Tuesday, 28 April 2015

...और अब कमजोर मानसून से निपटने की चुनौती

यह खबर निसंदेह मायूसी पैदा करने वाली है कि इस साल भी मानसून सामान्य से कम रहेगा। जिस समय अधिकांश ग्रामीण इलाका पिछले साल की खराब मानसून और बाद में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की मार से जूझ रहा है सारी उम्मीदें आगे की संभावनाओं पर टिकी थीं। पिछले साल की अपर्याप्त मानसूनी बारिश से जो दिक्कतें पैदा हुईं, वह बीते दिनों बेमौसम बारिश और ओलों की बौछार से और बढ़ गई हैं। अब मौसम विभाग ने कहा है कि इस साल भी मानसून के सामान्य से कम होने की आशंका है। मौसम विभाग का कहना है कि हो सकता है कि मानसूनी बारिश सामान्य की 93 प्रतिशत तक ही रहे। इसकी मुख्य वजह प्रशांत महासागर में अल नीनो प्रभाव की मौजूदगी बताई जा रही है। अल नीनो की वजह से प्रशांत महासागर का पानी सामान्य से ज्यादा गरम हो जाता है, जिससे मानसून के बादलों का बनना और भारत की ओर इसकी गति कमजोर हो जाती है। अगर देश में सूखे की स्थिति होती है तो यह केवल देश के किसान के लिए ही नहीं, पूरी अर्थव्यवस्था के लिए चिन्ता कारण बन रही है। यदि किसान की जेब में पैसा नहीं होगा तो एक ओर तो बाजार की चाल को मंदी की चपेट में आने से नहीं रोका जा सकता और दूसरी ओर जनता को महंगाई की मार से भी नहीं बचाया जा सकता। भारत में मौसम की परिस्थितियां इस कदर गंभीर हैं फिर भी इस ओर जितना ध्यान देने की आवश्यकता है उसका अंश मात्र भी नहीं दिया जा रहा है। यह पहली बार नहीं जब किसान बेमौसम बारिश का शिकार हुआ है। करीब करीब हर वर्ष देश के किसी न किसी हिस्से में या तो बाढ़ आती है या सूखा पड़ता है। इस बार फसलों की क्षति का दायरा बढ़ा अवश्य है लेकिन किसानों की आत्महत्या के बढ़ते मामले यही बता रहे हैं कि वह खुद को ज्यादा ही संकट में घिरा पा रहे हैं। इस संकट की एक बड़ी वजह किसानों का वह कर्ज है जो  उन्होंने ले रखा है और अब फसल की बर्बादी के चलते उनके लिए उसे चुकाना मुश्किल हो गया है। राजनीतिक दलों को यह पता होना चाहिए कि एक बड़ी संख्या में किसान अपनी जरूरतों के लिए साहूकारों, सूदखोरों से कर्ज लेते हैं। जिन किसानों ने बैंकों से कर्ज ले रखा है उनकी संख्या सीमित है। हो सकता है कि इन किसानों को बैंकों से कुछ राहत मिल जाए लेकिन साहूकारों और सूदखोरों से कर्ज लेने वाले किसानों को कहीं कोई राहत नहीं मिलने वाली। दीर्घकालिक तौर पर महज 93 प्रतिशत बारिश होने की संभावना है जो घटकर 88 प्रतिशत तक रह सकती है। केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीक मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने भारतीय मौसम वैज्ञानिकों का आंकलन पेश करते हुए देश के कुछ हिस्सों में सूखा पड़ने की आशंका जताई है। भारत जैसे देश में जहां खेती का बड़ा हिस्सा मौसमी बारिश पर निर्भर है, ऐसी भविष्यवाणियों का असर सहज समझा जा सकता है। दरअसल मानसून भविष्यवाणियों के साथ खासकर भारत में यह समस्या है कि ठीक-ठीक से यह मालूम नहीं होता कि कम बारिश का असर किस इलाके में ज्यादा होगा और जो वर्षा होगी वह कब होगी। नतीजतन किसान समय रहते आपात स्थिति से मुकाबले के लिए तैयार नहीं हो पाते।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment