संकेत नहीं है क्योंकि इनके राज्य में अगले साल चुनाव होने जा रहे हैं। दिल्ली में भारी भरकम रैली में लालू, मुलायम एंड कंपनी ने जो हवाएं बनाने की कोशिश की थी उस पर इन चुनाव परिणामों ने पानी फेर दिया है। सबसे बड़ा चमत्कार (अगर ऐसा कह सकें) तो जे एंड के में हुआ, जिस भाजपा को आज तक अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए संघर्ष करना पड़ता था वह अचानक यहां की सत्ता के लिए पाणवायु सरीखी बन गई। अमित शाह ने यहां 44 प्लस की ऐसी राजनीतिक शिरनी बिखेरी कि चुनाव बॉयकाट की पाकिस्तानी साजिश धरी की धरी रह गई और वोटरों ने बेखौफ अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल किया। बुलेट की जगह बैलेट भारी पड़ा और यह हमारे लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत भी है और हमारे दुश्मनों के मुंह पर करारा तमाचा भी है। अंत में हमें चुनाव आयोग को बधाई देनी होगी कि हिंसा से ग्रस्त इन दोनों राज्यों में वह सफल चुनाव कराने में कामयाब रहा। भारत का लोकतंत्र मजबूत हुआ।

-अनिल नरेंद्र

Wednesday, 24 December 2014

इन ट्रैफिक जामों की वजह से समय, ईंधन की बर्बादी बढ़ती जा रही है

दिल्ली में ट्रैफिक जांच की समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। कई चौराहों खासकर आईटीओ चौक पर तो लाल बत्ती 10-15 मिनट तक रहती है, कभी-कभी इससे भी ज्यादा समय के लिए। कहीं भी समय पर पहुंचने के लिए बहुत पहले चलना पड़ता है ताकि समय पर पहुंचें। राजधानी की सड़कों पर ट्रैफिक जाम की समस्या से न सिर्प समय और ईंधन की बर्बादी में लगातार इजाफा हो रहा है बल्कि वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है। आईआईटी दिल्ली के शोध में खुलासा हुआ है कि ट्रैफिक जाम में फंसने के कारण वाहनों का लगभग 2.5 लाख का डीजल और पेट्रोल हर रोज बर्बाद हो रहा है। आईआईटी के ट्रांसपोर्टेशन एंड इंजरी प्रीवेंशन प्रोग्राम (ट्रिप) के तहत किए गए शोध में यह चौंकाने वाली बात सामने आई है। विज्ञान, तकनीकी और चिकित्सा से जुड़े जर्नल एल्सेवियर में प्रकाशित शोध में सामने आया है कि जाम के कारण वाहन अपनी कुल यात्रा का 24 प्रतिशत समय सिर्प चार किलोमीटर प्रति घंटे की गति से ही चल पाते हैं। यह भी पाया गया है कि राजधानी की सड़कों पर हर समय लगभग 10 लाख वाहन दौड़ रहे होते हैं। इनमें बस और कार के अलावा दुपहिया और तीन पहिया वाहन शामिल हैं। ज्ञात हो कि दिल्ली में कुल पंजीकृत वाहनों की संख्या 80 लाख से अधिक हो गई है। यह संख्या मुंबई और कोलकाता, चेन्नई से कहीं ज्यादा है। अध्ययन में सात लाख वाहन ऐसे हैं जो वर्ष 2010 से प्रदूषण नियंत्रण की नियमित जांच कर इसका प्रमाण पत्र हासिल कर रहे थे जिससे ट्रैफिक जाम के सटीक असर का पता लगाया जा सके। अध्ययन में पाया गया है कि दिल्ली की सड़कों पर 4.4 से 4.7 साल तक की औसत उम्र वाली कार और बाइक चल रही हैं जबकि 17 प्रतिशत ट्रक और 15 प्रतिशत टैम्पो 10-15 वर्ष पुराने हैं। ट्रिप के प्रोजेक्ट वैज्ञानिक शरत कुट्टीपुंडा का कहना है कि वाहनों के प्रदूषण नियंत्रणमुक्त होने पर निगरानी रखना इस समस्या का तात्कालिक उपाय है जबकि सड़कों में सुधार और यातायात व्यवस्था को रेड लाइट मुक्त करना ट्रैफिक जाम की समस्या का दीर्घकालिक उपाय है। इस समस्या का एकमात्र स्थायी समाधान सार्वजनिक परिवहन को दुरुस्त करना और इसे लोकप्रिय बनाना है। इसके लिए एकीकृत बस रूट बनाने, हर इलाके को जोड़ते हुए रूट और बसों की संख्या बढ़ाने और छोटे आकार वाली वातानुकूलित बसों की फ्रीक्वेंसी को बढ़ाया जाना जरूरी है। आईआईटी शोध की बात करें तो 15 लाख की चपत रोजाना डीटीसी बसों के ब्रेकडाउन से दूसरे वाहनों को लग रही है। 400 बसों के रोजाना ब्रेकडाउन का मतलब 10-15 हजार लीटर पेट्रोल और करीब पांच हजार लीटर डीजल की बर्बादी है। 15 लाख रुपए इतने ईंधन पर खर्च होते हैं रोज, एक वर्ष में यह आंकड़ा 50 करोड़ रुपए के पार पहुंचता है। दिल्ली की सड़कों पर रोज होने वाले एक्सीडेंट का ब्यौरा अलग है। चिंता का विषय यह है कि राजधानी में इस समस्या का कोई समाधान नजर नहीं आ रहा। वाहनों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है।

-अनिल नरेन्द्र

6000 करोड़ के ड्रग्स रैकेट में मजीठिया को समन

पंजाब में ड्रग्स रैकेट जोरों से फलफूल रहा है। समय-समय पर यह चिंताजनक खबरें आती रहती हैं कि पंजाब में ड्रग्स का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है। पंजाब के एक कैबिनेट मंत्री विक्रम सिंह मजीठिया को ड्रग्स रैकेट से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले की जांच के लिए समन जारी किया गया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पंजाब के राजस्व मंत्री मजीठिया को ड्रग्स तस्करों के गिरोह के लिए 6000 करोड़ रुपए के कथित मनी लांड्रिंग (धन शोधन) घोटाले में 26 दिसम्बर को पेश होने के लिए समन जारी किया है। बता दें कि बादल परिवार से करीबी रिश्तेदारी हैं मजीठिया की। मजीठिया डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल के साले और केंद्रीय राज्यमंत्री हरसिमरत कौर के भाई हैं। केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अधीन वित्तीय जांच एजेंसी ईडी ने अंतर्राष्ट्रीय नशा तस्करी में शामिल लोगों से पूछताछ की है जिसका भंडाफोड़ प्रवासी भारतीय अनूप सिंह कहलों की मदद से मार्च 2013 में फतेहगढ़ साहिब थाने में किया गया। इसके बाद हुई जांच में पिछले साल नवम्बर में कथित सरगना जगदीश सिंह भोला की गिरफ्तारी हुई जो पंजाब पुलिस का निलंबित डीएसपी है। अंतर्राष्ट्रीय मनी लांड्रिंग मामले में पिछले साल गिरफ्तार जगदीश भोला ने पुलिस को बयान दिया है कि पूरा ड्रग्स रैकेट मजीठिया की निगरानी में चलता है। इसकी जानकारी पुलिस को भी है। हालांकि मजीठिया ने आरोपों को गलत बताया है। सूत्रों ने कहा कि ईडी ने मजीठिया से पूछताछ के लिए 50 सवालों की सूची तैयार की है। एक अंग्रेजी अखबार ने दावा किया है कि मजीठिया ने स्वीकार किया है कि उन्हें ईडी ने समन जारी किया है। मजीठिया ने यह भी बताया है कि वह इस रैकेट के सामने आने के दिन से ही जांच में सहयोग कर रहे हैं। बताया जाता है कि पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह  बादल की पत्नी और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर के छोटे भाई विक्रम सिंह मजीठिया का नाम ड्रग तस्करों की उस सूची में भी था जिसे पूर्व डीजीपी जेल शशि कांत ने मुख्यमंत्री को सौंपी थी। विपक्ष इस मामले में सीबीआई जांच की मांग करता रहा है परन्तु राज्य सरकार ने राज्य पुलिस से जांच कराकर मजीठिया को क्लीन चिट दे दी थी। मजीठिया के सत्तासीन बादल परिवार के अति निकट संबंध होने तथा सहयोगी भाजपा के साथ तनावपूर्ण संबंधों के चलते पंजाब की राजनीति में तूफान उठ सकता है। शिवसेना के साथ कुछ समय पहले हुई जोरदार तनातनी के बाद क्या भाजपा अपने एक और सहयोगी अकाली दल से भिड़ने की हालत में पहुंच रही है? भाजपा के तेजतर्रार नेता नवजोत सिंह सिद्धू और अकालियों के बीच पहले से ही तनातनी चल रही है। मजीठिया को समन के पीछे कुछ लोग काफी कुछ पढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। इनकी मानें तो यह भाजपा और अकालियों के बीच खाई बढ़ने की शुरुआत है, इसलिए कि मजीठिया सुखबीर के साले हैं और हरसिमरत कौर के छोटे भाई हैं यानि जांच की दस्तक अप्रत्यक्ष तौर पर बादल परिवार के दर पर है। 6000 करोड़ रुपए के इस ड्रग रैकेट में मजीठिया की जरा-सी भी भूमिका निकलती है तो उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ सकती है और इससे भाजपा और बादल परिवार में खटास बढ़ेगी।

