Sunday 26 April 2015

जघन्य अपराधों में 16 वर्ष के किशोर को वयस्क माना जाए

निर्भया बलात्कार कांड के बाद यह मांग लगातार उठती रही है कि जघन्य अपराधों को अंजाम देने वाले किशोरों के साथ उनकी उम्र के आधार पर कोई नरमी न बरती जाए। अब केंद्र सरकार ने इस निर्णय के जरिये इस ओर महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है कि जुर्म की गंभीरता के आधार पर तय किया जाएगा कि आरोपी किशोर पर मुकदमा जुवेनाइल जस्टिस कोर्ट में चलेगा या सामान्य अदालत में। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने किशोर न्याय कानून में इस महत्वपूर्ण संशोधन को मंजूरी दे दी है जिसके मुताबिक हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के मामले में 16 से 18 वर्ष तक के किशोर अपराधियों के खिलाफ वयस्क अपराधों जैसा मुकदमा चलाने का प्रावधान है। दिसम्बर 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद से इस कानून के प्रावधानों को लेकर बहस चल रही है। दरअसल इस बर्बर अपराध में एक 17 वर्षीय किशोर भी शामिल था, जिसे किशोर सुधार गृह भेजा गया। हालांकि बलात्कार के मामले में सख्त कानून बनाने के वास्ते गठित किया गया जस्टिस जेएस वर्मा आयोग किशोर अपराध के मामले में उम्र सीमा घटाने के पक्ष में नहीं था। दिवंगत जस्टिस वर्मा का कहना था कि हमारे सामाजिक ढांचे की वजह से इसका सामान्यकरण नहीं किया जा सकता। लेकिन देश में व्यापक रूप से इसके पक्ष और विरोध में दो मत रहे हैं। यहां तक कि संसद की स्थायी समिति तक ने किशोर अपराधों की उम्र घटाने की मांग को खारिज कर दिया था। वास्तव में इस मुद्दे को बदलती परिस्थितियों में देखने की भी जरूरत है, जहां किशोरों की पहुंच इसके साथ ही अपराधों के सधानों तक भी बढ़ी है पर जमीनी हकीकत बताती है कि 2013 वर्ष में 2074 किशोरों ने रेप किया और इनमें 2054 रेप 16-18 वर्ष की आयु के बीच के किशोरों ने किए थे। मौजूदा कानून के अनुसार 18 वर्ष से कम के व्यक्ति को सामान्य कानूनों के तहत सजा नहीं दी जा सकती और न ही उसे जेल में रखा जा सकता है। किशोर न्याय कानून में अधिकतम सजा तीन वर्ष है और यह अवधि किशोर को बाल सुधार गृह में बितानी पड़ती है। केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूर प्रस्तावित अधिनियम के मुताबिक जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ही यह तय करेगा कि किसी किशोर द्वारा अपराध एक नाबालिग के तौर पर अंजाम दिया गया या वयस्क के तौर पर। बोर्ड में मनोचिकित्सक और समाज विशेषज्ञ की मौजूदगी यकीनन इस बाबत आश्वस्त करने में सहायक होगी कि किसी किशोर को नाइंसाफी का शिकार न होना पड़े। इस तरह सरकार ने जुवेनाइल उम्र सीमा में कमी न करते हुए यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि किशोरों द्वारा अंजाम दिए जाने वाले जघन्य अपराधों के कहर पर लगाम लगाई जा सके। सुप्रीम कोर्ट भी जिस तरह छह अप्रैल को अपराधों में किशोरों की बढ़ती संलिप्तता से उत्पन्न स्थिति को लेकर कानूनी प्रावधानों में बदलाव की अपेक्षा की थी, प्रस्तावित अधिनियम उसे पूरा करने का इरादा दिखाता है। निर्भया कांड में हमने देखा कि इस जघन्य अपराध का मास्टर माइंड महज इसलिए बच गया क्योंकि वह कुछ ही महीनों से नाबालिग साबित हो गया। जब वह अपराध मझे हुए अपराधियों की तरह करता है तो सजा भी उसे उसी अपराध की तरह मिलनी चाहिए। हम सरकार के इस कदम का स्वागत करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

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