Tuesday, 23 December 2014

जेहादी आतंकी संगठनों ने महिलाओं व बच्चों पर कहर बरपाया

आजकल पूरी दुनिया में आतंक की खबरें पढ़कर दिल दहल जाता है। बच्चे, महिलाएं भी अब इन आतंकी संगठनों के निशाने पर आ चुके हैं। आए दिन महिलाओं पर आतंकियों के कहर की खबरें पढ़ने को मिल रही हैं। सीरिया और इराक में आतंक का साम्राज्य स्थापित करने की चाह रखने वाले बर्बर आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने कथित रूप से इराक के फल्लुजाह में 150 लड़कियों और महिलाओं को सिर्प इसलिए मौत के घाट उतार दिया कि उन्होंने एक आतंकी संगठन के जेहादियों से निकाह करने से इंकार कर दिया था। डेली मेल अखबार की गत बृहस्पतिवार को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इराक के मानवाधिकार मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति में यह जानकारी दी है कि अबु अनस अल लिबी नामक संगठन के खूंखार हत्यारों ने अल अनवर प्रांत में हिंसा का यह तांडव मचाया। अबु अनस ने इन महिलाओं को जेहादियों से पहले निकाह करने को कहा। इन महिलाओं ने जब निकाह से इंकार कर दिया तो लाइन में लगाकर इनकी हत्या कर दी गई। मारी जाने वाली महिलाओं में अधिकतर यजीदी कबीले की थीं। कई महिलाएं गर्भवती भी थीं। महिलाओं पर आईएस का यह अत्याचार कोई नया नहीं है। उसके लिए महिलाएं एक वस्तु की तरह हैं जिन्हें समयानुसार इस्तेमाल करना चाहता है। आईएस जिन इलाकों पर कब्जा करता है वहां की महिलाओं को गुलाम बनाकर बेच देता है। मारने के बाद उनके शव फल्लुजाह में सामूहिक कब्र में दफन कर दिए जाते हैं। विज्ञप्ति के अनुसार आईएस के लड़ाकों ने फल्लुजाह की एक मस्जिद को जेल में तब्दील कर दिया है, जहां वह सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों को बंदी  बनाकर रखते हैं। उधर हजारों मील दूर नाइजीरिया में सक्रिय बोको हरम नामक आतंकी जेहादी संगठन ने देश के उत्तर-पूर्वी इलाके से कम से कम 185 महिलाओं और बच्चों को अगवा कर लिया। इससे पहले उन्होंने 33 लोगों की हत्या कर दी थी। एक स्थानीय अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि आतंकियों ने गुमसुरी गांव पर अचानक धावा बोला। वह ट्रकों पर सवार होकर आए थे। उन्होंने  पुरुषों को गोलियों से पहले भूना और गांव की महिलाओं और बच्चों को ट्रकों में बिठाकर ले गए। इससे पहले उन्होंने गांव को पेट्रोल बम से जला दिया। इलाके में संचार की कमी है, इस कारण यह खबर घटना के कई दिनों  बाद ही सामने आ सकी। क्षेत्र के दूरसंचार टॉवरों को आतंकियों ने पहले ही उड़ा दिया था। स्थानीय अधिकारियों को रविवार के हमले की खबर गुमसुरी के उन ग्रामीणों से मिली जो वहां से किसी तरह भागकर 70 किलोमीटर का सफर तय करके मैदागुरी पहुंचे। मैदागुरी नाइजीरिया के वार्नो प्रांत की राजधानी है। पश्चिमी शिक्षा का घोर विरोधी बोको हरम साल 2009 से नाइजीरिया में कहर बरपाता आ रहा है। उसने स्कूलों, गांवों, पुलिस, चर्च और आम नागरिकों पर कई हमले किए हैं जिनमें बड़ी तादाद में लोग मारे गए हैं। उसने सरकारी इमारतों पर भी बम फेंके हैं। इस महीने मैदागुरी में बोको हरम की एक महिला आत्मघाती के हमले में पांच लोग मारे गए थे। यह अत्यंत चिंताजनक है कि इन जेहादी दहशतगर्दों ने न तो बच्चों को  बख्शा है और न ही महिलाओं को।
-अनिल नरेन्द्र


मुझे तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था, मेरी किश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था

हिन्दुत्व और धर्म परिवर्तन, घर वापसी समेत तमाम मामलों पर पार्टी और आरएसएस परिवार से जुड़े नेताओं के विवादित बयानों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी आहत हैं। उन्होंने संघ और पार्टी के शीर्ष नेताओं को संकेत दिया कि यदि यही स्थिति बनी रहती है तो वह अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। उन्होंने संघ के नेताओं से बैठक में कहा कि मुझे पद का मोह नहीं है। हिन्दी फिल्म की यह मशहूर पंक्तियांöमुझे तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था, मेरी किश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था, मोदी पर बिल्कुल सटीक बैठ रही है। मोदी सरकार को केंद्र में आए छह महीने भी नहीं हुए, लेकिन इस समय जितनी आलोचना संघ और उससे जुड़े संगठनों ने की उतनी तो खुद विपक्षी दल भी नहीं कर पाए। और तो और सरकार की किरकिरी या कहें विपक्ष को मोदी सरकार पर हमले करने का औजार, मुद्दा भी भाजपा के पावर हाउस माने जाने वाले संघ के लोग उपलब्ध करा रहे हैं। अमूमन किसी भी सरकार का पहला साल हनीमून पीरियड कहा जाता है क्योंकि इस समयावधि में खुद विपक्ष भी सत्ताधारी दल की नीतियों और उनके द्वारा की जाने वाली गलतियों का इंतजार करता है। इसके बाद ही सरकार के कामकाज के आधार पर उसकी आलोचना शुरू होती है परन्तु यहां तो स्थितियां बिल्कुल उलटी ही हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े विभिन्न संगठनों ने घर वापसी के नाम पर जैसी हड़बड़ी और दिखावे का प्रदर्शन किया है उससे देश-दुनिया को एक गलत संदेश तो गया ही हैसाथ ही भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों को दुप्रचार करने का मौका भी मिला है। जब उचित तरीके से किए गए धर्मांतरण या फिर घर वापसी पर किसी तरह की पाबंदी नहीं तब फिर किसी भी संगठन के लिए यह उचित नहीं कि वह इस मामले पर लक्ष्य करता और अभियान छेड़ता नजर आए। कथित घर वापसी के सन्दर्भ में इस तरह की घोषणाएं तो घोर आपत्तिजनक हैं कि हम अमुक वर्ष तक सबको हिन्दू बना देंगे। ऐसी घोषणाएं देश के साथ-साथ हिन्दू धर्म की बदनामी का कारण बन रही हैं, जो अपनी उदारता और सहिष्णुता के लिए अधिक जाना जाता है। मोदी का सिरदर्द सिर्प संघ में ही नहीं बल्कि उनके घर में  बैठे लोग भी पैदा कर रहे हैं। इस कड़ी में पहला नाम साध्वी निरंजन ज्योति का है तो दूसरा साक्षी महाराज का। अभी मोदी सांसदों पर नियंत्रण कर ही रहे थे कि भाजपा के बुजुर्गवार उत्तर प्रदेश के महामहिम ने राम मंदिर का राग छेड़कर सरकार के सामने नई मुसीबत पैदा कर दी। इतने बवाल के बाद भी लगता है कि संघ के लोगों ने अभी कोई सबक नहीं लिया है, कम से कम संघ प्रमुख मोहन भागवत के कोलकाता में धर्म परिवर्तन पर दिए गए बयान को देखते हुए तो नहीं लगता। मोदी ने संघ के नेताओं से कहा कि इस तरह के बयानों से सरकार की छवि धूमिल हो रही है। भाजपा का तर्प है कि सरकार गुड गवर्नेंस के मुद्दे पर जीत कर आई है और इस तरह की बयानबाजी से मोदी सरकार की कट्टर छवि बनने का खतरा है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी की संसदीय दल की बैठक में भी मोदी ने कड़े शब्दों में इस तरह के बयानों से बचने के लिए कहा था लेकिन उसके फौरन बाद ही योगी आदित्यनाथ ने फिर विवादित बयान दे दिया। पार्टी नेताओं का कहना है कि संघ को यह भी बताया गया कि अगर इसी तरह से विवाद चलते रहे तो किसी भी समय दिल्ली विधानसभा के चुनाव की घोषणा और 2017 में यूपी का मिशन फेल हो सकता है। इससे संघ की योजनाओं को भी धक्का लगेगा। धारणा यह बन रही है कि मोदी सरकार के सत्ता में आते ही संघ का कब्जा हो रहा है। वैसे यह संदेश अकारण नहीं कि धर्मांतरण अथवा घर वापसी में कहीं न कहीं लोभ-लालच की भी भूमिका होती है। इन स्थितियों में यह अब आवश्यक हो गया है कि धर्मांतरण संबंधी कानून को दुरुस्त किया जाए। इससे भी कहीं अधिक आवश्यक यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे संबंधित संगठन यह समझें कि यदि वह मोदी सरकार के शुभचिंतक हैं तो घर वापसी व अन्य ऐसे मुद्दों का परित्याग करें। मोदी सरकार को मोदी के विकास एजेंडे पर चलने दें और बेवजह उसे उलझाए न रखें। यह सब विवादित मुद्दे बाद में भी उठाए जा सकते हैं, सरकार को सही मायनों में जमने तो दें।

Sunday, 21 December 2014

ऑडिटोरियम में तो बच्चों को मार डाला है, अगला फरमान क्या है?

कभी-कभी शब्द वाकई बेमानी हो जाते हैं। हम खौफ के साये में चुपचाप अपनी बेबसी को ताकते रह जाते हैं और हमारे भीतर जो भावनाएं उबल रही होती हैं उनको अभिव्यक्त करने के लिए हमें माकूल शब्द नहीं सूझते और फिर हम हमदर्दी के बोलों की निरर्थकता को समझते हुए खामोश हो जाते हैं। वह भी तालिबान ने पेशावर के मासूम बच्चों पर हमला करके हमें एक ऐसे ही मोड़ पर ला खड़ा किया है। पेशावर के स्कूल हमले की योजना मुल्ला फजलुल्लाह समेत तालिबान के शीर्ष 16 आतंकियों ने दिसम्बर की शुरुआत में अफगानिस्तान में हुई एक बैठक के दौरान बनाई थी। यह जानकारी पाकिस्तान के अधिकारियों ने शुक्रवार को दी। पाक अधिकारियों ने कहा कि शुरुआती जांच से पता चला है कि तालिबान प्रमुख मुल्ला फजलुल्लाह, तालिबान कमांडर सईद, हाफिज दौलत समेत कई अन्य लोगों ने इस योजना बनाई। उन्होंने बताया कि खैबर जिले में सक्रिय  लश्कर--इस्लाम का प्रमुख मंगल बाग भी यह साजिश का हिस्सा था। सात आतंकियों को पेशावर के पास खैबर इलाके में प्रशिक्षण दिया गया था। आतंकियों के आका अफगानिस्तान में थे और हमले के दौरान आतंकियों के साथ सम्पर्प बनाए हुए थे। हमने ऑडिटोरियम में मौजूद सभी बच्चों को मार डाला है। अब हमारे लिए अगला फरमान क्या है? वहीं ठहरो, सेना के लोगों को आने दो। खुद को उड़ाने से पहले उन्हें भी मार डालो। सुरक्षा एजेंसियों के अफसरों के मुताबिक पाकिस्तान के आर्मी स्कूल पर हमला करने वाले फिदायिनों की अपने आकाओं से यह आखिरी बातचीत थी। इस हमले से हमें मुंबई के 26/11 के हमले की याद ताजा हो जाती है। मुंबई में भी कसाब एंड कंपनी भी हमले के दौरान अपने आकाओं से सीधे सम्पर्प में थी। आखिरी बात करने के बाद बच गए दो आतंकी फिदायीन स्कूल के बाहर तैनात स्पेशल ऑपरेशन के जवानों की ओर बढ़ गए थे। आतंकवादियों और उनके आकाओं के बीच इस तरह की बातचीत का खुलासा उस खुफिया डोजियर में हुआ है जिसे पाक सेना के प्रमुख जनरल राहिल शरीफ ने बुधवार को अफगानिस्तान सरकार के अफसरों से साझा किया था। स्कूल में घुसते ही फिदायीन हमलावर सीधे मुख्य ऑडिटोरियम की ओर बढ़ गए थे जहां सीनियर सेक्शन के बच्चों को प्राथमिक उपचार के गुर सिखाए जा रहे थे। अफसरों के बीच इस बात पर माथापच्ची चल रही है कि क्या हमलावरों को ऑडिटोरियम में मौजूद बच्चों के जमावड़े की पहले से जानकारी थी? क्या उन्हें कोई मुखबिर पूरी जानकारी दे रहा था? खुफिया सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान के  पास हमलावरों के नाम और उनकी बातचीत की ट्रांक्रिप्ट है। उनमें एक हमलावर का नाम उबुजार था जबकि उसे निर्देश देने वाले का नाम कमांडर उमर के तौर पर सामने आया है। पेशावर के हमले ने यह साफ कर दिया है कि तालिबान का सफाया पाकिस्तान की हकूमत के लिए हिमालय से कम बड़ी चुनौती नहीं है। तालिबान के गुनाहों को देखते हुए पाक फौज को तालिबान के खिलाफ अपने सारे हथियार इस्तेमाल करने चाहिए और हकूमत को तब तक चैन से नहीं बैठना चाहिए जब तक उसकी धरती से दुश्मन का पूरी तरह सफाया न हो जाए पर क्या पाक ऐसा करेगा?

-अनिल नरेन्द्र

50 साल का अलगाव खत्म हुआ अमेरिका और क्यूबा के बीच करार

कम्युनिस्ट क्यूबा के प्रति 50 साल से अधिक अलगाव को खत्म करने के लिए और राजनीतिक संबंध बहाल करने की दिशा में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने साहसी, ऐतिहासिक व आश्चर्यजनक कदम उठाकर नया इतिहास लिख दिया है। इसे तमाम विश्व समुदाय ने एक ऐतिहासिक मोड़ बताया है। यह करार और दोनों देशों के कैदियों की रिहाई की घोषणा कनाडा और वैटिकन में एक साल से अधिक गुप्त वार्ता के चलते संभव हो सकी है जिसमें पोप भी शामिल थे। क्यूबा और अमेरिका के बीच रिश्तों के निर्वासन की ऐतिहासिक समाप्ति की खबर दुनिया को भले ही एकाएक लगी हो, लेकिन पर्दे के पीछे इसकी लंबी कोशिशें लंबे वक्त से चल रही थीं। लगभग 53 साल से एक-दूसरे के विरोधी रहे दोनों मुल्कों के रिश्ते सामान्य करना वास्तव में इतना आसान नहीं था। इसके पीछे बड़ी भूमिका दोनों देशों के राष्ट्रपतियों, पोप फ्रांसिस और जासूसों की रही। रिश्तों को सामान्य करने की कोशिश राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2009 में सत्ता संभालने के बाद शुरू कर दी थी। तब उन्होंने अमेरिका में रहने वाले क्यूबाई मूल के लोगों को अपने रिश्तेदारों से मिलने और उन्हें धन भेजने में लगी पाबंदी में ढील देने की घोषणा की थी। हालांकि इसमें तेजी बीते एक साल के दौरान देखने को मिली। इस दौरान क्यूबा और अमेरिकी अधिकारियों के बीच कनाडा और वैटिकन में नौ मुलाकातें हुईं। अमेरिका की मांग एक-दूसरे के कैदियों की अदला बदली की थी। अमेरिका अपनी जेल में बंद तीन हजार क्यूबाई एजेंटों के बदले में क्यूबा में 20 साल से बंद एक अमेरिकी खुफिया अधिकारी की रिहाई चाहता था। दरअसल ग्रोस नामक यह खुफिया अधिकारी एक एनजीओ के लिए काम करता था और 2009 में उसकी गिरफ्तारी के बाद ही अमेरिका ने रिश्तों को सामान्य करने की दिशा में गंभीरता से सोचना शुरू किया। पोप की भूमिका क्यूबाई राष्ट्रपति राउल कास्त्राs को मनाने में महत्वपूर्ण रही। दरअसल पोप फ्रांसिस अर्जेंटीना में पैदा हुए थे, ऐसी स्थिति में उन्हें इस काम को अंजाम देने में आसानी रही। क्यूबा के राष्ट्रपति राउल कास्त्राs ने पांच दशक के बाद इस देश के साथ संबंध बनाने के अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के फैसले और बंदियों की अदलाबदली का स्वागत किया है। अमेरिका ने क्यूबा के तीन जासूस सजायाफ्ता कैदियों को रिहा कर दिया है। इसके साथ ही क्यूबा ने भी 2009 में बंदी बनाए गए अमेरिकी राहत कर्मी अलन ग्रोस तथा एक गुप्तचर एजेंट को रिहा किया है। अमेरिकी गुप्तचर एजेंट 20 साल से क्यूबा में बंद था। संयुक्त राष्ट्र महासचिव व तमाम यूरोपीय देशों ने संबंधों के सामान्य होने के फैसले का स्वागत किया है। यह कदम दोनों राष्ट्रों के नागरिकों के बीच सम्पर्प बढ़ाने में मदद करेगा। हम अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और क्यूबा के राष्ट्रपति राउल कास्त्राs को इस साहसी, ऐतिहासिक समझौते के लिए बधाई देते हैं।

Saturday, 20 December 2014

कब तक पाकिस्तान दोहरा रुख अपनाएगा?

पेशावर के स्कूल में जघन्य आतंकी हमले के बाद वाली सुबह निश्चित रूप से पाकिस्तानियों को रात से भी ज्यादा काली महसूस हुई होगी। 100 से ज्यादा स्कूली बच्चों को जिस दिन दफनाना पड़े, वह दिन किसी भी देश के लिए कभी न भूलने वाली घटना होगी। इस कांड ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। पाकिस्तान के साथ कैसे भी संबंध हों लेकिन आज हम सभी पाकिस्तान के दुख में शरीक हैं। लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या इस घटना के बाद पाकिस्तान इन आतंकी संगठनों के प्रति अपने विचार व नीति बदलेगा? क्या यह दुख, यह जुड़ाव पाकिस्तान की धरती से उन आतंकी तत्वों को खत्म करने में मददगार हो सकता है जो गाहे-बगाहे पाकिस्तान ही नहीं बाहर के भी बेकसूर नागरिकों को मारते रहते हैं? अभी बच्चों के कत्लेआम को 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि पाकिस्तान का आतंकवाद को लेकर दोहरा चेहरा बेनकाब हो गया। पाकिस्तान की एक अदालत ने गुरुवार को लश्कर--तैयबा के ऑपरेशन कमांडर और मुंबई हमलों के मास्टर माइंड जकीउर रहमान लखवी को इसलिए जमानत पर रिहा कर दिया क्योंकि वकीलों की हड़ताल के चलते सरकारी वकील केस की सुनवाई के लिए अदालत नहीं पहुंचे। विडम्बना देखिए कि वकील पेशावर के स्कूल में आतंकियों द्वारा 148 लोगों की हत्या के विरोध में हड़ताल पर थे। 54 वर्षीय लखवी और छह अन्य ने वकीलों की हड़ताल के बीच जमानत आवेदन दिया था। पेशावर के हमले को 1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद की सबसे भीषण राष्ट्रीय आपदा बताया जा रहा है, जिससे वहां आम लोगों की सियासी दलों से नाराजगी और नाउम्मीदी को सहज ही समझा जा सकता है। इसी दबाव का नतीजा है कि पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके घनघोर प्रतिद्वंद्वी इमरान खान सहित सभी सियासी दलों को एक साथ आकर इस हमले की न केवल निंदा ही करनी पड़ी है बल्कि उन्हें पाकिस्तान की सरजमी से दहशतगर्दों को पूरी तरह से खत्म करने का वादा भी करना पड़ा है। पाकिस्तान के लिए यह वाकई परीक्षा की घड़ी है। लेकिन क्या पाकिस्तान सचमुच आतंकवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए तैयार है? नवाज शरीफ ने हमले के तुरन्त बाद आतंकवाद संबंधी मामलों में फांसी की सजा पर लगी रोक हटाने का ऐलान किया। फांसी न देने का छह साल पुराना फैसला पलट दिया। ऐसे आतंकियों के खिलाफ डैथ वारंट दो दिन में जारी होंगे। 800 आतंकियों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। सरकार ने अच्छे-बुरे तालिबान का फर्प भी खत्म कर दिया है। यह भी कहा गया है कि तालिबान से बातचीत नहीं होगी, सिर्प कार्रवाई होगी और तब तक जारी रहेगी  जब तक एक भी आतंकी जिंदा रहेगा। नवाज और पाक सेना आतंकियों पर कार्रवाई करना चाहते हैं या सिर्प तालिबान पर? क्योंकि आज भी दुनिया के दो सबसे बड़े आतंकी हाफिज सईद और दाउद इब्राहिम उसी की सरपरस्ती में पल रहे हैं। पाक सरकार आज भी उन्हें जनसेवक मानती है। अगर वाकई पाकिस्तान की सरकार और सेना आतंकवाद से मुक्ति चाहती है तो पहले उसे हाफिज सईद, दाउद इब्राहिम और लखवी जैसे सरगनाओं से मुक्त होना होगा। यदि पाक सरकार और सेना हाफिज सईद इत्यादि के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती तो फिर इसका सीधा मतलब होगा कि अच्छे-बुरे आतंकियों में भेद न करने का जो भरोसा दिलाया जा रहा है उसका कोई मूल्य-महत्व नहीं। विडम्बना देखिए कि नवाज शरीफ आतंकियों के सफाए का वादा करते हैं और मुंबई के आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले आतंकी सरगना हाफिज सईद भारत को धमकाने में लगा हुआ है। हाफिज सईद पर कार्रवाई तो दूर की बात है उसने इस हमले के बाद एक बार फिर से भारत को धमकी दी है और पाकिस्तान उसे रोक भी नहीं रहा है। क्या पाकिस्तान यह स्वीकार करने को तैयार है कि आतंकी हमला कहीं भी हो, उससे फर्प नहीं पड़ता। बार-बार पाकिस्तान के दोहरे चेहरे के सबूत मिले हैं। उम्मीद की जाती है कि पाकिस्तान अपने दोहरे चेहरे को बदलेगा और जो वादा किया है उसे निभाएगा भी?

-अनिल नरेन्द्र

वैश्विक आतंकवादी किताब में नया अध्याय, स्कूलों को निशाना बनाना

वैश्विक आतंकवाद की किताब में एक नया अध्याय जुड़ गया है। यह है आतंकवादियों द्वारा स्कूलों को निशाना बनाना। हम प्रार्थना करते हैं ऊपर वाले से कि पेशावर के आर्मी स्कूल में जो कत्लेआम हुआ वह फिर कहीं भी नहीं दोहराया जाएगा पर इसमें हमें संदेह है कि इन जेहादियों की नजरों में यह कोई गलत नहीं है क्योंकि हमलावर तालिबान को इस पर कोई अफसोस नहीं है। उलटा वह इसे जस्टिफाई कर रहे हैं। खैर! हम अपनी बात करें। क्या भारत ऐसे हमले के लिए तैयार है? पाकिस्तान के पेशावर में लीक से हटकर स्कूल और स्कूली बच्चों को निशाना बनाए जाने से भारत सकते में है। गृह मंत्रालय ने स्कूलों और अस्पतालों की सुरक्षा का जायजा लेने की कवायद शुरू कर दी है, वहीं विशेषज्ञों ने आतंकी संगठनों के हमला करने के बदलते तरीके पर सरकार और जनता को सावधान किया है। दुख से स्वीकार करना पड़ता है कि अभी तक भारत की इस दिशा में कोई खास तैयारी नहीं दिखती। स्कूलों में सुरक्षा नाम की कोई चीज ही नहीं। न तो वहां ढंग से सुरक्षा गार्ड्स होते हैं और न ही आने-जाने वालों की कोई चैकिंग ही होती है। सरकारी स्कूलों में तो यह भी नहीं चैक किया जाता कि बच्चों को जो व्यक्ति लेने आया है वह वाकई ही उनके माता-पिता या करीबी रिश्तेदार हैं? विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में कुछ संगठन ऐसे हैं जो कि पाकिस्तानी आतंकी-जेहादी संगठनों की तर्ज पर इस तरह के हमले को अंजाम दे सकते हैं। बीएसएफ के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह कहते हैं कि बढ़ते आतंकी खतरे से निपटने का उपाय महज खुफिया तंत्र की चुस्ती और आधुनिक पुलिस तंत्र है। आप सभी स्कूलों-अस्पतालों में सुरक्षा उपलब्ध नहीं करा सकते। दुर्भाग्य की बात यह है कि मोदी सरकार भी आंतरिक सुरक्षा के मामले में यूपीए सरकार के ही ढर्रे पर चल रही है और जुबानी जमा खर्च ही कर रही है। स्मार्ट पुलिस की बात करने वाली सरकार ने पुलिस आधुनिकीकरण और खुफिया तंत्र की मजबूती की दिशा में इतने महीनों से सत्ता में आने के बाद भी एक भी कदम आगे नहीं बढ़ाया है। सेवानिवृत्त मेजर जनरल अफसर करीम का मानना है कि भारत में कुछ जेहादी संगठन ऐसे हैं जो इस तरह की कार्रवाई को अंजाम दे सकते हैं। हालांकि भारत में सक्रिय ऐसे संगठनों के पास अत्याधुनिक हथियार और बड़ी ताकत नहीं है, मगर यह संगठन स्कूलों और अस्पतालों में छोटे स्तर पर ऐसी घटनाओं को अंजाम देने में सक्षम हैं। करीम का यह भी मानना है कि आतंकवाद जिस प्रकार बड़ी चुनौती बन रहा है, उस हिसाब से उससे निपटने की तैयारी नहीं है। उधर गृह मंत्रालय के सूत्रों ने माना कि सरकार ने स्कूलों-अस्पतालों की सुरक्षा का जायजा लेने की पहल शुरू कर दी है। हजारों पुलिसकर्मी वीआईपी की सुरक्षा में लगे हुए हैं। इनको कम करके पुलिसकर्मियों को स्कूलों और अस्पतालों में तैनात करना चाहिए। स्कूलों के प्रशासन को चुस्त करना होगा और जो स्कूल मोटी फीस लेते हैं उन्हें अपने खर्चे पर सिक्यूरिटी गार्ड्स रखने होंगे। इस गंभीर चुनौती पर अविलम्ब कदम उठाने की जरूरत है।

Friday, 19 December 2014

यह आतंकवाद का सबसे खौफनाक चेहरा है

इधर एकाएक जेहादी आतंकवादियों के हमलों में वृद्धि हुई है। आस्ट्रेलिया के सिडनी में, बेल्जियम में और अब पेशावर में। कश्मीर में तो आए दिन आतंकी हमले होते ही रहते हैं। क्या यह हमले एक संगठन करवा रहा है? क्या सिडनी और पेशावर के हमलों में कोई संबंध है? वैसे तो हमारे कश्मीर में पिछले 26 साल में आतंकवाद 50 हजार से ज्यादा लोगों को लील चुका है पर पाकिस्तान के पेशावर आर्मी स्कूल में जिस तरह घुसकर बच्चों को लाइन में लगाकर गोलियों से भूना गया वह रौंगटे खड़ा करने वाला था। कुछ बच्चों के सिर भी काट दिए गए। घटना के वक्त स्कूल में 1100 से ज्यादा बच्चे थे। बच्चों को मारने वाला यह वही संगठन है जिसने मलाला यूसुफजई के सिर में गोली मारी थी। बुजदिली की पराकाष्ठा लांघते हुए तालिबान ने कहा कि पाक सेना ने हमारे परिवारों को उजाड़ दिया है, इसलिए हमने पाक सेना के बच्चों पर यह हमला किया है ताकि वे जान सकें कि उन्होंने हमें कितना तड़पाया है। पाकिस्तानी इतिहास में किसी भी स्कूल पर हुए हमले में यह सबसे बड़ा और बर्बर हमला था। इसने न सिर्प पाकिस्तान को बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर डाला है। पाकिस्तानी सेना ने पाकिस्तानी तालिबान और उत्तरी वजीरिस्तान के आतंकियों के खिलाफ जर्ब--अज्ब नाम का ऑपरेशन चलाया हुआ है। इसी साल जून में शुरू हुए इस ऑपरेशन के तहत अब तक 1600 से ज्यादा आतंकी मारे जा चुके हैं। इसी के जवाब में पाकिस्तानी तालिबान ने इस नरसंहार को अंजाम दिया है। पाक सेना के ऑपरेशन से आतंकियों में बौखलाहट थी। खासतौर से सेना से बदला लेने की फिराक में थे, लेकिन सेना के कैंप पर हमला करने के लिए उन्हें ज्यादा तैयारी के साथ जाना पड़ता, इसलिए उन्होंने पेशावर के इस आर्मी स्कूल में पढ़ रहे सैनिकों व आम लोगों के बच्चों को निशाना बनाया। वैसे भी बच्चे सॉफ्ट टारगेट होते हैं और इस आर्मी स्कूल में कोई मजबूत सुरक्षा प्रबंध भी नहीं थे। केवल दो-तीन सिक्यूरिटी गार्ड थे वह भी निहत्थे। पाकिस्तान में आतंकवादी घटनाओं पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि पेशावर में हमले मलाला यूसुफजई को 2014 का नोबेल पुरस्कार दिए जाने का बदला भी हो सकता है। बच्चियों की स्कूली शिक्षा के लिए मुहिम चलाने वाली मलाला पर 2012 में पाकिस्तानी तालिबान ने हमला किया था। हाल में तालिबान ने मलाला को नोबेल पुरस्कार दिए जाने का विरोध भी किया था। बता दें कि पेशावर खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की राजधानी है। इस प्रांत में पाकिस्तान के विपक्षी दल तहरीके  इंसाफ का शासन है, जिसके सुप्रीमो क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान हैं। इमरान ने सितम्बर में नवाज सरकार से कहा था कि वह तालिबान के साथ संघर्ष विराम करे और पाकिस्तान में उन्हें अपना दफ्तर खोलने की इजाजत दे। पाकिस्तान में तालिबान के प्रति नरम रुख रखने के आरोप में इमरान को तालिबान खान भी कहा जाता है। यह हमला आतंकवाद का सबसे खौफनाक चेहरा है जिसने मासूम बच्चों को भी नहीं बख्शा। इन आतंकियों के लिए बच्चों और महिलाओं में कोई फर्प नहीं है। फिर वह आईएस हो, बोको हरम हो, अलकायदा हो या फिर तालिबान। यह घटना पाकिस्तान के पूरे तंत्र की नाकामी को भी उजागर करती है, जिसने तालिबान को फलने-फूलने का पूरा मौका दिया है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इस हमले को राष्ट्रीय आपदा बताया है, लेकिन इसके साथ ही हमारे इस पड़ोसी देश को आतंकवाद के मुद्दे पर आत्ममंथन भी करना चाहिए। वह खुद भी आतंकवाद से जूझ रहा है, लेकिन भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वालों को संरक्षण भी देता आया है। वास्तव में पेशावर में हुए हमले से दो दिन पहले सिडनी में एक सिरफिरे द्वारा एक कैफे में कुछ लोगों को बंधक बनाने की घटना बताती है कि कैसे आतंकवाद एक वैश्विक खतरा बन गया है। कैसे एक अकेला आतंकी भी लाखों लोगों की जान सांसत में डाल सकता है। 26 साल पहले कश्मीर में जो हिंसा आरम्भ हुई थी वह 50 हजार लोगों को लील चुकी है। यह आंकड़ा आधिकारिक आंकड़ा है और गैर सरकारी आंकड़ा यह संख्या एक लाख से अधिक बताता है। चाहे कुछ भी हो यह तो स्पष्ट है कि कश्मीर में और देश के अन्य भागों में आतंकियों का यह मौत का तांडव जारी रहेगा और इसके लिए सिर्प पाकिस्तान जिम्मेदार है। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि आतंकवाद का यह अरसा जिसमें अभी तक कोई कमी नहीं आई है 7000 से ज्यादा हमारे सुरक्षाकर्मियों की कुर्बानी ले चुका है और 15000 से अधिक घायल भी हुए हैं। सबसे दुखद पहलू इस वैश्विक आतंकवाद का यह है कि यह सभी संगठन इस आतंक को इस्लाम के नाम पर चलाए हुए हैं। ऐसे तो कोई भेड़-बकरियों को भी नहीं मारता जैसे तालिबान आतंकियों ने पेशावर आर्मी स्कूल में मासूम बच्चों को मारा। ऐसे भयावह और बर्बर आतंकी हमले की कल्पना करना मुश्किल है। यह अच्छी बात है कि पाकिस्तानी सेना ने इस भयावह घटना के बाद आतंकियों के खिलाफ अपना अभियान जारी रखने की बात कही है, लेकिन इसमें संदेह है कि पाकिस्तानी सेना और वहां की सरकार अब आतंकियों के  बीच अच्छे-बुरे का भेद करना बंद कर देगी। यह जगजाहिर है कि पाक सेना और सरकार तालिबान आतंकियों के खिलाफ तो सक्रिय है लेकिन अन्य तमाम जेहादी गुटों को संरक्षण देने में जुटी हुई है। पाकिस्तान को आतंकी संगठनों के प्रति अपनी रीति-नीति के साथ सोच-विचार में व्यापक परिवर्तन लाने की जरूरत है और पाकिस्तान को अपनी इन नीतियों को बदलने की सख्त जरूरत है। बेहतर हो कि राष्ट्रीय शोक से गुजर रहा पाकिस्तान उन भूलों का अहसास करे जिसके चलते वह एक अस्थिर, अशांत और खतरनाक राष्ट्र में तब्दील हो चुका है। पाकिस्तान आज एक फेल स्टेट बन गया है जिसकी राष्ट्रीय नीति आतंकवाद पर आधारित है।

-अनिल नरेन्द्र

Sunday, 14 December 2014

रेव पार्टीज के लिए 8 करोड़ के ड्रग्स पकड़े

यह चौंकाने वाली बात है कि राजधानी दिल्ली में सम्पन्न युवा पीढ़ी में ड्रग्स का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। आए दिन करोड़ों रुपए के ड्रग्स पकड़े जाते हैं। हाल ही में नए साल की रेव पार्टियों में इस्तेमाल होने वाले ड्रग्स की एक बड़ी खेप पकड़ी गई है। न्यू ईयर इवेंट से पहले ही ड्रग्स के सौदागरों ने रेव पार्टियों की तैयारी शुरू कर दी है। इसी कड़ी में पूर्वी जिला डिस्ट्रिक्ट की पुलिस ने एलएसडी (लाइसर्जिक एसिड डायथैला माइंड) स्टाम्प पेपर की बड़ी खेप के साथ एक विदेशी समेत दो लोगों को दबोचा है। आरोपियों की पहचान नीदरलैंड निवासी पैडरो मारिया तोबर गारसिया (37) और कृष्णा अपार्टमेंट गार्डन, इंदिरापुरम निवासी सन्नी खन्ना (38) के रूप में हुई है। इनके पास से 1200 एलएसडी स्टाम्प पेपर बरामद हुए हैं। पुलिस की मानें तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत आठ करोड़ रुपए से अधिक है। पुलिस दोनों से पूछताछ कर मामले की छानबीन कर रही है। पूर्वी जिला पुलिस आयुक्त अजय कुमार ने बताया कि टीम को सूचना मिली थी कि अंतर्राष्ट्रीय ड्रग्स तस्कर पैडरो मारिया छह दिसम्बर को ड्रग्स सप्लाई के लिए दिल्ली आया है। यहां वह अपने एक सदस्य से मिलकर ड्रग्स सप्लाई करेगा। इसके बाद एएटीएस इंस्पेक्टर संजीव पाहवा के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई। टीम ने पैडरो और सन्नी को यमुना स्पोर्ट्स काम्प्लैक्स के पास से दबोच लिया। तलाशी में दोनों के पास से 1200 एलएसडी स्टाम्प पेपर मिले। पैडरो ने बताया कि नीदरलैंड से ड्रग्स भारत लेकर आया था। भारत में रेव पार्टियों में एलएसडी की खूब डिमांड है। मुंह मांगे दामों में इसको बेचा जाता है। पैडरो का दिल्ली, गोवा, मुंबई, हिमाचल प्रदेश समेत अन्य राज्यों में नेटवर्प फैला हुआ है। पुलिस की माने तो न्यू ईयर पर होने वाली रेव पार्टियों के लिए इस ड्रग्स को भारत लाया गया था। जांच में  पुलिस को यह भी पता चला है कि पैडरो भारत से ड्रग्स लाकर यहां से चरस ले जाता था। इसके लिए गैंग के सदस्य उसकी मदद करते थे। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि भारत में एलएसडी की इतनी बड़ी खेप दूसरी बार पकड़ी गई है। अब आपको बताते हैं कि क्या है एलएसडी और कैसे करते हैं इसका नशा। एलएसडी बेहद हाई लिक्विड या स्टाम्प पेपर (एलएसडी में डूबा हुआ पेपर) की शक्ल में होता है। अधिक उत्तेजना पैदा करने के लिए इसका नशा किया जाता है। अधिकतर हाई प्रोफाइल पार्टीज में इसका इस्तेमाल किया जाता है। जीभ पर एलएसडी की ड्राप या स्टाम्प पेपर को रखा जाता है। बाद में पेपर को चबा लिया जाता है। ड्राप डालने या पेपर चबाने के बाद लम्बे समय तक एलएसडी का नशा रहता है। जानकारों की माने तो इस नशे की ओवर डोज से कई बार मौत भी हो जाती है। एलएसडी हाई प्रोफाइल लिक्विड या स्टाम्प पेपर बेहद कीमती होने के चलते इसका इस्तेमाल हाई प्रोफाइल के बिगड़ैल युवा रेव पार्टियों में करते हैं। भारत में ड्रग्स का बढ़ता  प्रचलन हमारे समाज के लिए खतरे की घंटी है। मुश्किल यह है कि आजकल की युवा पीढ़ी बड़ों की बात मानने को भी तैयार नहीं होती।

-अनिल नरेन्द्र

आत्महत्या की कोशिश अपराध नहीं, हटेगी धारा 309

आत्महत्या का प्रयास अब दंडनीय अपराध नहीं रहेगा क्योंकि सरकार ने भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को हटाने का फैसला किया है। विधि आयोग की सिफारिश के मद्देनजर सरकार ने यह फैसला किया है। इस धारा को हटाने के बारे में 22 राज्यों एवं चार केंद्र शासित प्रदेशों ने सहमति जताई है। गृह राज्यमंत्री हरिभाई परथीभाई चौधरी ने एक सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारतीय विधि आयोग ने अपनी 210वीं रिपोर्ट में यह सिफारिश की है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 309 (आत्महत्या का प्रयास) को कानून की पुस्तक से हटा देना चाहिए। भारतीय दंड संहिता से इस धारा को समाप्त करने की सिफारिश लम्बे समय से की जा रही है। 44 साल पहले भी विधि आयोग ने इस कानून को हटाने का प्रस्ताव दिया था। अभी तक आत्महत्या का प्रयास करने वालों के खिलाफ जुर्माना और एक साल कैद की सजा का प्रावधान है। इस मुद्दे के दो पहलू हैं। तमाम न्यायविद मानते रहे हैं कि खुदकुशी करने में नाकाम रहने वाले व्यक्ति के लिए यह दोहरी प्रताड़ना जैसा है। ऐसा करने में जो सफल हो गया यानि जिसने स्वेच्छा से मौत को गले लगा लिया, कानून उसके खिलाफ तो कुछ नहीं कर सकता पर जो बच गया उसे प्रताड़ित करता है। अनेक मानसिक यंत्रणाओं से गुजरने के बाद ही कोई व्यक्ति आत्महत्या का रास्ता अपनाता है, इसलिए उसे मानसिक रोगी की श्रेणी में रखा जाना चाहिए न कि अपराध की। ऐसे व्यक्ति को सहानुभूति और चिकित्सीय मदद की दरकार होती है, सजा की नहीं। विधि आयोग ने वस्तुत इसी अमानवीयता को खत्म करने की सिफारिश की थी जिस पर 18 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों की सहमति के बाद केंद्र सरकार ने मुहर लगाने का फैसला लिया है। इस प्रसंग में विधि आयोग की सदिच्छा और केंद्र सरकार की मानवीय पहल स्वागत योग्य तो है, पर यह आत्महत्या को जायज ठहराने का प्रयास कदापि नहीं लगना चाहिए बल्कि धारा 309 को खत्म करने के दूसरे खतरे भी हैं। आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से हटाए जाने से इसके पीछे के कारणों की तलाश भी मुश्किल हो सकती है। इसका विशेष रूप से कर्ज की वजह से खुदकुशी करने वाले किसानों और दहेज हत्याओं पर असर पड़ सकता है। बिहार, मध्यप्रदेश, सिक्किम जैसे राज्यों ने इसे खत्म करने का इस आधार पर विरोध किया है कि इससे राज्य सरकारों को ब्लैकमेल करने वालों, आमरण अनशन और आत्मदाह की बात करने वालों के हौसले बुलंद हो सकते हैं लिहाजा कानूनी ऐसी कोई व्यवस्था होनी ही चाहिए ताकि ऐसे लोगों को नियंत्रण में रखा जा सके। आत्मघाती हमलावरों की विश्वव्यापी पैठ के इस दौर में भी आत्महत्या की कोशिश को अपराध न मानने के खतरे होंगे। देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले ये लोग सबूत मिटाने की कोशिश में भी आत्महत्या का प्रयास करते हैं। ऐसे में धारा 309 को खत्म करते हुए सरकार को ऐसे कानूनी प्रावधानों के बारे में भी सोचना ही होगा जिससे अपराधी, समाज विरोधी तत्वों और आतंकवादियों को इसका लाभ न मिले।

Saturday, 13 December 2014

अमेरिकी सीनेट ने खड़ा किया सीआईए को कठघरे में

यह किसी से छिपा नहीं है कि 9/11 के बाद अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने ग्वांतानामो बे नामक जेल में  बहुत बर्बर तरीके से गिरफ्तार कथित आतंकियों से पूछताछ की। इस पर कई फिल्में भी बन गई हैं, मैंने ऐसी फिल्में देखी हैं और देखने पर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। अब अमेरिकी सीनेट ने सीआईए को 9/11 के बाद बर्बर तरीकों से पूछताछ का दोषी ठहराया है। अमेरिकी सीनेट की गुप्तचर सेवाओं से संबंधित संसदीय समिति ने उस संदेह की पुष्टि कर दी है, जिसके बारे में काफी आरोप लग रहे थे। समिति ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में सीआईए ने आतंकवाद के आरोप में पकड़े गए लोगों को पूछताछ के दौरान यातनाएं दीं और उसके कुछ तरीके बहुत ही कूर थे। चौंकाने वाला पहलू यह भी है कि सीआईए ने अमेरिकी संसद और सरकार दोनों से यह बात छिपाई और हमेशा यही दावा किया कि उसके तरीके पूरी तरह मानवीय थे। सीनेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि सीआईए ने देश को बर्बर तरीकों से पूछताछ के बारे में गुमराह किया। रिपोर्ट में कहा गया कि पूछताछ बहुत ही खराब ढंग से की गई और इसके जरिये जो जानकारी जुटाई भी गई वो भरोसे काबिल नहीं थी। 9/11 के बाद शुरू गिरफ्तारियों और पूछताछ के कार्यक्रम की जब बहुत ज्यादा निंदा हुई तो राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उसको बंद करने का आदेश दिया। अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति डिक चेनी ने सीआईए के समर्थन में कहा कि देश की सुरक्षा के लिए कुछ सख्ती बरतना जरूरी है और इस सख्ती से बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल हुईं। इसी जानकारी की वजह से ओसामा बिन लादेन को भी खत्म किया जा सका था। हालांकि सीनेट की संसदीय समिति ने इस बात को गलत करार दिया है और ज्यादतियां करने से महत्वपूर्ण जानकारी हाथ लगी है या लादेन तक पहुंचने में ऐसे तरीकों का कोई योगदान है। रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया में संयुक्त राष्ट्र ने अमेरिका से कहा है कि दोषी अधिकारियों पर मुकदमा चलाया जाए। संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि बेन एमरसन ने कहा कि रिपोर्ट से साफ है कि बुश प्रशासन के दौरान नीतियां इस तरह से बनाई गईं जिससे मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ। उधर सीआईए के निदेशक जॉन ब्रेनन ने  जोर देकर कहा गलतियों के  बावजूद अलकायदा के संदिग्धों के खिलाफ इस्तेमाल किए गए तरीकों से हमले रुके और अमेरिकियों की जानें बचीं। ओबामा ने राष्ट्रपति बनने के बाद 2009 में इस तरह की पूछताछ कार्यक्रमों पर रोक लगा दी थी और ग्वांतानामो बे को  बंद करने के आदेश दे दिए थे। इस पूछताछ में कैदियों के सिर को पानी में डुबोना, उन्हें बेइज्जत करना और सोने न देने जैसे तरीके शामिल थे। डेमोकेट सदस्यों के बहुमत वाली सीनेट इंटेलीजेंस कमेटी ने कई सालों के अध्ययन के  बाद इस रिपोर्ट को तैयार किया है। अमेरिका में भी इस रिपोर्ट को  लेकर काफी बवाल हो रहा है। हालांकि दूसरी तरफ हमारे सामने आईएस जैसे संगठन भी हैं जो खुलेआम बंधकों का सिर कलम कर रहे हैं और उन्हें दिखा भी रहे हैं। जब आतंकवादी लोगों के सिर काटने का वीडियो प्रसारित कर रहे हैं तो हो सकता है कि सीआईए की ज्यादतियों के प्रति भी लोगों में समर्थन भाव पैदा हो। पर अमेरिका एक सभ्य देश है और आईएस एक बर्बर आतंकी संगठन। पूछताछ के तरीके भी सभ्य होने चाहिए कम से कम अमेरिका से तो यही उम्मीद की जाती है।

-अनिल नरेन्द्र

धर्मांतरण ने भाजपा को धर्म संकट में डाला

आगरा में घर वापसी के नाम पर जो कुछ हुआ उसने तूल तो पकड़ना ही था खासकर इसलिए कि जो मुस्लिम कथित रूप से हिन्दू धर्म में लौटे वे ही सवाल खड़े कर रहे हैं। संसद से लेकर सड़क तक इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं। राज्यसभा में इस बात पर इतना हंगामा हुआ कि केंद्र सरकार ने इससे पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह राज्य सरकार का मामला है। गौरतलब है कि आगरा में सोमवार को घर वापसी के नाम पर करीब 60 मुस्लिम परिवारों का धर्म परिवर्तन कराया गया। ऐसा लगता है कि घर वापसी का यह आयोजन जल्दबाजी में और दिखावे के लिए किया गया। आरएसएस और  बजरंग दल ने दावा किया कि ये स्वेच्छा से हिन्दू बने हैं। लेकिन अगले ही दिन मीडिया में उन परिवारों के कुछ सदस्यों ने कहा कि धर्म परिवर्तन का यह नाटक उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन देकर कराया गया है। कुछ का कहना था कि उन्हें आधार कार्ड और प्लाट जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने का वादा किया गया था। जो भी हो यह भी एक तथ्य है कि भारत में एक समय बहुत से लोगों को जोर-जबरदस्ती से इस्लाम का अनुयायी बनाया गया और यही कारण है कि आज भी तमाम मुस्लिम यह स्वीकार करते हैं कि उनके पूर्वज हिन्दू थे, लेकिन उनकी घर वापसी कभी भी आसान नहीं रही। एक कटु सत्य यह भी है कि गरीबों की सेवा के नाम पर सक्रिय ईसाई मिशनरियों ने बड़े पैमाने पर लोगों को तरह-तरह के लालच देकर ईसाई बनाया। यह काम तो अभी भी पूर्वोत्तर राज्यों में चल रहा है। इन तथ्यों के बावजूद हिन्दू संगठन घर वापसी के नाम पर ऐसा कुछ करें जिससे विवाद पैदा हो सही नहीं माना जा सकता। उपासना पद्धति एक व्यक्तिगत मामला है जहां न तो जोर-जबरदस्ती चलनी चाहिए और न ही प्रलोभन इत्यादि। इससे भाजपा को कोई फायदा नहीं होने वाला है उलटा नुकसान ही होगा। विकास के नारे पर अपनी पहचान बनाने में जुटी भाजपा को धर्मांतरण के मामले में ज्यादा फायदा नहीं होने वाला। पार्टी को लग रहा है कि इससे उसका एजेंडा पटरी से उतर सकता है। यही वजह है कि पार्टी की कोशिश है कि यह मामला जल्द निपटना चाहिए। धर्मांतरण का एक ऐसा ही कार्यक्रम 25 दिसम्बर को अलीगढ़ में आयोजित किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि वहां कई ईसाई परिवार स्वेच्छा से हिन्दू धर्म अपनाएंगे। धर्म परिवर्तन बेहद संवेदनशील मामला है। हमारे देश में किसी भी व्यक्ति को कोई भी धर्म मानने की स्वतंत्रता संविधान से मिली हुई है। कोई चाहे तो वह अपना धर्म बदल सकता है, लेकिन इसके लिए कुछ कानूनी प्रावधान किए गए हैं। धर्म बदलने से पहले इस बात की सूचना बाकायदा प्रशासन को देनी होती है। दबाव या लालच देकर धर्म परिवर्तन कराना कानून के विरुद्ध है। उत्तर प्रदेश में चूंकि चुनाव होने वाले हैं ऐसे में राज्य की कुछ विपक्षी पार्टियों को लगता है कि उन्हें राजनीतिक तौर पर इससे फायदा होगा। हमारा तो बस इतना कहना है कि जो कुछ हो वह देश के कानून के तहत ही हो।

Friday, 12 December 2014

अफसोस निर्भया कांड से कोई सबक नहीं लिया गया

यह दूसरी निर्भया है जिसकी जान बच गई वरना 16 दिसम्बर 2012 की उस खौफनाक रात की तरह इस निर्भया के साथ भी रौंगटे खड़े कर देने वाली हैवानियत होने वाली थी। रूह को कंपा देने वाला यह सच निकल कर अब सामने आया है। पुलिस के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक गुड़गांव की फाइनेंस कम्पनी में जॉब करने वाली यह युवती जरा-सी होशियारी से बच गई। यह खुलासा जांच के दौरान सामने आया है। कैब में बलात्कार की वारदात को अंजाम देने से पहले आरोपी शिव कुमार यादव ने युवती को इस कदर पीटा था कि उसका मुंह सूज गया। आरोपी ने 16 दिसम्बर 2012 की उस रात निर्भया जैसा हाल बनाने की युवती को धमकी देते हुए कहा था कि उसके शरीर में लोहे का सरिया डाल देगा। आरोपी शिव कुमार ने युवती की हत्या करने की कोशिश की मगर लड़की ने होशियारी दिखाई और उस वक्त उसके चंगुल से निकलने के लिए रोते-बिलखते हुए जैसे-तैसे झांसा देकर कूदने में कामयाब हो गई। यह घटना बताती है कि दो वर्ष पूर्व राजधानी में ही चलती बस में निर्भया के साथ हुई बर्बर घटना के बाद बने कड़े कानून के बावजूद कुछ भी नहीं बदला है। इस शर्मनाक घटना के बाद बेशक पुलिस ने 48 घंटों के भीतर ही आरोपी को पकड़ लिया मगर असली मुद्दा तो महिलाओं की सुरक्षा का है जिसे लेकर पुलिस, प्रशासन व हमारा समाज फेल हो रहा है। दिल्ली में क्राइम अंगेस्ट विमन के मामलों में उलटा वृद्धि ही हुई है। दिल्ली पुलिस रोज ऐसे 40 मुकदमे दर्ज कर रही है। पुलिस स्टेशनों में हर दिन कम से कम चार रेप केस पहुंच रहे हैं जबकि छेड़छाड़, सेक्सुअल हेरेसमेंट, घरेलू हिंसा में भी बढ़ोतरी हुई है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस साल 15 नवम्बर तक क्राइम अंगेस्ट विमन के 13,230 केस दर्ज हुए जबकि इसी दौरान पिछले साल दर्ज मामलों की संख्या 11,479 थी। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हरिभाई चौधरी ने राज्यसभा में उठे सवाल के जवाब में इन आंकड़ों को जारी किया है। इस लिहाज से अगर दिल्ली को रेप कैपिटल कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। जब भी कोई भयानक घटना घटती है खासकर रेप की तो आम लोग ही नहीं जिम्मेदार सरकारी पदों पर बैठे लोग भी उखाड़-पछाड़ की मुद्रा में आ जाते हैं। निर्भया गैंगरेप कांड में जो गुस्सा बलात्कार के आरोपियों के खिलाफ दिख रहा था, कुछ वैसा ही गुस्सा आज आरोपी कैब ड्राइवर और कैब कम्पनी उबर के खिलाफ भी दिख रहा है। लेकिन कम ही लोगों का ध्यान इस तरफ गया है कि दो साल की इस अवधि में सड़कों को लड़कियों के लिए सुरक्षित बनाने की दृष्टि से कोई ठोस काम नहीं किया जा सका है। पुलिस और प्रशासन तंत्र का रुख उलटा बिगड़ा हुआ दिखता है। हैरानी की बात है कि कई देशों में अपनी सेवाएं देने वाली उबर कम्पनी की जिस टैक्सी में उस युवती के साथ बर्बरता की गई उसमें जीपीएस सिस्टम तो छोड़ें, उसके पास दिल्ली में टैक्सी चलाने का  परमिट तक नहीं था। इस युवती के साथ कथित तौर पर दुष्कर्म करने वाला शिव कुमार यादव इससे पहले भी अपनी टैक्सी में दुष्कर्म के मामले में जेल जा चुका है, इसके बावजूद कैसे उसे इस नामी कम्पनी ने अपनी सेवा में  रख लिया था? बेशक ट्रांसपोर्ट विभाग ने उबर की टैक्सियों पर दिल्ली में रोक लगा दी है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि वह अब तक नेशनल परमिट के नाम से कारोबार करती रही है। पिछले एक दशक में राजधानी में चलते वाहन में दुष्कर्म की कई घटनाएं हो  चुकी हैं जिनमें 2010 का चर्चित धौलाकुआं कांड भी है, जिसमें इसी वर्ष अक्तूबर में पांच लोगों को सजा सुनाई गई है। इस घटना का दूसरा अहम पहलू यह है कि दुष्कर्म के मामले में मृत्युदंड के प्रावधान वाला कड़ा कानून भी महिलाओं के लिए सुरक्षा कवच नहीं बन सका है पर केवल पुलिस, प्रशासन को दोष देने से, कड़े से कड़े कानून बनाने से यह मामला रुकने वाला नहीं। जब तक समाज इसे रोकने के लिए आगे नहीं बढ़ेगा तब तक यह मामला चलता रहेगा। कुछ ठोस करना होगा क्योंकि अकेले दिल्ली में ही नहीं बल्कि तमाम महानगरों में महिलाएं नौकरी के सिलसिले में रातों में भी अकेले सफर करने पर मजबूर होती हैं। दुख से कहना पड़ता है कि निर्भया कांड से भी कुछ बदला नहीं।

-अनिल नरेन्द्र